नई दिल्ली: पिछले कुछ समय के दौरान मांस खाने को लेकर ‘भावनाएं आहत’ होने की घटनाओं से ऐसा लग सकता है कि भारत में मांसाहार का उपयोग न केवल असामान्य है बल्कि इसे खाना किसी अपराध के जैसा है.
नवरात्रि के दौरान मांस की दुकानें बंद करने के दक्षिण दिल्ली के महापौर के फैसले से लेकर, रामनवमी पर कैंटीन मेन्यू में कथित तौर पर चिकन को लेकर छात्रों के प्रदर्शन और कर्नाटक में मिड डे मील में अंडे परोसने पर अंतहीन बहस तक, आक्रोशित शाकाहारियों ने मांसाहारी भोजन को एक ज्वलंत मुद्दा बना दिया है.
आखिर, भारत में कौन सही मायने में शाकाहारी हैं और कहां हैं?
2019-21 में किया गया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के नवीनतम चरण में बताया गया है कि तीन में से दो भारतीय मांसाहारी हैं. हालांकि, इसमें किसी भी तरह से पूरे देश के स्तर पर और यहां तक कि लैंगिक आधार पर कोई समानता नहीं है.
राज्यवार आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि देश के उत्तरी और मध्य भागों में शाकाहार अधिक व्यापक स्तर पर प्रचलित है और यह भी कि महिलाओं की तुलना में मांसाहार का सेवन करने वाले पुरुषों की संख्या अधिक है.
अगर पौष्टिक क्षमता की बात की जाए तो प्रोटीन की मौजूदगी की वजह से मांसाहारी भोजन में कई विशेष फायदों मिल सकते हैं.
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हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, गुजरात शाकाहारियों के ‘गढ़’
एनएफएचएस-5 के आंकड़े बताते हैं कि औसतन केवल 23 फीसदी महिलाओं और 15 फीसदी पुरुषों ने कभी भी चिकन, मछली या मांस का सेवन नहीं किया है.
इसका मतलब है कि भारत में हर चार में से तीन महिलाएं और छह में से पांच पुरुष मांस का सेवन करते हैं—चाहे दैनिक या साप्ताहिक आधार पर या फिर कभी-कभार.
हालांकि, क्षेत्र-वार डेटा पूरे भारत में खानपान की आदतों में भारी अंतर को दर्शाता है.
उत्तर और मध्य भारत में—जिसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, केंद्रशासित प्रदेश जम्म-कश्मीर, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं—में आधे से अधिक महिलाएं (50.7 प्रतिशत) और लगभग एक-तिहाई पुरुष (33 फीसदी) कभी मांस का सेवन नहीं करते.
इसका मतलब यह है कि उत्तर और मध्य भारत में कुल आबादी में शाकाहारियों की संख्या राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है.
राज्यों की बात करें तो देश में सबसे ज्यादा शाकाहारी हरियाणा में हैं. यहां लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं और 56 प्रतिशत से अधिक पुरुष कथित तौर पर कभी मांस का सेवन नहीं करते हैं.
शाकाहारियों के आंकड़े में हरियाणा के बाद राजस्थान (75 फीसदी महिलाएं और 63 फीसदी पुरुष) और पंजाब (70 फीसदी महिलाएं और 41 फीसदी पुरुष) का नंबर आता है.
डेटा दर्शाता है कि दूसरी ओर सबसे कम संख्या में शाकाहारी पूर्वोत्तर, पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में पाए जाते हैं.
पूर्वोत्तर, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल हैं, में शाकाहारी आबादी काफी कम है. यहां केवल 1.6 फीसदी महिलाओं और 1.3 फीसदी पुरुषों ने मांसाहार नहीं खाने की बात कही. दूसरे शब्दों में कहें तो देश के इन हिस्सों में लगभग 99 प्रतिशत आबादी मांसाहारी है.
पूर्वी राज्यों—पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा और बिहार—में औसतन लगभग 10 प्रतिशत आबादी ने माना कि वे कभी मांस, चिकन या मछली नहीं खाते हैं जिसका अर्थ है कि लगभग 90 प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं.
इसी तरह, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना समेत दक्षिण भारत (केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप और पुडुचेरी का डेटा उपलब्ध नहीं था) में केवल 8 प्रतिशत महिलाओं और 5 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि वे कभी मांस नहीं खाते.
पश्चिमी भारत में शाकाहारियों की संख्या राष्ट्रीय औसत (31 प्रतिशत महिलाएं और 23 प्रतिशत पुरुष) से अधिक है लेकिन इसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी गुजरात की है जो भारत में चौथा सबसे अधिक शाकाहारी राज्य है.
काफी लंबे तटवर्ती क्षेत्र, जिसे अकसर सी-फूड की उच्च खपत से जोड़कर देखा जाता है, के बावजूद गुजरात में लगभग 61 प्रतिशत महिलाएं और 50 प्रतिशत पुरुष यानी करीब आधे से अधिक लोग मांसाहार का सेवन नहीं करते.
अन्य पश्चिमी राज्यों में खानपान की आदतें काफी भिन्न पाई जाती हैं. गोवा में केवल 3 फीसदी महिलाएं और 4 फीसदी पुरुष शाकाहारी हैं, वहीं महाराष्ट्र में यह आंकड़ा महिलाओं में 28 प्रतिशत और पुरुषों में 17 प्रतिशत है.
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लैंगिक अंतर और भोजन को लेकर पसंद-नापसंद
जैसा कि ऊपर दर्शाए गए आंकड़ों से साफ है कि मांस खाने के मामले में सभी राज्यों में महिलाओं की तुलना में पुरुष आगे हैं. देश के उत्तर और मध्य क्षेत्र में विशेष तौर पर एक स्पष्ट अंतर भी नजर आता है.
उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जहां कम से कम एक तिहाई महिलाओं ने कहा कि वो शाकाहारी हैं (नीचे आंकड़ा देखें), जम्मू और कश्मीर में मांसाहार के सेवन को लेकर एक बड़ा अंतर दिखा—यहां केवल 9 फीसदी पुरुषों की तुलना में करीब 36 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि उन्होंने कभी मांस नहीं खाया. उत्तराखंड और पंजाब में भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं के शाकाहारी होने की संभावना लगभग दोगुनी अधिक है.
इसके कारणों का पता लगाने के लिए दिप्रिंट ने उन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के महिला एवं बाल विकास विभागों के अधिकारियों से बात की, जहां बड़ी संख्या में महिलाएं शाकाहारी हैं.
हरियाणा, जहां लगभग 80 फीसदी महिलाएं शाकाहारी हैं, में महिला एवं बाल विकास विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ‘धार्मिक कारण’ लोगों के भोजन विकल्प निर्धारित करते हैं.’
अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘राज्य की एक बड़ी आबादी धार्मिक (हिंदू) है, नतीजतन यहां आम तौर पर मांस खाने को तरजीह नहीं दी जाती है. हालांकि, नियमित रूप से दूध और दुग्ध उत्पादों के साथ-साथ दाल का भी सेवन करने से इन्हें इसलिए प्रोटीन के लिए मांस के सेवन की जरूरत महसूस नहीं होती है.’
पंजाब में महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने राज्य में मांस के सेवन की आदतों पर कोई अध्ययन नहीं किया है और इसलिए कोई टिप्पणी नहीं कर सकते.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के तहत राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एनआईएन) की निदेशक डॉ. हेमलता आर. ने कहा कि खानपान की आदतों में अंतर, यहां तक कि एक ही परिवार के सदस्यों के बीच भी, के पीछे ‘कई सामाजिक और सांस्कृतिक फैक्टर हो सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यद्यपि किसी खाद्य सामग्री की लगातार और नियमित खपत के लिए खाने की चीजों तक पहुंच, खरीदने की क्षमता और उपलब्धता आदि काफी अहम है लेकिन सांस्कृतिक और धार्मिक फैक्टर भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इनका पता लगाया जाना चाहिए और इसके लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है.’
एनएफएचएस-5 में शामिल खाद्य खपत संबंधी आंकड़ों के मुताबिक, शाकाहारियों की ज्यादा संख्या वाले राज्य नियमित रूप से दूध और दाल का सेवन भी करते हैं—जो कि प्रोटीन के शाकाहारी स्रोत हैं.
उदाहरण के तौर पर हरियाणा में लगभग 72 प्रतिशत महिलाएं रोजाना दूध या दही का सेवन करती हैं और 98 प्रतिशत सप्ताह में कम से कम एक बार दाल का सेवन करती हैं. इसी तरह पंजाब में 64 फीसदी महिलाएं रोजाना दूध या दही का सेवन करती हैं जबकि 91 फीसदी महिलाएं हफ्ते में कम से कम एक बार दाल खाती हैं. राजस्थान में 69 प्रतिशत महिलाओं ने प्रतिदिन दूध या दही के सेवन की बात कही और 90 फीसदी से अधिक महिलाओं ने बताया कि सप्ताह में कम से कम एक बार दाल खाती हैं.
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क्या शाकाहारी प्रोटीन पर्याप्त है?
राष्ट्रीय पोषण संस्थान की सिफारिशों के मुताबिक, एक स्वस्थ वयस्क को अपने शरीर के वजन के प्रत्येक 1 किलो के लिए 0.83 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है.मतलब, अगर आपका वजन लगभग 65 किग्रा है तो आपको रोजाना 53 ग्राम से अधिक प्रोटीन का सेवन करना चाहिए.
हालांकि डेयरी प्रोडक्ट और दालें अकसर शाकाहारियों के लिए पसंदीदा प्रोटीन स्रोत हैं लेकिन डेटा दर्शाता है कि मांसाहारी प्रोटीन की तुलना में उनके पोषण लाभ कुछ कम है. चूंकि डेयरी प्रोडक्ट में फेट की मात्रा अधिक होती है, इसलिए पर्याप्त प्रोटीन के लिए ज्यादा मात्रा में दालों के सेवन की जरूरत होती है.
आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थों में मौजूद पोषक तत्वों (प्रोटीन, वसा, नमी आदि) पर एनआईएन की विस्तृत सूची के आधार पर दिप्रिंट ने विभिन्न खाद्य पदार्थों—दालें, दूध, मेवे, अंडे, मुर्गी, मांस और मछली—में प्रोटीन-फेट रेश्यू की गणना की और पाया गया कि शाकाहारी स्रोतों की तुलना में मांसाहारी चीजों में फेट से ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है और अकसर इसमें कैलोरी भी कम ही होती हैं.
गाय और भैंस दोनों के दूध में प्रोटीन की तुलना में अधिक फेट होता है. गाय के दूध के एक गिलास (200 मिली) में लगभग 6.52 ग्राम प्रोटीन होता है लेकिन इसमें 9 ग्राम फेट भी होता है. भैंस का एक गिलास दूध आपको अधिक प्रोटीन (7.36 ग्राम) देगा लेकिन इसमें फेट की मात्रा (13 ग्राम) भी ज्यादा होती है.
औसतन 100 ग्राम पनीर में 18.86 ग्राम प्रोटीन होता है, जबकि उतनी ही मात्रा में चिकन में करीब 19.44 ग्राम प्रोटीन होता है. यह तो लगभग बराबर है, लेकिन पनीर में फेट की मात्रा 14.68 ग्राम यानी चिकन की तुलना में अधिक होती है, जिसमें केवल 12.64 ग्राम वसा है.
इसी तरह, 100 ग्राम मेवे, जो करीब एक कप के बराबर होते हैं, लगभग 16 ग्राम प्रोटीन देते हैं लेकिन इसके साथ 38 ग्राम फेट भी आपके शरीर में पहुंच जाएगा.
प्रोटीन-फेट रेश्यू की बात आती है तो दालें और फलियां बेहतर होती हैं—उदाहरण के तौर पर 100 ग्राम दाल में लगभग 22 ग्राम प्रोटीन और केवल 3 ग्राम फेट होता है.
लेकिन, यह इतना सीधा-सा गणित नहीं है. दालों को आमतौर पर खाने से पहले उबाला जाता है, जिससे वे खाने में गरिष्ठ (भारी) हो जाती हैं.
पकाने पर 100 ग्राम दाल (जिसमें एक चिकन लेग के बराबर प्रोटीन होता है) लगभग चार बार परोसने के लिए पर्याप्त होती है, इसलिए आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपके पेट में पर्याप्त जगह हो.
विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि चिकने तैलीय भोजन में मौजूद फेट के विपरीत डेयरी प्रोडक्ट और मेवों का फेट स्वास्थ्य के लिए अच्छी होता है लेकिन जब तक बड़ी मात्रा में इनका सेवन नहीं किया जाता है तब तक वे प्रोटीन की जरूरतें पूरी नहीं कर पाते हैं.
इसके अलावा, गैर-मांसाहारी प्रोटीन में अमीनो एसिड की मात्रा भी कम ही होती जो हमारे शरीर के लिए प्रोटीन को ब्रेक करने और हमें ऊर्जावान बनाने के लिए जरूरी है.
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प्रोटीन के सर्वश्रेष्ठ स्रोत
भारत के ज्यादातर तटीय क्षेत्रों में खाई जाने वाली मरीन फिश में प्रोटीन-फेट रेश्यू सबसे अच्छा होता है. 100 ग्राम मछली में लगभग 21 ग्राम प्रोटीन और केवल 2.2 ग्राम फेट होता है.
अंडे भी प्रोटीन का एक और अच्छा स्रोत हैं, जो मांस की तुलना में काफी सस्ते भी पड़ते हैं.
वैसे तो यह इस पर निर्भर करता है कि उन्हें पकाया कैसे गया है, फिर भी औसतन हर 100 ग्राम अंडे में फेट (13 ग्राम) की तुलना में प्रोटीन (14 ग्राम) अधिक होता है. हालांकि, इसके सेवन में भी उत्तर और मध्य भारत पीछे हैं—इन क्षेत्रों की 43 फीसदी महिलाएं कथित तौर पर कभी भी इनका सेवन नहीं करती हैं. हालांकि, पुरुषों की बात करें तो अंडे उनके भोजन में अपेक्षाकृत स्वीकार्य हैं. इस क्षेत्र में केवल एक चौथाई पुरुष (26.8 प्रतिशत) कभी अंडे नहीं खाते.
डॉ. हेमलता ने कहा, ‘मांस, अंडे और दूध प्रोटीन के गुणवत्तापूर्ण और बेहतरीन स्रोत हैं. हमारे संस्थान की तरफ से अनुशंसित ‘माई प्लेट फॉर द डे’ में प्रतिदिन के खाने में 2,000 किलोकैलोरी के आहार की पूर्ति के लिए लगभग 90 ग्राम दालों या फलियां शामिल की गई, जिससे इसका एक हिस्सा मांस/अंडे/मछली आदि की जरूरत को खत्म कर सकता है.’
उन्होंने दिप्रिंट को यह भी बताया कि दूध और उससे तैयार होने वाले प्रोडक्ट को किसी भी भोजन के विकल्प के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘शाकाहारी और मांसाहारी दोनों के लिए लगभग 200-300 मिलीलीटर दूध, दही आदि के सेवन की सिफारिश की जाती हैं. वो किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ का विकल्प नहीं है बल्कि उन्हें भोजन के आवश्यक हिस्से के तौर पर देखा जाना चाहिए.’
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