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Friday, 26 April, 2024
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ऐक्टर की मौत से कोविड वैक्सीन को लेकर तमिलनाडु में लोगों की झिझक बढ़ी, गलत सूचना ने और दी हवा

तमिलनाडु में टीकाकरण की संख्या राष्ट्रीय औसत से पीछे चल रही है, क्योंकि वैक्सीन्स को लेकर सूबे में डर फैला हुआ है. सूबा फिलहाल कोविड उछाल की चपेट में है.

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चेन्नई: तमिलनाडु की राजधानी के एक 24 वर्षीय पीएचडी स्कॉलर, केआर गोपालन अपनी ज़िद पर अड़े हैं. वो कोविड-19 वैक्सीन नहीं लगवाएंगे. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं इंजेक्शन नहीं लगवाना चाहता. मुझे नहीं पता कि इसके साइड-इफेक्ट्स क्या हैं, या अब से कुछ साल बाद, ये मेरे शरीर पर क्या असर करेगा. इसलिए अगर मैं 100 प्रतिशत निश्चिंत नहीं हूं, तो मैं इसे नहीं लूंगा’.

गोपालन अकेले नहीं हैं. शिक्षा के ऊंचे स्तर और अच्छे ख़ासे मज़बूत स्वास्थ्य ढांचे बावजूद, तमिलनाडु में व्यापक रूप से वैक्सीन के प्रति झिझक है.

राज्य में टीकाकरण अभियान लगातार धीमा चल रहा है, और राष्ट्रीय औसत से पीछे है. स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, रविवार तक तमिलनाडु में वैक्सीन के 48,14,633 पहले डोज़ दिए जा चुके हैं, जो कुल आबादी का 6.31 प्रतिशत है, और 16,08,046 दूसरे डोज़ दिए जा चुके हैं, जो उसकी कुल आबादी का केवल 2.11 प्रतिशत हैं.

ये एक चिंता का विषय है, चूंकि पिछले कुछ दिनों में, तमिलनाडु में मामलों में उछाल देखा गया है. शनिवार को तमिलनाडु में 27,000 नए मामले दर्ज किए गए, और ये देश के उन 12 सूबों में है, जहां 1 लाख से अधिक एक्टिव मामले हैं.

कोविड वैक्सीन को लेकर व्याप्त संशय के पीछे, एक कारण पिछले महीने तमिल अभिनेता विवेक की मौत को बताया जा रहा है. लोकप्रिय हास्य कलाकार की 17 अप्रैल को, अचानक दिल का दौरा पड़ जाने से मौत हो गई थी. उससे एक दिन पहले उन्होंने टीका लगवाया था.

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कोविड वैक्सीन के एक कट्टर समर्थक विवेक ने, राज्य के स्वास्थ्य सचिव जे राधा कृष्णन, और अन्य सरकारी अधिकारियों के साथ टीका लगवाया था. अगले ही दिन उनकी तबीयत बिगड़ गई, और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी मौत हो गई.

उनकी मौत के बाद, पूरे राज्य में वैक्सीन का डर महसूस किया जाने लगा. यहां तक कि राधाकृष्णन को एक प्रेस वार्ता बुलाकर सफाई देनी पड़ी, कि विवेक के दिल के दौरे का, कोविड टीके से कोई लेना देना नहीं था. फिर भी, झिझक बरक़रार है.

तूदुकुड़ी ज़िले में, विवेक के गृहनगर कोविलपट्टी के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के, डॉ एडी बॉस्कोराजा ने कहा, कि लोगों को वैक्सीन लेने के लिए राज़ी करना, बहुत मुश्किल साबित हो रहा है.

बॉस्कोराजा ने कहा, ‘बहुत से लोग उस डर को बयान भी नहीं कर पाते, जो उनके मन में है, जिसकी वजह से हमारे लिए उन्हें राज़ी करना मुश्किल हो जाता है, लेकिन चूंकि ये स्वैच्छिक है, इसलिए हम लोगों को मजबूर नहीं कर रहे हैं. जल्द ही वो समझ जाएंगे, कि ये सुरक्षित है’.

तमिलनाडु में वैक्सीन के प्रति झिझक का, पुराना इतिहास रहा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2014-16) के अनुसार, कुछ सबसे अच्छे स्वास्थ्य सूचकों के बावजूद, राज्य में कुछ बुनियादी टीकों का कवरेज केवल 69 प्रतिशत था.

2019 में एक चेन्नई-आधारित स्टडी में, जो इंडियन जर्नल ऑफ कम्यूनिटी मेडिसिन में प्रकाशित हुई, कहा गया: ‘(तमिलनाडु में) वैक्सीन झिझक के पीछे सबसे बड़े कारण, नए टीकों के प्रति अविश्वास, सुरक्षा के प्रति चिंता, और विपरीत प्रभावों का डर, तथा ये अहसास है, कि असामान्य बीमारियों के ख़िलाफ, टीके ज़रूरी नहीं होते.


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ग्रामीण तमिलनाडु में वैक्सीन के प्रति झिझक और झूठी ख़बरें

वैक्सीन के प्रति झिझक की समस्या, ग्रामीण तमिलनाडु में और गहरी है, और उसका आधार ज़्यादातर अफवाहें और झूठी ख़बरें हैं.

कांचीपुरम ज़िले के चित्रावाड़ी गांव के 36 वर्षीय येलु मलाई ने, न तो टीका लगवाया है, और न ही लगवाने जा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हमारे पूरे गांव ने वैक्सीन नहीं ली है, क्योंकि हमें बताया गया है, कि इससे कुछ लोगों की मौत हो गई है’.

दूसरे लोगों को डर है कि साइड-इफेक्ट्स की वजह से, वो अपने काम नहीं कर पाएंगे. ऊषा और उसके भाई, जो चित्रावाड़ी में किसान हैं, दोनों का कहना था कि वो टीके नहीं लगवाना चाहते, क्योंकि खेती में ये बहुत काम का सीज़न है, और उन्हें लगता है कि टीका लगवाने से, उन्हें 10-15 दिन बुख़ार आएगा.

‘लोग हमारे गांव में आ रहे हैं, और हमसे टीका लगवाने के लिए कह रहे हैं, लेकिन हम नहीं लगवा सकते. अगर हम अभी टीका लगवा लेंगे, तो हमें 10-15 दिन के लिए बुख़ार आएगा, जो हमारे खेतों के लिए अच्छा नहीं होगा. अपनी इम्यूनिटी को मज़बूत रखने के लिए, हम सिट्रस फल खा रहे हैं और काबासुरा, कुडिनीर, और नीलवेंबु काशायम (सिद्ध दवाएं) का काढ़ा पी रहे हैं’.

हालांकि प्रचलित कोविड टीकों को, बुख़ार और बदन दर्द जैसे साइड-इफेक्ट्स के लिए जाना जाता है, लेकिन ये ज़्यादातर एक या दो दिन में कम हो जाते हैं. भारत में इस्तेमाल के लिए स्वीकृत दोनों दवाएं, सुरक्षित बताई गई हैं, और शोधकर्त्ता इनके संभावित दुष्प्रभावों पर भी नज़र बनाए हुए हैं. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी जानकारी न पहुंचने की वजह से, अधिकांश लोग इससे अनभिज्ञ हैं.

चेंगलपट्टू के सरकारी अस्पताल में, जो चेन्नई की सरहद पर स्थित है, कुछ स्वास्थ्यकर्मी भी शुरू में, वैक्सीन लेने से डर रहे थे, लेकिन अब वहां स्थिति सुधर गई है.

टीकाकरण के लिए नोडल अधिकारी, डॉ परमेश्वरी ने कहा, ‘जनवरी और फरवरी के महीनों में, स्वास्थ्यकर्मी भी झिझकते थे. लोग असर से ज़्यादा, इसके दुष्प्रभावों की चिंता करते थे. 1 मार्च से जब हमने टीकाकरण को आम जनता के लिए खोला, तब जाकर लोगों ने आना शुरू किया. औसतन, हमारे पास हर रोज़ क़रीब 300 लोग टीका लगवाने आ रहे थे’.

36-year-old Yelu Malai from the village Chitravadi said that he will not get the Covid vaccine | Photo: Suraj Singh Bisht | ThePrint
चित्रावदी गांव के 36 साल के येलु मलाई ने कहा कि वह कोविड वैक्सीन नहीं लगवाएंगे । फोटोः सूरज सिंह बिष्ट । दिप्रिंट

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तमिलनाडु में टीकों की कमी

झिझक के अलावा, तमिलनाडु टीकों की भारी कमी से भी जूझ रहा है. ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन (जीसीसी) के पूर्व आयुक्त जी प्रकाश के अनुसार, राजधानी शहर में हर दिन, लगभग 6,000 नए मामले दर्ज हो रहे थे, लेकिन अभी तक केवल 22 प्रतिशत आबादी को ही टीके लगाए जा सके हैं.

उन्होंने कहा, ‘मेरा लक्ष्य था कि अप्रैल के अंत तक 25 लाख, और मई के आख़िर तक 40 लाख लोगों को टीके लगवा दिए जाएं. लेकिन, सप्लाई में एक बड़ी बाधा है’.

जीसीसी अधिकारियों के अनुसार, केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को केवल 70 लाख से कुछ अधिक टीके दिए हैं, जबकि अकेले चेन्नई की आबादी 75-80 लाख है.

इसी कमी को कारण बताया जाता है, कि ग्रामीण इलाक़ों में 18-45 आयु वर्ग के लिए, टीकाकरण शुरू भी नहीं हो पाया है.

चेंगलपट्टू सरकारी अस्पताल में, सिर्फ 45 वर्ष से अधिक वालों को टीके लगाए जा रहे हैं.

डॉ परमेश्वरी ने कहा, ‘वैक्सीन्स की सीमित सप्लाई के कारण, हम सिर्फ 45 वर्ष से अधिक के लोगों को टीके लगा रहे हैं. अभी तक हमारे पास, सिर्फ इसी आयु वर्ग के लोगों को टीका लगाने के आदेश हैं’.

चेंगलपट्टु सरकारी अस्पताल । सूरज सिंह बिष्ट । दिप्रिंट

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डॉक्टरों का वैक्सीन्स की बरबादी रोकने का प्रयास

जब से देश में टीकाकरण शुरू हुआ, तब से तमिलनाडु उन राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है, जहां सबसे अधिक 8.8 प्रतिशत वैक्सीन बर्बाद जाती हैं.

चेंगलपट्टू इलाक़े के मधुरांतकम ज़िले में, रविवार दोपहर 1 बजे, चार में से एक टीका केंद्र ख़ाली पड़ा था.

वहां मौजूद स्वास्थ्यकर्मी ने, नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘अभी तक हमारे पास सिर्फ छह लोग आए हैं. इसका मतलब है कि केवल एक शीशी खोली गई है, और अगर कोई और व्यक्ति नहीं आता, तो ये बेकार हो जाएगी’. वैक्सीन की एक शीशी से दस लोगों को टीके लगाए जा सकते हैं.

इस बीच, उसी ज़िले में एक अन्य सरकारी अस्पताल में, एक सीनियर डॉक्टर ने वैक्सीन लगवाने आए एक 50 वर्षीय व्यक्ति को वापस भेज दिया. उन्होंने कहा, ‘आज हमने 10 लोगों को टीके लगाए हैं. अगर हम उसके लिए ताज़ा शीशी खोलते हैं, और दूसरे लोग नहीं आते, तो बाक़ी बची वैक्सीन बेकार हो जाएगी. बेहतर है अगर ये कल सुबह आ जाएं, जब दूसरे निवासी भी आते हैं’.

तमिलनाडु सार्वजनिक स्वास्थ्य निदेशालय के पूर्व हेड, डॉ के कोलंदास्वामी के अनुसार, ओपन-वायल नीति की वजह से, वैक्सीन की बर्बादी ज़्यादा हो रही है.

डॉ कोलंदास्वामी ने कहा, ‘मीज़ल्स और रेबीज़ आदि के खिलाफ टीकाकरण प्रोग्राम में, स्वास्थ्य कर्मियों को ट्रेनिंग दी जाती थी, कि एक व्यक्ति के आने पर भी टीका दिया जा सकता था. लेकिन अब ये एक समस्या है, चूंकि कोविड-19 वैक्सीन महंगी है, और खोलने के 4 घंटे के अंदर, इसे इस्तेमाल करना होता है. समय की ज़रूरत के हिसाब से, हमारे वर्कर्स अब समझदार हो गए हैं, और वैक्सीन को सोच-समझकर इस्तेमाल कर रहे हैं’.

भविष्य के लिए टीकाकरण का एक बेहतर नज़रिया पेश करते हुए, कोलंदास्वामी ने आगे कहा, ‘देश में कोविड की दूसरी लहर आने के बाद, राज्य के अंदर वैक्सीन के प्रति झिझक में कमी आई है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘लोगों की सोच अब बदल गई है, कोविड के मुक़ाबले, हल्के बुख़ार या मांसपेशियों के दर्द को सहन करना, कहीं बेहतर विकल्प है’.

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