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Sunday, 22 December, 2024
होमदेश‘कोई हिंदू मदद मिले बिना न लौटे’—लखनऊ की इन मस्जिदों के लिए कोविड मदद का कोई धर्म नहीं है

‘कोई हिंदू मदद मिले बिना न लौटे’—लखनऊ की इन मस्जिदों के लिए कोविड मदद का कोई धर्म नहीं है

लखनऊ में 71 प्रतिशत आबादी हिंदू है, और 2 जामा मस्जिदों ने यह साफ कर दिया कि सहायता केवल मुसलमानों तक ही सीमित नहीं है.

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लखनऊ: मार्च अंत का समय था जब भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर जोर पकड़ रही थी, तभी लखनऊ की दो मस्जिदों—जामा मस्जिद, लालबाग और जामा मस्जिद, कपूरथला—की प्रबंध समितियों ने एक बैठक बुलाई.

समितियों के सदस्यों ने बदलती स्थितियों के बारे डॉक्टरों से बात की थी, और इससे निपटने में मदद की इच्छा जताई. फैसला किया गया कि अप्रैल के पहले सप्ताह से ये मस्जिद लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर और कंसंट्रेटर मुहैया कराएंगी या फिर महामारी से निपटने के लिए जिन अन्य चीजों की जरूरत हो. तय किया गया था कि उनके सभी प्रयासों के दौरान एक अहम आंकड़े को ध्यान में रखा जाएगा.

लखनऊ में 71 फीसदी आबादी हिंदू है, और किसी भी परिस्थिति में मस्जिदों की सहायता मुसलमानों तक सीमित नहीं होनी चाहिए. इसी बात को मस्जिदों ने अपना मूल मंत्र बना रखा है.

मस्जिदों ने पिछले तीन महीनों में शहर में 500 से अधिक परिवारों की मदद किए जाने का दावा किया है, जिनमें से 60 फीसदी से ज्यादा हिंदू थे.

जामा मस्जिद लालबाग समिति के प्रेसीडेंट जुनून नोमानी ने कहा, ‘हमने देखा कि करीबियों और नजदीकी परिचितों में शायद ही कोई ऐसा था जो वायरस से संक्रमित न हुआ हो. हमने मार्च अंत में एक बैठक बुलाई और डॉक्टरों से सलाह लेकर लोगों की मदद के लिए योजना तैयार की.’

Zunnoon Nomani (R), president of the Jama Masjid Lalbagh committee, with the mosque's caretaker | Praveen Jain | ThePrint
जुन्नून नोमानी (आर), जामा मस्जिद लालबाग समिति के अध्यक्ष, मस्जिद के केयरटेकर के साथ | प्रवीण जैन |दिप्रिंट

उन्होंने कहा, ‘यहां 70-75 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है, इसलिए हमने यहां काम करने वाले सभी लोगों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि कोई भी हिंदू भाई बिना मदद के घर न लौटे. उसके बाद से यहां से कोई भी हिंदू खाली हाथ नहीं लौटा.’

कपूरथला जामा मस्जिद समिति के मोहम्मद अजहर ने भी कुछ इसी तरह का दावा किया और बताया कि ‘हमने जिन 500 परिवारों की मदद की है, उनमें से 60 प्रतिशत से अधिक हिंदू हैं.’


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‘उन्होंने मेरी जान बचाई’

लखनऊ के 82 वर्षीय सेवानिवृत्त सिविल इंजीनियर वाई.पी. सिंह को मई के पहले सप्ताह में अपना सिलेंडर खत्म होने के बाद ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की सख्त जरूरत थी. उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि वह अपनी जिंदगी बचाने के लिए जामा मस्जिद लालबाग के ऋणी हैं.

Y.P. Singh, 82, a retired civil engineer in Lucknow, sought help from Jama Masjid Lalbagh | Praveen Jain | ThePrint
लखनऊ के सेवानिवृत्त सिविल इंजीनियर 82 वर्षीय वाई.पी. सिंह ने जामा मस्जिद लालबाग से मदद मांगी/प्रवीण जैन/दिप्रिंट

सिंह ने बताया, ‘मैंने लालबाग मस्जिद को फोन किया और समिति के सदस्यों ने कुछ ही समय में इसे पहुंचा दिया. मैं उनका बहुत आभारी हूं, उनकी तत्परता ने मेरी जान बचा ली.’ उन्होंने नोमानी और पूरी मस्जिद के प्रति आभार जताने के लिए एक पत्र भी लिखा है.

मस्जिदों से ऑक्सीजन सहायता लेने के लिए संबंधित लोगों को अपने आधार कार्ड और मेडिकल डॉक्यूमेंट की एक प्रति देनी होती है. जो लोग भुगतान कर सकते हैं उनसे 10,000 रुपये की सुरक्षा राशि जमा कराई जाती है, लेकिन मशीनें वापस देने पर यह राशि लौटा दी जाती है.

नोमानी ने बताया, ‘शुरू में हमने ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने, उन्हें रीफिल कराने और ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के लिए अपने पैसे खर्च किए. लेकिन बाद में जब लोगों ने मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो हमने उनसे कहा कि नकद में कोई दान नहीं लेंगे, इसके बजाये वे अपनी क्षमता के मुताबिक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, सिलेंडर और पीपीई किट दान कर सकते हैं.’

अजहर ने भी कहा, ‘मस्जिद को उन लोगों से चंदा मिला जो यहां नमाज अदा करने आते हैं और इस अवधि के दौरान दो एंबुलेंस भी खरीदी गईं.’

दोनों मस्जिदें एक-दूसरे के साथ तालमेल कायम करके काम करती हैं, जब कोई एक किसी की मदद में असमर्थ होती है तो दूसरी यह जिम्मेदारी संभाल लेती है.

मस्जिद के वॉलंटियर अप्रैल से चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं, और उन मरीजों की मदद के लिए पूरा इंतजाम कर रहे हैं जिन्हें कोविड की दूसरी लहर के बीच अस्पतालों में जगह नहीं मिल पा रही है.

अप्रैल और मध्य मई के बीच वालंटियर के लिए तो रातों की नींद भी हराम हो गई थी, जब मस्जिदों के फोन लगातार घनघना रहे थे. भले ही जिले में मामले अब कम हो गए हैं, लेकिन दोनों मस्जिदों का कहना है कि उनकी तरफ से जरूरतमंद लोगों की मुफ्त मदद जारी रहेगी.


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जरूरतमंदों की हर तरह से मदद

यद्यपि मस्जिदों की मदद की शुरुआत ऑक्सीजन सिलेंडरों की व्यवस्था के साथ की थी लेकिन बाद में उन्होंने हर तरह की सहायता मुहैया कराने की कोशिश की. जब एक परिवार के सभी सदस्य वायरस की चपेट में आ गए तो वे मस्जिद के वॉलंटियर ही थे जो उनके लिए ऑक्सीजन सिलेंडर रीफिल कराने के लिए लाइन में लग रहे थे. उन्होंने आइसोलेशन में रहने वाले मरीजों के घरों में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर लगाए, दवाएं मुहैया कराईं और जरूरतमंदों को खाना तक खिलाया जबकि उनके प्रियजन भी इससे कतराते थे.

A volunteer carries oxygen cylinders at Jama Masjid Kapurthala | Praveen Jain | ThePrint
लखनऊ के कपूरथला स्थित जामा मस्जिद से वॉलंटियर ऑक्सीजन सिलेंडर ले जाता हुआ/प्रवीण जैन/दिप्रिंट

नोमानी ने बताया, ‘ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां किसी के कोविड पॉजिटिव निकलने पर परिवार के सदस्यों तक ने किनारा कर लिया. हम पीपीई सूट में वहां गए हैं, खुद कंसंट्रेटर लगाए क्योंकि परिवार से कोई भी मदद नहीं करना चाहता था.’ उन्होंने इस संबंध में अपनी बेटी, बेटे और बहू के साथ रहने वाली एक बुजुर्ग मरीज के मामले का भी जिक्र किया.

नोमानी ने कहा, ‘एक कंसंट्रेटर की जरूरत के संबंध में फोन आने के बाद जब हम घर पहुंचे तो बेटी, बेटे और बहू ने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर को लगाना सीखने से इनकार कर दिया. वे कमरे में प्रवेश ही नहीं करना चाहते थे, इसलिए हम पीपीई सूट पहनकर अंदर गए.’

उन्होंने आगे बताया, ‘हमने उसका कमरा साफ किया, कंसंट्रेटर लगाया और उन्हें खाना खिलाया. इस पर महिला रोने लगी. उस समय क्या स्थिति थी इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. किसी ने उसे एक कप चाय तक नहीं दी थी.’

जामा मस्जिद कपूरथला के मौलाना तौहीर ने बताया कि उनकी ‘हमारी एम्बुलेंस के जरिये लगभग 180 लोगों की मदद की गई. इनमें से करीब 30 मामले ऐसे थे जिसमें मृत मरीजों को कब्रिस्तान और श्मशान घाट तक पहुंचाया गया.मंगलवार तक जिले में 2,280 सक्रिय मामलों के साथ पॉजिटिविटी रेट अब घटकर 1 प्रतिशत से कम हो गई है. जिले में शनिवार को सभी 106 मामले दर्ज किए गए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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