नई दिल्ली: आईआईटी की एक नई स्टडी में दावा किया गया है, कि धीमी गति से सांस लेने वालों में, वायरस से लदे हवा के कणों के फेफड़ों के अंदर तक जाने की संभावना अधिक होती है.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के शोधकर्त्ताओं की रिसर्च में पता चला है, कि सांस को रोककर रखने, या सांस की धीमी गति से, कोविड-19 जैसे हवा में रहने वाले वायरसों के, फेफड़ों के अंदर जाकर जमा हो जाने की संभावना बढ़ जाती है.
कुछ लोगों की सांस की गति धीमी होती है, जिसका कारण जैविक या उन्हें दी गई ट्रेनिंग हो सकती है, जैसे कि योग विशेषज्ञ और एथलीट्स. आराम के समय एक वयस्क इंसान की सांस की सामान्य गति, 12 से 16 सांस प्रति मिनट होती है.
फिज़िक्स ऑफ फ्लूइड्स पत्रिका में प्रकाशित स्टडी, श्वास प्रणाली में संक्रमण के लिए बेहतर इलाज और दवाएं, विकसित करने की ख़ातिर की गई थी.
रिसर्च की अगुवाई आईआईटी मद्रास में, अप्लाइड मिकेनिक्स विभाग के प्रोफेसर महेश पंचग्नुला, और उनके रिसर्च स्कॉलर्स अर्णब कुमार मलिक, और सौमालय मुखर्जी ने की.
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स्टडी
सार्स-सीओवी-2 जैसे हवाई संक्रमण, छींक अथवा खांसी के दौरान निकलने वाली हवा की, सूक्ष्म बूंदों के ज़रिए तेज़ी से फैलते हैं.
आईआईटी मद्रास की रिसर्च टीम ने, छोटी कोशिकाओं के अंदर, जो व्यास में ब्रांकिओल्स के समान होती हैं, छोटी बूंदों की हरकत का अध्ययन करके, फेफड़ों के अंदर छोटी बूंदों की गतिशीलता की नक़ल की.
ब्रॉन्किओल्स फेफड़ों के अंदर हवा के रास्ते होते हैं, जो पेड़ की टहनियों की तरह ब्रॉन्कि (फेफड़ों में हवा के दो रास्ते) से अलग हो जाते हैं. ये ब्रॉन्किओल्स अल्वियोली कही जाने वाली छोटी छोटी थैलियों तक हवा पहुंचाते हैं, जहां ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की अदला-बदली होती है.
टीम ने एक ऐसे लीक्विड से एयरोसॉल्स तैयार किए, जिसके अंदर पानी और कुछ चमकदार कण मौजूद थे. इन चमकदार एयरोसॉल्स की मदद से, कणों की हरकत और फेफड़ों में जमा होने पर नज़र रखी गई.
उन्हें पता चला कि ये जमाव कोशिकाओं के आस्पेक्ट अनुपात का, विपरीत अनुपाती होता है, जिससे अंदाज़ा होता है कि अधिक लंबे ब्रॉन्किओल्स में, सूक्ष्म बूंदों के जमा होने की संभावना अधिक होती है.
पंचग्नुला के अनुसार, ‘हमारे फेफड़ों का ढांचा शाखायुक्त होता है, इसके अंदर ब्रॉन्किओल्स होते हैं, जिनकी शाखाएं उन्हें दो हिस्सों में बांटती हैं. इसका मतलब है कि हर ब्रॉन्किओल दो शाखाओं में बंट जाता है, और ये अगली 23 पीढ़ियों तक चलता रहता है. 17 से 23 के बीच गहरी पीढ़ियों में कहीं जाकर, एयरोसल्स ख़ून से मिलते हैं’.
दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा: ‘फेफड़ों के अंदर के इनफेक्शंस सबसे ख़तरनाक होते हैं, और सवाल ये पैदा होता है, कि ये एयरोसॉल्स फेफड़ों में इतने अंदर तक कैसे चले जाते हैं, और ऐसा कैसे है कि कुछ लोगों में ऐसा होता है, कुछ में नहीं होता. हमारी रिसर्च दूसरे सवाल का जवाब देती है, यानी, कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके ब्रॉनिओल्स फैले हुए होते हैं, और यही वो लोग हैं जो सबसे अधिक प्रभावित होते हैं’.
प्रोफेसर ने आगे कहा, ‘जैसे ही किसी इंसान को सांस की बीमारी होती है, तो एयरोसॉल्स पहले नाक के छेद में जम जाते हैं. जब बीमारी ज़्यादा बढ़ती है, तो इसका मतलब ये होता है कि वायरस की कॉलोनी, फेफड़ों में अंदर तक पहुंच गई है. एयरोसॉल के इस सफर की प्रक्रिया भी ज्ञात नहीं है, और हमारी टीम इसके जवाब तलाशने की दिशा में काम करती रहेगी.
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