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शुक्रवार, 2 मई, 2025
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दिल्ली का नया बिल प्राइवेट स्कूल फीस पर कसेगा लगाम, लेकिन क्यों हो रहा है इसका विरोध

निजी स्कूलों द्वारा कथित मनमानी फीस बढ़ोतरी को लेकर अभिभावकों के विरोध के बीच, दिल्ली सरकार ने जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से एक मसौदा विधेयक को मंजूरी दे दी है. दिप्रिंट बता रहा है कि वह यह सब कैसे करेंगे.

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नई दिल्ली: इस हफ्ते की शुरुआत में दिल्ली कैबिनेट ने एक नया कानून का मसौदा पास किया है, जिसका मकसद है निजी स्कूलों की फीस पर नियंत्रण रखना और फीस से जुड़े फैसलों में माता-पिता को ज़्यादा अधिकार देना. हालांकि, जहां सरकार इसे पारदर्शिता और किफायती शिक्षा की दिशा में कदम बता रही है, वहीं निजी संस्थान इसे अपने स्वायत्तता के लिए खतरा मान रहे हैं और स्पष्ट दिशानिर्देशों की मांग कर रहे हैं.

निजी स्कूलों द्वारा कथित मनमानी फीस बढ़ोतरी को लेकर अभिभावकों के विरोध के बीच, दिल्ली कैबिनेट ने मंगलवार को दिल्ली स्कूल शिक्षा (फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) विधेयक, 2025 पारित किया, ताकि बिना नियमन के फीस व्यवस्था पर लगाम लगाई जा सके और जवाबदेही बढ़ाई जा सके.

दिप्रिंट बता रहा है कि यह मसौदा विधेयक क्या है, दिल्ली सरकार इसे क्यों ला रही है और निजी स्कूल इस कदम को लेकर चिंतित क्यों हैं.

यह मसौदा विधेयक, जिसे अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है, फीस निर्धारण की प्रक्रिया के हर स्तर पर अभिभावकों की भागीदारी बढ़ाने की कोशिश करता है, ताकि उनके बीच “भरोसा” बहाल किया जा सके. इसमें उल्लंघन के मामलों में अधिकतम 10 लाख रुपये तक के आर्थिक दंड का प्रस्ताव है, और लगातार नियम तोड़ने पर दंड और बढ़ सकता है. यह विधेयक तीन वर्षों के लिए तय फीस ढांचा लागू करने का प्रस्ताव करता है, ताकि परिवारों को पहले से पता हो कि कितनी फीस देनी होगी और उन्हें आर्थिक रूप से आसानी रहे.

जहां दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इस विधेयक को “अभिभावकों की जीत” बताया है, वहीं निजी स्कूल संघों ने विरोध जताया है और कहा है कि “निजी संस्थानों की स्वायत्तता का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए.”

दिल्ली सरकार के अनुसार, शिक्षा निदेशालय (DoE) को निजी गैर-सहायता प्राप्त मान्यता प्राप्त स्कूलों में बिना अनुमति फीस बढ़ाने और बकाया भुगतान न करने पर उत्पीड़न को लेकर अभिभावकों और छात्रों से कई शिकायतें मिली थीं.

नई दिल्ली के कई निजी स्कूलों ने इस साल अपनी सालाना फीस 10-15 प्रतिशत तक बढ़ा दी है, कुछ ने तो 20 प्रतिशत तक बढ़ाई है.

इसके जवाब में, उप-जिला मजिस्ट्रेटों के नेतृत्व में 29 ज़ोनल स्तर की जांच टीमें बनाई गईं, जिन्होंने एक तय चेकलिस्ट के आधार पर इन स्कूलों की जांच की. 28 अप्रैल तक 970 स्कूलों की जांच हो चुकी है, और 70 से ज़्यादा स्कूलों से फीस बढ़ोतरी को लेकर 150 से अधिक शिकायतें मिली हैं. इन स्कूलों को दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट और रूल्स (DSEAR), 1973 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं.

सरकार ने यह भी कहा कि 1973 का कानून अब “पुराना” हो चुका है और आज की फीस से जुड़ी समस्याओं को हल करने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि इसमें यह साफ नहीं है कि निजी बिना सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर शिक्षा निदेशालय (DoE) क्या कदम उठा सकता है. इसी वजह से जब DoE बिना मंजूरी के फीस बढ़ोतरी रोकने की कोशिश करता है, तो कानूनी विवाद हो जाते हैं.

DoE अधिकारियों के मुताबिक, नए मसौदा बिल में यह भी प्रस्ताव है कि किसी स्कूल की फीस तय करते समय उस स्कूल की लोकेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर की गुणवत्ता, पढ़ाई के नतीजे और आर्थिक ज़रूरतों को ध्यान में रखा जाएगा.

मसौदा विधेयक फीस को कैसे रेगुलेट करेगा

यह मसौदा विधेयक राजधानी में निजी बिना सहायता वाले मान्यता प्राप्त स्कूलों द्वारा ली जाने वाली फीस को नियंत्रित करने के लिए एक साफ और पारदर्शी व्यवस्था बनाने की कोशिश करता है.

इस कानून में तीन स्तर की समिति प्रणाली का प्रस्ताव है, जो फीस ढांचे की निगरानी करेगी और शिकायतों का समाधान करेगी. इन समितियों में तीन तरह की समितियाँ होंगी — स्कूल स्तर की फीस तय करने वाली समिति, जिला स्तर की अपील सुनने वाली समिति, और राज्य स्तर की अंतिम अपील वाली समिति. सभी विवादों को 30 दिनों के भीतर सुलझाने की समयसीमा तय की गई है.

हर निजी स्कूल में हर साल एक स्कूल-स्तरीय फीस विनियमन समिति बनाई जाएगी. इसका अध्यक्ष स्कूल प्रबंधन का प्रतिनिधि होगा और प्रिंसिपल सचिव के रूप में काम करेगा. इसमें तीन शिक्षक, लॉटरी के जरिए चुने गए पांच अभिभावक और शिक्षा निदेशक का एक नामित पर्यवेक्षक शामिल होंगे. अभिभावक प्रतिनिधियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के सदस्य भी होने चाहिए.

यह समिति स्कूल स्तर पर फीस की समीक्षा करेगी और शिकायतों को सुनेगी. कोई भी अभिभावक दो बार से ज्यादा लगातार समिति का सदस्य नहीं बन सकेगा. हर साल 31 जुलाई तक यह समिति बनाई जानी चाहिए ताकि अगले शैक्षणिक वर्ष के लिए फीस तय की जा सके.

जिला शुल्क अपीलीय समिति, जिसकी अध्यक्षता शिक्षा के उपनिदेशक करेंगे, स्कूल-स्तरीय समिति के फैसलों के खिलाफ स्कूलों और अभिभावकों की अपीलों को सुनेगी. इसमें शिक्षा विभाग के प्रतिनिधि, दो शिक्षक और दो अभिभावक होंगे.

आखिरी स्तर पर पुनरीक्षण समिति होगी, जिसकी अध्यक्षता शिक्षा निदेशक करेंगे. यह राज्य स्तरीय समिति अंतिम अपीलीय संस्था होगी. इसमें शिक्षा विशेषज्ञ, अकाउंटेंट और स्कूलों व अभिभावकों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. सरकार का कहना है कि पुनरीक्षण समिति जो फैसला करेगी, वह तीन साल तक मान्य रहेगा और फीस से जुड़े झगड़ों का आखिरी हल होगा.

यह विधेयक फीस न भरने पर छात्रों के खिलाफ सख्त कदमों को रोकने की कोशिश करता है, जैसे कि नाम काटना, परीक्षा परिणाम रोकना, कक्षाओं या गतिविधियों में हिस्सा लेने से मना करना या छात्रों को सार्वजनिक रूप से अपमानित या मानसिक रूप से प्रताड़ित करना.

अगर कोई स्कूल नियमों का पालन नहीं करता है, तो इस विधेयक में 10 लाख रुपये तक के भारी जुर्माने का प्रस्ताव है. जुर्माने की वसूली स्कूल प्रबंधन की चल और अचल संपत्ति को जब्त कर बेचकर की जा सकती है.

स्कूल और अभिभावकों का मत

कई निजी स्कूलों ने फीस विनियमन प्रक्रिया में अभिभावकों को अधिक भूमिका देने पर अपनी चिंता जताई है, क्योंकि इससे उनकी स्वतंत्रता का नुकसान हो सकता है और पक्षपाती निर्णय हो सकते हैं.

एक्शन कमिटी अनएडेड प्राइवेट रिकॉग्नाइज्ड स्कूल्स के अध्यक्ष भारत अरोड़ा ने कहा कि हालांकि स्कूल इस बिल के आधिकारिक दस्तावेज का इंतजार कर रहे हैं ताकि इसके अभिभावकों, स्टाफ और स्कूलों पर प्रभाव का सही मूल्यांकन किया जा सके, लेकिन वे अपने छात्रों की भलाई और समग्र विकास के प्रति प्रतिबद्ध हैं.

उन्होंने कहा, “निजी स्कूल राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन यह भी जरूरी है कि इन संस्थाओं की स्वायत्तता का सम्मान किया जाए और उसे बनाए रखा जाए. हम सभी विवरण उपलब्ध होने के बाद रचनात्मक रूप से चर्चा करने की उम्मीद करते हैं.”

दक्षिण दिल्ली के एक निजी स्कूल के प्रधान ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि स्कूल ने अभिभावकों की मांग पर एयर कंडीशन्ड कक्षाएं, स्कूल ने अतिरिक्त गतिविधियों के लिए स्पेशल लैब और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा जरूरी की गई नई कौशल प्रयोगशाला जैसी सुविधाएं दी हैं.

हालांकि, प्रधान ने सरकार के प्रस्तावित फीस विनियमन पर चिंता व्यक्त की. “जैसा कि हम समझते हैं, स्कूलों को अपनी फीस हर तीन साल में एक बार ही बढ़ाने की अनुमति होगी. ऐसे में स्कूल कैसे काम करेंगे? हमें अभिभावकों से शिकायतें मिलती हैं अगर एसी पांच मिनट के लिए भी बंद हो जाएं, फिर भी वे फीस बढ़ाने का विरोध करते हैं.”

एक अन्य प्रसिद्ध निजी स्कूल के प्रधान ने सवाल किया कि यदि स्कूलों को तीन साल तक एक ही फीस संरचना बनाए रखने की आवश्यकता होगी, तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के प्रावधानों को कैसे लागू करेंगे. “स्कूलों को लगातार बुनियादी ढांचे के उन्नयन, खेल सुविधाओं में सुधार, स्मार्ट कक्षाओं को सुसज्जित करने और सुरक्षा उपायों जैसे सीसीटीवी की स्थापना के लिए लगातार फंड की आवश्यकता होती है. फीस में वार्षिक बदलाव की अनुमति नहीं होने पर हम इन आवश्यक विकास कार्यों को कैसे जारी रख सकते हैं?” प्रधान ने कहा.

इस बीच, दिल्ली पेरेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष अपराजिता गौतम ने प्रस्तावित कानून का स्वागत किया, लेकिन कुछ प्रावधानों पर चिंता जताई. उन्होंने वित्तीय दंड और अनुपालन के लिए 30 दिन की समय सीमा को सकारात्मक कदम बताया, लेकिन यह सवाल उठाया कि बिल में फीस वृद्धि पर कोई सीमा क्यों नहीं रखी गई. “स्कूलों द्वारा फीस बढ़ाने की एक स्पष्ट सीमा होनी चाहिए. इसके अलावा, बिल में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी जुर्माना सीधे स्कूल प्रबंधन द्वारा चुकाया जाए, न कि छात्रों के लिए निर्धारित स्कूल फंड से,” उन्होंने दिप्रिंट से कहा.

गौतम ने यह भी कहा कि अभिभावकों के प्रतिनिधियों के चयन में पारदर्शिता और जवाबदेही होनी चाहिए. उनका कहना था कि लॉटरी प्रणाली के बजाय, अभिभावकों को चुनाव प्रक्रिया के जरिए अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर मिलना चाहिए, ताकि सही प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके.

इस बीच, कार्यकर्ता इस बिल पर सार्वजनिक परामर्श की मांग कर रहे हैं. शिक्षा के अधिकार के मजबूत समर्थक वकील अशोक अग्रवाल ने कहा, “यह बिल व्यापक परामर्श के लिए उपलब्ध होना चाहिए. वर्ना, यह सिर्फ सरकार के द्वारा फीस रेगुलेट के पिछले प्रयासों की तरह एक खोखला कदम बन जाएगा.”

दिल्ली और अन्य राज्यों में अभी क्या है नियम

अब तक, दिल्ली में फीस नियंत्रण सिर्फ उन्हीं निजी स्कूलों पर लागू होता था जो दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की दी हुई ज़मीन पर चल रहे थे. इन स्कूलों को अपने पट्टे (लीज़) के समझौते के तहत फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा निदेशालय (DoE) से मंज़ूरी लेनी होती थी. DoE उनके वित्तीय दस्तावेज़ों की जांच करता था और अगर स्कूल को आर्थिक रूप से परेशान पाया जाता था, तभी मंज़ूरी दी जाती थी.

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में कई स्कूलों ने DoE द्वारा फीस बढ़ाने की मंज़ूरी ना देने के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी, जिससे लंबे कानूनी झगड़े हुए और एक समान रूप से लागू की जा सकने वाली नीति की मांग उठी.

दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने कहा कि नया मसौदा विधेयक अन्य राज्यों के मॉडल से प्रेरित है, खासकर राजस्थान स्कूल (फीस विनियमन) अधिनियम, 2016 से. इस कानून के तहत स्कूल स्तर पर फीस समिति बनाई जाती है, जिसमें माता-पिता और स्कूल के प्रतिनिधि होते हैं और जो फीस तय करते हैं, जो तीन शैक्षणिक वर्षों तक स्थिर रहती है. अपील की समीक्षा ऊपरी निगरानी संस्थाओं द्वारा की जाती है और नियमों का पालन न करने पर भारी जुर्माना लगता है.

सूद ने उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (फीस विनियमन) अधिनियम, 2018 का भी ज़िक्र किया, जो उन स्कूलों पर लागू होता है जो सालाना 20,000 रुपये से अधिक फीस लेते हैं. यह कानून जिला स्तर पर फीस निगरानी समितियों की स्थापना करता है, जिसकी अध्यक्षता जिलाधिकारी करते हैं, ताकि फीस से जुड़े फैसलों में पारदर्शिता और निगरानी सुनिश्चित हो सके.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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