scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमएजुकेशन'कक्षा में छात्र ही नहीं, तो सैलरी किस बात की', 23 लाख रुपए का वेतन लौटाना चाहते हैं बिहार के स्टार प्रोफेसर

‘कक्षा में छात्र ही नहीं, तो सैलरी किस बात की’, 23 लाख रुपए का वेतन लौटाना चाहते हैं बिहार के स्टार प्रोफेसर

बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर बिहार यूनिवर्सिटी के वीसी को लिखे पत्र में ललन कुमार ने कहा कि वह अपना 'कर्तव्य पूरा करने में असमर्थ' रहे क्योंकि कक्षा में बच्चे ही नहीं आते हैं. उन्होंने कॉलेज से अपना तबादला करने की मांग की.

Text Size:

पटना: 2015 में दिल्ली के हिंदू कॉलेज से स्नातक होने पर ललन कुमार को एकेडमिक एक्सीलेंस के अवार्ड से नवाजा गया था. उन्होंने पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन किया और उसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से एम.फिल और इसके बाद डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की.

यही वजह रही कि अधिकांश लोग उन्हें बिहार के मुजफ्फरनगर जिले में सरकार द्वारा फंडिड नीतीश्वर महाविद्यालय या कॉलेज के हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में एक काबिल शिक्षक मानते हैं.

उसके बावजूद कुमार ने बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति (वी-सी) को एक पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने विश्वविद्यालय में जब से ज्वाइन किया था तब से यानी सितंबर 2019 से लेकर आज तक के अपने 23 लाख रुपए से ज्यादा के वेतन को वापस करने की इच्छा जाहिर की. नीतीश्वर महाविद्यालय बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय के अंतर्गत आता है.

5 जुलाई के पत्र में उन्होंने इसका कारण बताते हुए लिखा, ‘कक्षा में बच्चों की उपस्थिति लगभग शून्य है और मैं कक्षा में पढ़ाने की अपनी इच्छा के बावजूद शिक्षा के अपने कर्तव्य को पूरा कर पाने में असमर्थ हूं’ दिप्रिंट के पास पत्र की एक कॉपी भी मौजूद है.

कुमार ने पत्र में यह भी उल्लेख किया है कि उन्होंने पहले दूसरे कॉलेज में अपने तबादले का अनुरोध किया था क्योंकि वह नीतीश्वर महाविद्यालय की स्थिति से काफी निराश हैं.

सहायक प्रोफेसर के अनुसार, जब उन्होंने छात्रों से कक्षा में न आने की वजह पूछी, तो ‘कुछ ने कहा कि वे काफी दूर रहते हैं और रोजाना कालेज आना उनके लिए संभव नहीं है. जबकि अधिकांश छात्रों ने कोचिंग संस्थानों से पढ़ाई करने की बात कही.’ कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘छात्रों ने यह भी कहा कि मौका मिलने पर वे बिहार से बाहर जाना पसंद करेंगे.’

शिक्षाविदों के अनुसार, बिहार में राज्य सरकार द्वारा फंडिड 17 विश्वविद्यालय और छह केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं. राज्य के शिक्षाविदों ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार के कार्यकाल के दौरान राज्य भर में इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज खोलने पर फोकस किया गया है. वहीं, सामान्य कॉलेजों की उपेक्षा की गई है.

कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि उनके पत्र ने वीसी को हैरानी में डाल दिया. ‘वाइस चांसलर एच.पी. पांडे ने मुझे बताया कि वेतन की वापसी के मामले पर विचार-विमर्श के लिए एक समिति की जरूरत होगी.’

बुधवार को स्थानीय मीडिया में पांडे के हवाले से कहा गया कि कक्षाओं से छात्रों की अनुपस्थिति एक गंभीर मसला है और वह इसकी पड़ताल के लिए एक समिति का गठन करेंगे. हालांकि, उन्होंने अपना वेतन वापस करने की कुमार की इच्छा के बारे में कुछ नहीं कहा.

दिप्रिंट ने नीतीश्वर महाविद्यालय के प्रिंसिपल मनोज कुमार से भी बात की. उन्होंने कहा, ‘मुझे स्थानीय मीडिया से इस बारे में पता चला है.’


यह भी पढ़ें: Biodiversity और Ecology को किस तरह नुकसान पहुंचा सकता है ‘जलवायु ओवरशूट’


‘कक्षा में कोई छात्र नहीं’

कुमार ने कहा, ‘मेरे कॉलेज में तीन साल के ग्रेजुएशन कोर्सिज में, प्रत्येक में 100 से ज्यादा छात्र हैं. उसके बावजूद जब से मैंने यहां ज्वाइन किया है, सिर्फ दो या तीन छात्र ही पढ़ाई करने के लिए आते हैं. इसे आप ‘कक्षा’ तो नहीं कह सकते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने उनके माता-पिता से अपने बच्चों को कॉलेज में भेजने के लिए बात भी की थी लेकिन इसका नतीजा नहीं निकला. उलटे कई पैरेंट्स ने मुझे ही डांट दिया और कहा कि मैं उनके बच्चों को परेशान न करुं. मैंने एक व्हाट्सएप ग्रुप भी बनाया था जिसमें उन्हें कक्षा में आने का आग्रह किया गया लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ. अब जब कक्षा में कोई छात्र ही नहीं हैं तो दिल्ली में मैंने जो कुछ भी सीखा या पढ़ा है उसे कैसे उन तक पहुंचा सकता हूं?’

शिक्षाविद छात्रों की अनुपस्थिति के लिए कॉलेजों की स्थिति की ओर इशारा करते हैं.

पटना यूनिवर्सिटी बिहार की प्रमुख यूनिवर्सिटी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित राज्य के कई नेता इस यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र रह चुके हैं. विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के अनुसार, फैकल्टी में 40 प्रतिशत शिक्षकों की कमी है.

कॉलेज के एक टीचर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘शिक्षकों का वेतन कम से कम चार महीने देरी से मिलता है. ऐसे में शिक्षक या तो एक कोचिंग संस्थान में शामिल हो जाता है या फिर कॉलेज जाना बंद कर देता है.’

पटना विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर बी.के. मिश्रा ने कहा कि कुमार ने अपने पत्र में जिन स्थितियों को उजागर किया है, वे राज्य भर के कई छोटे शहरों के कॉलेजों की स्थिति को बयान करते हैं. कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन के बाद से स्थिति और खराब हो गई है.

मिश्रा ने कहा, ‘जो छात्र बिहार से बाहर जाने का खर्च उठा सकते हैं, वो यहां से चले जाते हैं. सिर्फ वही छात्र इन कॉलेजों में दाखिला लेते हैं, जिनके लिए राज्य से बाहर जाना मुश्किल है.’

छात्रों ने कक्षा में आना क्यों बंद दिया

कुमार का ये पत्र राज्य में एकेडमिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है.

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, पटना के पूर्व निदेशक डीएन दिवाकर ने कहा, ‘ये जो कुछ भी हुआ वह एक असामान्य स्थिति तो है. लेकिन एक सच यह भी है कि छात्रों को कक्षा में आने से हतोत्साहित किया जाता है.’

दिवाकर ने आगे कहा, ‘मुझे याद है कि 2006 में झंझारपुर में एक स्थानीय कॉलेज में एक कार्यशाला आयोजित की जा रही थी. उस समय तक शिक्षक कक्षा में नहीं गए थे और छात्र भी नहीं आए थे. यह बताता है कि उच्च शिक्षा कितना बड़ा व्यवसाय बन गया है (क्योंकि कोचिंग संस्थानों में दाखिला लेने के लिए छात्र मोटी रकम का भुगतान करते हैं). उनके लिए सिर्फ डिग्री मायने रखती है. 75 प्रतिशत अनिवार्य उपस्थिति (विश्वविद्यालयों द्वारा अनिवार्य) केवल कागजों पर ही होती है.

शिक्षाविदों का कहना है कि उपस्थिति में गिरावट समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के 1970 के दशक में राज्य सरकार में कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के दौरान शुरू हुई, जिसमें छात्रों की भारी भागीदारी देखी गई. 1980 के दशक के बाद समस्या और विकट हो गई.

अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर एन के चौधरी ने बताया कि जब उन्होंने 2004 में पटना विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख के रूप में पदभार संभाला था, तब भी छात्रों की उपस्थिति एक मुद्दा था. उन्होंने कहा, ‘मुझे छात्रों की कक्षा में वापसी के लिए अनिवार्य उपस्थिति सुनिश्चित करनी थी.

छात्रों के कक्षा में आना बंद करने के कारणों के बारे में बताते हुए चौधरी ने कहा, ‘यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा न दे पाने की वजह से है. अधिकांश शिक्षक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में सक्षम नहीं हैं. दूसरा कारण कॉलेजों में प्रशासन की कमी है.

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर प्रशासन चाहेगा, तो छात्र एक साल के भीतर कक्षा में लौट आएंगे. साथ ही परीक्षाओं में लिबरल मार्किंग का चलन है. जोर छात्रों की योग्यता की जांच करने के लिए नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए है कि हर कोई पास हो.’

पूर्व प्रोफेसर ने कुमार द्वारा उठाए गए नैतिक रुख की सराहना की. उन्होंने कहा, ‘समाधान कुमार को दूसरे कॉलेज में स्थानांतरित करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि छात्र और शिक्षक कक्षाओं में लौट आएं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: भारत में केवल 10.5% पुलिसकर्मी महिलाएं हैं और 3 में से सिर्फ 1 पुलिस थाने में CCTV है – रिपोर्ट


share & View comments