नई दिल्ली: आईआईएम अहमदाबाद (आईआईएम-ए) के पूर्व निदेशक बकुल ढोलकिया ने कहा है कि भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) आईआईएम अधिनियम, 2017 द्वारा उन्हें दी गई स्वायत्तता का सर्वोत्तम उपयोग करने में असमर्थ रहे हैं, यही नहीं वे अपने रिसर्च आउटपुट, ग्लोबल रैंकिंग और कॉरपोरेट्स की नजर में अपने कद को सुधारने में भी विफल साबित हुए हैं.
दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में, ढोलकिया ने पिछले कुछ वर्षों में कुछ आईआईएम निदेशकों के कार्यों पर चिंता जताई, जिससे हितधारकों के बीच संदेह पैदा हुआ.
ढोलकिया ने स्वायत्तता सहित व्यापक मुद्दों पर दिप्रिंट से बात की – जो पिछले शुक्रवार को शिक्षा मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किए गए आईआईएम (संशोधन) विधेयक, 2023 की पृष्ठभूमि में आया है. विधेयक में भारत के राष्ट्रपति को संस्थानों का “विजिटर” नियुक्त करके आईआईएम की स्वायत्तता को कम करने का प्रस्ताव है, क्योंकि उनके पास ही बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) के अध्यक्ष और संस्थानों के निदेशकों को नियुक्त करने की शक्तियां भी होंगी.
पिछले दशक में आईआईएम-ए की रैंकिंग में आई गिरावट की बात करते हुए उन्होंने कहा, जब आईआईएम-ए ने 2009-10 में वैश्विक रैंकिंग में भाग लिया था, तो यह अपने एक साल के बिजनेस प्रोग्राम के लिए एफटी ग्लोबल रैंकिंग में 11वें स्थान पर था. उन्होंने कहा, इस साल इसी कार्यक्रम के लिए इसकी रैंकिंग 51 थी.
उन्होंने कहा, “आईआईएम प्राइवेट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूशन में नीचे की रैंकिंग पर चला गया है और दुनिया के शीर्ष 50 मैनेजमेंट संस्थानों में भी शामिल नहीं हैं. यह एक चिंता का विषय है.”
आईआईएम अधिनियम, 2017 के तहत, बीओजी के पास उद्योग या शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन या सार्वजनिक प्रशासन या ऐसे अन्य क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से चुने गए अध्यक्ष को नियुक्त करने की शक्ति थी.
संशोधित विधेयक विजिटर को आईआईएम के निदेशक की नियुक्ति में अंतिम निर्णय लेने की शक्ति देगा. यह 2017 अधिनियम की तुलना में एक बड़ा बदलाव है, जिसके तहत निदेशक, जो संस्थान के सीईओ हैं, को बीओजी द्वारा गठित खोज-सह-चयन समिति द्वारा अनुशंसित नामों के पैनल से नियुक्त किया गया था.
ढोलकिया के मुताबिक, आईआईएम एक्ट में संशोधन एक खतरे की घंटी है, जिसे संस्थानों को गंभीरता से लेना चाहिए.
ढोलकिया ने कहा, ”मौजूदा संशोधन आधे-अधूरे कदम हैं, जिसमें सरकार ने केवल निदेशक और अध्यक्ष की नियुक्ति पर नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है.”
उन्होंने आगे कहा, “मेरी चिंता यह है कि क्योंकि आईआईएम के कामकाज के संबंध में मंत्रालय को बहुत सारी शिकायतें भेजी गई थीं, जिसके परिणामस्वरूप संशोधन लाए गए हैं. अब, कल, अगर बोर्ड के कामकाज के बारे में अधिक शिकायतें सरकार के पास जाती हैं ,तो और अधिक संशोधन किए जाएंगे, जो वास्तव में आईआईएम की स्वायत्तता को खत्म कर देंगे.”
2002 और 2007 के बीच आईआईएम-ए के निदेशक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, ढोलकिया ने कथित तौर पर आईआईएम की अधिक स्वायत्तता के लिए लड़ाई लड़ी थी और यहां तक कि दो केंद्रीय शिक्षा मंत्रियों – मुरली मनोहर जोशी और अर्जुन सिंह के साथ उनकी अनबन भी हुई थी.
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अनियंत्रित शक्ति
इस बारे में बोलते हुए कि कैसे आईआईएम के मामले में स्वायत्तता बोर्ड की सभी शक्तियों के अकेले अध्यक्ष के कार्यालय के भीतर रहने से प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, ढोलकिया ने आईआईएम-ए सहित हाल के दिनों में आईआईएम बोर्ड द्वारा लिए गए कई निर्णयों पर सवाल उठाया.
उन्होंने कहा, “आईआईएम-ए अपनी स्थापना के बाद से एक फैकल्टी द्वारा शासित संस्थान रहा है, और बोर्ड और इसके निदेशक को इसका सम्मान करने की आवश्यकता है. यदि कोई निदेशक फैक्ल्टी के विचारों को ध्यान में नहीं रखता है, तो स्वायत्तता की आवश्यकता का मूल आधार खिड़की से बाहर चला जाता है.”
उन्होंने लुइस कान के लाल ईंट वाले छात्रावास को तोड़ने और संस्थान के लोगो में बदलाव पर फैकल्टी द्वारा आपत्ति जताने के संदर्भ में यह बात कही. ये मुद्दे मीडिया में विवादास्पद चर्चा का विषय बन गए थे.
संस्थान के पूर्व निदेशक ने पिछले साल आईआईएम-ए बोर्ड द्वारा अपने निदेशकों को प्रदर्शन बोनस देने के कदम पर भी सवाल उठाया.
उन्होंने कहा,“आईआईएम-ए के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ. मुझे बोनस दिए जाने से कोई दिक्कत नहीं है. हालांकि, यह किन प्रदर्शन मापदंडों पर दिया जा रहा है? बोर्ड ने कभी भी हितधारकों के सवालों का जवाब नहीं दिया.”
सरकारी हस्तक्षेप, जांच और संतुलन
ढोलकिया, जो 30 वर्षों से अधिक समय तक आईआईएम-ए से जुड़े रहे, ने इस बारे में विस्तार से बात की कि कैसे आईआईएम का बीओजी बिना किसी जवाबदेही के कई कार्रवाई कर रहा है, और बोर्ड को संतुलित करने के लिए संशोधित विधेयक में विजिटर के नामांकित व्यक्ति की शुरूआत जांच की एक प्रणाली प्रदान करेगी .
संशोधन विजिटर को चयन-सह-खोज समिति में एक नौमिनी को नियुक्त करने की शक्ति देगा, जो आईआईएम निदेशक को चुनने में निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा होगा.
उन्होंने कहा, “जवाबदेही के बिना स्वायत्तता लापरवाह निर्णयों की ओर ले जाती है. मैं जानना चाहता हूं कि क्या आईआईएम-अहमदाबाद के बोर्ड ने गिरती रैंकिंग के बारे में कोई चर्चा की है. अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो इस स्वायत्तता का क्या फायदा?”
उन्होंने कहा, “चर्चा का ध्यान छात्रावासों के विध्वंस या लोगो बदलने पर नहीं, बल्कि प्रदर्शन पर होना चाहिए.”
ढोलकिया के मुताबिक, विज़िटर का बोर्ड में नॉमिनी होना या बोर्ड का चेयरमैन चुनना मौजूदा स्थिति को बदलने वाला नहीं है.
उन्होंने कहा, “संस्थान में स्थिति और चीज़ें तभी बदलेंगी जब नियुक्त प्रमुखों के मन में संस्था के सर्वोत्तम हित होंगे. यह केवल तभी हो सकता है जब अध्यक्ष और विजिटर द्वारा नामित व्यक्ति प्रतिष्ठित लोग हों, जो अपने पूर्वाग्रहों को रास्ते में नहीं आने देते,”
इस बीच, निदेशक/अध्यक्ष नियुक्तियों की प्रकृति राजनीतिक होने की आशंकाओं को खारिज करते हुए ढोलकिया ने कहा, पिछले 40 वर्षों से निदेशक की नियुक्तियां राजनीतिक नहीं रही हैं.
उन्होंने जोर देकर कहा कि एनडीए सरकार ने 2017 तक आईआईएम निदेशकों की नियुक्ति की, जैसा कि 2014 से पहले यूपीए सरकार ने किया था – इसके बावजूद आईआईएम देश में प्रीमियम प्रबंधन संस्थान बने रहे.
हालांकि, ढोलकिया ने सुझाव दिया कि सरकार को व्यवसाय प्रबंधन संस्थानों के संचालन से दूर रहना चाहिए. “संशोधनों का उपयोग आईआईएम में पिछले दरवाजे से नियंत्रण लाने के साधन के रूप में नहीं किया जाना चाहिए.”
उन्होंने स्वीकार किया कि बोर्ड और सरकार दोनों गलतियां कर सकते हैं और आईआईएम निदेशक धीरज शर्मा का उदाहरण दिया.
शर्मा पिछले कुछ वर्षों में विवादों में रहे हैं, शिक्षा मंत्रालय ने कहा है कि उन्हें गलत तरीके से निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था और उनके पास आवश्यक शैक्षणिक योग्यता नहीं थी. हालांकि, मंत्रालय की आपत्ति के बावजूद संस्थान के बोर्ड ने 2022 में उनका कार्यकाल पांच साल के लिए बढ़ा दिया.
ढोलकिया के मुताबिक, हालांकि, सब कुछ खत्म नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, यदि प्रबंधन कौशल और प्रशासनिक अनुभव वाले निदेशकों को नियुक्त किया जाता है, तो आईआईएम सुधारात्मक दिशा में जा सकते हैं.
उन्होंने कहा, “शीर्ष कॉर्पोरेट दिग्गज आईआईएम बोर्ड का नेतृत्व कर रहे हैं. उनके पास सर्वोत्तम गवर्नेंस पद्धति लाने और प्रबंधन शिक्षा, जानकारी और प्रशासनिक अनुभव के अच्छे मिश्रण के साथ एक निदेशक नियुक्त करने का ज्ञान और क्षमता है. ”
(अनुवाद/ पूजा मेहरोत्रा)
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