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Saturday, 27 April, 2024
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एक के बाद एक राज्य ‘स्कूल ऑफ एक्सीलेंस’ शुरू करने के लिए छटपटा रहे हैं, लेकिन वे कितने कारगर होंगे?

कक्षा 9 से 12 के छात्रों के लिए दिल्ली, तमिलनाडु और पंजाब के स्कूल वहीं गुजरात कक्षा 1 से 12 तक के छात्रों के लिए मौजूदा स्कूल बुनियादी ढांचे में सुधार करेगा.

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नई दिल्ली: हालांकि राज्यों के पास शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए कोई प्रभावशाली शोध या स्टडी उपलब्ध नहीं है, फिर भी राज्य दर राज्य अपने यहां स्कूल ऑफ एक्सीलेंस (एसओई) शुरू कर रहे हैं.

दिल्ली सरकार का स्कूल ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सीलेंस पहली बार 2021 में सामने आया. फिर, तमिलनाडु ने पिछले साल सितंबर में एसओई की स्थापना की घोषणा की. दिसंबर में, गुजरात ने “मिशन स्कूल ऑफ एक्सीलेंस” की घोषणा की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना का शुभारंभ किया. 2023 में, आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा चलाए जा रहे पंजाब भी स्कूल ऑफ एमिनेंस लॉन्च करने के लिए तैयार है.

इतना ही नहीं, केंद्र सरकार के पास पहले से ही पीएम श्री स्कूलों के नाम से मॉडल स्कूल शुरू करने की योजना है. विचार मौजूदा स्कूलों को विशेष स्कूलों में बदलने का है जो बेहतर शिक्षा प्रदान करते हैं. सरकार अगले दो वर्षों में देश भर में केंद्रीय विद्यालयों (KVs) और नवोदय विद्यालयों (NVs) सहित 14,500 ऐसे स्कूलों को लॉन्च करने की योजना बना रही है.

क्या होते हैं मॉडल स्कूल?

उनके नाम अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन इन सभी स्कूलों के पीछे का विचार एक ही है – बढ़िया इंफ्रास्ट्रक्टर , स्मार्ट क्लासरूम (डिजिटल ब्लैकबोर्ड से लैस क्लासरूम) और कंप्यूटर लैब के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना.

हालांकि, एसओई के साथ प्रत्येक राज्य में प्रस्तावित सीटों की संख्या पर साफ साफ कुछ नहीं कह रहा है. तमिलनाडु इस श्रेणी के तहत 28 स्कूल स्थापित करने के लिए तैयार है. दूसरी ओर, गुजरात स्कूलों में 1.5 लाख स्मार्ट क्लासरूम के अलावा 50,000 क्लासरूम स्थापित करेगा. इसका लक्ष्य इन स्कूलों के माध्यम से राज्य की 83 प्रतिशत छात्र आबादी तक पहुंचना है. इस बीच, पंजाब ने 117 मौजूदा स्कूलों को स्कूल ऑफ एमिनेंस बनाने की योजना बनाई है. दिल्ली के स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में सीटों की संख्या 4,400 है.

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राज्य में परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने दिप्रिंट से कहा, दिल्ली, पंजाब और तमिलनाडु के स्कूल एक समान मॉडल पर चलते हैं और कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों को एक समान शिक्षा प्रदान करते हैं और बच्चों के संपूर्ण विकास की पेशकश करते हैं. जबकि तमिलनाडु के स्कूल विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करेंगे, वहीं दिल्ली के स्कूल एसटीईएम के अलावा परफॉर्मिंग आर्ट्स, ह्यूमैनिटीज और अन्य विषयों पर भी ध्यान केंद्रित करेंगे. पंजाब के स्कूलों का ध्यान नॉन मेडिकल, मेडिकल, कॉमर्स और ह्यूमैनिटी पर होगा.

दूसरी ओर, गुजरात मौजूदा स्कूलों में नए बुनियादी ढांचे को जोड़कर और शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार करके कक्षा 1 से 12 तक के छात्रों को कैटर करेगा. इन सुधारों के बाद स्कूलों को तब एसओई कहा जाएगा.

गुजरात सरकार के साथ काम कर रहे एक शिक्षा सलाहकार ने दिप्रिंट से कहा, “हम नए स्कूल नहीं खोल रहे हैं … यह परियोजना (मौजूदा) स्कूलों को मजबूत करने की है. लगभग 15,000 स्कूल ऐसे हैं जहां पूरे राज्य के 83 फीसदी छात्र पढ़ते हैं. यदि हम इसे मजबूत करते हैं, तो हम शिक्षा की बेहतर गुणवत्ता हासिल करने में सक्षम होंगे. हम हर कक्षा के लिए और हर कक्षा के लिए एक शिक्षक सुनिश्चित कर रहे हैं,”

इस बीच, शिक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, पीएम श्री स्कूल के पीछे का विचार मौजूदा सरकारी स्कूलों को मॉडल स्कूलों में बदलना है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारें उन्हें 60:40 के बजट पर चलाएंगी. इस साल के केंद्रीय बजट में इस योजना के लिए 4,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है. ये स्कूल कक्षा 1 से 12 तक के छात्रों को भी पढ़ाएंगे और प्रवेश प्रक्रिया अलग-अलग राज्य द्वारा तय की जाएगी. उदाहरण के लिए, दिल्ली सरकार अपने विशेष स्कूलों में प्रवेश के लिए एक प्रवेश परीक्षा आयोजित करती है.

हालांकि, विशेषज्ञों ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में योगदान देने वाले ऐसे स्कूलों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि छात्रों की संख्या कम है.


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‘जाति व्यवस्था बनाना’

शिक्षाविद् और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (NIEPA) के पूर्व कुलपति, आर. गोविंदा ने दिप्रिंट से कहा कि सालों पहले, जब KV और NV को पेश किया गया था, तो उनके लिए भी इसी तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया गया था और उन्हें जमीनी स्तर पर शिक्षा में सुधार के लिए इस्तेमाल किया गया था.

उन्होंने कहा, “क्या KV और NV ने देश में शिक्षा के स्तर को बदल दिया है? इसका उत्तर खोजें और यह आपके प्रश्न का उत्तर देगा. अधिक SOE बनाना जाति व्यवस्था का विस्तार करने जैसा है जहां आप एक के बाद एक श्रेणी जोड़ रहे हैं लेकिन वास्तव में समस्या का समाधान नहीं कर रहे हैं. ”

उन्होंने कहा, “देश में 15 लाख से ज्यादा स्कूल हैं और आप उनमें से 100 को बदलना चाहते हैं. आपको क्या लगता है कि यह कितने छात्रों को कैटर कर सकेगा? आपको बच्चों को पढ़ाने के लिए ऐसे स्कूलों की जरूरत नहीं है, आपको बस उन्हें ठीक से पढ़ाने की जरूरत है और वे इससे ही सीखेंगे. सरकारों को स्कूलों में शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार करने और यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि शिक्षक कक्षाओं में आएं, बाकी चीजें बाद में होंगी.

समीर गुप्ता, एक स्वतंत्र शिक्षा सलाहकार, जो राज्यों और गैर सरकारी संगठनों को सलाह देते हैं, ने ऐसे स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया और क्या यह सही छात्रों का चयन करने के लिए है, के बारे में सवाल उठाए. गुप्ता ने दिप्रिंट से कहा, “शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम कहता है कि स्कूल कक्षा 8 तक के छात्रों के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते हैं. जबकि वे हाइअर ग्रेड में छात्रों का चयन करने के लिए परीक्षा आयोजित कर सकते हैं, यह कैसे सुनिश्चित करता है कि उन्हें सही छात्र मिल रहे हैं? यदि विचार शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है, तो उन छात्रों के बारे में क्या जिन्हें वास्तव में मदद की आवश्यकता है, अन्यथा आप सिर्फ एक जाति व्यवस्था बना रहे हैं … कम बुद्धिमान छात्र और अधिक बुद्धिमान छात्र … बस इतना ही.”

“गुजरात के स्कूलों और पीएम श्री स्कूलों के बारे में क्या ख्याल है?” उन्होंने पूछा कि आरटीई मानदंडों का उल्लंघन किए बिना कौन सी प्रवेश प्रक्रिया अपनाई जा रही है ? उन्होंने कहा “सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन स्कूलों में मानदंडों का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है.”

(संपादन- पूजा मेहरोत्रा)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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