नई दिल्ली: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) पुणे के वैज्ञानिकों ने शहर के बीजे मेडिकल कॉलेज एवं ससून जनरल हॉस्पिटल के साथ मिलकर एक टेस्ट विकसित किया है जो उनके दावे के मुताबिक़, किसी व्यक्ति की सूंघने की शक्ति को सही से माप सकता है- एक ऐसा यंत्र जो बिना लक्षण वाले कोविड-19 मरीज़ों की स्क्रीनिंग में अहम साबित हो सकता है.
फिलहाल ज़्यादातर जगहों पर लोगों का जल्दी से बुख़ार चेक करके देखा जाता है कि उन्हें कोविड-19 संक्रमण तो नहीं है.
लेकिन, कई स्टडीज़ से पता चला है कि ज़्यादातर कोविड पॉज़िटिव मरीज़ों में पूरी बीमारी के दौरान कोई लक्षण सामने नहीं आते. इसके नतीजे में ‘ख़ामोश संक्रमण’ हो सकता है.
आईआईएसईआर पुणे के रिसर्चर्स के मुताबिक़ एक छोटा सा टेस्ट कोविड पीड़ित लोगों की पहचान करने में एक बेहतर सूचक साबित हो सकता है.
लेकिन, सूंघने की शक्ति व्यक्तिपरक होती है और इसकी कोई मात्रा ठहराना मुश्किल होता है.
दि लांसेट की ईक्लीनिकल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित अपनी स्टडी में आईआईएसईआर के रिसर्चर्स ने कहा कि उन्होंने एक ऑलफैक्टरी-एक्शन मीटर डिज़ाइन किया है, जो नाप सकता है कि कोई व्यक्ति कितनी अच्छी तरह सूंघ सकता है.
आईआईएसईआर के एक बयान में कहा गया, ‘हमारा उपकरण महक को आंकने में, मौजूदा क्लीनिकल तरीक़ों से कई मामलों में बेहतर है. ये गंध को नियंत्रित ढंग से छोड़ता है. टेस्टिंग के 20 मिनट से भी कम में सूंघने की क्षमता को आंक लेता है और संक्रमण की स्थिति में बिना हानि पहुंचाए उस क्षमता में कमी की मात्रा तय कर सकता है. चूंकि पर-संदूषण को रोकने के लिए, इसमें अंतर्निहित सुरक्षा सावधानियां होती हैं.’
रिसर्च का तरीक़ा
इस स्टडी के लिए टीम ने अलग अलग सघनता के दस अलग-अलग महक वाले पदार्थ इस्तेमाल किए. टीम ने महक के इन संग्रहों को एक ऑलफैक्टरी एक्शन मीटर से जोड़ दिया. एक ऐसा उपकरण जो उच्च परिशुद्धता के साथ, अलग अलग चैनल्स से महक छोड़ता है.
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37 स्वस्थ मरीज़ों को अलग अलग सघनता पर गंधों को सूंघने के लिए कहा गया. ये टेस्ट तब तक जारी रहा, जब तक स्वस्थ मरीज़ों ने लगातार दो अलग अलग सघनता की, सभी गंधों को पहचान नहीं लिया. एक विशेष महक के लिए निचली सघनता को सीमा माना गया.
डेटा की मदद से टीम ने हर व्यक्ति के लिए एक ‘ऑलफैक्टरी फंक्शन स्कोर’ तैयार कर लिया.
यही टेस्ट फिर उन लोगों पर किया गया, जो कोविड पॉज़िटिव पाए गए थे. फिर प्रतिभागियों के दोनों सेट्स के स्कोर की आपस में तुलना की गई.
टीम को बिना लक्षण वाले 82 प्रतिशत मरीज़ों में, सूंघने की शक्ति के स्तर में कमी का पता चल गया. लेकिन इन्हीं मरीज़ों में 15 प्रतिशत ने सूंघने की क्षमता ख़त्म होने की बात कही.
इससे पता चलता है कि टीम द्वारा तैयार किया हुआ टेस्ट सूंघने की क्षमता में कमी का पता लगा सकता है. भले ही मरीज़ को ख़ुद इसका अहसास न हो रहा हो.
आईआईएसईआर के बयान में कहा गया है, ‘हमारी स्टडी के तय किए हुए तरीक़ों और मापदंडों को, संभावित रूप से महक पर आधारित एक संवेदनशील, त्वरित और सस्ती जांच में परिवर्तित किया जा सकता है, जो ज़्यादातर लोग ख़ुद कर सकते हैं’.
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