नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी), भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) और अन्य सहित तकनीकी संस्थान चाहते हैं कि महामारी के कारण, नरेंद्र मोदी सरकार पीएचडी स्कॉलर के लिए फेलोशिप नीति में बदलाव करे. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
सूत्रों ने कहा, शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल के साथ गुरुवार को एक वर्चुअल बैठक के दौरान, संस्थानों ने सरकार से पीएचडी स्कॉलर को मासिक वजीफा राशि एक और वर्ष के लिए बढ़ाने का अनुरोध किया क्योंकि वे एक वर्ष से अधिक समय से कोविड से संबंधित व्यवधानों के कारण अपना शोध समाप्त नहीं कर सके हैं.
शोधार्थियों को फेलोशिप राशि पांच साल की निश्चित अवधि के लिए दी जाती है. यह विभिन्न संस्थानों में प्रति माह 31,000 रुपये से 35,000 रुपये तक होती है.
बैठक में सभी आईआईटी, एनआईटी, अंतर्राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रमुख उपस्थित थे और उन्होंने सरकार से अंतिम वर्ष के स्कॉलर को अतिरिक्त फेलोशिप राशि देने का आग्रह किया. सूत्रों ने कहा कि जिन्होंने पहले ही पांच साल पूरे कर लिए हैं, लेकिन कोविड के कारण व्यवधानों के कारण उन्हें अपनी शोध अवधि बढ़ानी पड़ी.
कोविड -19 के कारण 2020 के अंत तक अधिकांश राज्यों में शैक्षणिक संस्थान बंद रहने के कारण, अनुसंधान स्कॉलर के लिए प्रयोगशालाओं और अन्य संसाधनों तक पहुंच बाधित हो गई थी. स्थिति को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने पहले ही पीएचडी और एम.फिल के स्कॉलर्स द्वारा थीसिस जमा करने की समय सीमा बढ़ा दी थी. हालांकि, अभी तक फेलोशिप भुगतान की अवधि बढ़ाने को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई थी.
हालांकि, कुछ संस्थानों ने दिप्रिंट को इस बात की पुष्टि की कि इस मामले पर बैठक में चर्चा हुई थी, दिप्रिंट गुरुवार को मंत्रालय के पास बैठक और अन्य विवरणों पर एक आधिकारिक टिप्पणी के लिए एक पाठ संदेश पहुंचा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
‘कई विद्वान पीएचडी छोड़ने को मजबूर’
कम से कम तीन संस्थानों के प्रमुखों ने दिप्रिंट को बताया कि बैठक में मामले पर चर्चा के बाद मंत्रालय ने उन्हें कार्रवाई का आश्वासन दिया है. उन्होंने कहा कि संस्थानों को इस संबंध में एक प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था.
बैठक में भाग लेने वाले एक संस्थान के निदेशक ने कहा, ‘बैठक में शोधार्थियों को हो रही समस्याओं पर चर्चा की गई. संस्थानों ने मंत्रालय को बताया कि कई स्कॉलर को अपनी पीएचडी पूरी किए बिना छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है क्योंकि पांच साल पूरे करने के बाद, उन्हें वजीफा मिलना बंद हो जाता है.’
एक अन्य निदेशक ने कहा, ‘यह इस साल कोविड के कारण अधिक स्पष्ट है, लेकिन सामान्य समय में भी, ऐसे स्कॉलर हैं जिन्हें वित्तीय तनाव के कारण अपना शोध बीच में ही छोड़ना पड़ा है. ये चीजें देश में शोध के माहौल के लिए अच्छी नहीं हैं.’
नाम जाहिर न करने की शर्त पर मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी इस बात की पुष्टि की कि बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई, लेकिन उन्होंने और जानकारी देने से इनकार कर दिया.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)