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Wednesday, 18 December, 2024
होमहेल्थपुरुषों के यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है कोविड, नपुंसकता का भी करना पड़ सकता है सामना: स्टडी

पुरुषों के यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है कोविड, नपुंसकता का भी करना पड़ सकता है सामना: स्टडी

नपुंसकता के पीछे के कारण सार्स-सीओवी-2 द्वारा पुरुष जननांगों की रक्त धमनियों तथा शुक्र ग्रंथियों को पहुंचा नुक़सान, और महामारी से जन्मे मनोवैज्ञानिक तनाव भी हो सकते हैं.

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बेंगलुरू: जननक्षमता और नपुंसकता शोध लगातार इंगित कर रहे हैं कि कोविड-19 पुरुषों के यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जिससे कभी कभी इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी) भी हो सकता है, जिसे नपुंसकता भी कहा जाता है.

एक नई स्टडी में, टर्की के शोधकर्त्ताओं ने पता लगाया है, कि एंडोथीलियम यानी रक्त धमनियों में लगी झिल्लियों की शिथिलता, कोविड से शुक्र ग्रंथियों को हुए सीधे नुक़सान, और महामारी के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़े प्रभाव के नतीजे में, इरेक्टाइल डिसफंक्शन के मामलों में वृद्धि हुई है. ये स्टडी जो मौजूदा साक्ष्यों पर आधारित एक नैरेटिव रिव्यू है, पिछले महीने इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंपोटेंस रिसर्च में प्रकाशित हुई थी.

एक और स्टडी में, जिसका अभी पियर रिव्यू नहीं हुआ है, पता चला है कि रीसस मकाक बंदरों के लंग्स, प्रोस्ट्रेट, पीनिस, और टेस्टिकल्स में, इनफेक्शन के दो सप्ताह के बाद सार्स-सीओवी-2 वायरस के अवशेष पाए गए हैं. टीम ने पता लगाया कि 14 दिनों के बाद, बंदरों के फेफड़ों का संक्रमण तो साफ होने लगा, लेकिन उनकी शुक्र ग्रंथियों का इनफेक्शन वास्तव में बढ़ गया. उनके जननांगों की रक्त धमनियां भी क्षतिग्रस्त पाई गईं.

पिछली स्टडीज़ में भी इस बात की पुष्टि की गई है, कि महामारी के कारण यौन स्वास्थ्य और कामवासना में कमी आई है, और ये दोनों मानसिक स्वास्थ्य के प्रभावित होने, तथा संक्रमण की वजह से सेल्स के शारीरिक रूप से क्षतिग्रस्त होने का नतीजा हैं.

2021 की एक पायलट स्टडी में ये भी पाया गया, कि केवल दो संक्रमित लोगों और दो स्वस्थ लोगों के सीमित सैम्पल साइज़ में, पीनिस की रक्त धमनियों के अंदर देखने लायक़ वायरस कण और आरएनए मौजूद थे.

विशेषज्ञ मांग कर रहे हैं कि कोविड से ठीक होने वाले पुरुष मरीज़ों के, यौन और लिंग स्वास्थ्य की लगातार निगरानी और स्टडी होनी चाहिए, और नपुंसकता के लक्षण दिखाने वालों के उपचार के लिए, एक एकीकृत बहु-विषयक नज़रिया अपनाया जाना चाहिए.

इरेक्टाइल डिसफंक्शन क्यों होता है?

फिलहाल ये साबित हो चुका है, कि हालांकि कोविड सभी आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप उन पुरुषों का गंभीर बीमारी या मौत से सामना हो सकता है, जिन्हें डायबिटीज़, हाईपरटेंशन, और मोटापे जैसी अन्य बीमारियां भी होती हैं. टीकाकरण के साथ गंभीर बीमारियों और मौत का ख़तरा कम हो जाता है.

इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी) वो अवस्था होती है, जिसमें यौन संबंध बनाते समय लिंग के खड़ा होने, और खड़ा रहने की क्षमता ख़त्म हो जाती है. ये अवस्था बहुत सी शारिरिक समस्याओं, बीमारियों, हार्मोन्स के असंतुलन और मनोवैज्ञानिक कारकों से पैदा होती है- जिसके आमतौर से एक से अधिक कारण होते हैं. ये तंत्र बहुत जटिल होता है और इसमें तंत्रिका, वाहिकीय, और हारमोन संबंधी सिग्नलिंग सिस्टम होते हैं. इनके तथा मनोवैज्ञानिक मनोवैज्ञानिक प्रणालियों के बाधित होने से, ईडी की स्थिति पैदा हो सकती है.

ईडी अकसर पाचन तंत्र में दीर्घकालिक सूजन, गुर्दों की बीमारी, और सोरायसिस जैसे ऑटो-इम्यून रेस्पॉन्सेज़ से भी हो जाता है. इनसे भड़काऊ साइटोकिन्स पैदा होते हैं- टीएनएफ-ए और आईएल-6 जैसे प्रोटीन्स जो इम्यून रेस्पॉन्स को व्यवस्थित करते हैं, और यौन शिथिलता को और अधिक बिगाड़ने के लिए जाने जाते हैं.

ये साइटोकीन्स भी कोविड संक्रमण के दौरान ही जारी होते हैं.

वायरल आरएनए को लगातार एंडोथेलियल सेल सतहों पर देखा गया है, चूंकि वायरस एसीई-2 रिसेप्टर से चिपक जाता है, जो सेल्स और प्रणालियों के बीच संकेत भेजने के लिए इस्तेमाल होता है. इससे लिंग के सेल्स से आने वाले सिग्नल्स में बाधा पैदा होती है, जिसके परिणामस्वरूप एंडोथेलियल डिसफंक्शन की स्थिति पैदा हो जाती है. शुक्रग्रंथियों में कोविड से एसीई-2 सिग्नलिंग को हुई क्षति से भी, और ज़्यादा नुक़सान पहुंचता है.

शोधकर्त्ताओं का कहना है कि यौन रूप से सक्रिय लोग, जो कोविड के चलते आर्थिक और मनोवैज्ञानिक दवाब का सामना कर रहे हैं, उन्हें यौन क्रियाओं की बारंबारता और संतुष्टि में कमी का अनुभव होता है. इसके अलावा, विशेषज्ञों का कहना है, कि अकेलेपन, लॉकडाउन्स, अनिश्चितता, मौत के डर आदि के तनाव से भी, पुरुषों और महिलाओं दोनों में यौन समस्या बढ़ जाती है.

ED की ह्रदय संबंधी जटिलताएं

ईडी या नपुंसकता की मौजूदगी या शुरुआत, भविष्य में ह्रदय संबंधी बीमारियों के बढ़ते ख़तरे की ओर इंगित करती हैं- जिसमें दिल की मांसपेशियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, और ख़ून के थक्के, ह्रदय के वॉल्व की बीमारी, ह्रदय का बढ़ना, सीने में जकड़न जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं. ईडी में विशेषरूप से ह्रदय की बीमारियों से, मौत का ख़तरा बढ़ जाता है.

2013 में इस विषय पर अच्छे से की गईं क्लीनिकल स्टडीज़ की समीक्षा में, जिसमें 14 प्रमुख स्टडीज़ में कुल 90,000 से अधिक प्रतिभागी शामिल थे, 5,600 से अधिक लोगों में ह्रदय और मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं से जुड़ी समस्याएं (जिनमें मस्तिष्क को रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है, जिससे स्ट्रोक्स हो जाते हैं) देखी गईं. इनमें से 1,000 से अधिक लोग दिल की बीमारी या हार्ट अटैक से मारे गए.

दूसरी स्टडीज़ से भी संकेत मिला है, कि चूंकि ईडी और दिल की बीमारियों के बीच इतना क़रीबी संबंध है, इसलिए इरेक्शन हासिल करने या उसे बनाए रखने की असमर्थता, दिल की बीमारी की ओर भी इशारा हो सकती है.

चूंकि ईडी का एक बड़ा हिस्सा मनोवैज्ञानिक होता है, इसलिए विशेषज्ञों ने इसके उपचार के लिए, बहु-विषयक और एकीकृत दृष्टिकोण अपनाए जाने की मांग की है, जिसमें संज्ञानात्मक व्यवहारपरक चिकित्सा और सेक्स थेरेपी जैसे, जैव चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप का मिश्रण हो.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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