scorecardresearch
Friday, 29 March, 2024
होमएजुकेशनDU ने इस साल 4,000 सीटें बढ़ाईं लेकिन कॉलेजों के पास फंड्स, इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टी सदस्यों की कमी

DU ने इस साल 4,000 सीटें बढ़ाईं लेकिन कॉलेजों के पास फंड्स, इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टी सदस्यों की कमी

कॉलेजों के सामने एक दूसरी बड़ी चुनौती है, स्थाई फैकल्टी सदस्यों का अभाव. बहुत से कॉलेजों में अस्थाई फैकल्टी मेम्बर्स हैं जो चार महीने के कॉन्ट्रेक्ट्स पर काम करते हैं. डीयू में करीब 4,500 अस्थाई शिक्षक हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध 51 कॉलेजों में इस साल ऑफर की जा रही अंडरग्रेजुएट (यूजी) सीटों की संख्या पिछले साल के 66,000 से बढ़ाकर 70,000 की जा रही है. यूनिवर्सिटी की डीन ऑफ एडमिशंस शोभा बगई ने दिप्रिंट को बताया कि इसका कारण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की श्रेणी में सीटों का बढ़ाया जाना है.

ये अतिरिक्त सीटें केंद्र सरकार के जनवरी 2019 के निर्देश के बाद बढ़ाई गई हैं जिसमें सभी शिक्षण संस्थानों को सीटें बढ़ाने के लिए कहा गया था- पिछले साल ये संख्या 55,000 से बढ़कर 66,000 हो गई थी और 10 प्रतिशत सीटें ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए आरक्षित थीं.

लेकिन कॉलेजों ने उन चुनौतियों की तरफ ध्यान आकर्षित किया है, जो सीटें बढ़ाने में उनके सामने आ रही हैं, चूंकि उनके यहां इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टी सदस्य दोनों की ही कमी है. हर कॉलेज के हिस्से में करीब 150-250 अतिरिक्त सीटें आएंगी.

कोविड-19 ने भी कॉलेजों पर एक अतिरिक्त बोझ डाल दिया है, चूंकि उन्हें ऑनलाइन लर्निंग संसाधन भी देखने पड़ते हैं. लेकिन कॉलेजों को उस समय के लिए तैयारी करनी होगी जब सोशल डिस्टेंसिंग नियमों के तहत वो फिर से खुलेंगे जिससे समस्या और बढ़ जाएगी.


यह भी पढ़ें: शिक्षा मंत्रालय की स्कूलों के खुलने पर SOP- बच्चों को हमेशा पहने रखना होगा Mask, एंट्री से पहले होगी स्क्रीनिंग


क्या कहते हैं प्रिंसिपल्स

कुछ कॉलेज प्रिंसिपल्स का कहना था कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण को लागू करने के लिए, वो उस अतिरिक्त धनराशि का इंतज़ार कर रहे हैं जिसका सरकार ने वादा किया था जबकि कुछ दूसरे कॉलेज फैकल्टी सदस्यों की भर्ती के लिए हरी झंडी की बाट जोह रहे हैं. कुछ संस्थान ऐसे हैं जिनके पास अतिरिक्त भवन तैयार हैं लेकिन बेंचेज़ खरीदने के लिए कोई फंड्स नहीं हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

रामजस कॉलेज के प्रिंसिपल मनोज खन्ना ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे पास एक अतिरिक्त बिल्डिंग तैयार है, जिसमें अतिरिक्त छात्रों को बिठाया जा सकता है लेकिन अतिरिक्त बेंचेज़ लाने के लिए कोई पैसा नहीं है. फिलहाल ये एक तात्कालिक मसला नहीं है क्योंकि छात्र कॉलेज नहीं आ रहे हैं लेकिन जब वो सब आ जाएंगे, तो हम कैसे संभालेंगे?’

खन्ना ने आगे कहा, ‘सिर्फ हम ही नहीं, बहुत से दूसरे कॉलेजों को भी अतिरिक्त राशि नहीं मिली है, जिसका ईडब्ल्यू श्रेणी लागू करने के लिए वादा किया गया था. हम खुशी के साथ अतिरिक्त सीटें देने को तैयार हैं, हमें उसमें कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन हमसे कुछ कराने से पहले सरकार को कम से कम प्रिंसिपल्स से सलाह करनी चाहिए थी.’

प्रिंसिपल्स ने कुछ दूसरे व्यावहारिक मसलों पर भी प्रकाश डाला, जैसे पुरुष व महिला छात्रों के लिए कॉमन रूम्स की व्यवस्था और क्लास रूम के अंदर ज़्यादा छात्रों को जगह देना.

राजधानी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ राजेश गिरि ने कहा,‘ अगर क्लास रूम्स का साइज़ वही रहता है, तो हम उनमें ज़्यादा छात्रों को कैसे बिठा पाएंगे? अगर हर क्लास में 10-12 छात्र बढ़ जाएंगे, तो ऐसी सूरत में लड़कियों और लड़कों के लिए, कॉमन रूम्स का क्या होगा?’

कुछ प्रिंसिपल्स ने ये भी कहा कि कोविड-19 ने उनपर एक अतिरिक्त बोझ लाद दिया है क्योंकि स्कूल्स व कॉलेजों के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन्स के तहत उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइज़र्स, थर्मल स्कैनर्स और दूसरी ज़रूरी बुनियादी सुविधाओं के साथ तैयार रहना होगा.

डीयू के एक ऑफ-कैम्पस कॉलेज के प्रिंसिपल ने अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर कहा, ‘कोविड-19 ने कॉलेजों पर पहले ही अतिरिक्त बोझ डाल दिया है और ऊपर से हमें वो पैसा भी नहीं मिला जिसका सरकार ने ईडब्ल्यूएस कार्यान्वयन स्कीम के लिए वादा किया था.


यह भी पढ़ें: जेईई-एडवांस्ड परीक्षा के परिणाम हुए घोषित, पुणे के चिराग फलोर आए अव्वल


फैकल्टी और फंड्स की कमी

कॉलेजों के सामने एक दूसरी बड़ी चुनौती है, स्थाई फैकल्टी सदस्यों का अभाव. बहुत से कॉलेजों में अस्थाई फैकल्टी मेम्बर्स हैं जो चार महीने के कॉन्ट्रेक्ट्स पर काम करते हैं. डीयू में करीब 4,500 अस्थाई शिक्षक हैं.

इंद्रप्रस्थ महिला कॉलेज की प्रिंसिपल, बबली मोइत्रा सराफ ने दिप्रिंट से कहा, ‘इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में हमारे कॉलेज को अतिरिक्त छात्रों को बिठाने में कोई दिक्कत नहीं है. हम बस अपनी फैकल्टी में स्थाई सीटों के भरने का इंतज़ार कर रहे हैं. हम पिछले साल पहले ही विज्ञापन दे चुके हैं और अब प्रक्रिया शुरू होने का इंतज़ार कर रहे हैं’.

कॉलेज सरकार के इस दावे का भी खंडन करते हैं कि ईडब्ल्यूएस कोटा लागू कराने में उसने शिक्षण संस्थानों की सहायता की है. शिक्षा मंत्रालय ने इस साल एक लिखित जवाब में संसद को बताया कि इसके कार्यान्वयन के लिए वित्त वर्ष 2019-20 और 2020-21 के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों और पात्र संबद्ध कॉलेजों को 1,436.73 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई है.

मंत्रालय ने कहा, ‘यूजीसी ने संबंधित केंद्रीय विश्वविद्धालयों को ईडब्ल्यूएस आरक्षण कार्यान्वयन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की मद में 152.64 करोड़ रुपए की वो अनुदान राशि भी जारी कर दी है जो शिक्षा मंत्रालय ने अतिरिक्त आवंटन के तौर पर मंज़ूर की थी’.

दिप्रिंट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष डीपी सिंह और उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे से ई-मेल्स के ज़रिए फंडिंग पर डीयू कॉलेज प्रिंसिपल्स के दावों को लेकर संपर्क किया. उनका जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: बिहार विधानसभा चुनाव में ‘चिराग’ के बहाने नीतीश कुमार के ‘घर’ को जलाने की कोशिश में है भाजपा


 

share & View comments