नई दिल्ली: एक तरफ दिल्ली में कोविड-19 के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, उधर महामारी नियंत्रण के लिए लागू की गईं गाइडलाइन्स में और ढील दी जा रही है.
शनिवार को जारी दो अलग-अलग आदेशों में, दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) ने, जिसके अध्यक्ष उप-राज्यपाल हैं और सदस्य सीएम और उनकी कैबिनेट के दूसरे सदस्य हैं, शादियों में 200 मेहमान (50 से बढ़ाकर), और सार्वजनिक बसों को पूरी क्षमता पर (पहले के 50 प्रतिशत से बढ़ाकर), चलाने की अनुमति दे दी.
इस बीच, मंगलवार को दिल्ली ने कोविड मामलों में एक नया रिकॉर्ड कायम किया, जब पंजीकृत इनफेक्शंस की संख्या 6,725 पहुंच गई, जो देशभर की कुल संख्या का 18 प्रतिशत थी. लगातार पांच दिन 5,000 से ऊपर बने रहने के बाद, सोमवार को रोज़ाना मामलों की संख्या, 4,000 से नीचे आ गई थी.
मंगलवार को दिल्ली में कुल दर्ज मामलों की संख्या 4,03,096 थी, जिनमें 3,60,069 ठीक हो चुके थे, और 6,652 मौतें थीं.
दिप्रिंट से बात करते हुए एक्सपर्ट्स ने कहा कि कोविड के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र, शादियों जैसे बड़े समारोह सुपर-स्पैडर घटनाओं में बदल सकते हैं. इसलिए अथॉरिटीज़ का ज़ोर सोशल डिस्टेंसिंग और भीड़ नियंत्रण पर होना चाहिए.
इस रिपोर्ट के लिए दिप्रिंट ने, फोन कॉल के ज़रिए दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ नूतन मुंडेजा और ई-मेल के ज़रिए दिल्ली के प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) विक्रम देव दत्त और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन से टिप्पणी के लिए संपर्क किया. लेकिन इस रिपोर्ट के छपने तक कोई जवाब हासिल नहीं हुआ.
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शादियों में 200 मेहमान, पूरी क्षमता से चलेंगी बसें
शादियों पर अपने आदेश में, जो दिप्रिंट के हाथ लगा है, डीडीएमए ने वेडिंग हॉल्स को अपनी क्षमता का 50 प्रतिशत इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी- जिसमें 200 की ऊपरी सीमा रखी गई है. खुली जगहों के मामले में ये क्षमता, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट्स या ज़िले के पुलिस उपायुक्त तय करेंगे.
एक अन्य आदेश में, डीडीएम ने दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की बसों पर लगाई बंदिशों में भी ढील दे दी और उन्हें अपनी बसें पूरी क्षमता पर चलाने की इजाज़त दे दी. लेकिन, किसी यात्री को खड़े होने की अनुमति नहीं होगी और बस में चढ़ने और उतरने के दरवाज़े अलग ही रहेंगे.
बसों और शादियां दोनों में मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य होगा.
एक्सपर्ट्स को चिंता है कि बंद जगहों में 200 मेहमानों के साथ बड़ी शादियां, सुपर-स्प्रैडर बन सकती हैं या ऐसे आयोजन जो लोगों के एक बड़े समूह के लिए संक्रमण का स्रोत बन सकते हैं.
वायरॉलोजिस्ट और क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर के पूर्व प्रोफेसर डॉ टी जेकब जॉन ने कहा, ‘200 मेहमानों के साथ इंडोर जगहें, सुपर-स्प्रैडर आयोजन बन सकती हैं. मुझे समझ नहीं आता कि मामलों में उछाल के बीच, सरकार इतने बड़े समारोहों की इजाज़त क्यों दे रही है. इसकी बजाए उसका फोकस भीड़ नियंत्रण पर होना चाहिए’.
उन्होंने आगे कहा, ‘प्रदूषण बढ़ने के कारण वायरल ट्रांसमीशन पहले ही बढ़ गया है. ऐसी सूरत में, इस तरह का फैसला लेने से पहले उन्हें कम से कम दो हफ्ते इंतज़ार करना चाहिए था’.
एक्सपर्ट्स ने कहा कि अगर सरकार ने शादियों में 200 मेहमानों को बुलाने की अनुमति दे दी है तो उन्हें ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे समारोहों में कोविड प्रोटोकोल का पालन हो.
स्वास्थ्य अर्थशास्त्री और विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ बतौर सलाहकार काम करने वाले रीजो एम जॉन ने कहा, ‘ऐसे बड़े समारोहों में कोविड नियमों का पालन सुनिश्चित करना, कोई आसान काम नहीं है. आर्थिक गतिविधियों का बहाल किया जाना तो समझ आता है, लेकिन ऐसे आयोजनों में कोविड के अनुरूप बर्ताव सुनिश्चित कराना, बेहद मुश्किल काम है’.
रीजो ने कहा कि ये रियायतें ऐसे समय आई हैं, जब माना जा रहा है कि दिल्ली में टेस्टों की संख्या में कमी आई है.
उन्होंने पूछा, ‘सितंबर में मामलों में पिछले उछाल के दौरान, (सीएम अरविंद) केजरीवाल ने कहा था कि ये उछाल ज़्यादा टेस्टिंग की वजह से आया है. लेकिन अब टेस्टिंग कम हो गई है और मामले बढ़ रहे हैं. टेस्टिंग रणनीति को बदलकर, ज़्यादा निर्णयात्मक आरटी-पीसीआर टेस्ट करना अच्छा है लेकिन जब मामलों की संख्या बढ़ रही है तो वो रैपिड एंटिजेन टेस्ट क्यों कम कर रहे हैं?’
रीजो उस बात की ओर इशारा कर रहे थे जब आरटी-पीसीआर टेस्टिंग की पूरी क्षमता का उपयोग न करने पर दिल्ली हाई कोर्ट की फटकार के बाद राष्ट्रीय राजधानी ने अपनी टेस्टिंग रणनीति में बदलाव किया है. अब वो पहले से ज़्यादा संख्या में आरटी-पीसीआर टेस्ट कर रही है- जिसे कोविड जांच में गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है और रैपिड एंटिजन टेस्टों की संख्या में मामूली कमी की है जिनके नतीजे जल्दी आते हैं लेकिन जिनमें गलत निगेटिव नतीजों की संभावना बनी रहती है.
पिछले हफ्ते कुछ दिनों में दिल्ली में टेस्टिंग की संख्या 36,665 (2 नवंबर), 44,623 (1 नवंबर) और 44,330 (31 अक्तूबर) रही है जबकि सितंबर और अक्टूबर में इसका औसत हर रोज़ 50,000 से अधिक था. लेकिन, अन्य दिनों में ये संख्या औसत से अधिक रही है- 3 नवंबर को ये 59,540, तीस अक्टूबर को 59,641 और 29 अक्टूबर को 60,123 थी.
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‘मौतें रोकने पर फोकस’
गाइडलाइन्स में ढील पर बात करते हुए दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि ये फैसले ‘डीडीएमए की ओर से लिए गए हैं’. लेकिन अधिकारी ने कहा कि सरकार मामलों में और अधिक बढ़ोतरी के लिए तैयारी कर रही है.
‘मामलों में उछाल त्योहारी सीज़न की वजह से आया है. आप देख सकते हैं कि बाज़ारों में लोगों की भीड़ है और वो कोविड प्रोटोकोल का पालन नहीं कर रहे हैं. इसलिए हम अपेक्षा कर रहे हैं कि मामले अभी और बढ़ेंगे लेकिन हम और मौतें रोकना चाहते हैं. हमारा फोकस मृत्यु दर को कम करने पर है’.
अधिकारी के अनुसार सरकार होम आईसोलेशन और अस्पताल में भर्ती, दोनों तरह के मरीज़ों पर करीबी नज़र रखे हुए हैं, ‘हम ऑक्सीजन बेड्स की संख्या भी बढ़ा रहे हैं. प्रदूषण भी बढ़ रहा है जिसकी वजह से हमारा फोकस लक्षण वाले मरीज़ों पर है और ये सुनिश्चित करने पर है कि मौतों पर नियंत्रण रहे’.
केवल अक्टूबर में ही दिल्ली में कोविड मामलों की संख्या एक लाख बढ़ गई है. दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने इस बढ़ोतरी के कारण कोविड गाइडलाइन्स का पालन न करने, त्योहारी सीज़न और प्रदूषण बताए हैं.
जैन ने कहा, ‘मामलों के उछाल के पीछे कुछ कारण हैं, जिनमें त्योहारी सीज़न, तापमान में कमी, प्रदूषण का बढ़ता स्तर शामिल हैं. जब तक असली वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक लोगों को मास्क को ही एकमात्र वैक्सीन समझना चाहिए. बहुत से लोग ये कहकर मास्क पहनने से मना कर देते हैं कि उनपर वायरस का असर नहीं होता. लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि उनकी इस हरकत से बुज़ुर्ग नागरिकों जैसे ग्रुप्स के लिए खतरा पैदा हो जाता है’.
सोमवार को हुई एक बैठक में भी यही आकलन निकलकर आया, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने की और जिसमें दिल्ली पुलिस के अधिकारी भी शरीक हुए थे.
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