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Thursday, 21 November, 2024
होमहेल्थ‘मास्क, रूमाल, घरेलू नुस्खे’ — दिल्ली की ज़हरीली धुंध से कैसे निपट रहे हैं सड़क पर तैनात पुलिसकर्मी

‘मास्क, रूमाल, घरेलू नुस्खे’ — दिल्ली की ज़हरीली धुंध से कैसे निपट रहे हैं सड़क पर तैनात पुलिसकर्मी

रोज़ाना ड्यूटी पर तैनात कई अधिकारी खांसी, गले में दर्द और आंखों में जलन की समस्या से जूझ रहे हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण के संपर्क में आने से फेफड़ों को स्थायी नुकसान पहुंच सकता है और इससे कई अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर मंगलवार को ज़हरीली धुंध और धुएं के बीच 43-वर्षीय रीमा फुटपाथ पर खड़ी थीं, उनका चेहरा काले मास्क से ढका हुआ था. दिल्ली ट्रैफिक पुलिस में बतौर हेड कांस्टेबल उन्होंने प्रदूषण जांच के लिए आईटीओ पर गाड़ियों को रोका, जबकि धुंध उनकी आंखों को जला रही थी और मास्क के नीचे उनकी सांस फूल रही थी.

उनके काम करने की स्थिति शहर के अधिकांश ट्रैफिक पुलिस अधिकारियों की तरह ही है, जो दिन-प्रतिदिन ज़हरीली हवा से जूझते हैं, जबकि सरकार उन्हें एन95 मास्क प्रदान करती है, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का तर्क है कि गैस मास्क बेहतर सुरक्षा प्रदान करेंगे. हालांकि, उनका कहना है कि प्रदूषण का स्वास्थ्य प्रभाव केवल फेफड़ों तक ही सीमित नहीं है.

वाहनों के उनके पास से गुज़रने पर अपने चेहरे पर मास्क ठीक करते हुए रीमा ने कहा, “मुझे यहां रहना है, चाहे कुछ भी हो. यह मेरी ड्यूटी है. पिछले दो हफ्ते विशेष रूप से कठिन रहे हैं. मेरा गला लगातार दर्द करता रहा और मेरी आंखों से पानी आना बंद नहीं हुआ. इसके अलावा, बाहरी दिल्ली से यात्रा करने में मुझे हर दिन लगभग डेढ़ घंटा लगता है.”

मैराथन रनर रीमा ड्यूटी से छुट्टी के दौरान गुजरात के अहमदाबाद में होने वाले एक आगामी कार्यक्रम के लिए ट्रेनिंग ले रही हैं. हालांकि, दम घोंटने वाले प्रदूषण ने उनकी ट्रेनिंग दिनचर्या को अस्त-व्यस्त कर दिया है.

उन्होंने कहा, “मैंने सुबह दौड़ना बंद कर दिया है. इसके बजाय, मैं घर पर सिट-अप, पुश-अप और स्क्वाट्स जैसी एक्सरसाइज़ पर फोकस कर रही हूं. इस हवा में बने रहने का यही एकमात्र तरीका है.”

आईटीओ में तैनात हेड कांस्टेबल रीमा | फोटो: मृणालिनी ध्यानी/दिप्रिंट
आईटीओ में तैनात हेड कांस्टेबल रीमा | फोटो: मृणालिनी ध्यानी/दिप्रिंट

पिछले एक हफ्ते में दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में खतरनाक वृद्धि देखी गई है, सोमवार को एक्यूआई 494 तक पहुंच गया — जो हाल के वर्षों में सबसे अधिक है. गुरुवार को दोपहर 2 बजे, वायु गुणवत्ता “बहुत खराब” श्रेणी में थी और AQI 373 था. आईटीओ, जहांगीरपुरी, सोनिया विहार, आनंद विहार और पंजाबी बाग जैसे हॉटस्पॉट ने क्रमशः 339, 434, 394, 401 और 404 के खतरनाक AQI स्तर की सूचना दी.

अस्पतालों में सांस की समस्याओं से पीड़ित रोगियों की संख्या में वृद्धि देखी गई है.

फिर भी, संकट के बीच, दिल्ली के पुलिस अधिकारी शहर की ज़हरीली सड़कों पर बहादुरी से काम कर रहे हैं, वह अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए दिन में 10 घंटे से अधिक समय तक बाहर खड़े रहते हैं. कई पुलिसकर्मी इसे दिल्ली में अब तक का सबसे खराब स्मॉग बताते हैं, लेकिन इन अधिकारियों के लिए, यह एक गंभीर दिनचर्या बन गई है — कुछ ऐसा जिसके वह न चाहते हुए भी आदी हो गए हैं.

धौला कुआं में तैनात दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के हेड कांस्टेबल हेमराज मीणा ने कहा, “कभी-कभी, हमें लंबी शिफ्ट में काम करना पड़ता है और यह सचमुच मुश्किल हो जाता है. प्रदूषण के कारण मुझे कई बार चक्कर आने लगते हैं. जब मैं सुबह उठता हूं, तो मुझे काली खांसी आती है और मुझे अक्सर बुखार जैसा महसूस होता है.”

एक अन्य अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उन्हें किस तरह की दुविधा का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया, “लंबे समय तक मास्क पहनने से सांस लेना मुश्किल हो जाता है, लेकिन इसके बिना स्थिति और भी खराब हो जाती है. किसी भी तरह से, यह एक संघर्ष है.”


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‘प्रभाव केवल फेफड़ों तक सीमित नहीं’

कैलाश अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर गुप्ता ने इन पुलिस अधिकारियों पर लगातार प्रदूषण के संपर्क में रहने के गंभीर प्रभाव पर जोर दिया. उन्होंने कहा, “उनके लिए दिन-रात इस प्रदूषण में खड़े रहना, चाहे गर्मी हो या सर्दी, एक दिन में 10 से 40 सिगरेट पीने के बराबर है.”

अधिकांश पुलिस अधिकारी कपड़े के मास्क या रूमाल पहने हुए देखे गए. हालांकि, उन्होंने बताया कि पिछले साल उन्हें दिए गए N95 मास्क इस साल अभी तक वितरित नहीं किए गए हैं. डॉ. गुप्ता ने बताया कि N95 मास्क कुछ हद तक ही सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन वह इस वातावरण में महत्वपूर्ण रूप से प्रभावी नहीं हैं.

डिफेंस कॉलोनी में ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी | फोटो: मृणालिनी ध्यानी/दिप्रिंट
डिफेंस कॉलोनी में ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी | फोटो: मृणालिनी ध्यानी/दिप्रिंट

उन्होंने बताया, “यातायात पुलिस अधिकारी वाहनों से निकलने वाली हानिकारक गैसों, जैसे नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में आते हैं. गैस मास्क अधिक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करेंगे, भले ही वो असुविधाजनक हो सकते हैं क्योंकि वह मुंह और नाक दोनों को ढकते हैं, लेकिन सुरक्षा के लिहाज़ से ये कहीं ज़्यादा कारगर होंगे.”

उन्होंने यह भी बताया कि प्रदूषण का असर फेफड़ों तक सीमित नहीं है. PM2.5 और PM10 कण (पार्टिकुलेट मैटर) सांस के ज़रिए फेफड़ों में चले जाते हैं और सूजन पैदा करते हैं. उन्होंने कहा कि इससे गले में खुजली होती है, इसके बाद लगातार खांसी और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है क्योंकि इसके कण फेफड़ों में जम जाते हैं. इसके अलावा, जब ये कण स्किन के संपर्क में आते हैं, तो ये स्किन में सूखापन पैदा कर सकते हैं, जिससे एलर्जी और खुजली हो सकती है.

कई अधिकारियों ने बताया कि वह दिल्ली की प्रदूषित सर्दियों के आदी हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में स्थिति काफी खराब हो गई है. जहांगीरपुरी में गश्त पर तैनात एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “पहले भी प्रदूषण था, लेकिन कभी इतना बुरा नहीं था. अब, हम लगातार खांस रहे हैं और हमारी आंखें इतनी जल रही हैं कि पानी आना बंद नहीं हो रहा है.”

वज़ीरपुर में गश्त पर तैनात एक अन्य अधिकारी ने अपना चेहरा रूमाल से ढकते हुए बताया कि उनकी आंखें जल रही हैं और लाल हो गई थीं. उन्होंने कहा कि अगर हालत बिगड़ती है तो उन्हें डॉक्टर से सलाह लेनी पड़ सकती है.

जोन-I के विशेष पुलिस आयुक्त-यातायात के. जगदीसन ने दिप्रिंट को बताया कि यातायात कर्मियों के पास अपनी ड्यूटी की वजह से सड़कों पर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. “उन बाधाओं के भीतर, हम उनके स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.”

कर्मियों को N95 मास्क दिए जा रहे हैं और प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क को कम करने के लिए उनकी ड्यूटी को लगातार बदला जाता है. जगदीसन ने कहा, “उदाहरण के लिए ISBT कश्मीरी गेट पर तैनात एक अधिकारी, जहां वाहनों का भारी आवागमन होता है, को 15 दिनों के बाद कम प्रदूषित क्षेत्र में फिर से नियुक्त किया जाएगा.”

इन चुनौतियों के बीच, कई अधिकारी “घरेलू नुस्खे” अपना रहे हैं, जिसमें गुड़ और गर्म पानी सबसे कारगर उपाय है. कई लोग दिन में सिर्फ दो या तीन स्ट्रेप्सिल लेते हैं. आनंद विहार में तैनात एक अधिकारी ने बताया, “जब मैं घर पहुंचता हूं, तो मैं ‘काढ़ा’ बनाता हूं जो मैंने कोविड के दौरान बनाया था. इसे इलायची, लौंग, सूखी अदरक, तुलसी के पत्तों और शहद से बनाया जाता है.”

दिल्ली में ट्रैफिक पुलिस अधिकारी | फोटो: मृणालिनी ध्यानी/दिप्रिंट
दिल्ली में ट्रैफिक पुलिस अधिकारी | फोटो: मृणालिनी ध्यानी/दिप्रिंट

अपोलो अस्पताल में पल्मोनोलॉजी और रेस्पिरेटरी मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. निखिल मोदी ने प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने के दीर्घकालिक प्रभावों पर प्रकाश डाला.

उन्होंने बताया, “यह क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के रूप में फेफड़ों को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे फेफड़े प्रदूषकों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं. ये प्रदूषक रक्त के प्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे रक्त वाहिकाओं में रुकावट हो सकती है, जिससे दिल का दौरा, फेफड़ों का कैंसर और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.”

डॉ. मोदी ने मास्क पहनने के महत्व पर भी जोर दिया और सलाह दी कि मानक मास्क को हर छह से आठ घंटे में बदल देना चाहिए. लगातार संपर्क में रहने से उनकी फिल्टर करने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे वह कम प्रभावी हो जाते हैं.

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि घरेलू नुस्खे अस्थायी रूप से लक्षणों से राहत दे सकते हैं, लेकिन प्रदूषण के कारण होने वाला नुकसान अक्सर धीरे-धीरे बढ़ता है. यह खतरा, जिसमें सांस लेने में परिवर्तन, फाइब्रोसिस और फेफड़ों के ऊतकों में निशान शामिल हैं, सीओपीडी जैसी पुरानी बीमारियों का कारण बन सकती है.

उन्होंने कहा कि इस तरह की खतरे अक्सर अपरिवर्तनीय होते हैं और इससे सांस लेने में स्थायी कठिनाई हो सकती है, भले ही प्रदूषण के संपर्क को कम या खत्म कर दिया जाए.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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