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Tuesday, 5 November, 2024
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दिल्ली यूनिवर्सिटी@100- एक ऐतिहासिक विरासत, सफल संस्थान और कॉफी-शॉप रोमांस

डीयू यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी मई 2022 में अपनी स्थापना की एक सदी पूरी करने जा रही है. इस शैक्षणिक सत्र में डीयू की 70,000 सीटों के लिए 4 लाख से अधिक छात्रों ने कंपटीशन किया.

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नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी में हर साल होने वाले फ्लावर कंपटीशन रॉक बैंड इंडियन ओशियन के बास गिटार वादक राहुल राम की कॉलेज के दिनों की कुछ सबसे अच्छी यादों में बसा है.

राहुल राम के माता-पिता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे और वह इसी परिसर में पले-बढ़े हैं, जिसके नीरव वातावरण के बीच बने क्वार्टरों में प्रोफेसरों और उनके परिवार एक साथ रहते थे.

राम ने दिप्रिंट को बताया, ‘हर साल, यूनिवर्सिटी में फ्लावर कंपटीशन का आयोजन होता, जहां सभी प्रोफेसरों और कर्मचारियों के बीच सर्वश्रेष्ठ फूलों और सर्वश्रेष्ठ बगीचे के लिए प्रतिस्पर्धा होती. हर स्टाफ को सौंदर्यीकरण के लिए जमीन का एक टुकड़ा दिया जाता और वे प्रतिस्पर्द्धा में अव्वल आने के लिए घंटों उसकी देखभाल में बिताते.’

डीयू यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी मई 2022 में अपनी स्थापना की एक सदी पूरी करने जा रही है. इस शैक्षणिक सत्र में डीयू की 70,000 सीटों के लिए 4 लाख से अधिक छात्रों ने कंपटीशन किया.

लेकिन ऐसी क्या वजह है कि 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एकमात्र डीयू को ही पूरे देश के छात्रों के बीच इतनी ज्यादा लोकप्रियता हासिल है? क्या इसका कारण डीयू का समृद्ध इतिहास हो सकता है? या यहां उपलब्ध कोर्सेस की रेंज—करीब 80 विभाग और इतने ही कॉलेज हैं?

या फिर इस यूनिवर्सिटी की शानदार लोकेशन, इसका राष्ट्रीय राजधानी में होना? क्या यहां एक नई फ्रीडम का अहसास होता है, या जोशपूर्ण चर्चा-परिचर्चा का हिस्सा बनना और सौहार्दपूर्ण माहौल की भावना लुभाती है?

अब, जबकि डीयू के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं, दिप्रिंट ने इस विश्वविद्यालय के विकसित होने से लेकर देशभर के हजारों-लाखों छात्रों के लिए पढ़ने-सीखने का एक प्रतिष्ठित केंद्र बनने तक के इतिहास पर एक नजर डाली.

डीयू का एक लंबा इतिहास

जिस दिल्ली विश्वविद्यालय को हम आज जानते हैं, उसे 1922 में ब्रिटिश भारत की विधायिका सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के एक अधिनियम के तहत यूनिटरी, टीचिंग एंड रेजीडेंशियल यूनिवर्सिटी के तौर पर स्थापित किया गया था. हालांकि, इसका साउथ कैंपस 1973 में बना.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के तहत आने वाले तीन मूल कॉलेजों में सेंट स्टीफंस कॉलेज- जिसे मिशनरी पहल के तहत कैम्ब्रिज मिशन टू दिल्ली ने 1881 में स्थापित किया था—के अलावा 1899 में स्थापित हिंदू कॉलेज और 14 मई 1917 को शिक्षाविद् और समाजसेवी राय केदार नाथ द्वारा स्थापित रामजस कॉलेज शामिल थे.

इससे पहले ये तीनों कॉलेज पंजाब यूनिवर्सिटी से संबद्ध थे.

अंग्रेजी साहित्य के एक एसोसिएट प्रोफेसर देबराज मुखर्जी, जिनका डीयू के साथ जुड़ाव चार दशक पुराना है, ने बताया कि ये तीनों कॉलेज छात्रों के तीन अलग-अलग वर्गों की जरूरतों को पूरा करते थे.

उन्होंने बताया, ‘रामजस कॉलेज की अर्काइव में उपलब्ध दस्तावेजों के माध्यम से मैंने जाना कि सेंट स्टीफंस कॉलेज में आम तौर पर ब्रिटिश अधिकारियों के बच्चे पढ़ते थे जबकि अमीर, पढ़े-लिखे भारतीयों के बच्चे हिंदू कॉलेज में एडमिशन लेते थे. रामजस कॉलेज मध्यम वर्ग, कामकाजी छात्रों की जरूरतों को पूरा करता था, जिनका लक्ष्य सीखकर आगे बढ़ना था.’

उन्होंने बताया कि पढ़ाई के दौरान अखबार डिलीवरी बॉय के रूप में काम करना, दरियागंज के निवासियों की बाल्कनियों में पेपर फेंकने का चलन रामजस के मध्यमवर्गीय छात्रों ने ही शुरू किया, ताकि वे कुछ अतिरिक्त पैसा कमा जा सकें.

2010 से 2015 तक डीयू के कुलपति रहे दिनेश सिंह बताते हैं कि अगर यूनिवर्सिटी की शुरुआत की बात की करें तो यह कश्मीरी गेट स्थित उस इमारत में शुरू हुई थी जिसमें अब रिट्ज सिनेमा है.

1933 में वाइसरीगल लॉज—जहां दो साल पहले गांधी-इरविन पैक्ट पर हस्ताक्षर हुए थे—इस विश्वविद्यालय की संपत्ति का हिस्सा बनी. उपनिवेश काल की यह हवेली अब कुलपति का कार्यालय है.

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में डीयू की भागीदारी

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी विश्वविद्यालय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और अपने—और भारत के- इतिहास में कई यादगार क्षणों का साक्षी है. ‘डीयू हिस्ट्री प्रोजेक्ट’ इन्हीं यादगार पलों को समेटने की एक कोशिश है.

प्रोफेसर अमृत कौर बसरा, जो इस समय डीयू की आर्काइव खंगालने में जुटी टीम का हिस्सा हैं, ने हमें उससे जुड़ी तमाम बातें बताईं.

अब वाइसरीगल लॉज को ही ले लीजिए. हालांकि, औपनिवेशिक काल की यह हवेली 1902 में बनी थी, लेकिन यह हंटिंग लॉज इससे पहले 1857 के गदर के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों के लिए छिपने का स्थान बनी थी.

बसरा ने बताया कि 8 अप्रैल 1929 के सेंट्रल असेंबली बम कांड के बाद भगत सिंह को वायसरीगल लॉज के ही नीचे स्थित एक कालकोठरी और बिना खिड़की वाले कमरे में बंद रखा गया था और उसी इमारत में उन पर मुकदमा चलाया गया था.

विश्वविद्यालय के संबद्ध कॉलेजों ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई है.

रामजस कॉलेज के छात्रों ने क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को उस समय छुपाया जब वह ब्रिटिश सरकार से बचकर घूम रहे थे.

बसरा ने बताया, ‘उन्होंने एक सिख छात्र का भेष बना रखा था और वार्डन के संरक्षण में छात्रावास में रहे थे.’

बसरा ने हमें बताया कि शुरुआत में चांदनी चौक में किनारी बाजार की एक साधारण इमारत में चलने वाला हिन्दू कॉलेज स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राजनीतिक बहस का एक प्रमुख स्थान था. इसके छात्र 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे.

मुखर्जी ने बताया कि भारत की आजादी के बाद रामजस कॉलेज ने लाहौर यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर सीमा पार से आए छात्रों के लिए शाम की कक्षाएं शुरू कीं.


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कॉफी, बर्गर, और कॉलेज रोमांस

पूर्व छात्र, जाने-माने राजनीतिक टिप्पणीकार और पूर्व सांसद स्वप्न दासगुप्ता कहते हैं कि डीयू कैंपस कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की टक्कर का है, जहां सौभाग्य से उन्हें पढ़ने का मौका मिला है. दासगुप्ता ने 1975 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की थी, फिर आगे की पढ़ाई लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में पूरी की और पोस्टडॉक्टरल अध्ययन के लिए ऑक्सफोर्ड गए.

कई लोगों के लिए डीयू कैंपस में उनका अनुभव उनके जीवन का सबसे ‘मुक्त और आजादी के अहसास’ वाला समय था.
70 के दशक में सेंट स्टीफंस में पढ़ने वाले राहुल राम उस समय को याद करते हुए बताते हैं कि कैसे वह एक से दूसरी बस में सफर करते हुए कॉलेज आते-जाते थे. उस समय शायद ही किसी छात्र के पास वाहन होता था.

उन्होंने बताया, ’70-80 के दशक में छात्रों के पास दोपहिया वाहन होना दुर्लभ था. कुछ लड़के पुरानी टू-स्ट्रोक बाइक राजपूत की सवारी करते जरूर नजर आते, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं था.’

सेंट स्टीफन के कई पूर्व छात्रों ने दो महिला कॉलेजों मिरांडा हाउस और इंद्रप्रस्थ कॉलेज के पास कॉफी की दुकानों को लेकर पुरानी बातें याद कीं. कॉफी की इन्हीं दुकानों के आसपास कई कॉलेज रोमांस परवान चढ़े. राम ने बताया कि बर्गर की कीमत 50 पैसे थी और मसाला डोसा 1 रुपये में मिल जाता था.

सेंट स्टीफन के फेलो पूर्व छात्र, कांग्रेस नेता और पूर्व राजनयिक मणिशंकर अय्यर ने भी उस समय का जिक्र किया जब स्टीफन के छात्र मिरांडा हाउस, लेडी इरविन कॉलेज या इंद्रप्रस्थ कॉलेज के आसपास चक्कर लगाया करते थे.

अय्यर की अपनी पत्नी सुनीत वीर सिंह—जो उस समय लेडी इरविन में पढ़ती थी—से मुलाकात एक वाद-विवाद प्रतियोगिता के दौरान हुई थी.

राम को यूनिवर्सिटी कैंटीन में मिलने वाले कीमा पैटीज का स्वाद आज भी याद है. उन्होंने कहा, उन दिनों मटन के रूप में चिकन आसानी से उपलब्ध नहीं होता था और अगर आपको इन मटन पैटीज का लुफ्त उठाना हो तो आपको काफी पैसे बचाने पड़ते थे.’

उन दिनों में जब सार्वजनिक स्थलों पर प्रेम प्रदर्शन को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता था, यहां रोमांस का एक अलग ही रंग नजर आता था.

राहुल राम ने कहा, ‘उन दिनों आपको कोई भी प्रेमी जोड़ा हाथ में हाथ डाले घूमते नहीं दिखता. लेकिन हम हर शाम गर्ल्स हॉस्टल के बाहर कुछ जोड़ों को शर्माते हुए एक-दूसरे को गुडबॉय करते देख सकते थे.’

कॉलेज में त्योहारों के मौकों पर मस्ती और उल्लास का आलम उसी तरह होता, जैसा आजकल नजर आता है. दिल्ली

यूनिवर्सिटी में साल भर में विभिन्न कैंपस में 10 से अधिक उत्सव आयोजित होते. विंटर फेस्टिवल अब भले ही बीते दिनों की बात हो गया हो लेकिन उसकी स्मृतियों आज भी कई पूर्व छात्रों के जेहन में बसी हुई हैं.

इन उत्सवों का ही असर था जिसने राहुल राम में पब्लिक परफॉरमेंस के प्रति रुचि जगाई.

राहुल राम ने बताया, ‘जब मैं 11वीं कक्षा में पढ़ता था, तब मैंने जैज़ बैंड के साथ पहली बार कॉलेज उत्सव में हिस्सा लिया था. हम अक्सर ही कॉलेज उत्सवों में शामिल होते थे और उनका प्रदर्शन पूरे विस्मय के साथ देखते थे. जिस कॉलेज फेस्ट में मैंने पहली बार हिस्सा लिया था, उसमें किसी एक नॉन-डीयू मेंबर को हिस्सा लेने की अनुमति थी और मुझे उसमें शामिल होने का मौका मिला. उसके बाद, मैं नियमित तौर पर कॉलेज फेस्टिवल में रॉक और जैज़ बैंड के साथ हिस्सा लेने लगा.’

और उस समय भी छात्रों का संवाद कॉलेज के उसी ‘विशिष्ट क्रम’ के हिसाब से चलता था जैसा अब है.

एक पूर्व छात्र ने कहा कि तथाकथित ‘शीर्ष कॉलेजों’ के छात्र—सेंट स्टीफंस, मिरांडा हाउस, श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, हंसराज कॉलेज—उन कॉलेजों के साथ बातचीत नहीं करते, जिन्हें ‘लोअर-रैंक’ वाला माना जाता था. और सेंट स्टीफंस और हिंदू कॉलेज के बीच हमेशा से जारी प्रतिद्वंद्विता तो अब एक किवदंती बन चुकी हैं.

अय्यर ने बताया कि कैसे उनका पूर्व संस्थान सेंट स्टीफंस खुद को बाकी कॉलेजों से ऊपर मानता था.

अय्यर हंसते हुए बताते है, ‘कॉलेज ने खुद को दिल्ली यूनिवर्सिटी से इस कदर अलग कर लिया था कि हममें से कोई स्टीफन स्टूडेंट छात्रसंघ में शामिल नहीं हो सकता था और न ही प्रोफेसर डीयू शिक्षक संघ में. हम हिंदू कॉलेज के बारे में मजाक भी करते थे—’मुर्गे ने सड़क क्यों क्रॉस की? क्योंकि उसने खुद को हिंदू कॉलेज में पाया.’

श्रेष्ठता का यह भाव कैसे उपजा? इस पर अय्यर कहते हैं कि शायद इसकी वजह संस्थान का यूनिवर्सिटी से पुराना होना है.

हालांकि, जीवन सिर्फ इनके बीच छोटी-मोटी प्रतिद्वंद्विता भर नहीं था, और कुछ दोस्ती कॉलेज की सीमाओं से परे भी कायम हुईं—जैसे दासगुप्ता और उस समय स्टीफन के छात्र रहे शशि थरूर की मित्रता, जो अब कांग्रेस के सांसद हैं.

दासगुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे याद है कि मैंने कई दोस्त बनाए जो अलग-अलग कॉलेजों से थे और हमारी दोस्ती जीवनभर चलने वाली बन गई. मुझे अभी भी याद है कि यद्यपि शशि (थरूर) और मेरी विचारधाराएं अलग-अलग थीं, हम हमेशा बहस या बातचीत के लिए तैयार रहते थे. मुझे याद है कि (दिवंगत भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री) अरुण जेटली ने आपातकाल के दौरान कैसे छात्रों के आंदोलन का नेतृत्व किया था और हम उस समय दोस्त बन गए थे.’

प्रोफेसर मुखर्जी ने कॉलेज के उस समय को याद किया जब उन्होंने खुद आगे आकर एक जूनियर को रैगिंग से बचाया था.
उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने एक जूनियर को कॉलेज में रैगिंग से बचाया और उसे कॉफी पिलाने ले गया. मैं यहीं पर आमिर खान से भी मिला था जब कैंपस में सरफरोश की शूटिंग हो रही थी. डीयू में मेरा सफर बहुत दिलचस्प रहा है.’

उन्होंने जिस ‘जूनियर’ को बचाया था वह और कोई नहीं आज के बॉलीवुड आइकन शाहरुख खान थे.

शानदार प्रतिष्ठा

पूर्व वीसी दिनेश सिंह ने बताया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी का अपना चार्टर है, जो इसके तत्कालीन (1938-1950) कुलपति मौरिस ग्वायर ने लिखा था. मौरिस ग्वायर 1937 से 1943 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश भी रहे थे.

1948 में मिरांडा हाउस की स्थापना का श्रेय भी ग्वायर को ही दिया जाता है.

दिनेश सिंह का मानना है कि ग्वायर ने जिस अकादमिक नजरिये को दर्शाया है, वो उनके एक बेहतरीन कुलपति होने की निशानी है.

दिनेश सिंह ने बताया कि 1973 में साउथ कैंपस की स्थापना के बाद डीयू असाधारण लाइफ साइंस रिसर्च का केंद्र बन गया, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी मिली.

उन्होंने कहा, ‘एचआईवी के लिए एक विश्वसनीय, किफायती टेस्ट, और चावल की जीनोम सीक्वेंसिंग साउथ कैंपस के विभागों की तरफ किए गए कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में शामिल है.’

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के नेशनल इंस्टीट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) में आज डीयू के कॉलेज लगातार टॉप पर रहते हैं.

2021 में, ‘कॉलेज’ श्रेणी में मिरांडा हाउस शीर्ष पर था, उसके बाद लेडी श्रीराम कॉलेज रहा. शीर्ष 10 में डीयू के तीन अन्य कॉलेज शामिल है—सेंट स्टीफंस, हिंदू और श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स.

छात्र राजनीति

हालांकि, कभी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) की तरह तो राजनीतिक झुकाव नहीं दिखाया लेकिन डीयू भी राजनीतिक गतिविधियों का हिस्सा रहा है. दिनेश सिंह के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी में होने की वजह से प्रख्यात नेता यहां का दौरा करते रहते थे, जैसे नेहरू अक्सर कैंपस में आते थे और डीयू के लॉन में टहलते दिखते थे, या फिर समय-समय पर गांधी भी छात्रों के समर्थन के लिए यूनिवर्सिटी आते थे.

1970 से 1975 के बीच डीयू में कुछ प्रमुख छात्र और शिक्षक आंदोलन भी हुए. पूर्व छात्र बताते हैं कि 1973 में छात्रों के बीच हिंसक झड़प के कारण यूनिवर्सिटी तीन महीने बंद रही थी.

1975 में आपातकाल के दौरान, जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए सरकार विरोधी आंदोलन में हिस्सा लेने वाले दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष अरुण जेटली सहित 300 से अधिक छात्र नेताओं को जेल भेज दिया गया था.

रामजस कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर, सेंट स्टीफन के पूर्व छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप शिमोन 1970 के दशक में कॉलेज के छात्र थे. यह वो समय था जब भारत चीन के साथ युद्ध के बाद की स्थितियों से उबरने की कोशिश कर रहा था, दुनिया युद्ध-विरोधी और साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोलनों की गवाह बन रही थी, और किसानों और श्रमिकों के अधिकारों के लिए एक आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा था.

1970 के दशक में नक्सली आंदोलन में हिस्सा लेने वाले शिमोन ने दिप्रिंट को बताया, ‘दुनियाभर में जारी साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलनों की हवा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों को भी प्रभावित किया था. यह कट्टर वामपंथी राय वाला समय था और ऐसा लगता था कि अब कोई क्रांति होकर रहेगी.’

उन्होंने कहा, ‘भारतीय नक्सली आंदोलन दुनियाभर में जो कुछ हो रहा था, उसका ही प्रतिबिंब या एक तरह की अभिव्यक्ति था. हमने भारत में जो देखा वह एक ग्रामीण विद्रोह के तौर पर लोगों को लामबंद करने का प्रयास था, जिसने 1930 के दशक में चीनी पीपुल्स आर्मी को जन्म दिया था, लेकिन यह आंदोलन भारतीय संदर्भ में था.’

हालांकि, इन सब घटनाक्रमों के बावजूद डीयू का छात्र आंदोलन जेएनयू जितना मजबूत कभी नहीं रहा, जबकि जेएनयू को अभी भी वामपंथी गढ़ के तौर पर देखा जाता है.

राहुल राम का मानना है कि यही दोनों संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों के बीच एक अंतर का मूलभूत कारण भी हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘जेएनयू एक आवासीय परिसर है, जबकि दूसरी ओर डीयू में हॉस्टल वाले छात्रों की तुलना में डे स्कॉलर ज्यादा होते हैं. यह छात्रों की आपसी बातचीत को एक अलग स्वरूप देता है, और ऐसे छात्र आंदोलनों को बढ़ावा मिलने की गुंजाइश थोड़ी कम रहती है.’


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विवादों से नाता

बहरहाल, दिल्ली यूनिवर्सिटी भी विवादों से बची नहीं रही है. पिछले साल एस स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए अपने उच्च कट-ऑफ अंकों के कारण आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तरह इस वर्ष यहां भी एक कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट होगा.

2016 में डीयू ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक योग्यता को लेकर भाजपा और विरोधी राजनीतिक दलों के बीच जुबानी जंग में घिरा पाया. राजनीति विज्ञान में बीए की मोदी की डिग्री को लेकर शुरू हुआ विवाद अंततः डीयू की तरफ से यह स्पष्ट किए जाने के बाद ही थमा कि प्रधानमंत्री की डिग्री—जो कि 1978 की है—स्पष्ट तौर पर ‘प्रामाणिक’ है.

डीयू ने 2013 में चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (एफवाईयूपी) शुरू किया था लेकिन छात्रों के विरोध के बाद एक साल बाद ही केंद्र सरकार ने इसे रद्द कर दिया. यूनिवर्सिटी ने पिछले साल यह प्रस्ताव फिर आगे बढ़ाया.

वर्ष 2019-2020 में डीयू ने अपने तत्कालीन कुलपति योगेश त्यागी को भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित कर दिया था.

2020 में दिल्ली यूनिवर्सिटी एक और विवाद की वजह से सुर्खियों में रही जब संस्थान की निगरानी समिति ने दो ख्यात दलित लेखकों बामा और सुकीर्थरानी और लेखक-सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी के टेक्स्ट को अपने तीसरे वर्ष के अंग्रेजी साहित्य के सिलेबस से हटा दिया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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