नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राज्य कोटे के तहत पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) मेडिकल प्रवेश में डोमिसाइल आधारित आरक्षण को रद्द कर दिया, और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करने के लिए इसे “असंवैधानिक” घोषित किया.
इस फैसले ने राज्य द्वारा संचालित कॉलेजों में पीजी मेडिकल सीटों में से 50 प्रतिशत को राज्य के निवासियों के लिए आरक्षित करने की प्रथा को समाप्त कर दिया है. उदाहरण के लिए हरियाणा का एक छात्र जिसने पंजाब में एमबीबीएस पूरा किया है, वह पहले पंजाब के स्टेट कोटा (संस्थागत वरीयता) और हरियाणा के निवास कोटा दोनों के तहत पीजी सीटों के लिए पात्र था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अगर, इस तरह के आरक्षण की अनुमति दी जाती है तो यह कई छात्रों के मौलिक अधिकारों का हनन होगा, जिनके साथ केवल इस कारण असमान व्यवहार किया जा रहा है कि वह संघ में एक अलग राज्य से हैं. यह संविधान के अनुच्छेद 14 में समानता खंड का उल्लंघन होगा और कानून के समक्ष समानता से इनकार करने के बराबर होगा.”
दूसरे शब्दों में, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने कहा कि स्टेट कोटा की सीटें केवल नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) द्वारा निर्धारित योग्यता के आधार पर भरी जानी चाहिए.
स्टेट कोटा के दो हिस्से
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जूनियर डॉक्टर्स नेटवर्क (IMA JDN) के नेशनल कन्वेनर डॉ ध्रुव चौहान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है.
उन्होंने बताया कि पीजी मेडिकल एडमिशन के लिए स्टेट कोटा दो हिस्सों में विभाजित किया गया था.
उन्होंने कहा, “पहला हिस्सा ‘संस्थागत वरीयता’ था, जो उन स्टूडेंट्स के लिए आरक्षित था जिन्होंने उसी राज्य से अपनी MBBS की डिग्री पूरी की थी जहां वह पोस्ट ग्रेजुएटस कोर्स के लिए आवेदन कर रहे थे.”
उन्होंने कहा कि दूसरा हिस्सा ‘डोमिसाइल आधारित आरक्षण’ था, जहां सीटों का एक हिस्सा उन उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है जो उस विशेष राज्य के स्थायी निवासी हैं.
तीन न्यायाधीशों वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बाद वाले कोटा (डोमिसाइल) को हटा दिया, जिसमें न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने कहा, “हम सभी भारत के निवासी हैं. एक देश के नागरिक और निवासी के रूप में हमारा साझा बंधन हमें न केवल भारत में कहीं भी अपना निवास चुनने का अधिकार देता है, बल्कि हमें भारत में कहीं भी व्यापार और व्यवसाय या पेशा करने का अधिकार भी देता है. यह हमें पूरे भारत में शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश लेने का अधिकार भी देता है.”
हालांकि, फैसला पहले से दिए जा चुके डोमिसाइल-आधारित आरक्षण को प्रभावित नहीं करता है.
चंडीगढ़ में नीति पर स्पष्टता
2019 में दायर की गई कई याचिकाओं पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ में राज्य कोटे की 50 प्रतिशत सीटों के लिए आरक्षण नीति पर भी स्पष्टता दी. इसने फैसला सुनाया कि चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (जीएमसीएच) से एमबीबीएस पूरा करने वाले उम्मीदवार संस्थागत वरीयता के लिए पात्र हैं.
इसके अलावा, जो लोग चंडीगढ़ में पांच साल तक पढ़े हैं, जिनके माता-पिता पांच साल तक वहां रहे हैं, या जिनके पास केंद्र शासित प्रदेश में अचल संपत्ति है, वह यूटी पूल के तहत अर्हता प्राप्त कर सकते हैं. उपलब्ध 64 पीजी सीटों में से 32 को संस्थागत वरीयता के आधार पर सही तरीके से आवंटित किया गया था.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस निष्कर्ष को बरकरार रखा कि शेष 32 सीटों को निवास मानदंड के आधार पर गलत तरीके से आवंटित किया गया था, जिससे पीजी मेडिकल एडमिशन में डोमिसाइल-आधारित आरक्षण को रद्द कर दिया गया.
कई डॉक्टरों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया. अपोलो हैदराबाद के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार ने इसे एक प्रगतिशील कदम बताया. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “अगर हम दुनिया की अग्रणी स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के साथ प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि सर्वश्रेष्ठ डॉक्टरों को नीट-पीजी एंट्रेस एग्जाम में उनकी ऑल इंडिया रैंक के आधार पर उनकी पसंद के मेडिकल कॉलेजों में एमडी, एमएस, डीएम या एमसीएच कोर्स करने का मौका दिया जाए.”
FAIMA डॉक्टर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सह-संस्थापक डॉ. रोहन कृष्णन ने कहा, “योग्यता से कभी समझौता नहीं किया जाना चाहिए. इससे एक जैसे मौके मिलते हैं. ये आरक्षण अक्सर उन उम्मीदवारों से मौका छीन लेते हैं, जो दूरदराज के इलाकों में एमबीबीएस पूरा करने के बावजूद आगे की पढ़ाई के लिए प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ना चाहते हैं.”
दक्षिण की नाराज़गी
तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कड़ा विरोध किया, स्वास्थ्य मंत्री मा. सुब्रमण्यम ने घोषणा की कि राज्य सरकार कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श के बाद जल्द ही समीक्षा याचिका दायर करेगी.
दक्षिणी राज्यों के डॉक्टरों ने भी चिंता जताई है. उनका तर्क है कि यह फैसला क्षेत्रीय अधिकारों और सामाजिक न्याय को कमज़ोर करता है.
डॉक्टर्स एसोसिएशन फॉर सोशल इक्वेलिटी (DASE) के महासचिव डॉ. जी.आर. रवींद्रनाथ ने फैसले को “अत्यधिक निंदनीय” और “खेदजनक” बताया. उन्होंने तर्क दिया कि यह संवैधानिक सिद्धांतों, सामाजिक न्याय, आरक्षण नीतियों और तमिलनाडु और अन्य राज्यों के हितों के खिलाफ है.
उन्होंने कहा, “भारत में भाषाई पहचान के आधार पर राज्यों का गठन किया गया था. हर राज्य को अपनी शिक्षा प्रणाली, भाषा, कौशल, अर्थव्यवस्था और संस्कृति विकसित करने का अधिकार है. यह फैसला भारत के भाषाई ढांचे के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट का यह रुख कि कोई क्षेत्रीय या राज्य-आधारित डोमिसाइल आरक्षण नहीं होना चाहिए, देश के संघीय ढांचे के लिए हानिकारक है.”
फरवरी 2024 में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2023-2024 शैक्षणिक सत्र में 70,645 पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सीटें थीं.
6.76 करोड़ की आबादी वाला कर्नाटक (यूआईडीएआई के आंकड़ों के अनुसार), 6,402 के साथ सबसे अधिक पीजी मेडिकल सीटें प्रदान करता है, इसके बाद 12.63 करोड़ की आबादी के लिए 6,043 सीटों के साथ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है.
चेन्नई के सरकारी कलैगनार सेंटेनरी अस्पताल के वरिष्ठ मूत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. जेसन फिलिप ने एक्स पर अपनी निराशा जताई, जिसमें उन्होंने तमिलनाडु के स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे में व्यापक निवेश पर प्रकाश डाला.
उन्होंने तर्क दिया कि तमिलनाडु की पीजी मेडिकल ट्रेनिंग सिस्टम यह सुनिश्चित करता है कि विशेषज्ञता हासिल करने के बाद डॉक्टर ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण समुदायों की सेवा करने के लिए अपने गृहनगर और गांवों में लौट आएं, इसे उन्होंने “विजेता मॉडल” कहा. उन्होंने बताया कि राज्य ने रोबोटिक सर्जरी, लेजर तकनीक, अत्याधुनिक ऑपरेटिंग थिएटर, निशुल्क बॉन मैरो ट्रांसप्लांट और कैडवर ट्रांसप्लांट सहित अपग्रेडेड मेडिकल इलाज का बीड़ा उठाया है.
डॉ. फिलिप ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दूसरे राज्यों के स्टूडेंट्स को तमिलनाडु के प्रमुख संस्थानों में ट्रेनिंग लेने की अनुमति मिल सकती है — जो तमिल टेक्सपेयर्स फंड करते हैं, लेकिन वह वहां से निकलकर अन्य जगहों पर कॉर्पोरेट अस्पतालों में प्रैक्टिस करेंगे, खासकर उन राज्यों में जिन्होंने स्वास्थ्य सेवा में बहुत कम निवेश किया है. उन्होंने इसे “तमिलनाडु के संसाधनों के दुरुपयोग” के बराबर बताया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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