नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी के 50 से अधिक शिक्षकों ने आगामी 2022-2023 सत्र में लागू होने जा रहे वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (एफवाईयूपी) के लिए प्रस्तावित गणित के सिलेबस पर आपत्ति जताई है.
मैथमैटिक्ट डिपार्टमेंट की हेड को सौंपी गई एक पिटीशन में विभिन्न कॉलेजों के 52 शिक्षकों ने तर्क दिया है कि नए सिलेबस में इलेक्टिव पेपर्स को अनावश्यक अहमियत देते हुए मुख्य कोर्सेज के लिए क्रेडिट ऑवर्स को कम कर दिया गया है.
11 जून की उक्त पिटीशन में इस बात को भी उठाया गया कि नए मुख्य पाठ्यक्रमों की शुरुआत मौजूदा कोर्स की ‘कीमत पर नहीं की जानी चाहिए’ जो ‘सैधांतिक तौर पर मजबूत नींव के लिए अपरिहार्य’ हैं.
शिक्षकों की मांग है कि डीयू एकेडमिक काउंसिल के अंतिम रूप देने से पहले प्रस्ताव पर चर्चा के लिए आम सभा की बैठक की जाए.
पिटीशन पर हस्ताक्षर करने वाली सेंट स्टीफंस कॉलेज की गणित की एसोसिएट प्रोफेसर नंदिता नारायण ने दिप्रिंट को बताया कि नए कोर्स में पूर्व के इलेक्टिव पेपर्स को मुख्य विषयों के तौर पर शामिल किया गया है, जिसमें असतत गणित, न्यूमेरिकल एनालिसिस और प्रोबेबिलिटी थ्योरी शामिल हैं.
प्रोफेसरों का कहना है कि अल्जेब्रा और एनालिसिस जैसे ‘महत्वपूर्ण’ और ‘कठिन’ कोर पेपर्स के लिए लेक्चर क्रेडिट को घटा दिया गया है.
दिप्रिंट ने इस पर टिप्पणी के लिए डीयू के मैथमैटिक्स डिपार्टमेंट की हेड प्रोफेसर रुचि दास से फोन और मैसेज के जरिए संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
नए प्रस्तावित सिलेबस में 18 कोर पेपर और 54 लेक्चर क्रेडिट हैं. यहां लेक्चर क्रेडिट से आशय किसी छात्र द्वारा किसी सेमेस्टर के लिए प्रति हफ्ते एक कांटैक्ट ऑवर और दो प्रिपरेशन ऑवर सफलता के साथ पूरे करने के लिए अर्जित क्रेडिट से होता है. पहले पढ़ाए जा रहे सिलेबस में 16 कोर पेपर और 66 लेक्चर क्रेडिट थे.
दिल्ली यूनिवर्सिटी ने पिछले वर्ष अगस्त में एफवाईयूपी लागू करने की तैयारी शुरू की. इसके बाद डीयू के कुलपति योगेश सिंह ने नए करिकुलम और कोर्स की डिजाइन के लिए समितियों का गठन किया. प्रस्तावित नया सिलेबस 10 जून को पेश किया गया और यूनिवर्सिटी की एकेडमिक काउंसिल से मंजूरी के बाद इसे अंतिम रूप दिया जाएगा.
यह भी पढ़ें: भारत में ‘हर घर जल’ योजना की क्या है स्थिति? 2024 तक क्या मोदी सरकार का लक्ष्य पूरा हो पाएगा
‘हम लर्निंग को कैसे सुनिश्चित करेंगे’
याचिका में जताई गई एक प्रमुख चिंता यह है कि नया सिलेबस मूलभूत शिक्षा को कमजोर कर सकता है.
प्रो. नारायण ने इस संबंध में अल्जेब्रा और एनालिसिस के पेपर्स का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा, ‘एनालिसिस और अल्जेब्रा के मुख्य फाउंडेशनल कोर्स के लिए लेक्चर क्रेडिट प्रत्येक में 25 से घटाकर 15 कर दिए गए हैं. यह मैथमेटिक ऑनर्स के छात्रों में गणित की बुनियादी समझ पर प्रतिकूल असर डालेगा.’
उनके मुताबिक, इन विषयों में छात्रों के लिए ‘बहुत ज्यादा अभ्यास’ जरूरी होता है और पहले ही यह सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त कक्षाओं की आवश्यकता होती है कि छात्र उसकी अवधारणाओं को समझ सकें. उन्होंने कहा, ‘लेक्चर ऑवर घटाकर हम ये कैसे सुनिश्चित करेंगे कि छात्र अच्छी तरह से सीख पाएंगे.’
एक अन्य मुद्दा स्नातक कार्यक्रम के पहले वर्ष में बेसिक कैलकुलस के पेपर्स को हटाया जाना भी है. शिक्षकों का कहना है कि ऐसा करना ‘विषय के मूल सिद्धांतों के प्रति छात्रों की समझ को बढ़ाना’ और ‘पहले सेमेस्टर में ही उन्हें ज्यादा सहज बनाने’ के लिए आवश्यक है.
इसके अलावा, शिक्षकों ने इस प्रस्ताव पर भी आपत्ति जताई कि अधिकांश इलेक्टिव मैथ्स को कक्षाओं में पढ़ाए जाने के बजाए केवल एमओओसी (मैसिव ऑनलाइन ओपन कोर्स) प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
नारायण ने कहा, ‘अगर शिक्षकों द्वारा पढ़ाए जाने वाले इलेक्टिव्स को एक झटके में हटा दिया जाएगा तो शिक्षक क्या पढ़ाएंगे? दोनों का एक स्वस्थ मिश्रण होना चाहिए ताकि शिक्षक खाली क्लासरूम के गवाह न बनें.’
सेंट स्टीफंस, रामजस, माता सुंदरी और किरोड़ी मल सहित कई कॉलेजों के शिक्षकों के हस्ताक्षर वाली इस पिटीशन में शिक्षकों की राय पर विचार के लिए आम सभा की बैठक (जीबीएम) का आह्वान किया गया है.
पिटीशन में यह भी कहा गया है कि सिर्फ प्रथम वर्ष के बजाये चार साल के पूरे स्ट्रक्चर और सिलेबस को एकेडमिक काउंसिल के समक्ष विचार के लिए रखा जाना चाहिए.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )
यह भी पढ़ें : शरद पवार नहीं बनेंगे राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष का चेहरा- येचुरी बोले, ममता बनर्जी भी मिलने पहुंची