नई दिल्ली: ब्लॉक, पजल्स, मास्क, पपेट्स और सेंड आर्ट, ये कुछ चीजें है जिनके जरिए अब स्कूली बच्चों को पढ़ाया जाएगा. 3 से 18 साल की उम्र के स्कूली बच्चों को साइंस और गणित की बुनियादी अवधारणाओं को समझने और उनके छोटे-छोटे कामों को आसान बनाने के लिए मोटर स्किल विकसित करने में मदद करने के लिए केंद्र सरकार ने एक खिलौना-आधारित शिक्षा देने की योजना तैयार की है.
शिक्षा मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी नीति दस्तावेज नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप हैं, जो सभी उम्र के बच्चों के लिए एक्सपीरियंसल लर्निंग का सुझाव देती है.
पोलिसी पेपर में लिखा है, ‘जब हम स्कूली शिक्षा में खिलौनों की बात करते हैं, तो हमारा फोकस खासतौर पर देश में बने खिलौनों और खेलों पर होता है. स्पिनिंग टॉप जैसे खिलौने, जिन्हें लट्टू (टॉप), फिरकी (स्पिन-व्हील), पतंग, डग-डुगी, फिरनी (पिनव्हील), मैजिक कार्ड, फ्लाइंग बर्ड, मैजिक स्नेक आदि के नाम से जाना जाता है. इन खेल और खिलौनों को बच्चे बेहद पसंद करते हैं.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘बच्चों की उम्र और अलग-अलग विषय के अनुसार कौन सा खेल और खिलौने उपयुक्त रहेंगे, इनकी पहचान करने के लिए कर्रिकुलम डेवलपर्स की मदद लिए जाने के जरूरत है.’
सरकार गिल्ली डंडा, चौपर (बोर्ड गेम का एक पारंपरिक रूप) और कबड्डी जैसे कुछ पुराने पारंपरिक खेलों को फिर से बच्चों के बीच लाने पर भी विचार कर रही है.
दस्तावेज़ में तीन साल तक के छोटे बच्चों को भी प्रीस्कूल लेवल पर सिखाने के लिए खिलौनों का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है.
उदाहरण के लिए, इतने छोटे बच्चों की समझने की क्षमता को बढ़ाने के लिए स्क्वीज बॉल दी जा सकती है. लकड़ी के आवाज करने वाले खिलौनों से बच्चों की आंखों और उनके हाथों और सुनने की शक्ति के बीच तालमेल बैठाने में मदद मिलेगी. उसके अलावा उन्हें रंग और नंबर की पहचान कराने के लिए बिल्डिंग ब्लॉक्स जैसे अन्य खिलौनों का इस्तेमाल करने का भी सुझाव दिया गया है.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर में फैकल्टी के सदस्य और संस्थान के ‘सेंटर फॉर क्रिएटिव लर्निंग (सीसीएल)’ के हिस्से के रूप में मनीष जैन ने अपनी टीम के साथ खिलौना आधारित शिक्षा योजना में सीखने के परिणामों का खाका तैयार किया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘क्लासरूम आजकल किसी न किसी तरह से उबाऊ और नीरस होते जा रहे हैं. किसी विषय को सीखते समय छात्र के लिए उसका मजेदार होना सबसे महत्वपूर्ण चीज है और खिलौना आधारित शिक्षा इसमें उनकी मदद करेगी. हम सीखने को मजेदार और रोचक बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जब बच्चे किसी खिलौने को देखते हैं और उससे जुड़ते हैं, तो वे सवाल करते हैं और उसके बारे में सोचते हैं. इससे उनके कौशल का विकास होता है. इससे वे एक किताब से रटी-रटाई चीजों को आंसर शीट पर नहीं लिखेंगे.’
जैन मौजूदा समय में खिलौना आधारित शिक्षा के लिए टीचर्स को प्रशिक्षण दे रहे हैं. उनकी टीम ’30-30 एसटीईएम’ नामक एक ऑनलाइन कार्यक्रम चलाती है, जिसमें शिक्षकों को सिखाया जाता है कि बच्चों को खिलौना आधारित शिक्षा से कैसे जोड़ा जाए.
उन्होंने कहा, ‘खिलौने और एक्टिविटीज, लर्निंग में बेहद खास भूमिका निभाते हैं. अगर आप सीखते समय एक्टिविटी कर रहे हैं, तो आप बहुत कुछ सीख जाते हैं.’ उनके द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम से प्रशिक्षित टीचर्स से उन्हें बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली है.
जैन और उनकी टीम ने सरकारी स्कूलों के बच्चों के साथ कुछ कार्यशालाएं भी की हैं और उन्हें वहां से भी उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली है.
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हर पाठ के लिए एक खिलौना
सीसीएल ने पाया है कि यह शिक्षा योजना अलग-अलग उम्र के बच्चों के लिए कई तरीकों के खिलौनों के इस्तेमाल करने का सुझाव देती है.
उदाहरण के लिए, 8 साल से 11 साल की उम्र के बच्चों के लिए ‘ऑबजरर्वेशन और एक्सप्लोरेशन के और सेंस स्पेन विकसित करने’ के लिए चुंबक का सुझाव दिया गया है. नीति दस्तावेज़ में आकृतियों के बारे में समझ हासिल करने, सरल ज्यामितीय आकृतियों के क्षेत्र और परिधि का पता लगाने और ज्ञात इकाइयों में एक सॉलिड बॉडी की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए’ खिलौनों के रूप में ज्यामितीय सोलिड के इस्तेमाल का भी सुझाव दिया गया है.
बड़ी उम्र(14 से 18 साल) के बच्चों के लिए ‘उनके इमोशनल मैनेजमेंट स्किल, इंटेलिजेंस, सेल्फ अवेयरनेस, इंट्रोस्पेक्शन और निर्णय लेने’ में मदद करने के लिए टॉय रिवाईवल किट इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है.
‘दबाव, बल, न्यूटन के गति के तीसरे नियम’ को सिखाने के लिए गुब्बारे से चलने वाली खिलौना-कार बनाने का सुझाव दिया गया है.
नीति दस्तावेज में बच्चों को भारत के इतिहास और संस्कृति से रूबरू कराने के लिए देश में बने खिलौने और खेल का इस्तेमाल करने का भी सुझाव दिया गया है.
उदाहरण के लिए इसमें आंध्र प्रदेश में पारंपरिक रूप से बनाए गए कोंडापल्ली खिलौनों (लकड़ी के पेंट किए गए खिलौने), गुजरात और राजस्थान में बने तोरण (दीवार पर लटकने वाली) और कपड़े की गुड़िया, उत्तर प्रदेश के कंचे, चूड़ियां और जानवरों की आकृतियों को बच्चों के बीच लाने का सुझाव दिया गया है.
यह हड़प्पा काल से मिलते-जुलते मिट्टी के बर्तनों और मिनिएचर को पेश करने का भी सुझाव देता है ताकि बच्चे सभ्यताओं के बारे में जान सकें.
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