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Monday, 6 May, 2024
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पंचतंत्र, खिलौने, 6 साल की उम्र तक बिना किताब के; 3-8 साल के बच्चों को ऐसे पढ़ाना चाहती है मोदी सरकार

शिक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को फाउंडेशनल स्टेज के लिए नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क जारी किया. 360 पन्नों के इस दस्तावेज को शिक्षाविदों की मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है.

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नई दिल्ली: शिक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को 3 से 6 साल के बच्चों को पढ़ाने के लिए पाठ्यपुस्तक का इस्तेमाल नहीं करने और 6 से 8 साल के बच्चों को लिए बोर्ड गेम से लेकर पंचतंत्र (भारतीय दंत कथाओं और लोक कथाओं का संग्रह) की कहानियों को पाठों में शामिल करने का सुझाव दिया है. इस उम्र के बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम में कई बदलाव किए गए हैं.

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने फाउंडेशनल स्टेज (3 से 8 साल के बच्चों) के लिए नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) जारी किया. इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने तैयार किया है. उन्होंने 2020 में जारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

360-पेजों के दस्तावेज को शिक्षाविदों से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है. उनका मानना है कि ‘यह बहुत वैज्ञानिक रूप से डिजाइन किया गया है और इसे लागू करना चुनौतीपूर्ण रहेगा.’

दस्तावेज के अनुसार, ‘फाउंडेशनल स्टेज के पहले तीन सालों में 3 से 6 साल के बच्चों के लिए कोई निर्धारित पाठ्यपुस्तक नहीं होगी. इस उम्र के छात्रों को सिखाने के लिए साधारण सी वर्कशीट अपने आप में काफी है.’

डॉक्यूमेंट में ‘रूढ़ियों को बढ़ावा देने वाली सामग्री से खासतौर पर दूर रहने के लिए जोर दिया गया है, जैसे, उल्लू और सांप को बुराई के रूप में देखना या काले रंग वाले लोगों को डरावना बताना या फिर मां को हमेशा रसोई सम्हालते हुए दिखाना.’

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करिकुलम उन तरीकों का सुझाव देता है जिसमें कहानी कहने के तरीके और वास्तविक जीवन के अनुभवों का इस्तेमाल करके विभिन्न स्तरों पर बच्चों के लिए एक इंटरैक्टिव पाठ्यक्रम विकसित किया जा सकता है. इसमें कहा गया है, ‘(फाउंडेशनल) स्टेज के अंतिम दो सालों -6 से 8 साल की उम्र- के लिए सरल और आकर्षक पाठ्यपुस्तकों पर विचार किया जाए. इन किताबों में न सिर्फ क्लास रूम इंस्ट्रक्शन के लिए कंटेट होना चाहिए बल्कि उसमें बच्चों को अपने दम पर काम करने के अवसर देने की सहुलियत भी होनी चाहिए और साथ ही उनके काम के रिकॉर्ड के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए.’


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इसमें आगे कहा गया है कि फाउंडेशनल स्टेज में सिखाने का तरीका ‘काफी हद तक बोधगम्य और व्यावहारिक होना चाहिए न कि थ्योरिटिकल. इसलिए बच्चों को पढ़ाने के लिए जिस भी तरीके का चयन किया जाए उसके लिए तैयार किया गया कंटेंट ‘संवेदी रूप से आकर्षक होना चाहिए.’

दस्तावेज़ बताता है कि सामग्री ऐसी हो जो बच्चे की सीखने की क्षमता को बढ़ाए, सीखने में मजेदार लगे या फिर बच्चे के अनुभवों के संदर्भ में व्यावहारिक रूप से प्रासंगिक हो. इसमें कहा गया है कि सिखाने के लिए तैयार किया गया कंटेंट बच्चों के जीवन के अनुभवों से भी लिया जाना चाहिए, जो उनके सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक संदर्भ को प्रतिबिंबित करे, जिसमें वो अपना विकास कर रहे है और बड़ा हो रहे हैं.

बच्चों को पंचतंत्र की कहानियां पढ़कर और पासा खेलकर गणित सीखने का सुझाव दिया गया है.

लागू करने को लेकर विशेषज्ञ चिंतित

डीएलएफ फाउंडेशन स्कूलों की चेयरपर्सन एंड एक्जयुकेटिव डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन (इनोवेशन एंड ट्रेनिंग) अमीता मुल्ला वट्टल ने दिप्रिंट को बताया कि फ्रेमवर्क काफी ज्यादा वैज्ञानिक तरीके से डिजाइन किया गया है और इसमें फाउंडेशनल उम्र के लिए महत्वपूर्ण तत्वों को शामिल किया गया है. लेकिन इसे लागू करना’ एक चुनौती होगी.’

उन्होंने कहा, ‘इसे लागू करने से पहले शिक्षकों को ठीक ढंग से प्रशिक्षित करने की जरूरत है. बदलाव देखने से पहले हमें कम से कम टीचर्स की ट्रेनिंग के लिए 3-5 पांच साल देने होंगे.’

वट्टल ने आगे कहा कि किताबों के बजाय सिर्फ वर्कबुक और पैम्फलेट की मदद से पढ़ाने जैसी चीजें कुछ ऐसी है जिन्हें भारतीय स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों ने पहले नहीं किया है. और इसके लिए उन्हें ट्रेंड किए जाने जरूरत है.

हरियाणा के एक सरकारी स्कूल में पहली कक्षा को पढ़ाने वाली शिक्षिका गरिमा आहूजा ने कहा कि फ्रेमवर्क में जो कुछ भी कहा गया है, वह पहले से ही उस स्कूल में लागू किया जा चुका है जहां वह पढ़ाती है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम पहले से ही कहानी सुनाने और खिलौनों पर आधारित तरीकों से छात्रों को पढ़ा रहे हैं. लेकिन इसके साथ बच्चों को पढ़ाने के लिए किताबें भी हैं. उन्हें पूरी तरह से छोड़ना थोड़ा मुश्किल होगा.’

एक अन्य सरकारी स्कूल के शिक्षक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘कार्यान्वयन का पैमाना इतना बड़ा है कि हमें बहुत समय देना होगा. हम रातों-रात चीजों के बदलने की उम्मीद नहीं कर सकते… पढ़ाना, सीखना एक निश्चित तरीके से लंबे समय से होता आ रहा है.’


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कंटेंट कैसे तैयार किया जाए

दस्तावेज़ में कहा गया है कि कंटेंट को बच्चों की व्यक्तिगत विशेषताओं के साथ जोड़ा जाना चाहिए. डॉक्यूमेंट बताता है कि खाना बनाने, सफर पर जाने और लोक गीत, कहानियां, त्यौहार और किसी विशेष समुदाय या समूह के अनुष्ठान से भी काफी कुछ सीखा जा सकता है. इन्हें पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए.

इसमें आगे कहा गया है, ‘चूंकि संज्ञानात्मक विकास का लक्ष्य आसपास की दुनिया के बारे में जानना और अपने पर्यावरण के अनुकूल होना है. इसलिए पढ़ाने की सामग्री में उन विषयों और थीम को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए जो बच्चों को प्राकृतिक और मानवीय वातावरण से परिचित कराए, जिसमें वे बढ़ रहे हैं और अपना विकास कर रहे हैं-मसलन सामाजिक और भौतिक दुनिया, लोग, अलग-अलग जगहें, सजीव और निर्जीव चीजें’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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