नई दिल्ली: कोविड महामारी के कारण पिछले करीब एक साल से अधिक समय से स्कूल बंद हैं, और कक्षाएं ऑनलाइन लग रही हैं, इससे देशभर में शैक्षणिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ा है—और ऐसा नहीं है कि इसका खामियाजा अकेले छात्रों को भुगतना पड़ रहा है.
इससे निजी स्कूल विशेष रूप से प्रभावित हुई हैं, और कई स्कूलों के लिए तो अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करना भी मुश्किल हो गया है. लागत घटाने के उपायों के तहत कुछ स्कूलों ने अन्य कर्मचारियों के अलावा खेल और आर्ट्स कला जैसी पाठ्य संबंधी और पाठ्यक्रम से इतर गतिविधियों से जुड़े शिक्षकों की सेवाएं ‘अस्थायी रूप से’ समाप्त कर दी हैं.
दिप्रिंट ने जिन स्कूलों से बात की उन्होंने फंड की इस कमी के लिए राज्य सरकारों के उन विभिन्न दिशा-निर्देशों को जिम्मेदार ठहराया जो फीस कम करने और यह सुनिश्चित करने के लिए जारी किए गए थे कि छात्रों और उनके माता-पिता से उन सुविधाओं के लिए शुल्क न वसूला जाए जिनकी वर्चुअल कक्षाओं के कारण स्कूलों को जरूरत नहीं है.
अधिकांश राज्यों ने स्कूलों को निर्देश दिया है कि अभिभावकों से केवल ट्यूशन फीस वसूलें और परिवहन शुल्क, डेवलपमेंट फी और एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टीविटीज के लिए कोई शुल्क न लें.
हालांकि, कई स्कूलों ने कहा कि सिर्फ ट्यूशन फीस ही लेना भी एक चुनौती बना हुआ है, खासकर दूसरे साल भी महामारी जारी रहने के कारण.
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित ओडीएम पब्लिक स्कूल के निदेशक स्वॉयन सत्येंदु ने दिप्रिंट को बताया कि स्कूल की देनदारी बढ़ गई है.
उन्होंने कहा, ‘हमारे मामले में बैड लोन या दूसरे शब्दों में डिफॉल्ट अमाउंट तेजी से बढ़ा है. हमारे पास लागत घटाने के हरसंभव उपाय करने अलावा और कोई चारा नहीं है. महामारी लगातार दूसरे वर्ष जारी रहने से हम अभिभावकों से फीस लेने में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.’
उन्होंने कहा कि इसका खामियाजा शिक्षकों को भुगतना पड़ रहा है, जो दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. लेकिन पिछले दो वर्षों से वेतनवृद्धि तो छोड़िए उन्हें अपना वेतन भी ठीक से नहीं मिल पा रहा है.
कई स्कूलों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें न केवल अपने कर्मचारियों को भुगतान करना है, बल्कि कुछ ऊपरी खर्च और रखरखाव संबंधी खर्चों को भी वहन करना है, भले ही परिसर का उपयोग हो या नहीं.
ऑनलाइन कक्षाओं ने भी कुछ स्कूलों पर खर्च का बोझ बढ़ाया है, क्योंकि स्कूल प्रशासन को उन शिक्षकों के लिए लैपटॉप खरीदने पड़े और इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए भुगतान करना पड़ा, जिसके पास ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा नहीं था.
दिप्रिंट ने देशभर के तमाम निजी स्कूलों से बात की और उन सभी ने एक ही बात कही—वित्तीय प्रबंधन इस समय एकदम दुरूह कार्य हो गया है.
निजी स्कूलों को अब तक थोड़ी-बहुत राहत अदालतों से ही मिली है.
इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के स्कूलों को शैक्षणिक सत्र 2020-21 में अभिभावकों से 100 प्रतिशत शुल्क वसूलने की अनुमति दी, जो कि 2019-20 सत्र के शुल्क के बराबर था.
हालांकि बाद में 3 मई को शीर्ष कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जो सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं, उनके हिसाब से स्कूल 15 प्रतिशत की कमी के साथ फीस जमा कर सकते हैं, वैसे बाकी 85 प्रतिशत राशि सिर्फ ट्यूशन फीस से अधिक है जिसे महामारी के दौरान ज्यादातर निजी स्कूल को लेने की अनुमति मिली थी.
सुप्रीम कोर्ट की नजीर के आधार पर कुछ हाई कोर्ट, जैसे दिल्ली हाईकोर्ट ने भी निजी स्कूलों को अभिभावकों से ट्यूशन फीस से कुछ ज्यादा फीस लेने की अनुमति दे दी.
हालांकि, देशभर के सभी निजी स्कूलों को इस तरह की राहत नहीं मिली है.
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‘अभिभावकों से फीस भरवाना कठिन काम’
बिरला ओपन माइंड्स इंटरनेशनल स्कूल, मुंबई की प्रिंसिपल हिना देसाई ने कहा, ‘कोविड महामारी तकरीबन सभी निजी स्कूलों के लिए आर्थिक रूप से एक बड़ी चुनौती रही है, क्योंकि अभिभावक लॉकडाउन के कारण या उनकी तरफ से बताए जाने वाले अन्य तमाम निजी कारणों से निर्धारित समय पर फीस का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि ‘स्कूलों को तो अपने खर्च वहन करने पड़ते हैं, लेकिन अभिभावकों को उनके बकाये का भुगतान करने के लिए राजी करना एक कठिन काम है क्योंकि वे छूट और रियायतें चाहते हैं.’
देसाई ने कहा कि अभिभावकों की मांग होती है कि उन्हें फीस में छूट मिलनी चाहिए क्योंकि कक्षाएं ऑनलाइन चल रही हैं और अधिकांश स्कूलों के प्रबंधन अधिकारियों ने ऑनलाइन कक्षाओं पर आने वाले खर्च का फीस स्ट्रक्चर अभिभावकों को मुहैया कराने की मांग पर गौर किया है.
इसमें कोई दो-राय नहीं है कि जिन स्कूलों का आर्थिक ढांचा बहुत मजबूत नहीं है, उन्हें चलाना एकदम मुश्किल हो गया है.
नवी मुंबई स्थित मध्यम बजट वाले एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल ने नाम न बताने की शर्त पर कहा: ‘हमें अपने खेल कोच हटाने पड़े और आर्ट फैकल्टी को भी बंद करना पड़ा, क्योंकि हमारे पास उनका भुगतान करने के लिए पैसा नहीं है, खासकर ऐसे समय में जब अभिभावक पूरी फीस नहीं चुका रहे हैं.’
मॉडर्न पब्लिक स्कूल, दिल्ली की प्रिंसिपल अलका कपूर ने कहा कि कर्मचारियों के वेतन का भुगतान छात्रों से मिलने वाली फीस से किया जाता है, और जोर देकर कहा कि सबसे जरूरी है कि फीस का भुगतान समय पर हो.
अलका कपूर ने कहा, ‘स्कूल फीस का भुगतान अभिभावकों की तरफ से समय पर किया जाना चाहिए, क्योंकि यही इसे संचालित रखता है. स्कूल की तरफ से ली जाने वाली फीस से ही कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है. यदि समय पर फीस का भुगतान नहीं किया जाता, तो इससे न केवल कर्मचारियों का मनोबल गिरेगा, बल्कि उनकी आजीविका पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा, खासकर ऐसे समय में जब देश में वित्तीय संकट लगातार बढ़ रहा है. इसलिए, मुझे लगता है कि यह बहुत जरूरी है कि माता-पिता इस बात को समझें और समय पर फीस जमा करें.’
यहां तक कि जो स्कूल अब तक अपने शिक्षकों को वेतन देते रहे हैं, उन्होंने भी स्वीकार किया है उनके लिए काफी मुश्किल से ऐसा करना संभव हो पाया है.
दिल्ली पब्लिक स्कूल, सूरत की प्रिंसिपल वामसी कृष्णा ने दिप्रिंट को बताया कि स्कूल के लिए वित्तीय संकट तो हैं, लेकिन साथ ही जोड़ा कि वह अब तक इससे निपटने में सक्षम रहा है. कृष्णा ने कहा, ‘हम अपने सभी कर्मचारियों को पूरा वेतन देने में सफल रहे हैं और अब तक किसी को भी हटाया नहीं दिया है. गुजरात सरकार ने स्कूलों से केवल 25 प्रतिशत फीस लेने को कहा था और हम ऐसा ही कर रहे हैं.’
लेकिन सभी स्कूल इस तरह भाग्यशाली नहीं रहे हैं.
दिल्ली स्थित एक निजी स्कूल में शिक्षिका सुवर्णा सिंह ने कहा, ‘मुझे कम से कम चार महीने से अपना पूरा वेतन नहीं मिला है. मैं नहीं जानता कि अगले महीने मुझे जो वेतन मिलेगा वह पूरा होगा या कुछ कटौतियों के साथ. समस्या यह है कि मैं स्कूल प्रशासन से कुछ कह भी नहीं सकती हूं, हममें से कोई कुछ नहीं कर सकता…वे कहेंगे कि छात्र फीस नहीं दे रहे हैं तो हम आपकी तनख्वाह कैसे दे सकते हैं.’
महामारी के दौरान कई लोगों की नौकरी चली गई है और सभी क्षेत्रों में वेतन में कटौती हुई है. दिप्रिंट से बात करने वाले कई शिक्षकों ने कहा कि उन्हें एहसास है कि अभिभावकों को भी वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा होगा, लेकिन वे खुद भी स्कूल से मिलने वाले वेतन पर निर्भर हैं.
हैदराबाद स्थित एक निजी स्कूल के एक शिक्षक ने कहा, ‘शिक्षक के तौर पर हम समझते हैं कि माता-पिता को फीस का भुगतान करने में दिक्कतें हो सकती हैं या हो सकता है कि वे इसलिए पूरी फीस का भुगतान न करना चाहें कि क्योंकि कक्षाएं ऑनलाइन आयोजित की जा रही हैं. लेकिन हम शिक्षकों का क्या? हमें भी अपना घर चलाना है, बच्चों और परिवारों का भरण-पोषण करना है…कोई भी हमारे बारे में नहीं सोचना चाहता.’
खाली परिसरों के रखरखाव की जरूरत
इस बीच, स्कूलों का कहना है कि उनके पास वेतन के अलावा अन्य खर्च भी हैं.
दिल्ली के एक स्कूल के एक वरिष्ठ शिक्षक ने बताया, ‘स्कूलों में स्विमिंग पूल, वाहनों और खेल के मैदान के मेंटीनेंस के लिए वार्षिक कांट्रैक्ट होते हैं. अब सिर्फ इसलिए कि बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं, उन कांट्रैक्ट को रद्द नहीं किया जा सकता. स्कूल चलाने के लिए हमें उन लोगों को भुगतान करते रहना होगा. यह एक ऐसा खर्च है जिसे छात्रों के कैंपस में मौजूद न होने की स्थिति में भी वहन किया जाता है.’
इसके अलावा, स्कूलों का कहना है कि उन्हें पिछले एक साल में कोविड के कारण ‘वर्क फ्रॉम होम’ की व्यवस्था करने के कारण कई नए खर्च करने पड़े हैं. इसमें सभी फैकल्टी मेंबर के लिए अतिरिक्त लैपटॉप खरीदना, वेबिनार के लिए विभिन्न वेब सेवाओं की सदस्यता लेना, ऑनलाइन असेसमेंट टूल, जूम की सदस्यता, और अन्य चीजों के अलावा उन शिक्षकों के लिए इंटरनेट कनेक्शन की सुविधा मुहैया कराना भी शामिल हैं, जिनके घर पर इसकी व्यवस्था नहीं थी.
उदाहरण के तौर पर डीपीएस सूरत को स्कूलों में 25-30 अस्थायी कक्षाएं लगानी पड़ीं, जहां आकर वे शिक्षक कक्षाएं लेते थे जिनके घर पर ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करने की सुविधा नहीं थी.
कोर्ट से मिली राहत
राजस्थान के स्कूलों को सिर्फ ट्यूशन फीस के अलावा भी राशि लेने की अनुमति देने से सुप्रीम कोर्ट के फरवरी के आदेश के बाद पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने मार्च के महीने में एक आदेश पारित किया जिसमें निजी स्कूलों को माता-पिता से पूरी फीस लेने की अनुमति दी गई थी.
दिल्ली हाई कोर्ट ने भी 31 मई को इसी तरह का एक आदेश पारित किया, जिसमें निजी स्कूलों को अभिभावकों से पूरी वार्षिक फीस लेने की अनुमति दी गई थी—हालांकि दिल्ली सरकार ने आदेश के खिलाफ अदालत का रुख किया.
दिल्ली सरकार ने 2020 में स्कूलों से केवल ट्यूशन फीस लेने के लिए कहा था, लेकिन कोर्ट का आदेश इसे बदल देगा और स्कूल वार्षिक शुल्क और डेवलपमेंट चार्ज ले सकेंगे, लेकिन उन सेवाओं के लिए 15 प्रतिशत की कटौती के साथ जो ऑनलाइन नहीं दी जा सकती हैं.
दिल्ली में पूसा रोड स्थित स्प्रिंगडेल्स स्कूल की प्रिंसिपल अमीता मुल्ला वट्टल ने कहा, ‘दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश स्कूलों को ट्यूशन फीस के साथ-साथ अन्य श्रेणियों के तहत फीस लेने की अनुमति देता है, जो वित्तीय संकट से जूझ रहे स्कूलों के लिए एक बड़ी राहत है.’
उन्होंने कहा कि हालांकि ‘अदालत ने अभिभावकों को राहत के लिए इस्तेमाल में न आने वाली सेवाओं के लिए 15 प्रतिशत शुल्क घटाने को भी कहा है और हम इसका पालन करेंगे. अदालत के आदेश का अगर ठीक से पालन होता है तो साल के अंत तक चीजें बेहतर हो जानी चाहिए.’
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