नई दिल्ली: हैदराबाद में रहने वाली 5 साल की इशिका इस महीने के अंत में पहली बार अपनी ऑफलाइन क्लास अटेंड करेगी. उसके माता-पिता इसे लेकर जितने उत्साहित हैं उतने ही घबराए हुए भी हैं. आखिर उनकी बेटी, जिसने पिछले दो सालों में अपने टीचर्स और साथी बच्चों को सिर्फ स्क्रीन पर देखा है, उन्हें व्यक्तिगत तौर पर देखकर किस तरह प्रतिक्रिया देगी.
इशिका की तरह, 2020 या 2021 में प्रीस्कूल शुरू करने वाले लाखों छात्र महामारी की वजह से फिजिकल क्लासेज में शामिल नहीं हो पाए हैं.
हालांकि, कक्षाएं ऑफलाइन चलती रही हैं. अब हर राज्य के शैक्षणिक कैलेंडर के आधार पर, नर्सरी, जूनियर और सीनियर किंडरगार्टन छात्रों के लिए फिजिकल कक्षाएं या तो शुरू हो गई हैं या इस महीने के अंत में शुरू होने वाली हैं.
इस वर्ष का बैच पिछले सालों से काफी अलग है क्योंकि स्कूल पहुंचने वाले छात्र ऐसे होंगे जो अपने शिक्षकों और स्कूल के स्ट्रक्चर से एकदम अपरिचित तो नहीं हैं लेकिन फिर भी, एक तरह से ‘फर्स्ट-टाइमर’ हैं.
डीएलएफ स्कूल्स एंड स्कॉलरशिप की चेयरपर्सन और दिल्ली के स्प्रिंगडेल्स स्कूल की पूर्व प्रिंसिपल अमीता मुल्ला वट्टल ने कहा, ‘इतने लंबे समय तक घर पर रहने से वे काफी प्रभावित हुए हैं.’
वट्टल ने कहा, ‘वे आसानी से थक जाते हैं, बहुत अधिक चल नहीं पाते और उनमें से कुछ तो तमाम छोटी-मोटी चीजों से भी परिचित नहीं है. कुछ बच्चों के लिए तो दरवाजे की कुंडी खोलना, किसी हैंडल को पुश करना जैसी साधारण चीजें भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई हैं.’
इनकी मदद के लिए डीएलएफ स्कूलों के अंतर्गत चलने वाले समर फील्ड्स, गुड़गांव के टीचर उन्हें अपने न्यूरो-मोटर कौशल को विकसित करने में मदद दे रहे हैं.
वट्टल ने बताया कि स्कूल छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए गतिविधि आधारित सीखने की तकनीक ‘प्ले-वे मेथड’ अपना रहा है. उनकी कक्षा के समय में मजेदार गतिविधियां शामिल होती हैं, जैसे खेलने के लिए आटे का इस्तेमाल, सैंड वर्क, ड्राइंग, सिंगिग और प्रकृतिक स्थलों की सैर आदि. कक्षाओं में दीवारें में डोर नॉब और हैंडल लगाए गए हैं ताकि बच्चे इन विभिन्न आकृतियों को छूकर समझ सकें.
वट्टल ने यह भी कहा, ‘ये बच्चे अचानक खुद को इतने सारे बच्चों के समूह के बीच पाकर भावनात्मक तौर पर अलग-थलग महसूस कर रहे हैं.’ उन्होंने बताया कि समर फील्ड बच्चों को उनके किसी एक दोस्त के साथ जोड़ रहा है ताकि वे साथ रह सकें और भावनात्मक रूप किसी तरह का तनाव महसूस न करें.’
माता-पिता भी, यह सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त मेहनत कर रहे हैं कि उनका बच्चा स्कूल के साथ जुड़ाव महसूस करे.
मुंबई की साक्षी प्रसाद कौल की पांच साल की बेटी इस महीने के अंत में फिजिकल क्लासेज शुरू करने वाली है और उन्होंने बताया कि वह पिछले कुछ महीनों से अपनी बेटी को इसके लिए तैयार कर रही हैं.
कौल ने कहा, ‘मुझे पता है कि मेरे बिना रहना और उन लोगों के साथ रहना उसके लिए बहुत अलग अनुभव होगा जिन्हें वह जानती नहीं हैं.’
अपनी बेटी को फिजिकल क्लासेज में लाने से पहले कौल ने उसे एक ऑफलाइन फोनेटिक क्लास में भर्ती कराया ताकि वह एक फिलिजकल लेसन के लिए बैठना सीख सके.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन मेरी बेटी को उसकी कक्षा में टीचर द्वारा अन्य छात्रों के साथ किया गया व्यवहार पसंद नहीं आया. वह क्लास में जाने से कतराने लगी और आखिरकार नहीं गई. बच्चे इतने संवेदनशील हो गए हैं (महामारी के कारण) कि अगर वे कुछ ऐसा देखते हैं जो उन्हें पसंद नहीं आता तो वे उससे बचने की कोशिश करते हैं.’
इस अनुभव के बाद, कौल यह सुनिश्चित कर रही हैं कि उसकी बेटी अपनी टीचर से पहले ही मिल लें ताकि स्कूल शुरू होने से पहले उसे अपने स्कूल परिसर और अपनी कक्षा के बारे में पता हो. इसी से अवगत कराने के लिए वह उसे एक-दो बार स्कूल लेकर गई. कौल न कहा, ‘मुझे लगता है कि अब वह स्कूल जाने के लिए तैयार है और वास्तव में इसे लेकर उत्सुक भी है.
हैदराबाद की एम. श्रीदेवी, जो पांच साल के एक बच्चे की अभिभावक हैं, ने भी कुछ ऐसा ही किया. उन्होंने कहा, ‘मेरे बेटे को स्कूल में सब कुछ अपने आप ही करना होगा—जैस स्कूल बैग लेकर जाना, लंच करना आदि. मैं काफी नर्वस और डरी हुई हूं. मैं और मेरे पति उसे स्कूल लेकर गए हैं और वहां सहज महसूस कराने की कोशिश की.’
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‘कोविड जेनरेशन’ की जरूरतों को अपनाना
रायपुर के एक निजी स्कूल की वरिष्ठ शिक्षिका कल्पना चौधरी का मानना है कि उनके स्कूल के बच्चे समूह में होने पर बेहतर रिस्पॉन्स देते हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास 15 बच्चों की एक छोटी कक्षा है, इसलिए हमारे लिए उन्हें मैनेज करना आसान है. वे ज्यादातर एक-दूसरे के साथ रहते हैं, साथ में लंच करते हैं और साथ में खेलते हैं.’
उन्होंने कहा कि स्कूल नर्सरी से किंडरगार्टन तक कक्षाओं में पढ़ाने के लिए किताबों का उपयोग नहीं करता है, और छात्रों को ज्यादातर खेल-आधारित गतिविधियों, गीतों, कविताओं, आर्ट आदि के जरिये पढ़ाया जाता है.
बेंगलुरु का नारायण ओलंपियाड स्कूल थोड़ा अलग तरीका अपना रहा है. प्रिंसिपल रमानी वल्लूरी के मुताबिक, उनके स्कूल में मेंटर टीचर हैं जो अभिभावकों के साथ मिलकर इस काम को आसान बना रहे हैं.
वल्लूरी ने कहा, ‘छोटे बच्चों के लिए फिर से ऑफलाइन पढ़ाई के स्ट्रक्चर के साथ सहज होना महत्वपूर्ण है. इसके लिए माता-पिता के साथ बेहतर कोऑर्डिनेशन की आवश्यकता होती है ताकि वे घर पर इस स्ट्रक्चर के बारे में कुछ जानकारी दे सकें.’
उन्होंने बताया, ‘हमारे स्कूल में इस काम के लिए समर्पित शिक्षक हैं जो 20 छात्रों के एक समूह के लिए एक मेंटर के तौर पर कार्य करता है. मेंटर लगातार माता-पिता के संपर्क में रहता है, बच्चों को स्कूल में जो पढ़ाया जा रहा है, उन्हें उससे अवगत कराता है, और घर पर आवश्यक गतिविधियों को अपनाने की सलाह देता है ताकि बच्चों का सीखना-समझना सुनिश्चित हो सके.’
‘विकास पर पड़ा असर’
दिप्रिंट ने जिन बाल रोग विशेषज्ञों से बात की उन्होंने कहा कि स्कूल बंद होने और घर में बंद रहने से छोटे बच्चों पर कई तरह का असर पड़ा है.
दिल्ली स्थित श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. रोहित गोयल ने कहा कि उन्होंने महामारी के कारण छोटे बच्चों में दो तरह की समस्याएं देखी हैं. पहली यह है कि वे संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए हैं और आसानी से सर्दी, स्टमक फ्लू, या खांसी की चपेट में आ जाते हैं और दूसरी उनकी कम्युनिकेशन स्किल विकसित नहीं हो पाई है.
गोयल ने कहा, ‘कई माता-पिता की शिकायत है कि उनके बच्चे स्कूल में ठीक से संवाद करने में सक्षम नहीं हैं या अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं क्योंकि अचानक वे बहुत से लोगों के संपर्क में आ जाते हैं. स्कूल बंद रहने की वजह से उनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के साथ उनका सामाजिक और संचार कौशल भी प्रभावित हो गया है.
डॉक्टरों ने पाया है कि एक से तीन वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में बोलने और भाषा की समस्याओं के अलावा वजन बढ़ना भी एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है.
दिल्ली के होली फैमिली हॉस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ दिनेश राज ने कहा, ‘हमने यह भी देखा कि कुछ बच्चों का टीकाकरण छूट गया है. कोविड के डर के कारण, लोग पिछले दो सालों से अस्पतालों से दूर रहने की कोशिश कर रहे थे, जिसके कारण बच्चों का टीकाकरण रह गया. वे सारी खुराक अभी दिलाई जा रही हैं.’
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