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Monday, 6 May, 2024
होमएजुकेशन'संस्थागत हत्या': DU के एड-हॉक शिक्षकों की बड़े पैमाने पर नौकरी गई, पूर्व प्रोफेसर की मौत से भड़का गुस्सा

‘संस्थागत हत्या’: DU के एड-हॉक शिक्षकों की बड़े पैमाने पर नौकरी गई, पूर्व प्रोफेसर की मौत से भड़का गुस्सा

पुलिस ने कहा कि समरवीर के चचेरे भाई ने कहा कि उसने हिंदू कॉलेज में एड-हॉक लेक्चरर के रूप में काम किया. उनके स्थान पर दूसरे लेक्चरर की नियुक्ति के बाद से वे निराश थे.

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नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के एक पूर्व एड-हॉक सहायक प्रोफेसर की कथित आत्महत्या ने स्थायी शिक्षकों के लिए विश्वविद्यालय के चल रहे भर्ती अभियान के कारण जा रही नौकरियों के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है. प्रोफेसरों और छात्रों ने गुरुवार को विरोध प्रदर्शन और शोक सभाएं कीं.

बाहरी जिले के पुलिस उपायुक्त हरिंदर सिंह द्वारा साझा किए गए एक बयान के अनुसार, 33 वर्षीय समरवीर को बुधवार को छत के पंखे से लटका पाया गया. बयान के अनुसार: “पूछताछ पर, उसके चचेरे भाई ने खुलासा किया कि मृतक हिंदू कॉलेज में एक अस्थायी लेक्चरर के रूप में काम कर रहा था. हाल ही में उनके स्थान पर दूसरे लेक्चरर की नियुक्ति हुई जिससे वह निराश था.”

समरवीर, जिन्होंने पांच साल से अधिक समय तक हिंदू कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्रोफेसर के रूप में काम किया था, सितंबर 2022 में शुरू हुए भर्ती अभियान में नौकरी गंवाने वाले लोगों में से एक थे.

विश्वविद्यालय के जिन प्रोफेसरों से दिप्रिंट ने बात की, उन्होंने कहा कि इस वजह से अब तक लगभग 75 प्रतिशत तदर्थ शिक्षण कर्मचारी विस्थापित हो चुके हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रक्रिया अनुचित, अपारदर्शी और राजनीतिक कारकों से प्रभावित है और तर्क दिया कि स्थायी पदों पर नियुक्ति करते समय तदर्थ पदों पर सेवा को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

हालांकि, जब दिप्रिंट इसी मुद्दे के बारे में पिछले साल के अंत में डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता के पास पहुंचा, तो उन्होंने कहा था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) 2018 के नियमों में अस्थायी या तदर्थ शिक्षकों की सेवाओं कोनियमित करने का कोई प्रावधान नहीं है.

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उन्होंने कहा, “तदर्थ को शामिल करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है. अगर हम इस पर विचार भी करते हैं तो यह डीयू के संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का उल्लंघन होगा.”

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने समरवीर की मौत को “संस्थागत हत्या” करार दिया है. मिरांडा कॉलेज की प्रोफेसर आभा देव हबीब ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा, “उनका जीवन बर्बाद हो गया … उन्हें लंबे समय तक तदर्थ पदों पर काम करने के लिए मजबूर किया गया … श्री समरवीर, जिनकी हिंदू कॉलेज से नौकरी चली गई, उनकी जान चली गई … संस्थागत हत्या.”

एक अन्य प्रोफेसर, जो मृतक को जानते थे, ने फेसबुक पर लिखा, “उन्होंने हमारे कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर की नौकरी पहले स्वीकार नहीं की थी क्योंकि उन्होंने हिंदू में एक तदर्थ नौकरी स्वीकार कर ली थी. उन्होंने मुझे बताया कि 20+ दिनों के बाद, कॉलेज ने उन्हें सूचित किया कि कॉलेज उनकी सेवा जारी नहीं रख सकता क्योंकि विश्वविद्यालय द्वारा इसकी अनुमति नहीं है.”

पोस्ट में आगे कहा गया, “मैं उनकी बेबसी को महसूस कर सकता था. उन्होंने आगे बताया कि उनकी मां ने अपनी एक आंख की रोशनी तब खो दी जब उन्हें वह स्थायी नौकरी नहीं मिली जिसकी उन्हें उम्मीद थी.”

समरवीर को जानने वाले प्रोफेसरों के मुताबिक, फरवरी के पहले हफ्ते में उसकी नौकरी चली गई थी. हालांकि, प्रिंसिपल अंजू श्रीवास्तव ने कहा कि हिंदू कॉलेज ने उन्हें मार्च के अंत तक एक और अस्थायी पद दिया था.

दिप्रिंट को दिए एक बयान में, श्रीवास्तव ने कहा, “श्री समरवीर के निधन की खबर सुनकर हम गहरे सदमे में हैं. वह एक उज्ज्वल विद्वान थे और हमारे कॉलेज में ही पीएचडी कर रहे थे.”

उन्होंने कहा, “फैकल्टी भर्ती प्रक्रिया के दौरान, चयन समिति उनका चयन करने में असमर्थ थी क्योंकि उनके पास पीएचडी नहीं थी. यह दुखद सच्चाई है कि सभी तदर्थ प्राध्यापकों को उन कॉलेजों में शामिल नहीं किया गया है जहां वे काम कर रहे थे.

उन्होंने कहा, “चूंकि हम उसकी जरूरतों के प्रति संवेदनशील होना चाहते थे, हम उसे मार्च के अंत तक कॉलेज में एक अस्थायी पद देने में सक्षम थे. अप्रैल के पहले सप्ताह में उन्हें अपने कर्तव्यों से मुक्त कर दिया गया था.”

दर्शनशास्त्र विभाग के एक प्रोफेसर ने भी कहा कि समरवीर को गेस्ट लेक्चरर के रूप में एक पद की पेशकश की गई थी जब तक कि वह दूसरी नौकरी नहीं पा लेता.


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विरोध लाजिमी है

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने गुरुवार दोपहर विरोध प्रदर्शन किया और बाद में शाम को एक शोक सभा का आयोजन किया. स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) की हिंदू कॉलेज इकाई ने एक शोक सभा का आयोजन किया और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने गुरुवार दोपहर कॉलेज के गेट पर “शिक्षकों के साथ क्रूर अन्याय” के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.

डीयू कार्यकारी परिषद के पूर्व सदस्य राजेश झा ने दिप्रिंट को बताया, “डूटा लंबे समय से तदर्थ फैकल्टी के एबसोर्पशन की मांग कर रहा है लेकिन विश्वविद्यालय ने हमारी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया है. ये प्रोफेसर अध्यापन का अच्छा काम कर रहे हैं और विश्वविद्यालय की संस्कृति में घुल-मिल गए हैं.”

जीसस एंड मैरी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर माया जॉन ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा, “यह एक तथ्य है कि लंबे समय से सेवारत तदर्थ शिक्षकों की एक बड़ी संख्या, जो अन्यथा सभी मानदंडों को पूरा करते हैं और अपने संस्थानों के लिए बहुत मेहनत करते हैं, हाल के साक्षात्कारों में छंट गए.

उन्होंने कहा, “तथाकथित ‘खुली’ भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से स्थायी नियुक्तियां की जा रही हैं, जिसमें बड़े पैमाने पर विस्थापन देखा गया है.”

उसने दावा किया कि तदर्थ प्रोफेसरों को “झूठा वादा” किया गया था कि उन्हें बनाए रखा जाएगा, जो “निश्चित रूप से एक धोखा बना हुआ है”.

(अगर आप निराश और हताश महसूस कर रहे हैं तो अपने राज्य में इस हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क करें)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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