नई दिल्ली: कोविड महामारी को एक साल हो गया है, लेकिन सार्स-सीओवी-2 वायरस से जुड़े बहुत से सवाल अभी बने हुए हैं. अप्रैल के आसपास संक्रमण की दूसरी लहर से निपटने के लिए भारत के बहुत से सूबे फिर से लॉकडाउन में चले गए हैं, जबकि एक्सपर्ट्स अभी पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं कि क्या ये वायरस ऊंची अपार्टमेंट बिल्डिंगों में पाइपलाइन प्रणाली के ज़रिए फैल सकता है.
वैज्ञानिक कोरोनावायरस के वर्टिकल ट्रांसमिशन को लेकर अटकलें लगा रहे हैं- यानी क्या किसी ऊंची इमारत में रहने वाला संक्रमित व्यक्ति अपने फ्लोर से नीचे या ऊपर रहने वाले परिवारों के लिए संक्रमण का ख़तरा पैदा कर सकता है?
कई स्टडीज़ में कहा गया है, कि विशेष परिस्थितियों में इस तरह से संक्रमण फैल सकता है. लेकिन, वैज्ञानिक अभी तक निर्णायक रूप से कोविड का कोई ऐसा मामला स्थापित नहीं कर पाए हैं, जिसे वर्टिकल ट्रांसमिशन से जोड़ा जा सके.
पिछली मिसालें
सैद्धांतिक रूप से ऐसा संक्रमण संभव है. अतीत में, 2003 के सार्स प्रकोप के दौरान वर्टिकल ट्रांसमिशन का एक ऐसे ही केस की हॉन्ग कॉन्ग में पहचान की गई थी.
हॉन्ग कॉन्ग में जहां उस समय हर रोज़ 50 मामले सामने आ रहे थे, शहर के अमॉय गार्डन्स के एक अपार्टमेंट ब्लॉक में, लगभग रातों-रात 200 से अधिक लोग, वायरस से संक्रमित हो गए. उनका आपस में एकमात्र संपर्क यही था, कि वो उसी अपार्टमेंट ब्लॉक में, एक दूसरे के ऊपर या नीचे वाले फ्लोर पर रहते थे.
अमॉय गार्डन्स के कुल 329 निवासी सार्स के संपर्क में आ गए और उनमें से 42 की मौत हो गई. इनमें से 22 मृतक ई ब्लॉक में थे.
एक्सपर्ट्स को ऐसे सबूत मिले जिनसे पता चला कि बिल्डिंग का सीवेज सिस्टम, वायरस के वर्टिकल फैलाव में शामिल था. माना जाता है कि एक मरीज़ के तेज़ डायरिया (दस्त) ने बिल्डिंग की दोषपूर्ण पाइपिंग के रास्ते बीमारी को दूसरों तक फैला दिया.
उसी महीने ई-ब्लॉक के फ्लश वॉटर सिस्टम के ब्रेक होने से कुछ अपार्टमेंट्स के टॉयलट्स में पानी से सील रहने वाला एस-बैण्ड लंबे समय तक सूखा रहा था जिससे सिस्टम के ख़राब पाइप से वायरस में लिपटी बूंदें टपककर जमा हो गईं.
बकेट फ्लशिंग- निवासियों द्वारा बाल्टी के पानी से टॉयलट के मल को बहाने से वायरस से दूषित वो बूंदें बह गई होंगी.
सार्स-सीओवी-2 के मामले में, दिसंबर 2020 में प्रकाशित एक स्टडी में भी इस संभावना की ओर इशारा किया गया कि एक जुड़े हुए सीवेज सिस्टम के ज़रिए संक्रमण की इसी तरह की घटना हो सकती है.
चीन के गुआंग्ज़ू में वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक ऊंची अपार्टमेंट बिल्डिंग की स्टडी की, जहां 200 से अधिक लोग रहते थे. बिल्डिंग में रह रहे तीन परिवारों के नौ लोग कोविड-19 से संक्रमित थे.
उनमें से एक परिवार ने वूहान का सफर किया था- जो कोविड महामारी का केंद्र था- लेकिन बाक़ी दो परिवार कहीं नहीं गए थे, और उन्हें बाद में लक्षण सामने आए.
टीम को एलीवेटर या किसी और जगह से संक्रमण के कोई सबूत नहीं मिले.
लेकिन, ये परिवार तीन ऊपर नीचे बने फ्लैट्स में रहते थे, जिनके मास्टर बेडरूम्स ड्रेनेज पाइप्स के ज़रिए जुड़े हुए थे.
शोधकर्त्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि वहां देखे गए संक्रमण और वातावरण के पॉज़िटिव नमूनों की जगहें इस ओर इशारा कर रहीं थीं, कि वायरस में लिपटे एयरोसोल्स इन ढेरों और वेंट्स के ज़रिए ऊपर नीचे फैले थे.
लेकिन अमॉय गार्डन्स घटना के विपरीत, इस मामले में रिसर्च टीम ये तय नहीं कर पाई कि क्या तीन संक्रमित परिवारों के फ्लैट्स में पानी की सीलें सूख गईं थीं. लेकिन वैज्ञानिकों के अपार्टमेंट की सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद साझा एलिवेटर या निवासियों की फिज़िकल निकटता जैसे संक्रमण के दूसरे वैकल्पिक कारण भी ख़ारिज कर दिए गए.
उसी पत्रिका के एक संपादकीय में यूके की हेरियट-वॉट यूनिवर्सिटी के एक रिसर्चर, माइकल गॉर्मले ने इस ओर ध्यान आकर्षित किया कि ऊंची इमारतों में संक्रमण का महामारी विज्ञान से संबंधित अध्ययन चुनौतियों से भरा है.
गॉर्मले ने कहा, ‘किसी वायरल आरएनए की मौजूदगी की अपेक्षा, संक्रामकता को स्थापित करना कहीं ज़्यादा पेचीदा होता है, इसलिए अपेक्षा की जा रही है, कि समय के साथ ज़्यादा निश्चित साक्ष्य, उभरकर सामने आएंगे’.
उन्होंने ये भी कहा कि हालांकि ऐसी संक्रमण पर साक्ष्य पैदा हो रहे हैं, ‘लेकिन ये अभी इतने मज़बूत नहीं हैं, कि बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया जा सके- हां, लेकिन कुछ एहतियात ज़रूर बरतनी चाहिए’.
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क्या हैं मुश्किलें
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के, सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिकुलर बायोलजी के निदेशक, राकेश मिश्रा एक टीम का हिस्सा रहे हैं, जो हैदराबाद में सीवेज सिस्टम्स के बेकार पानी में मौजूद वायरस पर नज़र बनाए हुए है.
मिश्रा ने बताया कि बेकार पानी में पाए गए वायरस के कण जीने योग्य नहीं थे- मतलब वो बीमारी को फैला नहीं सकते थे. उन्होंने आगे कहा कि वैज्ञानिक, मल पदार्थ से लिए गए नमूनों का इस्तेमाल करके, लैब के अंदर वायरस को पैदा नहीं कर सके हैं.
मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा, ‘आमतौर पर, हमें जो पदार्थ मिलते हैं, वो आरएनए (वायरस के जिनेटिक पदार्थ रीबोन्यूक्लेइक एसिड) कण होते हैं-जिनसे हमें ये अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है, कि समुदाय के अंदर कितना वायरस मौजूद हो सकता है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसे कोई साक्ष्य नहीं हैं कि कोविड संक्रमण पानी के ज़रिए फैल सकता है’. उन्होंने ये भी कहा कि वायरस अपने आप में बेहद संवेदनशील है. ये जैसे ही सीवेज सिस्टम में आता है, तो डिटर्जेंट्स के संपर्क में आते ही नष्ट हो जाता है.
वायरल मल पदार्थ के ज़रिए, सीवेज सिस्टम में दाख़िल ज़रूर होता है, लेकिन जिस तरह से ये फैलता है वो बहुत अलग है- मिश्रा ने समझाया कि ये संपर्क श्वांस प्रणाली के रास्ते ही हो सकता है.
मिश्रा ने कहा, ‘(किसी संक्रमित इंसान के इस्तेमाल के बाद) अगर टॉयलट का पानी किसी तरह तुरंत ही, एयरोसोल रूप में तब्दील हो जाए, तो फिर संभावना हो सकती है कि वायरस, सांस के रास्ते अंदर दाख़िल हो सकता है’.
पिछले साल जून में हुई एक स्टडी में पता चला था, कि टॉयलट को फ्लश करने से, वायरस में लिप्त एयरोसोल की संक्षिप्त बूंदों का, एक बादल सा पैदा हो सकता है, जो इतनी देर बना रहता है कि दूसरे, उसमें सांस ले लें.
लेकिन, इस स्टडी में कंप्यूटर मॉडल्स का इस्तेमाल किया गया, जिनमें फ्लश वाले टॉयलट में पानी और हवा के प्रवाह, तथा उससे पैदा होने वाले सूक्ष्म बूंदों के क्लाउड की नक़ल की गई थी. इसमें ऐसे फैलाव की वास्तविक मिसाल पर नज़र नहीं डाली गई थी.
सीएसआईआर- भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटी) के शोधकर्त्ता, एस वेंकट मोहन इससे सहमत हैं, कि वायरस में लिपटे ऐसे एयरोसोल तभी बन सकते हैं, जब कोई व्यक्ति टॉयलेट को फ्लश करता है.
मोहन ने दिप्रिंट से कहा, ‘जब कोई संक्रमित व्यक्ति इस्तेमाल करने के बाद, टॉयलट को फ्लश करता है, तो टॉयलट से वायरस में लिपटे कणों के उठने की संभावना रहती है. अगर बाथरूम हवा के डक्ट से जुड़ा है, तो टॉप फ्लोर से नीचे ग्राउंड फ्लोर तक के लोगों को, संक्रमण का ख़तरा रहता है’.
लेकिन, मोहन ने कहा कि ये एक अटकलबाज़ी है. ‘भारत के संदर्भ में, हमारे सामने अभी ऐसा कोई केस नहीं आया है’.
लेकिन, उनकी टीम ऐसे ट्रायल्स करने की तैयारी कर रही थी-हालांकि मोहन ने कहा कि अभी तक बिल्डिंग के सभी निवासियों से, ऐसी स्टडी में शिरकत की इजाज़त लेना मुश्किल साबित हो रहा है.
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बाथरूम चेक
चूंकि ऐसी फ्लशिंग ही एक मात्र रास्ता है, जिससे एयरोसोल संक्रमण फैलेगा, इसलिए मोहन ने कुछ ऐसे आसान एहतियाती उपाय सुझाए, जिनपर ऊंची इमारतों में रहने वाले अमल कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘फ्लश करने से पहले टॉयलट का कवर बंद कर दीजिए. अगर कोई व्यक्ति संक्रमित है, या उसे संक्रमण का संदेह है, तो बाथरूम में कीटनाशकों का छिड़काव करने, और फ्लश करते समय टॉयलट का ढक्कन बंद रखने से, दूसरे लोगों के संक्रमित होने का ख़तरा कम हो जाता है’.
उन्होंने ये भी कहा कि टॉयलट इस्तेमाल करने के बाद, बाथरूम के एग्ज़ॉस्ट फैन को चलाने से भी, सुनिश्चित हो जाएगा कि एयरोसोल्स बाहर के वातावरण में घुल मिल गए हैं.
लेकिन, अभी तक वर्टिकल संक्रमण के कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिले हैं, और शोधकर्त्ताओं का मानना है, कि ऐसे वर्टिकल संक्रमण का जोखिम बेहद कम होता है.
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