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Wednesday, 29 January, 2025
होमएजुकेशनIISc के फैकल्टी, बोर्ड समेत इंफोसिस कोफाउंडर पर जाति भेदभाव और भ्रष्टाचार के आरोप, याचिका में क्या है?

IISc के फैकल्टी, बोर्ड समेत इंफोसिस कोफाउंडर पर जाति भेदभाव और भ्रष्टाचार के आरोप, याचिका में क्या है?

एक पूर्व सहायक प्रोफेसर ने आईआईएससी के कई वरिष्ठ सदस्यों पर आरोप लगाया है कि वे उन्हें इसलिए निशाना बना रहे हैं क्योंकि वे दलित समुदाय से हैं और एससी/एसटी अकादमिक विद्वानों के लिए सरकारी धन का दुरुपयोग कर रहे हैं.

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बेंगलुरु: भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बेंगलुरु के कई वरिष्ठ सदस्यों, जिनमें इंफोसिस के सह-संस्थापक सेनापति क्रिस गोपालकृष्णन भी शामिल हैं, पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत जातिगत भेदभाव और संस्थान में बड़े पैमाने पर वित्तीय गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगे हैं.

पूर्व सहायक प्रोफेसर डी. सन्ना दुर्गप्पा (53) ने 27 जनवरी को दर्ज कराई शिकायत में आरोप लगाया कि IISc के बोर्ड और गवर्निंग काउंसिल के सदस्यों ने साजिश रचकर उन्हें सेवा से हटाने की कोशिश की, क्योंकि वह अनुसूचित जाति (SC) वर्ग से आने वाले बोवी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.

बेंगलुरु की II अतिरिक्त सिटी सिविल और सेशंस कोर्ट में दायर शिकायत और याचिका में कहा गया है कि दुर्गप्पा को संस्थान में वित्तीय अनियमितताओं का मुद्दा उठाने के बाद झूठे यौन उत्पीड़न के मामले में फंसाया गया.

दिप्रिंट ने याचिका और बेंगलुरु के सदाशिवनगर पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर की कॉपी को देखा है.

दिसंबर 2024 में, भारतीय प्रबंधन संस्थान-बेंगलुरु (IIM-B) के प्रोफेसर गोपाल दास ने भी संस्थान के वरिष्ठ अधिकारियों पर जातिगत भेदभाव का मामला दर्ज कराया था. कर्नाटक सरकार की जांच में वरिष्ठ प्रबंधन द्वारा जातिगत पूर्वाग्रह के सबूत भी मिले थे.

इसी महीने की शुरुआत में, IIM-B परिसर में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से ताल्लुक रखने वाले शोधार्थी निलय कैलाशभाई पटेल मृत पाए गए. इस घटना के बाद देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में हाशिए पर मौजूद छात्रों के प्रति जातिगत भेदभाव के आरोपों और उनकी स्थिति को लेकर बहस तेज हो गई.

IISc मामले ने अब इस बहस को और अधिक भड़का दिया है.


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शिकायत में क्या कहा गया है

भारत की आईटी राजधानी में यह आरोप बड़ा मुद्दा बन गए हैं, जहां कई लोगों ने आगे आकर इंफोसिस के सह-संस्थापक सेनापति क्रिस गोपालकृष्णन और IISc के अन्य बोर्ड सदस्यों के समर्थन में अपनी प्रतिक्रिया दी है. गोपालकृष्णन IISc के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के सदस्य हैं.

“यह बहुत गलत है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गवर्निंग बोर्ड के निर्दोष लोगों पर इस तरह झूठे आरोप न लगें. सभी के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए,” पूर्व इंफोसिस मुख्य वित्तीय अधिकारी टी.वी. मोहनदास पई ने X पर पोस्ट किया.

दिप्रिंट ने इस मामले में गोपालकृष्णन से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनके फोन कॉल्स का कोई जवाब नहीं मिला.

अपनी याचिका में, दुर्गप्पा ने IISc के 18 फैकल्टी सदस्यों पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिनमें गोपालकृष्णन, IISc निदेशक गोविंदन रंगराजन, रजिस्ट्रार श्रीधर वारियर और पूर्व निदेशक पी. बालराम भी शामिल हैं.

दुर्गप्पा ने जूलॉजी में पीएचडी की है और उन्हें 10 अगस्त 2008 को व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में, 10 अगस्त 2011 को उन्हें सहायक प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत किया गया.

उन्होंने आरोप लगाया कि जब उन्होंने कार्यभार ग्रहण किया तो उन्हें अलग प्रयोगशाला और बैठने की जगह नहीं दी गई। इसके बाद, उन्होंने अनुसूचित जाति उप योजना (SCSP) और जनजातीय उप योजना (TSP) के तहत एक आवेदन दिया. SCSP और TSP के फंड अनुसूचित जाति/जनजाति के शिक्षाविदों को शोध परियोजनाओं और प्रयोगशाला सुविधाओं के लिए दिए जाते हैं.

शिकायतकर्ता ने दावा किया कि जब उन्होंने संस्थान के निदेशक से SCSP फंड के दुरुपयोग को लेकर सवाल किए, तो समिति ने उनके आरोपों को झूठा बताया और उन्हें 11 अगस्त 2014 को पहली बार सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि उन्हें दूसरी बार “बदला लेने” के लिए संस्थान के निदेशक ने “हनी ट्रैप” बिछाया. उन्होंने दावा किया कि संस्थान की ही एक “विवाहित महिला” ने उन पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने उसे “खूबसूरत” कहा और यौन उत्पीड़न शिकायत समिति (SHCC) में शिकायत दर्ज कराई। जांच के बाद, उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया.

18 सितंबर 2017 को, शिकायतकर्ता ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने आरोप लगाया कि मंत्रालय के अधिकारियों ने उन्हें गुमराह किया.

शिकायत में कहा गया, “मेरी छवि खराब करने और भविष्य में नौकरी मिलने से रोकने के लिए, संस्थान के निदेशक ने समाचार पत्र बेंगलुरु मिरर और हाय बेंगलुरु में झूठे यौन उत्पीड़न के मामले प्रकाशित करवाए.”

बाद में, दुर्गप्पा ने कर्नाटक विधानसभा से संपर्क कर मामले की जांच की मांग की. उन्होंने दावा किया कि विधानसभा जांच में उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न के कोई सबूत नहीं मिले और यह भी कहा कि उन्हें दलित समुदाय से होने की वजह से “टार्गेट” किया गया.

‘2,500 करोड़ रुपए का गबन’

विधानसभा की जांच के बाद, शिकायतकर्ता ने मई 2017 में और फिर अक्टूबर 2020 में निदेशक से पुनर्नियुक्ति के लिए संपर्क किया. हालांकि, उन्हें पुनः नियुक्त नहीं किया गया, बल्कि झूठे पुलिस मामलों में फंसाने की धमकी दी गई, शिकायत में कहा गया.

दुर्गप्पा का दावा है कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने एससी/एसटी शिक्षाविदों के लिए विशेष रूप से आवंटित फंड के उपयोग की जानकारी मांगी थी. उनके अनुसार, 2012 से 2016 के बीच IISc को अनुसूचित जाति उप योजना (SCSP) के तहत ₹96,94,20,000 और जनजातीय उप योजना (TSP) के तहत ₹48,28,35,000 स्वीकृत किए गए थे.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि 1970 से 2024 तक IISc को कुल ₹2,500 करोड़ का फंड प्राप्त हुआ, जिसे “संस्थान के निदेशक द्वारा हड़प लिया गया और लूटा गया.”

शिकायत में आगे कहा गया कि जब शिकायतकर्ता ने निदेशक से इन फंडों के दुरुपयोग पर सवाल उठाया, तो उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.

शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया कि 120 साल के इतिहास में IISc ने एक भी एससी/एसटी फैकल्टी सदस्य की नियुक्ति नहीं की है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि “निदेशक SCSP और TSP फंड का उपयोग अवैध गतिविधियों के लिए कर रहे हैं. वह इस पैसे का इस्तेमाल वेश्यावृत्ति के लिए करते हैं और विदेश यात्राओं में मसाज लेने के लिए इसका दुरुपयोग करते हैं.”

दुर्गप्पा ने यह भी आरोप लगाया कि निदेशक ने उन सभी को पदोन्नत किया जिन्होंने उन पर झूठे यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने में मदद की.

IISc ने अब तक आधिकारिक रूप से इस शिकायत पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. संस्थान के कम्युनिकेशन ऑफिस में किए गए फोन कॉल्स का भी कोई जवाब नहीं मिला.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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