scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमहेल्थकोविड वायरस तेजी से म्यूटेट कर रहा है, भारत में मौजूद वैरिएंट्स के कई स्रोत: IISC की स्टडी

कोविड वायरस तेजी से म्यूटेट कर रहा है, भारत में मौजूद वैरिएंट्स के कई स्रोत: IISC की स्टडी

कोरोना महामारी के एक साल से भी ज्यादा होने के बाद दुनियाभर में वायरस के स्ट्रेन्स और जेनेटिक वैरिएंट्स विकसित हो रहे हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों द्वारा की गई एक नई स्टडी से पता चलता है कि कोविड-19 वायरस पहले के मुकाबले कहीं अधिक तेज़ी से म्यूटेट कर रहा है.

राष्ट्रीय औसत जहां 8.4 म्यूटेशन/सैंपल है, स्टडी से पता चलता है कि बेंगलुरू के तीन वायरल सैंपल्स के जीनोम्स में 27 म्यटेशन थे जो कि 11 म्यटेशन/सैंपल से अधिक है.

रिसर्चर्स के मुताबिक ये वैश्विक औसत 7.3 से कहीं ज्यादा है.

प्रोटियोम रिसर्च की एक जर्नल में छपी इस स्टडी में कई तरह के म्यूटेशन और सार्स-कोव-2 के आइसोलेट्स में अलग तरह के प्रोटीन का पता लगाया है.

कोरोना महामारी के एक साल से भी ज्यादा होने के बाद दुनियाभर में वायरस के स्ट्रेन्स और जेनेटिक वैरिएंट्स विकसित हो रहे हैं.

वायरस के म्यूटेशन को अच्छी तरह समझने के लिए आईआईएससी की टीम एक विस्तृत प्रोटियो-जीनोमिक जांच कर रही है- जो कि बेंगलुरू में कोविड संक्रमित व्यक्तियों के नाक स्राव से लिए गए सार्स-कोव-2 के नमूनों के विश्लेषण की एक श्रृंखला है.

नेक्स्ट जनरेशन सीक्वेंशिंग (एनजीएस) के जरिए जीनोमिक विश्लेषण किया गया. ये एक ऐसी तकनीक है जो तेज़ी से पूरे जीनोम की सीक्वेंशिंग करती है.

आईआईएससी में प्रोफेसर उत्पल टाटू जो इस टीम का नेतृत्व कर रहे हैं, उनके मुताबिक दुनियाभर से वायरल स्ट्रेन्स के जीनोम्स की सीक्वेंसिंग बहुत जरूरी है क्योंकि ये उन म्यूटेशन को ट्रेक करने में मदद कर रहा है जो लगातार बढ़ रहा है.


यह भी पढ़ें: दिल्ली के अस्पतालों में सैकड़ों बिस्तर खाली, फिर भी क्यों नहीं हो पा रहा सभी मरीजों का इलाज


भारत में मौजूद वैरिएंट्स के कई उत्पत्ति केंद्र हैं

आईआईएससी की टीम ने पाया कि बेंगलुरू के सैंपल्स का ज्यादातर संबंध बांग्लादेश के वायरल सैंपल्स से है. इससे यह भी पता चला कि भारत में घूमने वाले वैरिएंट के एक जगह के मुकाबले कई उत्पत्ति केंद्र हैं .

जीनोम उन प्रोटीनों का निर्माण करने के लिए ‘निर्देश’ देता है जो किसी जीव को कार्य करने की अनुमति देते हैं. आईआईएससी की टीम के अनुसार, सार्स-कोव-2 जीनोम 25 से अधिक प्रोटीन लिए हुए हैं लेकिन इनमें से अब तक केवल कुछ ही प्रोटीन की पहचान हो पाई है.

टाटू ने एक बयान में कहा, ‘वायरल प्रोटीन्स का अध्ययन फंक्शनल जानकारी देता है जो वर्तमान में ठीक तरह से पता नहीं चल पा रहा है.’

टीम ने क्लीनिकल सैंपल्स से 13 अलग-अलग प्रोटीन्स का पता लगाया है जिनमें से अधिकतर पहले से पहचाने हुए नहीं हैं. ओआरएफ9बी नामक एक प्रोटीन, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को दबाता है, की भविष्यवाणी की गई थी. लेकिन आईआईएससी की टीम ने अपनी इस बात का प्रमाण दिया है.

टाटू ने कहा, ‘वायरस कैसे काम करता है, सिर्फ इतना जान लेना काफी नहीं है. हमें इसके होस्ट के संदर्भ में जानने की जरूरत है.’

टीम होस्ट प्रोटीन्स के जरिए इस बात का पता लगा रही है कि वायरस के प्रति लोगों का शरीर कैसे प्रतिक्रिया देता है. उन्होंने कोविड संक्रमित मरीजों में अलग तरह के 441 प्रोटीन्स को खोजा है जिसमें से कई को लेकर ये अनुमान लगाया जा रहा है कि वो शरीर की प्रतिरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कोरोनावायरस के खिलाफ भारत बायोटेक की कोवैक्सीन 81% प्रभावी


 

share & View comments