नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विश्वविद्यालयों से कहा है कि वे अपने 40 फीसदी पाठ्यक्रम केंद्र सरकार के मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स (एमओओसी) प्लेटफॉर्म स्वयं पर ऑनलाइन ऑफर करें.
हालांकि, शिक्षाविदों ने कुछ इंस्ट्रक्शन के लिए क्लासरूम की जरूरत, कैंपस में बुनियादी ढांचे का अभाव और बड़ी संख्या में छात्रों के डिजिटल सेवाओं की पहुंच से दूर होने जैसे मुद्दों का हवाला देते हुए इस कदम पर सवाल उठाया है.
पिछले साल यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (क्रेडिट फ्रेमवर्क फॉर ऑनलाइन लर्निंग कोर्सेस थ्रू स्टडी वेब्स ऑफ लर्निंग फॉर यंग अस्पायरिंग माइंड्स) रेग्युलेशन, 2021 के तहत स्वयं के माध्यम से ऑनलाइन कोर्स मुहैया कराना निर्धारित किया गया था. यूजीसी ने अब विश्वविद्यालयों से इस नियम का पालन करने को कहा है.
यूजीसी की तरफ से बुधवार को सभी यूनिवर्सिटी के कुलपतियों और कॉलेज प्राचार्यों को भेजे गए एक सर्कुलर में इस पर व्यापक स्तर पर अमल करने और कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है.
यूजीसी के सचिव रजनीश जैन की तरफ से जारी सर्कुलर में कहा गया है, ‘कई यूनिवर्सिटी पहले ही क्रेडिट ट्रांसफर के लिए स्वयं के कोर्स स्वीकार कर चुकी हैं, और बाकी यूनिवर्सिटी से भी इसी तरह के उपाय करने और इस संबंध में की गई कार्रवाई के बारे में सूचित करने का अनुरोध किया गया है.’
इसमें कहा गया है, ‘पूरी उम्मीद है कि बड़ी संख्या में यूनिवर्सिटी और कॉलेज क्रेडिट ट्रांसफर के संबंध में स्वयं पाठ्यक्रम अपनाने के लिए आगे आएंगे और अधिक से अधिक छात्रों को इन कोर्स में दाखिले के लिए प्रोत्साहित करेंगे.’
सर्कुलर में कहा गया है, ‘जैसा कि आप जानते हैं, स्वयं प्लेटफॉर्म की स्थापना यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई है कि हमारे देश के हर छात्र को सस्ती और सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली उच्च शिक्षा मिल सके.’
सचिव ने यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के साथ एमओओसी पाठ्यक्रमों की एक सूची भी साझा की और उन्हें अपनी अकादमिक परिषदों से अनुमोदन लेने को कहा. सर्कुलर में कहा गया है, ‘इन पाठ्यक्रमों को क्रेडिट ट्रांसफर के लिए डीन शिक्षाविदों/विभाग प्रमुखों की सिफारिश पर मंजूर करके अपनाया जा सकता है और अकादमिक परिषद की तरफ से इस पर अंतिम मुहर लगवाई जा सकती है.’
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‘छात्रों के साथ कक्षा में संपर्क रखना बेहद अहम’
बहरहाल, यह पहल कितनी विवेकपूर्ण और व्यावहारिक है, इसे लेकर शिक्षाविदों ने सवाल उठाया है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ए.के. भागी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘भारत में विश्वविद्यालयों—उदाहरण के तौर पर दिल्ली यूनिवर्सिटी—में पहुंचने वाले तमाम छात्र फर्स्ट टाइम लर्नर होते हैं. ऐसे छात्रों के साथ कक्षा में संपर्क होना अनिवार्य है. कोई ऑनलाइन मॉड्यूल पर भरोसा नहीं कर सकता. जब कॉलेज बंद थे तो बात अलग थी, लेकिन अब जब सब कुछ खुला है, तो कक्षाओं में पढ़ाई-लिखाई होनी चाहिए.’
उन्होंने कहा कि ऐसी नीति की न तो कोई जरूरत है और न ही यह व्यावहारिक है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक अन्य प्रोफेसर राजेश झा ने कहा, ‘ऑन-कैंपस कक्षाओं की जगह ऑनलाइन कक्षाएं बुनियादी ढांचे और छात्रों के पास उपकरणों की कमी को देखते हुए प्रभावी या व्यवहार्य नहीं हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘रिमोट एजुकेशन की चुनौती इसलिए और ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि हमारे पास आने वालों में एक बड़ी संख्या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों के छात्रों की होती है जो आमतौर पर डिजिटल स्तर पर वंचित श्रेणी में आते हैं.
उन्होंने कहा कि यदि इसे यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में लागू किया जाता है, तो शिक्षकों पर काम का बोझ काफी कम हो जाएगा और इस तरह तदर्थ शिक्षकों को हटाया जा सकेगा, क्योंकि उनकी कोई ज्यादा मांग नहीं रहेगी.
बिहार स्थित मगध यूनिवर्सिटी के शिक्षक दीपक सिंह ने कहा कि जिन यूनिवर्सिटी के पास बुनियादी ढांचा तक नहीं है, वहां ऐसी किसी नीति को लागू करने की बात समझ से परे है.
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास ऑफलाइन कक्षाएं चलाने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है. हम नीति में इस तरह के बदलाव के बारे में शिक्षकों और छात्रों को कैसे बताएंगे…यह संभव नहीं है.’
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