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Friday, 22 November, 2024
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UGC चाहता है कि ‘ग्लोबल सिटिजन’ पर विचार करें कॉलेज, विविधता और शांति को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाएं

यूजीसी ने सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को नियामक की तरफ से तैयार ग्लोबल सिटिजनशिप एजुकेशन करिकुलम फ्रेमवर्क को अपनाने के लिए कहा है.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार के निर्देश पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने छात्रों को ‘ग्लोबल सिटिजनशिप’ यानी वैश्विक नागरिकता की अवधारणा पर शिक्षित करने के लिए एक पाठ्यक्रम तैयार किया है.

यूजीसी ने मंगलवार को सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को भेजे गए एक पत्र में नियामक की तरफ से तैयार वैश्विक नागरिकता शिक्षा (जीसीईडी) संबंधी करिकुलम फ्रेमवर्क अपनाने के लिए कहा है. दिप्रिंट द्वारा हासिल किए गए पत्र में पाठ्यक्रम का विवरण भी शामिल है, जो मानवाधिकार, लैंगिक समानता, शांति और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर केंद्रित होगा.

पाठ्यक्रम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से लिया गया है जिसमें इसकी जोरदार ढंग से वकालत की गई थी. इस नीति में छात्रों को ‘वैश्विक मुद्दों के प्रति जागरूक बनाने और उनकी समझ विकसित करने पर जोर दिया गया है ताकि वे शांतिपूर्ण, सहिष्णु, समावेशी, सुरक्षित और स्थिर समाज बनाने में सक्रिय भूमिका निभाने वाले’ बन सकें.

यूजीसी सचिव रजनीश जैन की तरफ से लिखे गए पत्र में कहा गया है, ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में ‘वैश्विक नागरिकता’ की अवधारणा को दी गई अहमियत को देखते हुए यूजीसी ने ‘उच्च शिक्षा में वैश्विक नागरिकता के लिए शैक्षणिक ढांचा’ तैयार किया है जो उच्च शिक्षण संस्थानों को इस पर वैचारिक स्पष्टता प्रदान करेगा कि शिक्षण, शिक्षाशास्त्र और अनुसंधान के जरिये वे छात्रों को वैश्विक नागरिकता की अवधारणा से कैसे जोड़ सकते हैं.

इसमें कहा गया है, ‘सभी यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को जीसीईडी फ्रेमवर्क अपनाने और अपने छात्रों को वैश्विक नागरिकता की अवधारणा से जोड़ने की सलाह दी जाती है.’

पाठ्यक्रम के मुख्य विषयों में ‘वैश्विक शासन प्रणालियां, संरचनाएं और मुद्दे’ शामिल हैं, जिसमें स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक मुद्दों को शामिल किया जाएगा और स्थानीय तथा वैश्विक मुद्दों के बीच परस्पर संबंधों को तलाशा जाएगा.

पाठ्यक्रम में ‘सांस्कृतिक विविधता और सहिष्णुता’ के विषय पर कहा गया है, ‘रोजमर्रा के जीवन में मतभेदों का सम्मान करना और विविधता के लिए सभी के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना ही वैश्विक नागरिकता का मूल सार है.’

असमानता, लैंगिक समानता, मानवाधिकार शिक्षा, शांति और अहिंसा, जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव से निपटना और पर्यावरणीय स्थिरता ऐसे अन्य विषय हैं जिन्हें इस पाठ्यक्रम के तहत पढ़ाया जाएगा.

आयोग चाहता है कि विश्वविद्यालय और कॉलेज बुनियादी फ्रेमवर्क को अपनाएं और उसी के अनुरूप पाठ्यक्रम शुरू करें. इसमें कहा गया है कि जीसीईडी को कानून, शिक्षा, साहित्य, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विभिन्न विषयों के साथ जोड़कर पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है. इसे अलग से एक पृथक विषय/गतिविधि के रूप में भी शामिल किया जा सकता है जो सभी ट्रांसडिसिप्लिनरी पाठ्यक्रमों और डिग्री के लिए खुला हो.

छात्रों के आंकलन के संदर्भ में यूजीसी का कहना है कि छात्रों को शॉर्ट-टर्म एक्शन और शोध-आधारित प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिसका आकलन उनके सामाजिक सामुदायिक प्रभाव के तौर पर किया जा सकता है.


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‘भारत के लिए यह नई बात नहीं’

इस फ्रेमवर्क में ‘वैश्विक नागरिक’ की अवधारणा को इस तरह बताया गया है, जो ‘दुनिया के बारे में जागरूक हो और इसमें अपनी भूमिका को समझता हो, सांस्कृतिक विविधता के प्रति आदर-सम्मान का भाव रखता हो, हर स्तर पर समुदायिक भागीदारी निभाता हो, वैश्विक समुदाय के सदस्य के तौर पर अपनी भूमिका निभाता हो, समस्याएं सुलझाने वाली गहन सोच रखता हो और पारंपरिक ज्ञान को महत्व देता हो.’

पाठ्यक्रम यह भी कहता है कि वैश्विक नागरिकता की अवधारणा मूलत: भारत से ही जुड़ी हुई है और यह हमारे लिए ‘कोई नई बात’ नहीं हैं.

इसमें कहा गया है कि ‘भारत में सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा देने की समृद्ध परंपरा रही है. प्राचीन भारतीय ग्रंथ ‘वसुधैव कुटुम्बकम ’ और ‘यात्रा विश्वं भवत्येकनिदम ’ पर जोर देने वाले ज्ञान का सागर है, पूरी दुनिया एक परिवार की तरह है, और सार्वभौमिक विचार ‘शांति ’ है, इस तरह से यह ज्ञान लोगों को अपनी संकीर्ण सोच से उबरकर ग्लोबल सिटिजन बनने के लिए प्रेरित करता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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