मांड्या: कर्नाटक के मांड्या स्थित सरकारी अस्पताल मांड्या इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंज में कर्मचारियों की भारी कमी का नतीजा यह है कि कोविड-19 मरीजों के परिजनों को ही उनकी देखभाल करनी पड़ रही है.
दिप्रिंट ने जब 14 मई को अस्पताल का दौरा किया तो वहां कोविड-19 वार्डों में से तीन में करीब 54 मरीज भर्ती थे. लेकिन हर मरीज के ठीक बगल में एक अटेंडेंट था, जो स्पष्ट तौर पर कोविड-19 उपचार प्रोटोकॉल का उल्लंघन था.
ये अटैंडेंट या तो उसी वार्ड में अपने मरीजों के पास फर्श पर सो रहे थे या केवल कपड़े का मास्क लगाए बैठे थे.
उन्हीं में एक मांड्या के हुनुगनहल्ली गांव निवासी एच.एस. अभिषेक भी हैं जिनकी दादी मंगलावती ऑक्सीजन सपोर्ट पर थीं.
अभिषेक ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरी दादी यहां भर्ती हैं और ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं. जब हमने उन्हें भर्ती कराया तो हमें बताया गया कि किसी को उनके साथ रहना होगा क्योंकि वे सभी मरीजों की देखभाल की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं. चूंकि मैं छोटा हूं और मुझे कोई अन्य बीमारी नहीं है इसलिए मेरे परिवार ने मुझे यहां रहने को कहा.’
अभिषेक ने खुद ही इस व्यवस्था को लेकर एक बड़ी चिंता जताई कि ये अटैंडेंट अपने गांवों में वायरस फैलाने वाले साबित हो सकते हैं.
उन्होंने बताया, ‘पहले, कई लोग शाम तक रुकते थे और फिर रात में किसी और को यहां रुकने के लिए भेज देते थे. लेकिन हमने महसूस किया कि इससे गांव में मामले बढ़े हैं. इसलिए मैंने तब तक यहीं रहने का फैसला किया जब तक वह पूरी तरह ठीक नहीं हो जाती. मैं गांव नहीं गया हूं. मैं यहां गलियारे में ही सोता हूं.’
(14 मई को दिप्रिंट की यात्रा के बाद अभिषेक अपने गांव लौट आया है और अब आइसोलेशन में रह रहा है. उसकी दादी ठीक हो गई हैं)
नाम न छापने के अनुरोध पर एक नर्स ने स्वीकारा की अस्पताल अटैंडेंट से यही रहने को कह रहा था क्योंकि यहां पर कई मरीजों के लिए केवल दो कर्मचारी हैं.
नर्स ने बताया, ‘हम मरीजों के परिवारों से पूछते हैं और वे स्वेच्छा से एक अटैंडेंट भेजने को तैयार हो जाते हैं जो मरीज का बेटा-बेटी या पति-पत्नी कोई भी हो सकता है. हम उन्हें मरीजों के साथ वार्ड के अंदर सोने को नहीं कहते हैं लेकिन कई बार वही ऐसा करने पर जोर देते हैं.’
मांड्या इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के निदेशक डॉ. हरीश एम.आर. ने दिप्रिंट को बताया कि प्रशासन स्थिति सुधारने की दिशा में काम कर रहा है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यहां कुल 20 वार्ड और चार आईसीयू हैं. हमारे पास कुल 240 मरीज ऑक्सीजन बेड पर हैं. कुछ मरीजों के अटैंडेंट ने वहीं रहने देने का आग्रह किया लेकिन हमने किसी को भी कोविड-19 वार्डों के अंदर जाने की अनुमति नहीं देने का फैसला किया है. हम सोमवार से ऐसे अटैंडेंट को हटा रहे हैं.’
मांड्या की उपायुक्त एस. अश्वथी ने कहा कि जैसे ही इस मुद्दे को उनके संज्ञान में लाया गया, उन्होंने अस्पताल प्रशासन को सभी लोगों को वहां से तुरंत हटाने का निर्देश दिया.
आईएएस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘अस्पताल में कर्मचारियों की बड़ी संख्या में कमी थी और हमने स्थिति के बारे में पता चलने पर इसका समाधान भी निकाला.’
उन्होंने कहा, ‘अब तक हमने छह मेडिकल कॉलेजों में नर्सिंग की अंतिम वर्ष की पढ़ाई करने वाली 55 नर्स को तुरंत काम पर बुलाया है. जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त मैनपॉवर की व्यवस्था करना भी शुरू कर दिया है.’
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सुविधाओं का अभाव
मांड्या जिला कर्नाटक के उपजाऊ कावेरी बेसिन में स्थित है, यह काफी अहम माने वाले वोक्कालिगा समुदाय का गढ़ है और इसे धान और गन्ने की अच्छी फसल उगाने वाले किसान समुदाय के इलाके के तौर पर भी जाना जाता है.
लेकिन यह क्षेत्र कोविड की दूसरी लहर से बुरी तरह प्रभावित हुआ है. मांड्या डैशबोर्ड के मुताबिक, जिले में एक महीने में कुल मामले दोगुने हो गए हैं, जो अप्रैल में 10,000 से बढ़कर 17 मई तक लगभग 21,000 पहुंच गए थे. सोमवार को लगभग 10 लोगों की मौत हो गई, जबकि मृत्यु के मामले में सबसे खराब दिन 5 मई था, जब 19 लोगों ने वायरस के कारण दम तोड़ा.
यहां भी हालात कर्नाटक के बाकी हिस्सों की तरह हैं जो दूसरी लहर से सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों में से एक है.
राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, कर्नाटक में सोमवार (17 मई) को 38,603 नए मामले सामने आए और 476 लोगों की मौत हुई, जिससे कुल संक्रमितों की संख्या 22,42,065 हो गई और मरने वालों का आंकड़ा 22,313 पर पहुंच गया.
मांड्या में मरीजों के रिश्तेदार सुविधाओं की कमी का रोना रो रहे हैं और यह भी कहते हैं कि ‘सारा ध्यान सिर्फ बेंगलुरू पर केंद्रित किया जा रहा है.’
धनंजय अपनी सास के साथ रह रहे हैं, जिन्हें मांड्या इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में जांच में पॉजिटिव पाया गया था.
उन्होंने कहा, ‘मेरी सास 70 साल की हैं और मैं उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकता. मैं एक मास्क पहनता हूं और इसे हर दिन बदलता हूं. मुझे बाथरूम जाते समय भी उसकी मदद करनी होती है.’
उन्होंने कहा, ‘मैं वार्ड के अंदर एक बार भी अपना मास्क नहीं हटाता हूं क्योंकि डॉक्टरों ने बताया है कि यहां वायरल लोड बहुत ज्यादा है. सरकार को छोटे शहरों के अस्पतालों की हालत भी देखनी चाहिए. हमें और नर्सों और डॉक्टरों की जरूरत है, नहीं तो संक्रमण और भी ज्यादा फैलेगा.’
शिवर्णा, जिसके चाचा पिछले 11 दिनों से कोविड-19 वार्ड में भर्ती हैं, का दावा है कि गांवों में केस बढ़ने का बड़ा कारण यह भी है कि सरकार ने छोटे शहरों को ध्यान में रखकर कोई व्यवस्था की ही नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘हर रोज हम बेंगलुरू के बारे में सुनते हैं. कितने मामले सामने आए हैं, इतनी मौतें कैसे हो रही हैं और कितने बेड बढ़ाए जा रहे हैं. लेकिन सरकार इस सबमें गांवों और छोटे शहरों की बुरी तरह अनदेखी कर रही है. लोग इसी वार्ड में रात गुजारते हैं और दिन में अपने गांव लौट जाते हैं और दूसरे ग्रामीणों में संक्रमण फैलाने का कारण बनते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इन गांवों में कोई सुविधा नहीं होने के कारण, ज्यादातर की स्थिति गंभीर ही है.’
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