नई दिल्ली: यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैरीलैंड में इन्फेक्शियस डिजीज के प्रमुख डॉक्टर फहीम यूनुस का कहना है कि जिनमें अनुशासन है वो कोरोनावायरस को जल्दी हरा देंगे, अनुशासन के बैगार इसे हराने में साल, दो साल या तीन साल का भी वक्त लग सकता है. इसके अलावा उन्होंने वैक्सीन के आने और इसके सब तक पहुंचने को लेकर भी अपनी राय दी.
पाकिस्तान के लाहौर में जन्मे और अब अमेरिका में रहने वाले डॉक्टर यूनुस ने ये बातें दिप्रिंट के ऑनलाइन संस्करण के कार्यक्रम ऑफ़ द कफ़ में कही. लाहौर के किंग एडवर्ड कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद 25 साल की उम्र में अमेरिका पहुंचे फहीम का कहना है कि पाकिस्तान से उनका लगाव अभी भी कम नहीं हुआ है.
उन्हें उम्मीद है कि जिन वैक्सीन पर काम चल रहा है उन्हें इस साल के अंत या अगले साल की शुरुआत से हरी झंडी मिलने लगेगी. हालांकि, उन्होंने कहा, ’70 प्रतिशत लोगों तक इसके पहुंचने में तकरीबन 3 साल तक का समय लग सकता है.’
इम्युनिटी से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘पहले वाले कोरोनावायरस से ठीक होने के बाद लोगों में एक से दो साल की इम्युनिटी आ जाती थी. ऐसे में अगर इस वायरस के साथ भी ऐसा है और वैक्सीन से भी इतनी ही लंबी इम्युनिटी आती है तो इले कुचलना आसान होगा.’
वायरस को हराने से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘राजनीति की तरह महामारी विज्ञान भी बिल्कुल स्थानीय बातों पर आधारित होता है. अगर मैं आपको न्यूयॉर्क और अमेरिका से जुड़े दो अलग ग्राफ़ दिखाऊं तो आप मानेंगे नहीं की ये एक ही देश हैं क्योंकि न्यूयॉर्क ने कर्व को कुचलकर रख दिया.’
उनके मुताबिक चीन, वियतनाम और ताइवन जैसे देशों ने कर्व फ़्लैट करने के मामले में काफ़ी बेहतर किया है. उन्होंने कहा कि सारा मसला अनुशासन का है, जो जितना अनुशासित रहेगा वो उतना बेहतर करेगा. हालांकि, डॉक्टर यूनुस लगातार लॉकडाउन करने के समर्थक नहीं हैं.
बिना लॉकडाउन के कोविड से बाचव के लिए उन्होंने ड्राइविंग का उदाहरण देते हुए कहा, ‘जैसे एक्सिडेंट से बचाव के लिए दो गाड़ियों में दूरी ज़रूरी होती है वैसे ही कोविड से बचने के लिए लोगों के बीच दूरी ज़रूरी है. फ्लू कहकर इसका मज़ाक उड़ाना सही नहीं है. इसके अलावा मास्क पहनना और हाथ धोते रहना सबसे ज़रूरी है.’
एक सवाल के जवाब में युनूस ने कहा कि फ़रवरी में ही उन्हें कोरोना की गंभीरता का अंदाज़ा हो गया था और उन्हें अचरज हो रहा था कि मीडिया में इसकी व्यापक चर्चा क्यों नहीं हो रही.
8 मार्च को अपना (कोविड का) पहला मरीज़ देखने वाले इस डॉक्टर का कहना है कि 6 महीने में जितनी सीख मिली है उतनी सीख 10 सालों में नहीं मिलती.
पहले मरीज़ के सफलतापूर्वक घर लौटने का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘वो 80 साल की एक महीला थीं. टर्की से लौटी थीं. 7-8 दिनों बाद सही सलामत अपने घर को लौट गईं.’ हालांकि, पहले मरीज़ के मामले की सफ़लता को दरकिनार करते हुए उन्होंने कहा कि जो उम्रदराज़, पहले से बीमारियों से ग्रस्त और वजनी लोग हैं उनके लिए ये वायरस ज़्यादा ख़तरनाक है.
उन्होंने कहा, हालांकि युवाओं को भी इससे काफ़ी ख़तरा है. ये बीमारी किसी को भी हो सकती है. वायरस के तेज़ी से फ़ैलने में सुपर स्प्रेडर की भूमिका पर यूनुस ने कहा कि बहुत ज़्यादा वायरल लोड वाले व्यक्ति में लक्षण पता लगने के एक दिन पहले से दो दिन बाद तक उससे वायरस फ़ैलने का काफ़ी ख़तरा रहता है.
मास्क नहीं पहनने पर ये ख़तरा और बढ़ जाता है. शादी या धार्मिक आयोजनों में वायरस को तेज़ी से फै़लने का मौक़ा मिलता है. वायरस के सतह पर ज़िंदा रहने को लेकर उन्होंने कहा कि ये ज़्यादा समय तक वहां जीवित नहीं रहता. उन्होंने ये भी कहा कि आमतौर पर वायरस हवा में छह फ़ीट से दूर नहीं जाता.
युनूस ने ट्विटर के ज़रिए कोविड को लेकर लगातार जकरूकता फै़लाई है. 14-15 घंटे के अपने काम के अलावा उन्होंने इसके लिए अपनी बेटी द्वारा सुझाए गए रास्ते के बाद समय निकाला. उन्होंने कहा, ‘जब महामारी फ़ैली तो दोस्त, परिवार और स्वास्थ्यकर्मियों समेत न जाने कितने लोगों के फ़ोन आ रहे थे. काम की व्यस्तता की वजह से सबको जवाब देना मुश्किल था. सो बेटी ने ट्विटर के ज़रिए आम सवालों का जवाब देने का रास्ता सुझाया.’
कोविड से जमने वाले ख़ून के थक्कों को हल्का करने के लिए डेक्सामेथासोन के इस्तेमाल के अलावा उन्होंने इस बीमारी से लड़ाई में रेमडेसिवीर के भी बहुत कारगर होने की बात कही. उन्होंने कहा कि बेहद कम समय में ऐसे प्रयोगों से आईसीयू में होने वाली कोविड के मरीज़ों की मौत का आंकड़ा 30 से 40 प्रतिशत नीचे आया है.
उन्होंने कोविड के ख़िलाफ़ लड़ाई के भविष्य को लेकर भी काफ़ी उम्मीद जताई.