नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक 1 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन के तहत भारत में सिकल सेल एनीमिया – एक आनुवंशिक बीमारी जो लाल रक्त कोशिकाओं के आकार को प्रभावित करती है – से पीड़ित वयस्कों को जल्द ही सरकार द्वारा न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन (पीसीवी) का उपलब्धता कराई जा सकती है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत टीकाकरण पर शीर्ष सलाहकार निकाय, नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन (एनटीएजीआई) ने पिछले महीने सिकल सेल एनीमिया वाले वयस्कों को पीसीवी देने के महत्व पर चर्चा की थी, जो बचपन में संभवतः वैक्सीन लेने से चूक गए थे.
सिकल सेल एनीमिया, जिसे एससीडी भी कहा जाता है, वंशानुगत बीमारियों में से एक है जो लाल रक्त कोशिकाओं के आकार को प्रभावित करता है लाल रक्त कोशिकाएं शरीर के सभी हिस्सों में ऑक्सीजन के वाहक का काम करती हैं. लाल रक्त कोशिकाएं आम तौर पर गोल और लचीली होती हैं, जो उन्हें रक्त वाहिकाओं में एक जगह से दूसरी जगह आसानी से आने-जाने में मदद करती हैं, लेकिन सिकल सेल एनीमिया में, उनका आकार अर्धचंद्राकार या हंसिया जैसी बनावट वाला हो जाता है.
इसके बारे में जानकारी रखने वाले मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ”राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सिकल सेल रोगियों के लिए पीसीवी उपलब्ध कराए जाने पर चर्चा चल रही है क्योंकि यह वैक्सीन इस जेनेटिक बीमारी से पीड़ित तमाम लोगों में गंभीर जटिलताओं को रोकता है.”
अलग-अलग लोगों में रोग की गंभीरता अलग-अलग होती है, और गंभीर मामलों में, लोगों को समय-समय पर अत्यधिक दर्द का अनुभव होता है.
ऐसे लोग हो सकते हैं जिनमें एससीडी के वाहक जीन हों, यदि माता-पिता में से किसी एक को यह बीमारी है, जबकि दूसरे प्रकार के लोगों में माता-पिता दोनों से एक-एक दोषपूर्ण जीन्स होते हैं, जिससे उनमें इस रोग की पूर्ण विकसित अवस्था पाई जाती है. इसकी वजह से व्यक्ति में गंभीर दर्द, संक्रमण, अंगों में क्षति होना और शीघ्र मृत्यु हो सकती है.
इस बीमारी का एक ही इलाज है-बोन मैरो ट्रांसप्लांट और यह भी केवल बचपन में ही किया जा सकता है जिसकी लागत 10-20 लाख रुपये है.
अधिकारी ने कहा, “इसके लिए, एनटीएजीआई वैज्ञानिक साक्ष्य जुटा रहा है, जबकि ऐसे लोगों की संख्या जिन्हें इस वैक्सीन की ज़रूरत है और इसमें आने वाले कुल खर्च के बारे में भी आकलन किया जा रहा है.”
दिप्रिंट ने जिन मेडिकल एक्सपर्ट्स से बात की, उनके अनुसार यह कदम महत्वपूर्ण हो सकता है और बड़ी संख्या में इस बीमारी से पीड़ित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिल सकती है.
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली के हेमेटॉलजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के क्लिनिकल लीड डॉ. गौरव खरया ने बताया कि विकृत सिकल-आकार वाले आरबीसी के कारण प्लीहा या स्प्लीन को होने वाली क्षति के कारण एससीडी रोगियों में फंक्शनल एस्प्लीनिया (स्प्लीन के सामान्य रूप से काम न कर पाने की स्थिति) होती है.
खरया ने दिप्रिंट को बताया, “इससे उन्हें एच इन्फ्लूएंजा, न्यूमोकोकल और मेनिंगोकोकल संक्रमण जैसे कैप्सुलेटेड संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.”
उन्होंने कहा, “पीसीवी इन कैप्सुलेटेड जीवों के खिलाफ सिकलर को रोकते हैं, इस प्रकार रुग्णता और मृत्यु दर के जोखिम को कम करते हैं.”
खरया की बात दोहराते हुए, वायरोलॉजिस्ट और एनटीएजीआई के पूर्व सदस्य डॉ. जे.पी. मुलियिल ने भी कहा कि, “वयस्क सिकल सेल रोगियों को पीसीवी देने का विचार काफी अच्छा है.”
सिकल सेल एनीमिया पर फोकस
जैसा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है नाइजीरिया के बाद भारत में सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित लोगों की संख्या दुनिया में दूसरे स्थान पर है. उनमें से अधिकांश आदिवासी समुदायों से हैं, जहां कुछ समूहों के 40 प्रतिशत तक सदस्य इस बीमारी से प्रभावित हैं.
इस डेटा के मुताबिक, सबसे ज्यादा मरीज़ों की संख्या मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु जैसे राज्यों में है.
इस प्रमुख स्वास्थ्य समस्या से निपटने के लिए, विशेषकर आदिवासी आबादी के बीच, सरकार ने 1 जुलाई को मध्य प्रदेश के शहडोल में राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन शुरू किया.
केंद्रीय बजट 2023 में प्रस्तावित किए गए इस मिशन के तहत अगले तीन वर्षों में 40 वर्ष से कम उम्र के लगभग सात करोड़ लोगों की जांच की जाएगी और 2047 तक इस बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है.
महाराष्ट्र के नागपुर में सिकल सेल एसोसिएशन से जुड़े और एससीडी पर रिसर्च करने वाले डॉ. अमित अग्रवाल ने दिप्रिंट को बताया कि बीमारी को खत्म करने के लिए राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम में बड़े पैमाने पर जागरूकता पैदा करने, जेनेटिक काउंसिलिंग करने, प्रसव पूर्व और नवजात शिशु की जांच करने व इस बीमारी से पीड़ित बच्चों का इलाज किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, “चूंकि बीमारी का इलाज (बोन मैरो ट्रांसप्लांट के माध्यम से) बहुत मुश्किल और बेहद महंगा है, जिसमें कि प्रति मरीज लगभग 20-25 लाख रुपये का खर्च आता है, इसलिए भारत में एससीडी मरीजों संख्या को बढ़ने से रोककर बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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