scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशBJP 'मुस्लिम विरोधी', टीके हमें 'बांझ' कर देंगे - क्यों बिहार के ये मुस्लिम गांव कोविड वैक्सीनेशन से दूर भाग रहे हैं

BJP ‘मुस्लिम विरोधी’, टीके हमें ‘बांझ’ कर देंगे – क्यों बिहार के ये मुस्लिम गांव कोविड वैक्सीनेशन से दूर भाग रहे हैं

मुस्लिम समुदाय में टीके की हिचकिचाहट का आस्था से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि धार्मिक विद्वानों ने कोविड टीकाकरण अभियान का समर्थन किया है. बिहार के अधिकारी इसका श्रेय गलत सूचना और निरक्षरता को दे रहे हैं.

Text Size:

मुज़फ़्फ़रपुर: बिहार के बहुत से गांवों के मुसलमान टीका लगवाने में झिझक रहे हैं, और उनकी इस झिझक का ताल्लुक़ धर्म से नहीं है, चूंकि जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) और दूसरे इस्लामी धर्मगुरु, पहले ही कोविड-19 टीकाकरण अभियान की हिमायत कर रहे हैं.

उसकी बजाय, अंदर गहरे तक बैठी असुरक्षा की भावना, ग़लत धारणाएं, मोदी सरकार का आविश्वास, और जानकारी का अभाव, इन सबका नतीजा ये निकला है, कि इस उत्तरी सूबे में मुसलमान, कम संख्या में टीके लगवा रहे हैं.

जब दिप्रिंट ने 18 मई को बिहार में मुज़फ्फरपुर ज़िले के, शरफुद्दीनपुर गांव में 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए चल रहे, एक टीकाकरण अभियान का दौरा किया, तो पूरे दिन एक भी मुसलमान टीका लगवाने नहीं आया.

एक 49 वर्षीय आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) वर्कर बिमला देवी, जो 15 अप्रैल से ग्रामीण बिहार में कोविड-19 टीके लगा रही हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि वैक्सीन को लेकर झिझक, हालांकि एक सामान्य समस्या है, लेकिन मुसलमान समाज में ये ज़्यादा प्रमुखता से है.

बिमला ने कहा, ‘वैसे तो बहुत सारी अफवाहें हैं, लेकिन मुसलमान समुदाय में, उनमें एक ये भी है कि वैक्सीन से, प्रजनन क्षमता ख़त्म हो जाती है’.

ज़िले में ब्लॉक स्तर पर भी यही कहानी थी.

बोचाहन के पारस नाथ मिडिल स्कूल में- जो बोचाहन ब्लॉक का प्रमुख टीकाकरण केंद्र है, जिसके अंतर्गत शरफुद्दीनपुर गांव आता है- हर रोज़ लगभग 400 टीके लगाए जाते हैं.

वहां के अधिकारियों के अनुसार, ‘मुस्लिम समुदाय से बस 4-6 लोग टीका लगवाने आते हैं’. अधिकारियों ने बताया कि पिछले हफ्ते, कुल मिलाकर 30-40 मुसलमानों ने केंद्र पर टीके लगवाए हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, मुज़फ्फरपुर ज़िले की कुल आबादी में, क़रीब 15.53 प्रतिशत मुसलमान हैं.

बोचाहन ब्लॉक में ब्लॉक निगरानी और मूल्यांकन सहायक, बिजय कुमार ने कहा कि ब्लॉक की मुसलमान आबादी के बीच, ‘बहुत सारी ग़लत सूचनाएं’ हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमें ऐसी ऐसी अफवाहें सुनने को मिलती हैं, कि वैक्सीन्स लोगों को बांझ कर देती हैं, या फिर ये मोदी सरकार की चाल है, मुस्लिम आबादी को कम करने की’. लेकिन, उन्होंने ये भी कहा कि ‘शिक्षित मुसलमान आगे आए हैं, और उन्होंने टीके लगवाए हैं’.

बिहार में भी, देश के बाक़ी हिस्सों की तरह, टीकाकरण अभियान 16 जनवरी को शुरू हुआ था, और राज्य के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक़, 20 मई तक 75,82,363 लोगों को टीके की पहली ख़ुराक मिल चुकी है, जबकि 19,15,440 लोगों को दोनों डोज़ लग चुके हैं.

The vaccination centre at Sharfuddinpur village | Photo: Sajid Ali/ThePrint
शर्फुद्दीनपुर गांव में टीकाकरण केंद्र/फोटो: साजिद अली/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: ‘दरभंगा में कहीं नर्क है तो यहीं है’—उत्तर बिहार के मुख्य अस्पताल DMCH में मरीजों के साथ एक दिन


मुस्लिम समुदाय में अफवाहें

दिप्रिंट ने शरफुद्दीनपुर गांव के मस्जिद टोक मोहल्ले का दौरा किया, जहां 80-100 मुस्लिम घर हैं. वहां पर एक इंसान भी ऐसा नहीं मिला, जिसे टीके का एक भी डोज़ लगा हो.

मस्जिद टोक मोहल्ले के निवासी, 24 वर्षीय मोहम्मद इम्तियाज़ का मानना है, कि टीका लगवाने में झिझक के पीछे, अफवाहों का एक बड़ा हाथ रहा है.

उसका दावा था कि ‘डर जाना एक आम बात है, जब हम दूसरे गांवों की कहानियां सुनते हैं, कि पहला डोज़ लेने के बाद लोगों की मौतें हुई हैं’. दिप्रिंट ऐसे दावों की पुष्टि नहीं कर सका.

वैक्सीन की झिझक के पीछे एक कारण और भी है, जिसे यहां कुछ लोगों ने ‘बीजेपी की मुस्लिम विरोधी नीतियां’ क़रार दिया.

मस्जिद टोक इलाके के एक ग्रामीण ने कहा, ‘हम नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर, राम मंदिर वग़ैरह को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. इसलिए ये साफतौर पर एक दुष्ट चाल है, कि टीकाकरण की आड़ में हमारी आबादी कम कर दी जाए’.

शरफुद्दीनपुर के एक और मुसलमान-बहुल इलाक़े मिर्ज़ापुर में भी, लोगों की उसी तरह की आशंकाएं हैं, जैसी मस्जिद टोक के निवासियों की हैं.

मोहम्मद हिशाम, जो अप्रैल के शुरू में मुम्बई से वापस आए, ने कहा कि ये झिझक इस वजह से भी हो सकती है, कि ‘मिर्ज़ापुर गांव में कोविड-19 का एक भी केस नहीं था’.

हिशाम ने कहा, ‘हमारे पड़ोसी गांवों में बहुत से मामले हैं, लेकिन किसी तरह हम इससे बचे रहे हैं. अल्लाह की मेहरबानी है’.

मिर्ज़ापुर के एक टीचर अब्दुल क़य्यूम ने कहा, कि वैक्सीन झिझक का मुख्य कारण निरक्षरता है, और दूसरी वजह ये है मीडिया में, मुसलमानों का निरंतर ‘अमानवीकरण’ होना.

क़य्यूम ने कहा, ‘मिर्ज़ापुर में तक़रीबन 95 फीसद लोग अनपढ़ हैं. इसलिए अगर कोई उन्हें समझाने की कोशिश भी करता है, कि कोविड-19 से बचाव के लिए वैक्सीन्स एक सही सुरक्षा है, तो दस लोग उसपर चढ़ जाएंगे, और अफवाहें सुनाने लगेंगे’.

ये पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने ख़ुद वैक्सीन लगवाई है, उन्होंने कहा, ‘मैंने कोविन एप पर रजिस्टर कराया है, और अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा हूं’.

Abdul Qayoom (seated, in white shirt), a teacher in Mirzapur said the primary reason for vaccine hesitancy was illiteracy | Photo: Sajid Ali/ThePrint
मिर्जापुर के एक शिक्षक अब्दुल कयूम (सफेद शर्ट में बैठे) ने कहा कि टीका हिचकिचाहट का कारण अशिक्षा है/ फोटो: साजिद अली/दिप्रिंट

य़ह भी पढ़ें: बिहार सरकार के इस शोपीस अस्पताल में सारी सुविधाएं मौजूद लेकिन ‘इलाज’ के इंतजार में हैं मरीज


शहरी मुज़फ्फरपुर में भी मुसलमानों के यही विचार

शहरी मुज़फ्फरपुर में भी वैक्सीन को लेकर, मुसलमानों के विचार वही दिखाई पड़ते हैं, जो ग्रामीण इलाक़ों में हैं.

मुज़फ्फरपुर के क़ुरैशी मोहल्ले में, लोग कोविड-19 संक्रमण न होने के लिए, अपने ‘मज़बूत इम्यून सिस्टम’ को श्रेय देते हैं.

पेशे से क़साई 51 वर्षीय फरहाद ने कहा, कि दूसरी लहर के दौरान पूरे क़ुरैशी मोहल्ले में, कोविड-19 का एक भी केस नहीं हुआ है.

उन्होंने कहा, ‘अगर हम मिर्ज़ापुर के इस हिस्से की बात करें, तो ये कोविड से आज़ाद है’. उन्होंने से भी कहा, ‘सामने के धेरागांव में कोविड से, चार मौतें दर्ज हो चुकी हैं’.

लेकिन, मुज़फ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में तैनात स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा, कि सरकारी नौकरी में लगे अधिकांश मुसलमानों ने, आगे बढ़कर टीके लगवाए हैं.

एक अधिकारी ने कहा, ‘समुदाय के पढ़े-लिखे तबक़े ने, आगे आकर टीके लगवाए हैं, लेकिन ज़्यादातर लोगों को इसपर भरोसा नहीं है’.

ग़लत जानकारियों से लड़ने की ज़रूरत

मुज़फ्फरपुर के एक वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने दिप्रिंट से कहा, कि इस बात की सख़्त ज़रूरत है, कि मुसलमान इलाक़ों में सम्मिलित अभियान शुरू किए जाएं.

एक्सपर्ट ने कहा, ‘हमें धार्मिक विद्वानों, प्रचारकों, तथा अन्य लोगों की सहायता लेनी चाहिए, ताकि वो लोगों को वैक्सीन लेने के लिए राज़ी कर सकें’.

लेकिन, शरफुद्दीनपुर गांव में, प्रशासन घोषणाएं करवा रहा है, ताकि लोग टीके लगवाने के लिए राज़ी हो सकें.

शरफुद्दीनपुर गांव के सरपंच संभोद चौधरी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम वैक्सीन घोषणा वैन्स चलाते हैं, और हमारी आशा तथा एएनएम कार्यकर्त्ता भी, टीकाकरण के लिए परिवारों से बात करती हैं’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में 2 दिन में 18 कोविड मौतें, लेकिन एक ही श्मशान में दिखे 22 शव


 

share & View comments