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Saturday, 21 December, 2024
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संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों के छात्रों को दाख़िला देने में किस तरह सहायता कर रही है DU

DU ने ऑनलाइन कोर्सेज़ में शामिल हो रहे अफ़गानिस्तान, फिलिस्तीन जैसे मुल्कों के छात्रों की फीस अदाएगी स्थगित की, और उनके लिए इंटरनेट सुविधाओं का भी प्रबंध किया.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि पिछले साल दिल्ली विश्वविद्यालय ने, संघर्ष-प्रभावित देशों के विदेशी छात्रों को दाख़िला दिलाने के लिए, सक्रियता के साथ प्रयास किए.

डीयू ने शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए, 550 विदेशी छात्रों का पंजीकरण किया, और इनमें से 33 प्रतिशत छात्र, सूडान, तिब्बत, अफ़गानिस्तान, सीरिया, ईरान, फिलिस्तीन और इराक़ जैसे संघर्ष-ग्रस्त देशों से थे.

अधिकारियों के अनुसार, 2020 में इन अशांत क्षेत्रों से मिलने वाले आवेदनों की संख्या बढ़ गई थी, और इन छात्रों की सहायता के लिए, दाख़िले के कुछ मापदंडों और नियमों में ढील दी गई थी.

डीयू के विदेशी छात्र विभाग के डिप्टी डीन, डॉ अमरजीवा लोचन ने डिप्रिंट से कहा, ‘इस सत्र में, हमने उन देशों से आवेदन करने वाले छात्रों की मदद करने की कोशिश की है, जहां झगड़ों की वजह से उन्हें अवसर नहीं मिल पाते’.

लोचन ने कहा कि यूनिवर्सिटी ने, इन अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से फीस वसूल किए बिना, पहले वर्ष के कोर्स शुरू कर दिए थे.

उन्होंने कहा, ‘हम समझते हैं कि संघर्ष-ग्रस्त देशों के बहुत से छात्र, महामारी से प्रभावित हुए हैं, और वो आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं’.

यूनिवर्सिटी ने उनके लिए छात्रों की सत्यापन प्रक्रिया में भी ढील दी है, जिसे उनके भारत में पहुंचने के बाद ही पूरा किया जाएगा.

लोचन का कहना है कि उन्होंने ऐसे कुछ छात्रों के लिए, इंटरनेट सुविधाओं का भी बंदोबस्त किया है.

उन्होंने कहा, ‘गाज़ा में हमारी एक फिलिस्तीनी छात्रा है, जो हमारे ऑनलाइन सेशंस में शामिल हो रही है. हमने सुनिश्चित किया कि क्लास के समय, उसे बेरूत से अपने घर में इंटरनेट सेवा मिल जाए. कभी कभी हमने उसके आसपास से ऐसी आवाज़ें सुनी हैं, जिससे वहां के अशांत माहौल का अंदाज़ा होता है’.


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छात्रों का सबसे ज़्यादा पंजीकरण तिब्बत और अफगानिस्तान से

यूनिवर्सिटी अधिकारियों के अनुसार, छात्रों को ख़ास रिआयतें इसलिए दी गईं, क्योंकि कोविड-19 महामारी की वजह से, उनके यहां काफी व्यवधान पैदा हुआ था.

उन्होंने कहा कि संघर्ष-प्रभावित देशों में, महामारी ने पहले से ही अस्थिर और ख़तरनाक हालात को और ख़राब कर दिया, जिसकी वजह से बहुत से छात्रों के लिए, शिक्षा हासिल करना लगभग असंभव हो गया.

लोचन ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे यहां अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का सबसे ज़्यादा पंजीकरण, तिब्बत और अफगानिस्तान से है. हमारे पास उत्तर कोरिया, फिलिस्तीन, इराक़ और दक्षिण थाईलैण्ड से भी छात्रों के आवेदन हैं’.

उन्होंने आगे कहा: ‘दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस साल, क़रीब 80 देशों से आवेदन हासिल करके, एक कीर्तिमान स्थापित किया है’.

लाओस, वियतनाम, सुरीनाम, फ़िजी, नीदरलैण्ड्स, जर्मनी, फ्रांस, आयरलैण्ड, और ब्राज़ील, मेक्सिको, अर्जेंटीना जैसे दक्षिण अमेरिकी देशों से भी, छात्रों ने आवेदन भेजे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि अंतर्राष्ट्रीय आवेदकों के बीच, लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वीमन से बैचलर्स ऑफ साइकॉलजी, और श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बैचलर्स ऑफ कॉमर्स, कुछ सबसे लोकप्रिय कोर्सेज़ में से हैं.

विदेशी छात्र या तो यूनिवर्सिटी को सीधे, या भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के ज़रिए आवेदन कर सकते हैं- जो भारत सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है.

जो छात्र आईसीसीआर के ज़रिए पंजीकृत होते हैं, उन्हें छात्रवृत्ति मिलती है, और उनके कोर्स की अवधि के दौरान, पूरी तरह से सहायता प्राप्त आवास मिलता है.

दिप्रिंट के साथ पहले हुई एक बातचीत में, कार्यवाहक उप-कुलपति प्रो. पीसी जोशी ने कहा था, कि जब से आईसीसीआर सहायता के लिए सामने आई है, तब से दिल्ली यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या बढ़ गई है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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