नई दिल्ली : देश में बुधवार को लगातार 14वें दिन कोविड के दैनिक मामलों में वृद्धि नजर आई जबकि कुल सक्रिय केस बढ़कर 3,68,457 हो गए हैं.
हालांकि, रोजाना होने वाली मौतों का आंकड़ा 200 के आसपास ही है और मृत्यु दर के मामले में अनुपात—कुल केस में मौत का प्रतिशत—अभी 1.37 प्रतिशत है.
पहली लहर से तुलना करें तो मृत्यु दर कम ही है—पिछली बार रोजाना मौतों का आंकड़ा 600 के करीब था जब 17 जुलाई को सक्रिय केस लोड का दैनिक आंकड़ा 3.4 लाख से अधिक पर पहुंच गया था.
दिप्रिंट ने कई डॉक्टरों और विशेषज्ञों से बात की, जिनका कहना है कि यह तो स्पष्ट नहीं है कि क्या वायरस स्ट्रेन में बदलाव की वजह से मौतें कम हो रही हैं, लेकिन निश्चित तौर पर कोविड-19 से निपटने के बेहतर और सुचारू तंत्र ने पहली और दूसरी लहर के बीच एक अंतर उत्पन्न किया है.
डिपार्टमेंट ऑफ एनेस्थिसियोलॉजी, क्रिटिकल केयर एंड पेन मेडिसिन में प्रोफेसर और एम्स में कोविड के लिए निर्धारित क्लीनिकल मैनेजरियल ग्रुप जेपीनैट के चेयरपर्सन अंजन त्रिखा ने कहा, ‘जहां बीमारी के इलाज के संबंध में बात करें तो हम समझदार साबित हुए हैं, और हम वास्तव में जानते हैं कि इन मरीजों के इलाज में क्या कारगर रहेगा और क्या कुछ भी काम नहीं करेगा.’
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बोझ घटा, गंभीर मामलों में कमी
दिल्ली, गुजरात और मध्य प्रदेश के डॉक्टरों का कहना है कि भर्ती होने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है लेकिन अस्पतालों में अब मरीजों की एकदम बाढ़ आ जाने जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ रहा है.
त्रिखा ने कहा, ‘जहां तक दिल्ली की बात है, यहां आंकड़े बढ़े हैं. एम्स में हमारे यहां आईसीयू में भर्ती होने वालों की संख्या लगभग 40% बढ़ गई है. हालांकि, हमने पाया है कि आमतौर पर वार्ड में भर्ती होने वाले मरीज नहीं आ रहे हैं. अब केवल थोड़े ज्यादा बीमार लोग ही हमारे पास आ रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे पूरा यकीन है कि अब दिल्ली और एनसीआर के अधिकांश फिजीशियन खुद को अपने क्लीनिक या अस्पताल में ऐसे मरीजों के इलाज में सक्षम मान रहे हैं, मार्च, अप्रैल, मई, जून और उससे पहले के महीने में यह स्थिति नहीं थी.’
हालांकि, उन्होंने बताया कि कोमोर्बिडिटी वाले मामलों में लक्षण बहुत भिन्न नहीं होते हैं.
कोविड अस्पताल में तब्दील राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. बी.एल. शेरवाल ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में मरीजों की संख्या में 25 प्रतिशत बढ़ी है.
उन्होंने कहा, ‘यह एक खतरा तो है…(लेकिन) सीएफआर कम है. गंभीर मरीजों की संख्या नवंबर, दिसंबर की तुलना में कम नजर आ रही है, लेकिन हमें अगले सप्ताह तक इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि क्या यही ट्रेंड जारी रहता है.’
एम्स भोपाल में एनेस्थीसिया विभाग की प्रमुख डॉ. वैशाली वेन्डेसकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस समय सीएफआर कम है और लक्षणों की गंभीरता तुलनात्मक रूप से कम है…ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीजों की संख्या भी ज्यादा नहीं है.’
हालांकि, उन्होंने कहा कि देशभर में सोमवार को 212 मौतें हुई हैं और उन्होंने दूसरी लहर पर नियंत्रण के संबंध में कोविड के अनुकूल व्यवहार करने को अहम वजह बताया.
दिप्रिंट ने सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी सेंटर के निदेशक डॉ. राकेश मिश्रा से पूछा कि क्या वायरस में बदलाव मृत्यु दर में कमी की वजह हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि क्या वायरस में हुआ कोई बदलाव मृत्यु दर घटने की वजह है लेकिन यह तय है कि समय के साथ और अधिक वैरिएंट कम वायरल हो सकते हैं, लेकिन अभी यह साबित होने की जरूरत है…लेकिन मुझे लगता है कि मरीजों की बेहतर देखभाल इसका बड़ा कारण जरूर है.’
बेहतर कोविड प्रबंधन
डॉक्टरों का मानना है कि कोविड मामले का बेहतर ढंग से प्रबंधन सीएफआर में कमी की एक वजह हो सकती है.
गुजरात के अहमदाबाद स्थित सिविल अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. राकेश जोशी ने भी कहा कि जागरूकता बढ़ने के कारण हल्के लक्षणों वाले अधिकांश मरीज अब खुद ही क्वारेंटाइन में चले जाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘उस समय पीक टाइम होने के कारण हर रोज 200 से 300 मरीज भर्ती हो रहे थे, लेकिन समय बीतने के साथ सभी को पैथोफिजियोलॉजी के बारे में पता चल गया है कि वायरस शरीर को कैसे संक्रमित करता है और उसे शरीर से कैसे बाहर किया जा सकता है…अगर हम यह सोचें कि मृत्यु दर कम क्यों है तो ऐसा इसलिए भी है क्योंकि लोग वायरस के बारे में अधिक जागरूक हो चुके हैं.’
उन्होंने कहा, ‘लोग समय पर जानकारी देते हैं और समय पर इलाज कराते हैं, मामले धीरे-धीरे बढ़ तो रहे हैं…लेकिन संभाले जाने की स्थिति में हैं. एकदम अचानक बाढ़ नहीं आई है, जैसी स्थिति दीपावली के आसपास थी जब हालात चरम पर पहुंच गए थे और 1,700 से 1,800 मरीज भर्ती हो रहे थे.’
इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी है कि समय के साथ भर्ती होने संबंधी दिशा-निर्देश भी बदल गए हैं. महामारी के शुरुआती महीनों में सभी कोविड मरीजों को अस्पतालों में भर्ती कराया जा रहा था.
त्रिखा ने कहा, ‘लोगों और डॉक्टरों में अब बीमारी का खौफ नहीं है, एक समय था जब हमारे डॉक्टरों और नर्सों तक को उनके मकान मालिकों ने अपने घर खाली करने को कह दिया था. लेकिन अब वह डर दूर हो गया है. और एक बार डर खत्म हो जाने के बाद मामले जल्द सामने आ जाते हैं और इलाज शुरू हो जाता है.’
एक तरफ जहां होम क्वारेंटाइन के कारण भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या कम रह रही है, वहीं, डॉक्टरों का कहना है कि अब उन्हें कोविड मामलों का ठीक से इलाज करना समझ आ गया है.
मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन, जिसे शुरू में हल्के से मध्यम लक्षण वाले मामलों के इलाज के तौर पर सुझाया गया था, को इसके दुष्प्रभावों और वास्तव में कोविड के खिलाफ कारगर होने के वैज्ञानिक साक्ष्यों के अभाव में अब कोविड मरीजों को नहीं दिया जा रहा है. प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग भी अब सीमित कर दिया गया है.
त्रिखा ने कहा, ‘महामारी में छह महीनों के दौरान में हमने यह बात अच्छी तरह समझी कि क्या-क्या कारगर साबित होता है—ऑक्सीजन, रेमेडिसिविर, प्लाज्मा, ब्लड थिनर, स्टेरॉयड और टोसीलिजुमाब और एंटीबायोटिक्स और अच्छी तरह से देखभाल.’
वेन्डेसकर ने भी कहा कि सिम्पटमैटिक मरीजों के सामान्य इलाज में एंटीबायोटिक्स, स्टेरॉयड, एंटीकोआगुलेंट्स, विटामिन सी, विटामिन डी और रेमेडिसिविर शामिल हैं.
जोशी के मुताबिक, पहली लहर के बाद से एंटी वायरल दवा रेमेडिसिविर का इस्तेमाल बढ़ा बढ़ा है. यह बीमारी के शुरुआती चरण के दौरान सुरक्षित और अधिक प्रभावी है.’
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