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Monday, 23 December, 2024
होमहेल्थकैसे इस युवा IAS अधिकारी ने बिहार के दो जिलों में तेजी से कार्रवाई कर सैकड़ों लोगों की जान बचाई

कैसे इस युवा IAS अधिकारी ने बिहार के दो जिलों में तेजी से कार्रवाई कर सैकड़ों लोगों की जान बचाई

8 मई को एक ऑक्सीजन प्लांट, जो पूर्वी और पश्चिमी चंपारण को 500 सिलेंडर्स सप्लाई करता था, अचानक ख़राब हो गया. लेकिन 10 घंटे तक चली कार्रवाई के बाद, उसे चमत्कारिक रूप से ठीक कर लिया गया.

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मोतिहारी: 8 मई को जब देश भर के अस्पताल, मेडिकल ऑक्सीजन के लिए एसओएस संदेश भेज रहे थे, एक अकेला ऑक्सीजन प्लांट, जो बिहार के पूर्वी और पश्चिमी चंपारण दोनों ज़िलों को सप्लाई कर रहा था, अचानक ख़राब हो गया जिससे स्थानीय अधिकारियों में, घबराहट के मारे हड़कंप मच गया.

ये प्लांट जो मोतिहारी ज़िला मुख्यालय से 27 किलोमीटर दूर, पूर्वी चंपारण के हरसिद्धि में स्थित है, जो ज़िलों में 600-700 मरीज़ों की सहायता कर रहा था. और इसके प्रबंध में किसी भी तरह की गड़बड़ी, एक बड़ी चिकित्सा त्रासदि ला सकती थी.

लेकिन, इसके बाद जिस तरह से वो ठीक हुआ, वो एक चमत्कार था, और उसका कारण था ज़िला अधिकारियों, तथा प्लांट के टेक्नीशियंस की त्वरित कार्रवाई, जो एक बड़े संकट को टालने में कामयाब रहे.

सुबह 6.38 बजे, गायत्री मेडिकल एंड इंडस्ट्रियल गैसेज़, नामक ऑक्सीजन प्लांट के टेक्नीशियंस को पता चला, कि क्रैंकशाफ्ट- पंप का वो भाग जिससे छोटे सिलिंडरों में ऑक्सीजन भरी जाती है- टूट गया था, जिससे पूरे प्लांट का काम अचानक थम गया था.

उन्होंने तुरंत ही प्लांट के मालिक, बांके बिहारी से संपर्क किया.

बिहारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे सुबह 7.30 बजे उसके बारे में पता चला. मैं जल्दी से वहां पहुंचा तो देखा, कि सब कुछ थम गया था. मैं घबराने लगा क्योंकि छोटे बड़े नौ अस्पताल, इस प्लांट की ऑक्सीजन सप्लाई के सहारे हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘जब हमें पता चला कि प्लांट बंद हो गया है…तो हम लोगों की सांस ज़रूर रुक गई कि अब क्या होगा’.

गायत्री मेडिकल एंड इंडस्ट्रियल गैसेज़, पूर्वी तथा पश्चिमी चंपारण दोनों ज़िलों को ऑक्सीजन सप्लाई करता रहा है, और दूसरी लहर के पीक पर, यहां से दोनों ज़िलों के अस्पतालों को, 500-500 सिलिंडर्स तक भेजे जाते थे.

बिहारी ने तुरंत पास में स्थित, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) के बॉटलिंग प्लांट से संपर्क किया, जिन्होंने अपने तकनीकी अधिकारी भेज दिए. ज़िला प्रशासन ने भी इन अधिकारियों से, प्लांट की स्थिति का जायज़ा लेने के लिए कहा.

सुबह 8 बजे तक, पूर्वी चंपारण के अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट सुनील कुमार, अन्य सीनियर अधिकारियों के साथ वहां पर पहुंच गए थे.

एचपीसीएल बॉटलिंग प्लांट के एक मैनेजर अर्जुन सिंह ने कहा, ‘हमारे पास कोई क्रैंकशाफ्ट नहीं थी, इसलिए ज़िला मजिस्ट्रेट ने पड़ोसी ज़िले मुज़फ्फरपुर से संपर्क किया, और पता चला कि पाटलीपुत्र ऑक्सीजन प्लांट में एक शाफ्ट उपलब्ध है. वो उसे हरसिद्धि प्लांट मंगाने में कामयाब हो गए’.

सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस बीच, मैंने अपने दिल्ली स्थित सप्लायर से, प्लांट के लिए एक नई क्रैंकशाफ्ट का इंतज़ाम करने को कहा’.

शाम 5 बजे तक टेक्नीशियंस प्लांट को अस्थाई तौर पर, फिर से चालू करने में कामयाब हो गए, अब तक प्लांट को बंद हुए 10 घंटे से कुछ ज़्यादा हो गए थे.

इस बीच, दिल्ली से मंगाई गई क्रैंकशाफ्ट भी, उसी दिन फ्लाइट के ज़रिए पटना के लिए रवाना कर दी गई और शाम 6 बजे तक वो हरसिद्धि पहुंच गई. अगले दिन 9 मई को उसे प्लांट में फिट कर दिया गया.

पूर्वी चंपारण के डीएम कपिल अशोक शिरसाट और एचपीसीएल प्लांट मैनेजर अशोक कुमार ने 8 मई को ऑक्सीजन प्लांट में टूटे क्रैंकशाफ्ट का आकलन किया/ स्पेशल अरेंजमेंट

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DM ने मुहैया कराई निर्बाध ऑक्सीजन सप्लाई

गायत्री ऑक्सीजन प्लांट ने दूसरी लहर के पीक पर, काम करना बंद किया था, जब पूरे देश में मेडिकल ऑक्सीजन की भारी क़िल्लत थी. और पूर्वी तथा पश्चिमी चंपारण ज़िले भी, कोई अपवाद नहीं थे.

दोनों ज़िलों में सभी अस्पताल अपनी क्षमताओं से अधिक काम कर रहे थे.

डॉ यूएस पटनायक ने, जो उस दिन 8 मई को मोतिहारी सदर अस्पताल में ड्यूटी पर थे, कहा, ‘सदर अस्पताल में, हमारे सभी 122 ऑक्सीजन बेड्स भरे हुए थे, और सभी 129 ऑक्सीजन सिलिंडर्स बिस्तरों से जुड़े थे. इस प्लांट में गड़बड़ी की ख़बर सुनते ही हमें लगा कि बस हो गया. अब हमें भी किसी विपत्ति का सामना करना पड़ेगा, लेकिन सौभाग्यवश हमारे डीएम ने उसे अच्छे से संभाल लिया’.

पूर्वी चंपारण के ज़िला मजिस्ट्रेट कपिल अशोक शीर्षत ने, न सिर्फ क्रैंकशाफ्ट का इंतज़ाम करने में मदद की, बल्कि पूर्वी चंपारण को ऑक्सीजन की निरंतर सप्लाई भी सुनिश्चित की.

पूर्वी चंपारण के सिविल सर्जन और मुख्य चिकित्सा अधिकारी, डॉ अखिलेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि पूरे अस्पताल में घबराहट फैल गई थी, क्योंकि दूसरे अस्पतालों से दर्जनों लोगों के मरने की ख़बरें आ रहीं थीं.

उन्होंने भी डीएम शीर्षत और उनकी टीम को श्रेय दिया कि उन्होंने तुरंत कार्रवाई करते हुए प्लांट को ठीक कराया और ये भी सुनिश्चित कराया कि इस बीच ऑक्सीजन सप्लाई में बाधा न आए.

पूर्वी चंपारण के मोतिहारी के सदर अस्पताल में कई बेड ऑक्सीजन की आपूर्ति पर निर्भर हैं/साजिद अली/दिप्रिंट

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दूसरे ज़िलों और नेपाल से सहायता

प्लांट की मरम्मत किए जाने के दौरान, अस्पतालों की ऑक्सीजन सप्लाई में बाधा न आए, ये सुनिश्चित करने के लिए ज़िला मजिस्ट्रेट ने सिलेंडर भरवाने के लिए पड़ोसी ज़िलों से संपर्क किया. ज़िले को नेपाल से भी सहायता मिली, जिसकी सीमा उसके साथ लगती है.

शीर्षत ने दिप्रिंट को बताया, ‘बेतिया को गोपालगंज ज़िले के साथ टैग किया गया और पूर्वी चंपारण को मुज़फ्फरपुर तथा समस्तीपुर ज़िलों से टैग किया गया. ज़िला मजिस्ट्रेटों ने भी कुछ सिलेंडर्स के साथ मदद की. हमने बीरगंज, नेपाल में अपने वाणिज्य दूतावास से भी संपर्क किया, जिन्होंने हमारे पड़ोसी देश से, 15 ऑक्सीजन सिलेंडर्स का बंदोबस्त कराने में मदद की’.

पूर्वी चंपारण की नेपाल के साथ, न केवल 60 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है लेकिन यहां के लोगों के बीच गहरा सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक जुड़ाव भी है.

भारत-नेपाल सीमा का एक सबसे बड़ा क्रॉसिंग, रक्सौल भी इसी ज़िले में स्थित है, जो दोनों देशों के बीच एक आर्थिक जीवन रेखा है.

शीर्षत ने कहा, ‘हमने नेपाल सीमा पर रक्सौल में स्थित, डंकन और एसआरपी जैसे अस्पतालों में, बिहार के दूसरे ज़िलों से ऑक्सीजन सप्लाई का प्रबंध किया था, लेकिन पीक समय पर हमने बीरगंज में अपने वाणिज्य दूतावास से संपर्क किया, जिन्होंने हमारे लिए 15 सिलेंडरों का बंदोबस्त कर दिया, जिन्हें उल्लिखित अस्पतालों तक पहुंचा दिया गया’.

पूर्वी चंपारण के डीएम कपिल अशोक शीर्षत/साजिद अली/दिप्रिंट

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‘हम बस अपना काम करना चाहते थे’

प्लांट को फिर से चालू करने के लिए 10 घंटे के संघर्ष के बाद पूरी टीम ने इस कामयाबी के लिए डीएम शीर्षत को श्रेय दिया.

बिहारी ने भी कहा कि वो सौभाग्यशाली हैं कि इस अभियान का हिस्सा रहे.

उन्होंने कहा, ‘इस कामयाबी ने मेरे वो तमाम कष्ट भुला दिए, जो मुझे 2018 में इस प्लांट को लगाने में झेलने पड़े थे. मुझे बहुत समय लगा लाइसेंस हासिल करने में और बाज़ार में अपना नाम बनाने में लेकिन अब अंत में मुझे ख़ुशी है कि मैं इसका हिस्सा बना’.

इसी तरह, एचपीसीएल के टेक्नीशियंस की टीम ने भी कहा, कि उन्होंने इसे सिर्फ एक काम की तरह नहीं लिया, बल्कि एक ज़िम्मेदारी समझा कि उन्हें ऐसे लोगों की ज़िंदगियां बचानी हैं, जिन्हें उन्होंने कभी देखा नहीं है.

सिंह ने कहा, ‘बहुत सारे लोग थे जो हमारी प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहे थे, इसलिए हमने अपनी ओर से 100 प्रतिशत प्रयास किया कि प्लांट फिर से चलने लगे’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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