बेंगलुरु: यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के वेलकम सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव न्यूरोइमेजिंग के वैज्ञानिकों ने कई सारे कोविड रोगियों के मस्तिष्क की संरचना में बदलाव पाया है. इनमें हल्के संक्रमण से गुजरने वाले लोग भी शामिल हैं.
एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं के दल ने सभी प्रतिभागियों के मस्तिष्क के एमआरआई स्कैन को देखा, जिसमें हेल्दी कण्ट्रोल वाले लोग (वैसे लोग जिन्हें बीमारी नहीं हुई थी) भी शामिल थे. इस दल के पास सभी प्रतिभागियों के महामारी की शुरुआत से पहले के ब्रेन स्कैन भी उपलब्ध थे.
बायोमेडिकल डेटाबेस यूके बायोबैंक के 785 प्रतिभागियों पर किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि जो लोग कोविड से संक्रमित थे, उनमें ‘ग्रे मैटर’ की मोटाई में काफी कमी आई थी, मस्तिष्क के उन क्षेत्रों में जो सूंघने या गंध पता करने से सम्बंधित हैं उत्तकों की क्षति हुई थी और मस्तिष्क के आकार में एक समग्र सकुचन भी देखा गया.
वैज्ञानिकों ने इस बात का भी उल्लेख किया कि जिन प्रतिभागियों के मस्तिष्क के स्कैन में परिवर्तन देखा गया, उनमें लगातार दो पोस्ट-कोविड स्कैन – जो थोड़े अंतराल पर किये गए थे – के बीच संज्ञानात्मक क्षमता में अधिक गिरावट देखी गई. ये प्रभाव उन लोगों में भी देखे गए जिन्होंने केवल हल्के कोविड संक्रमण का अनुभव किया था और जिन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया था.
उनके निष्कर्षों को इस सोमवार ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित किया गया था.
लेखकों का कहना है कि इस शोध पत्र के निष्कर्ष मस्तिष्क में घ्राण मार्गों (ओल्फक्टोरी पाथवे) के माध्यम से कोविड के अपक्षयी प्रसार (डिजेनेरेटिव स्प्रेड) की पहचान कर सकते हैं, जो या तो एनोस्मिया (गंध की हानि) की वजह से संवेदी (सेंसरी) इनपुट की हानि से या फिर रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क की सूजन के माध्यम से हो सकता है.
हालांकि, लेखकों ने इस बारे में भी आगाह किया है कि दिखाई दे रहे मस्तिष्क के परिवर्तनों के निहितार्थ स्पष्ट नहीं हैं, और अत्यधिक लोचदार या लचीला मानव मस्तिष्क अभी भी ठीक हो सकता है या फिर यह भी हो सकता है कि इन रोगियों के सम्बन्ध में यह पहले से ही ठीक होने की प्रक्रिया में हो.
उनका कहना है कि इन निष्कर्षों का यह मतलब कतई नहीं है कि कोविड का संक्रमण लंबी अवधि में याददाश्त या अनुभूति को प्रभावित करेगा और साथ ही यह भी अभी स्पष्ट नहीं है कि क्या ये परिवर्तन किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करेंगे.
इस पेपर में वैज्ञानिकों के दल ने लिखा है, ‘क्या इस हानिकारक प्रभाव को आंशिक रूप से पलट कर ठीक किया जा सकता है, या क्या ये प्रभाव लंबे समय तक बने रहेंगे, इस बारे में अतिरिक्त फॉलो-अप के साथ जांच की जानी बाकी है.’
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अध्ययन का डिजाइन और इसके निष्कर्ष
इस अध्ययन के लिए, वैज्ञानिकों ने यूके बायोबैंक से 785 प्रतिभागियों की भर्ती की. यह यूके के 5,00,000 से अधिक नागरिकों की आनुवंशिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी को 15 वर्षों के लिए संजो कर रखने वाला एक बड़े पैमाने का डेटाबेस है. इस डेटाबेस में शामिल किए गए सभी प्रतिभागियों के महामारी की शुरुआत से पहले के एमआरआई ब्रेन स्कैन थे और यह आवर्ती आधार (रोलिंग बेसिस) पर कोविड के री-इमेजिंग अध्ययनों से सम्बंधित डेटा भी जारी कर रहा था.
प्रतिभागियों में से 401 ने कोविड के विभिन्न चरणों का सामना किया था, जबकि 384 हेल्दी कण्ट्रोल वाले प्रतिभागी थे, जिनके बीच दो स्कैन के मध्य के समय अंतराल, उम्र, लिंग, और जातीयता के मामले में समानता रखी गयी थी. सभी प्रतिभागियों की उम्र 51 से 81 के बीच थी.
रोगियों में से 15 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और दो को तो गंभीर उपचार दिया गया था. ये दोनों मरीज़ कॉमरेडिडिटी की बढ़ती हुई गंभीरता वाले वृद्ध पुरुष थे.
बाद वाले स्कैन ने मस्तिष्क के उन क्षेत्रों में रोगियों और हेल्दी कण्ट्रोल वाले प्रतिभागियों के बीच अंतर दिखाया जो कार्यात्मक रूप से प्राइमरी ओल्फक्टोरी कोर्टेक्स (सेरेब्रल कॉर्टेक्स का एक हिस्सा जो गंध पता करने की संवेदना में शामिल होता है) से जुड़े हुए हैं.
उन्होंने हेल्दी कण्ट्रोल वाले प्रतिभागियों की तुलना में रोगियों के मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों में ‘ग्रे मैटर’ की मोटाई में कमी भी पाई. ‘ग्रे मैटर’ में न्यूरॉन्स के साथ-साथ सिनैप्स भी होते हैं, जो न्यूरॉन्स को एक दूसरे तक इलेक्ट्रिकल सिग्नल पहुंचाने में मदद करते हैं. ग्रे मैटर की कोशिकाएं मांसपेशियों की हरकत, संवेदी इनपुट, दर्द, गति और कंपन से सम्बन्धी इनपुट, चयापचय कार्यों के लिए मांसपेशियों के शिथिलिकरण (रिलैक्सेशन), शारीरिक प्रतिक्रियाओं के दौरान शरीर के अंगों में परिवर्तन, तथा और भी बहुत सारी शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने में शामिल होती हैं.
‘ग्रे मैटर’ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) के प्रमुख घटकों में से एक है और इसमें जीवनशैली, मादक द्रव्यों के सेवन और गर्भावस्था के कारण भी बदलाव हो सकता है.
लेखकों ने पाया कि ‘ग्रे मैटर’ में सबसे ज्यादा कमी घ्राण प्रसंस्करण (सूंघने की संवेदना को संसाधित करने) से जुड़े क्षेत्रों में हुई.
रोगियों के दिमाग ने ओल्फक्टोरी कम्प्लेक्से से जुड़े क्षेत्रों में ऊतक क्षति के प्रमाण को भी प्रदर्शित किया. हालांकि, यह इस क्षेत्र पर रोग का सीधा प्रभाव भी हो सकता था (वायरस के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में प्रवेश किए बिना भी), फिर भी यह भी संभावना है कि यहां की कोशिकाओं की मृत्यु इनके उपयोग में कमी के कारण हुई क्योंकि रोगियों को लगातार एनोस्मिया या गंध की कमी का सामना करना पड़ा था.
घ्राण प्रणाली में सबसे ज्यादा परिवर्तन ओल्फक्टोरी सिस्टम, गंध को महसूस करने वाले तंत्र, और लिम्बिक सिस्टम, जो जीवित रहने के लिए आवश्यक मुख्य व्यवहार और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं में शामिल हैं, में देखा गया.
याददाश्त और पुनः स्मरण से जुड़े मस्तिष्क के हिस्से ‘पैराहिपोकैम्पल गाइरस’ में भी ग्रे मैटर की कमी देखी गई.
लेखकों ने यह भी पाया कि मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में आयतन (वॉल्यूम) और आकार में समग्र कमी दिखाई दी.
इस बात की पुष्टि करने के लिए कि मस्तिष्क पर पड़ा यह प्रभाव कोविड से हुआ था न कि निमोनिया या इन्फ्लूएंजा से, शोधकर्ताओं के दल ने इनकी उन प्रतिभागियों के समूहों के साथ अतिरिक्त तुलना की, जिन्हे निमोनिया और इन्फ्लूएंजा का संक्रमण तो हुआ था, लेकिन कोविड का नहीं.
संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट
यह अध्ययन लॉन्ग कोविड से जुड़े अनुसंधान की बढ़ती संख्या में एक और कड़ी है और यह उन शुरुआती निश्चयात्मक अध्ययननों में से है जो यह जानने की कोशिश करते हैं कि कोविड शरीर और मस्तिष्क को कितने समय तक प्रभावित करता है.
संक्रमण के बाद लॉन्ग कोविड के हफ्तों और महीनों के तक दिखाई देने वाले लक्षणों में मुख्य रूप से थकान, सांस की तकलीफ, मस्तिष्क में उलझन (ब्रेन फोग), एकाग्रता में कमी, नींद में व्यवधान, चिंता में वृद्धि और संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली में कमी शामिल हैं.
कोविड के बाद समय के साथ मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तनों की तुलना कोविड से पहले के ब्रेन स्कैन से करने वाला यह पहला अध्ययन है.
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि जो लोग कोविड से पीड़ित थे, उन्हें संज्ञानात्मक कार्यों को करने में पहले की तुलना में अधिक कठिनाई होती थी. उन्हें स्मृति को मापने, जोड़े का मिलान करने, और ऐसे ही बहुत सारे कार्य दिए गए, जिनका उपयोग अक्सर ध्यान और दक्षता को मापकर स्वस्थ रूप से होने वाले आयु वृद्धि (हैल्थी एजिंग) और डेमेंटिया के बीच अंतर करने के लिए किया जाता है.
वैज्ञानिकों ने देखा कि प्रतिभागियों ने अंकीय और अल्फ़ान्यूमेरिक (शब्दों और संख्या के मिले जुले रूप) के ऐसे ट्रेल-मेकिंग परीक्षणों को पूरा करने में काफी अधिक समय लिया, जिसमें संख्याओं और अक्षरों को वैकल्पिक रूप से एक ट्रेल में जोड़ना शामिल था.
संज्ञानात्मक परीक्षणों के मामले में टीम ने यह भी पाया कि 50 और 60 के दशक वाले लोगों ने समान प्रदर्शन किया, लेकिन उसके बाद उनके बीच के अंतर काफी बढ़ गए.
औसत रूप से, संक्रमित होने वाले प्रतिभागियों ने दो स्कैन के बीच काफी अधिक संज्ञानात्मक गिरावट दिखाई.
यह सेरिबैलम के कुछ हिस्सों के एट्रोफी, उपयोग की कमी की वजह से आई गिरावट, के साथ जुड़ा हुआ है, जो अनुभूति क्रिया में शामिल होती है.
मस्तिष्क में ऐसे परिवर्तन क्यों होते हैं यह अभी तक निश्चित नहीं है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह या तो रीढ़ की हड्डी की सूजन से हो सकता है, या फिर संवेदी क्रिया के अभाव की वजह से ओल्फक्टोरी काम्प्लेक्स का उपयोग नहीं किये जाने की वजह से भी हो सकता है.
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