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शुक्रवार, 16 मई, 2025
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गोबर का लेप, नारे और भगवा—छात्रों और फैकल्टी का आरोप है कि DU एक खास विचारधारा को बढ़ावा दे रहा है

आलोचकों का कहना है कि हाल की विवादित घटनाओं, नियुक्तियों और सिलेबस में बदलावों के जरिए उस विश्वविद्यालय का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो पहले तरह-तरह के विचारों के लिए जाना जाता था, अब सिर्फ एक खास विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए किया जा रहा है.

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नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय पिछले महीने एक विवाद के केंद्र में आ गया जब इसके एक कॉलेज की प्रिंसिपल ने क्लास की दीवारों पर गोबर लेप दिया, यह दावा करते हुए कि यह गर्मी में कमरे को ठंडा रखने का पारंपरिक “देसी” तरीका है.

लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. प्रत्युषा वत्सला ने इसे एक शोध पहल का हिस्सा बताया. लेकिन जब इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो तीखी प्रतिक्रिया सामने आई.

छात्रों और फैकल्टी ने इस कृत्य को अवैज्ञानिक बताया और उन पर विचारधारात्मक हितों को साधने के लिए नाटक करने का आरोप लगाया.

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के अध्यक्ष रोनक खत्री, जो कांग्रेस समर्थित नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) से जुड़े हैं, ने विरोध में प्राचार्या के कार्यालय की दीवारों पर गोबर लेप दिया.

खत्री ने इस काम को “एक शैक्षणिक जगह में झूठे विज्ञान को बढ़ावा देना” बताया.

यह घटना दिल्ली विश्वविद्यालय में हालिया वैचारिक टकरावों की एक कड़ी है, जहां कई छात्र और फैकल्टी प्रशासन पर दक्षिणपंथी विचारों से जुड़ाव का आरोप लगाते हैं, जिससे पक्षपात की धारणा गहराई है.

विवादास्पद आयोजनों, नियुक्तियों और कोर्स में बदलावों से लेकर अन्य मुद्दों तक, आलोचकों का कहना है कि कभी विविध विचारों के लिए जाना जाने वाला यह विश्वविद्यालय अब एक खास वैचारिक नैरेटिव को बढ़ावा देने का मंच बनता जा रहा है.

DUSU अध्यक्ष ने दिप्रिंट से कहा, “अब हम ऐसे प्रिंसिप्ल्स और टीचर्स को देख रहे हैं जो एक विशेष विचारधारा से स्पष्ट रूप से जुड़े हैं. DUSU छात्र हितों पर केंद्रित है, लेकिन हम शैक्षणिक स्थानों पर गोबर लेप जैसी घटनाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकते—यह अस्वीकार्य है.”

फैकल्टी और छात्रों का कहना है कि हाल के वर्षों में दिल्ली विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से जुड़े व्यक्तियों की मौजूदगी वाले कार्यक्रमों में काफी इजाफा हुआ है.

उनका कहना है कि वे इस बारे में चिंता जता रहे हैं जिसे वे “कैंपस की भगवाकरण” की प्रक्रिया मानते हैं, और हालिया कार्यक्रमों और स्पीकर्स के चयन को विचारधारा में बदलाव का संकेत मानते हैं.

फैकल्टी सदस्यों का कहना है कि सत्ता पक्ष के मंत्री और सांसद पहले भी विश्वविद्यालय के आयोजनों में शामिल होते थे. “पहले वे केवल महत्वपूर्ण अवसरों पर आमंत्रित किए जाते थे,” दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर अश्विनी शंकर ने कहा.

“अब यह सामान्य बात बन गई है. अब केवल सांसद और मंत्री ही नहीं, बल्कि आरएसएस से जुड़े लोग भी नियमित रूप से ओरिएंटेशन और रिफ्रेशर कार्यक्रमों में देखे जाते हैं. इस हफ्ते ही मैंने संस्कृत विभाग के वार्षिक उत्सव में आरएसएस से जुड़ी संस्था संस्कृत भारती के प्रतिनिधियों को देखा,” शंकर ने जोड़ा.

RSS national executive member Indresh Kumar at an event in Delhi University | X
दिल्ली विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम में आरएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य इंद्रेश कुमार | X

फैकल्टी सदस्यों ने कई हालिया कार्यक्रमों का ज़िक्र किया जो इस बदलाव को दिखाते हैं.

2 अप्रैल को, स्कूल ऑफ जर्नलिज्म ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर एक अनिवार्य कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल चीफ गेस्ट थे. इस पर छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया.

हाल ही में, 30 अप्रैल को विश्वविद्यालय ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर एक रन फॉर नेशन कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान चीफ गेस्ट थे. दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए.

इससे पहले, जनवरी में दिल्ली विश्वविद्यालय ने वाइस रीगल लॉज (विश्वविद्यालय का प्रशासनिक मुख्यालय) में पत्रकार अशोक श्रीवास्तव की किताब मोदी बनाम खान मार्केट गैंग पर चर्चा का आयोजन किया.

इस कार्यक्रम में बीजेपी के राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव (संगठन) शिव प्रकाश और पूर्व बीजेपी सांसद ज्योति मिर्धा मौजूद थीं. फैकल्टी आलोचकों ने इसे विश्वविद्यालय के सर्वोच्च पद का “राजनीतिकरण” बताया.

The discussion on Ashok Shrivastav’s book Modi vs Khan Market Gang at the university’s administrative headquarters was criticised as 'political misuse of publicly funded institutions' | X
अशोक श्रीवास्तव की किताब मोदी बनाम खान मार्केट गैंग पर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक मुख्यालय में हुई चर्चा की आलोचना इस तरह की गई कि यह ‘सरकारी पैसे से चलने वाले संस्थानों का राजनीतिक इस्तेमाल’ है | X

3 अप्रैल को दिल्ली विश्वविद्यालय ने एक सर्कुलर जारी किया जिसमें विभाग प्रमुखों और कॉलेज प्रिंसिपलों से कहा गया कि वे ‘रन फॉर ए गर्ल चाइल्ड’ कार्यक्रम में भागीदारी बढ़ाएं. यह कार्यक्रम राष्ट्रीय सेवा भारती द्वारा आयोजित किया गया था, जो आरएसएस की सामाजिक शाखा है. इस सर्कुलर की कई फैकल्टी सदस्यों ने कड़ी आलोचना की.

विश्वविद्यालय के एक फैकल्टी सदस्य राजेश झा ने कहा कि डीयू में विचारधारात्मक पक्षपात बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, “विश्वविद्यालय अब एक खास विचारधारा के साथ कार्यक्रम आयोजित कर रहा है, जिससे इसकी विविधता और खुलापन खतरे में है. शैक्षणिक जगहों पर समावेशी बातचीत होनी चाहिए, न कि केवल एक विचारधारा का प्रचार. आरएसएस द्वारा आयोजित कार्यक्रम से लेकर किताबों के विमोचन तक सब में एक विचारधारात्मक नजरिया है.”

इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए, भारतीय राष्ट्रीय शिक्षक कांग्रेस के अध्यक्ष पंकज गर्ग, जो कांग्रेस से जुड़े हैं, ने कहा कि उन्होंने 1980 के दशक से दिल्ली विश्वविद्यालय का विकास देखा है. उन्होंने कहा, “मंत्रियों या सांसदों को आमंत्रित करना ठीक है, लेकिन बीजेपी और आरएसएस के नेताओं को बुलाना उच्च शिक्षा का ‘सफेदीकरण’ है. यह छात्रों को एक ही विचारधारा का संदेश देता है. यह सिर्फ दिल्ली विश्वविद्यालय का मामला नहीं है, बल्कि पूरे देश के संस्थानों में ऐसा हो रहा है.”

हालांकि, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (DUTA) के अध्यक्ष और नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (NDTF) के सदस्य ए.के. भागी ने विचारधारा थोपे जाने के आरोपों को खारिज करते हुए इसे “चुनिंदा गुस्सा” बताया. उन्होंने कहा, “दिल्ली विश्वविद्यालय में कोई प्रतिबंध नहीं है कि कौन आ सकता है या बोल सकता है. यह कैंपस सबके लिए खुला है. 2013 में जब प्रधानमंत्री मोदी को एसआरसीसी बुलाया गया था, तब भी लोगों ने आपत्ति जताई थी, और अब भी कर रहे हैं.”

भागी ने बताया कि 2014 में एनडीटीएफ की ओर से वरिष्ठ आरएसएस नेता सुरेश जोशी को आमंत्रित किया गया था, लेकिन विश्वविद्यालय ने उनका कार्यक्रम रद्द कर दिया था. “हम उस दिन को भी याद करते हैं, तब किसी ने कोई मुद्दा नहीं उठाया था.”

पुराने लोग याद करते हैं कि यूपीए सरकार के समय डीयू में राजनीतिक हस्तियों को अक्सर बुलाया जाता था.

फरवरी 2013 में, तत्कालीन शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल ने विश्वविद्यालय के वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव का उद्घाटन किया था. नवंबर 2012 में, सिब्बल ने गर्गी कॉलेज में आयोजित एक सम्मेलन में उद्घाटन भाषण दिया था.

2010 में, सीपीआई(एम) सांसद सीताराम येचुरी ने सेमेस्टर प्रणाली के विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों के साथ प्रदर्शन किया था और तत्कालीन राष्ट्रपति से मुलाकात भी की थी.

2016 में कांग्रेस सांसद शशी थरूर ने श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (SRCC) के युवा सम्मेलन को संबोधित किया था. और 2017 में पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने श्री वेंकटेश्वर कॉलेज के वार्षिक अर्थशास्त्र महोत्सव में भाग लिया था.

हाल ही में, मई 2023 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजी मेन्स हॉस्टल का अनौपचारिक दौरा किया था, जहां उन्होंने छात्रों से बातचीत की और दोपहर का भोजन किया.

लेकिन बाद में विश्वविद्यालय ने राहुल गांधी को नोटिस जारी किया और कहा कि उनका दौरा “अचानक और बिना सूचना” था, साथ ही भविष्य में ऐसे दौरे बंद करने को कहा गया, सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए.

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने टिप्पणी के लिए कोई जवाब नहीं दिया. उनकी प्रतिक्रिया मिलते ही रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.

डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने विश्वविद्यालय पर कोई राजनीतिक या विचारधारात्मक एजेंडा चलाने के आरोपों को सिरे से खारिज किया.

सेवा भारती द्वारा आयोजित महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम के समर्थन में जारी सर्कुलर पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा, “यह पहल केवल महिलाओं के सशक्तिकरण और उन्नति के लिए थी.”

उन्होंने आगे कहा, “हमने सर्कुलर इसलिए जारी किया क्योंकि हम महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करते हैं, न कि आयोजक संगठन की राजनीतिक संबद्धता के कारण. विश्वविद्यालय परिसर में इस कार्यक्रम या अन्य किसी तरीके से कोई विचारधारात्मक एजेंडा नहीं है.”


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विवादास्पद घटनाएं

फैकल्टी सदस्य और छात्र कुछ अन्य घटनाओं का भी हवाला देते हैं, जिनसे वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि विश्वविद्यालय में आरएसएस और बीजेपी से जुड़े लोगों के कार्यक्रमों के जरिए ‘साफ़रनाइज़ेशन’ (भगवाकरण) हो रहा है.

उदाहरण के तौर पर, 19 जून 2023 को विश्वविद्यालय ने किताबवाले के साथ मिलकर एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें बीजेपी की पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य सत्य नारायण जटिया मुख्य अतिथि थे.

इसी तरह, 26 नवंबर 2023 को विश्वविद्यालय के स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में आरएसएस से जुड़े मुकुल कणितकर की किताब के विमोचन कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इसमें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति भी शामिल हुए थे.

बाद में दिसंबर 2023 में, विश्वविद्यालय ने आरएसएस के सचिव भरत भूषण को सेंटर फॉर हिंदू स्टडीज़ के उद्घाटन के लिए विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया, जिसके विरोध में छात्रों ने प्रदर्शन किया.

पिछले महीने, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक किताब दि हिंदू मैनिफेस्टो लॉन्च की, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति भी मौजूद थे. लेकिन यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय परिसर में नहीं हुआ था.

मिरांडा हाउस की एसोसिएट प्रोफेसर और लेफ्ट समर्थित डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (DTF) की सदस्य अभा देव हबीब ने कैंपस में आरएसएस से जुड़े कार्यक्रमों की बढ़ती उपस्थिति की आलोचना की.

RSS chief Mohan Bhagwat at an event in Delhi University | X
दिल्ली विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत | X

उन्होंने कहा, “दिल्ली यूनिवर्सिटी में क्या हो रहा है, ये देखिए—सीटों को ‘प्रचारक’ जैसे लेबल से आरक्षित किया जा रहा है. यह शर्मनाक है.”

उन्होंने आगे कहा, “हम मोबाइल फोन नहीं बना रहे जिन्हें एक बैच फेल हो जाए तो फेंक दिया जाए. हम देश के भविष्य के नेताओं को गढ़ रहे हैं. इस विश्वविद्यालय की अपने छात्रों और देश के प्रति गहरी जिम्मेदारी है. और इसे किसी एक विचारधारा को बढ़ावा देकर समझौता नहीं करना चाहिए.”

‘साफ़रनाइज़ेशन’ के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कुलपति ने अप्रैल 2024 में समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा था, “सबसे पहले तो मैं समझना चाहता हूं कि ‘साफ़रनाइज़ेशन’ का मतलब क्या है. अगर देश के लिए कुछ करना ‘साफ़रनाइज़ेशन’ है, तो हम इसके लिए तैयार हैं. लेकिन हम किसी भी तरह के भारत विरोधी अभियान को बर्दाश्त नहीं करेंगे. यह हमारा देश है और हमें इसे बनाना है. विचारों में भिन्नता ठीक है, लेकिन हम अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं करेंगे.”

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने दिप्रिंट से नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जो लोग दक्षिणपंथी विचारधारा से सहमत नहीं हैं, उनके लिए विश्वविद्यालय के प्रशासनिक सिस्टम में काम करना अब मुश्किल होता जा रहा है.

“हाल ही में, प्रोफेसर अपूर्वानंद को न्यूयॉर्क में एक अकादमिक कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई. विश्वविद्यालय ने उनके भाषण की पूरी स्क्रिप्ट पहले से ही मांग ली. ऐसा दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास में कभी नहीं हुआ.”

हिंदी विभाग के वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य और सरकार के आलोचक प्रोफेसर अपूर्वानंद झा ने बताया कि वास्तव में विश्वविद्यालय ने उन्हें न्यू स्कूल, न्यूयॉर्क में 23 अप्रैल को होने वाले एक अकादमिक कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति नहीं दी.

उनके अनुसार, विश्वविद्यालय ने उनसे उनके व्याख्यान की पूरी स्क्रिप्ट पहले से जमा करने को कहा, जिसे उन्होंने मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, “यह तो सीधा सेंसरशिप है.”

कई फैकल्टी सदस्यों, जिनमें विश्वविद्यालय की वैधानिक संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधि भी शामिल थे, ने 17 अप्रैल को कुलपति को एक पत्र लिखकर इस फैसले की कड़ी निंदा की. उन्होंने इसे अकादमिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला और विश्वविद्यालय के मामलों में बढ़ती राजनीतिक दखलअंदाजी का चिंताजनक संकेत बताया.

प्रोफेसर अपूर्वानंद को अनुमति न मिलने पर विरोध में लिखे गए पत्र में फैकल्टी सदस्यों ने कुलपति से विश्वविद्यालय की स्वायत्तता की रक्षा करने और राजनीतिक दखल से बचाने की अपील की.

पत्र में लिखा था, “कुलपति होने के नाते यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप विश्वविद्यालय को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाएं और इसके संवैधानिक दायित्व की रक्षा करें.”

“हम आपसे आग्रह करते हैं कि आप ठोस कदम उठाएं ताकि दिल्ली विश्वविद्यालय अलोकतांत्रिक दखल का शिकार न बने. यह विश्वविद्यालय स्वतंत्र शिक्षा का मजबूत गढ़ बना रहना चाहिए.”

मार्च में, अपूर्वानंद ने यह भी आरोप लगाया था कि वरिष्ठतम प्रोफेसर होने के बावजूद विश्वविद्यालय ने हिंदी विभाग का अध्यक्ष किसी और को बना दिया.

जब उनसे संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि आधिकारिक तौर पर कोई कारण नहीं बताया गया, लेकिन इसका कारण शायद “विचारधारात्मक मतभेद” है.

अभा देव हबीब ने कहा, “यह अस्वीकार्य है. हर फैकल्टी सदस्य को बिना भेदभाव के अपना काम करने का अधिकार मिलना चाहिए. वरिष्ठता सिर्फ औपचारिकता नहीं होती, यह भेदभाव से बचाव और अकादमिक प्रणाली में निष्पक्षता की गारंटी होती है.”

विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के एक वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य ने बताया कि पहले भी ऐसे मामले सामने आए हैं जब वरिष्ठता को नजरअंदाज किया गया.

उन्होंने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “2021 में, जब सिंह कुलपति नहीं थे, दो मामलों में विभागाध्यक्षों की नियुक्ति में वरिष्ठता को दरकिनार किया गया—एक राजनीति विज्ञान में और दूसरा रसायन विज्ञान में. दोनों मामलों को अंततः दिल्ली हाई कोर्ट में ले जाया गया.”

हालांकि, रजिस्ट्रार गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, “विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस 23 के तहत कुलपति को यह अधिकार है कि वह किसी भी योग्य फैकल्टी सदस्य को विभागाध्यक्ष नियुक्त कर सकते हैं.”

The circular issued by DU registrar in April urging department heads and principals to encourage participation in 'Run for a Girl Child', an event organised by Rashtriya Sewa Bharati, the social wing of the RSS, which drew sharp criticism from many faculty members | By special arrangement
अप्रैल में डीयू के रजिस्ट्रार द्वारा एक नोटिस जारी किया गया था, जिसमें विभागाध्यक्षों और कॉलेजों के प्राचार्यों से कहा गया था कि वे ‘रन फॉर ए गर्ल चाइल्ड’ नाम के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करें. यह कार्यक्रम राष्ट्रीय सेवा भारती नाम की संस्था द्वारा आयोजित किया गया था. इस पर कई फैकल्टी सदस्यों ने कड़ी आपत्ति जताई और इसकी आलोचना की | विशेष व्यवस्था

छात्रों में बेचैनी

दिल्ली विश्वविद्यालय में बदलाव के संकेत अब साफ़ नज़र आने लगे हैं, ऐसा कई छात्र कहते हैं.

22 जनवरी 2023 को, डीयू के आर्ट्स फैकल्टी परिसर को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर भगवा सजावट से सजाया गया था. दीयों से “हिंदू राष्ट्र” लिखा गया और प्रवेश द्वार पर एक बड़ा “जय श्री राम” का बैनर लगाया गया था.

यह कार्यक्रम आरएसएस से जुड़ी छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने आयोजित किया था. कई छात्रों और शिक्षकों ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि यह एक धर्मनिरपेक्ष शिक्षा संस्थान में एक धर्म विशेष की पहचान को बढ़ावा दे रहा है.

1 फरवरी 2024 को एक स्वतंत्र छात्र अख़बार DU Beat में छपे लेख ने इस आयोजन को “भगवाकरण” की एक मिसाल बताया.

“यह बहुत असहज करने वाला और शर्मनाक था कि विश्वविद्यालय ने ऐसे प्रदर्शन की अनुमति दी. अगर ये भगवाकरण नहीं है, तो फिर क्या है?” — मिरांडा हाउस की एक अंतिम वर्ष की इतिहास की छात्रा ने कहा, जिन्होंने नाम ना छापने की शर्त रखी.

और यह कोई अकेला मामला नहीं था. पिछले दो वर्षों में, दिल्ली विश्वविद्यालय और उसके संबद्ध कॉलेजों में कई विवाद सामने आए हैं.

एक प्रमुख घटना मार्च 2023 में इंद्रप्रस्थ कॉलेज फॉर विमेन (IPCW) में हुई, जहां परिसर की दीवारों को भगवा रंग में रंगा गया और कॉलेज के लोगो को भी बदल दिया गया. स्टाफ और छात्रों ने इस कदम की तीखी आलोचना की और इसे “साफ-साफ राजनीतिक संदेश” बताया.

पिछले अप्रैल में, उत्तर कैंपस के प्रमुख किरोड़ीमल कॉलेज में हिंदू नववर्ष के आयोजन को लेकर छात्र विरोध में उतर आए, क्योंकि यह कार्यक्रम आरएसएस द्वारा आयोजित किया गया था.

वामपंथी छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) के राज्य अध्यक्ष अभिज्ञान का मानना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में हाल के घटनाक्रम अलग-अलग नहीं, बल्कि एक बड़ी, संगठित योजना का हिस्सा हैं.

उनके अनुसार, कॉलेजों में सत्ताधारी सरकार के प्रति निष्ठा दिखाने की होड़ सी लग गई है. उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है जैसे कोई प्रतियोगिता चल रही है कि कौन ज़्यादा नजदीक दिख सकता है.”

उन्होंने कुछ घटनाओं का ज़िक्र किया: 2022 में हंसराज कॉलेज ने गौशाला के लिए ज़मीन आवंटित की, 2023 में इंद्रप्रस्थ कॉलेज ने दीवारें भगवा रंग से रंगीं, और हाल ही में लक्ष्मीबाई कॉलेज में कक्षाओं की दीवारों पर गोबर लगाया गया.

“ये फैसले अचानक नहीं लिए जा रहे हैं. ये एक निरंतर विचारधारा को बढ़ावा देने का हिस्सा हैं,” उन्होंने कहा.

यहां तक कि जो छात्र किसी राजनीतिक संगठन से नहीं जुड़े हैं, वे भी असहजता महसूस कर रहे हैं.

“कभी-कभी कॉलेजों में या ऑनलाइन पोस्टर दिखाई देते हैं कि बीजेपी या आरएसएस से कोई व्यक्ति विश्वविद्यालय में बोलने आ रहा है. ये अब एक पैटर्न बन गया है,” रामजस कॉलेज के राजनीति विज्ञान के एक छात्र ने कहा, जिन्होंने नाम ना छापने की बात कही.

“विश्वविद्यालय एक निष्पक्ष और राजनीतिक प्रभाव से मुक्त जगह होना चाहिए. लेकिन यहां तो उल्टा लग रहा है,” छात्र ने कहा. “दिल्ली विश्वविद्यालय की वैश्विक रैंकिंग सुधारने और टॉप 100 में आने की बजाय, हम असल में क्या प्राथमिकता दे रहे हैं?”

हालांकि, सभी छात्र इतने आलोचनात्मक नहीं हैं.

एबीवीपी के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक और बौद्ध अध्ययन में स्नातकोत्तर छात्र हर्ष अत्री ने विश्वविद्यालय में विचारधारा आधारित चर्चाओं का बचाव किया.

उन्होंने कहा, “‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ जैसे विषयों पर चर्चाएं ज़रूरी हैं ताकि छात्र राष्ट्रीय मुद्दों को समझ सकें.”

अत्री ने यह भी कहा कि जब छात्र और शिक्षक सरकार की नीतियों का विरोध करते हैं तो उसे लोकतांत्रिक बताया जाता है, लेकिन जब सत्ताधारी पार्टी के विचारों पर चर्चा होती है तो उसे “प्रोपेगेंडा” कहा जाता है.

“जब दूसरे लोग संसद के कानूनों पर सवाल उठाते हैं तो उसे लोकतंत्र माना जाता है,” उन्होंने कहा. “लेकिन जब हम राष्ट्र निर्माण से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करते हैं, तो उसे प्रोपेगेंडा कहा जाता है. इस दोहरे मापदंड को उजागर करना ज़रूरी है.”

छात्रों के इन अलग-अलग विचारों से यह साफ है कि कैंपस में वैचारिक खाई बढ़ रही है, जो सिर्फ डीयू की छवि को ही नहीं, बल्कि उसके शैक्षणिक और सांस्कृतिक माहौल को भी प्रभावित कर रही है.

संस्थानों की स्वतंत्रता का कम होना

कुछ फैकल्टी सदस्य मानते हैं कि ये कथित बदलाव वर्तमान प्रशासन के आने से पहले ही शुरू हो गए थे, जबकि अन्य का कहना है कि ये बदलाव सितंबर 2021 में दिल्ली विश्वविद्यालय के 23वें कुलपति के रूप में सिंह की नियुक्ति के बाद और तेज़ हो गए हैं. सिंह भारतीय शिक्षण मंडल से जुड़े हैं, जो आरएसएस द्वारा समर्थित शिक्षकों का एक समूह है.

सिंह के कुलपति कार्यकाल के दौरान केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया और दिल्ली विश्वविद्यालय के विधियों  में लंबे समय से लंबित संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिससे कुलपति के दूसरे कार्यकाल की संभावना खुल गई.

दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने यह प्रस्ताव 2014 में पारित किया था, जब दिनेश सिंह कुलपति थे. हालांकि, यह प्रस्ताव मंजूरी के लिए लंबित था.

पहले, दिल्ली विश्वविद्यालय का कानून पहले साफ़ तौर पर कहता था कि कुलपति को दोबारा नियुक्त नहीं किया जा सकता.

हालांकि, 17 अक्टूबर 2023 की तारीख वाला एक राजपत्र (गजट) अधिसूचना, जिसे उच्च शिक्षा विभाग और शिक्षा मंत्रालय ने जारी किया, ने इस विधि में एक अहम बदलाव की घोषणा की. अब नियम यह कहता है कि कुलपति पांच साल का कार्यकाल पूरा कर सकते हैं और उन्हें एक और कार्यकाल के लिए फिर से नियुक्त किया जा सकता है.

वामपंथी विचारधारा वाले डीटीएफ की सदस्य हबीब ने कहा, “दिल्ली विश्वविद्यालय लगभग एक दशक से बदल रहा है, लेकिन पहले प्रशासन और राजनीतिक सत्ता के बीच एक साफ़ सीमा होती थी. एक सम्मानजनक दूरी बनाई जाती थी ताकि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता बनी रहे.”

“अब वह दिखावे की स्वतंत्रता भी नहीं बची है. प्रशासन अब खुले तौर पर राजनीतिक प्रभाव से खुद को जोड़ रहा है.”

हालांकि, दिल्ली विश्वविद्यालय के एक पूर्व कुलपति के अनुसार, विश्वविद्यालयों का इस्तेमाल राजनीतिक ताकतों द्वारा अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए पहले से होता रहा है.

उन्होंने दिप्रिंट को नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यह पहले के प्रशासन में भी हुआ है, जब कई फैसले वामपंथी या मध्यमार्गी दृष्टिकोण को दर्शाते थे. अब, जब वर्तमान सरकार सत्ता में है और कुलपति उनकी पसंद से नियुक्त हुए हैं, तो यह स्वाभाविक है कि प्रशासन उनकी विचारधारा के साथ मेल खाएगा.”

नए सेंटर्स, कोर्स और टीचर्स ट्रेनिंग कार्यक्रम को लेकर चिंता

विश्वविद्यालय के शैक्षणिक विकल्प भी वैचारिक झुकाव को दर्शाते हैं.

वर्तमान प्रशासन के तहत, विश्वविद्यालय ने 2023 में औपचारिक रूप से हिंदू अध्ययन केंद्र (Centre for Hindu Studies) की स्थापना की, जो मास्टर डिग्री देता है. विश्वविद्यालय इस केंद्र में पीएचडी कार्यक्रम शुरू करने की योजना भी बना रहा है.

यह कोर्स हिंदू दर्शन, संस्कृति और नैतिकता की पढ़ाई कराता है और छात्रों को हिंदू चिंतन और उसके समकालीन उपयोगों की व्यापक समझ पैदा करता है.

सिलेबस में “हिंदू” की अवधारणा, परंपराओं में एकता का विचार, धर्म और कर्म जैसी नैतिक रूपरेखाएं, पुनर्जन्म और मुक्ति (मोक्ष), और ज्ञान प्राप्ति के तरीके (प्रमाण) शामिल हैं.

यह पारंपरिक वाद-विवाद पद्धति (वाद-परंपरा), भारतीय ग्रंथों पर पश्चिमी सिद्धांतों के प्रयोग और भारतीय साहित्य और समाज में रामायण के सांस्कृतिक महत्व को भी कवर करता है.

रामजस कॉलेज में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर तनवीर ऐजाज ने किसी भी विषय के जैविक विकास में अकादमिक स्वायत्तता की अहम भूमिका को रेखांकित किया.

उन्होंने कहा, “राजनीति विज्ञान जैसे विषय वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया से विकसित होते हैं, जो निरंतर अनुसंधान और आलोचनात्मक विमर्श से आकार लेते हैं.”

“हर विषय की अपनी आंतरिक तर्कशक्ति और कार्यप्रणाली होती है. जब धार्मिक शिक्षाओं जैसी बाहरी गैर-अकादमिक विचारधाराएं थोप दी जाती हैं, तो वह स्वाभाविक विकास बाधित हो जाता है और ज्ञान का स्वतंत्र प्रवाह रुक जाता है. असली नुकसान विषय की अखंडता को होता है. अकादमिक स्वायत्तता समाप्त हो रही है और उसके साथ-साथ ज्ञान प्रसार की पूरी प्रक्रिया भी.”

जेसस एंड मैरी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर और विश्वविद्यालय की अकादमिक काउंसिल की सदस्य माया जॉन ने चिंता जताई कि काउंसिल की बैठकों में असहमति की आवाजों को लगातार नजरअंदाज किया जाता है.

उन्होंने कहा, “मेरी असहमति, विस्तृत टिप्पणियां और सुझाव कभी संबंधित विभागों तक नहीं भेजे जाते. यह सांविधिक संस्था अब केवल औपचारिकता बन गई है, जिसमें बिना किसी वास्तविक बहस या चर्चा के निर्णय पारित करने का तरीका अपनाया जाता है. हमें रबर स्टैम्प की तरह नहीं लिया जा सकता.”

विश्वविद्यालय ने 2023 में स्वतंत्रता और विभाजन अध्ययन केंद्र (CIPS) की भी स्थापना की, जो विभाजन पीड़ितों के अनुभवों को खोजने, दस्तावेज करने और संरक्षित करने का कार्य करता है.

यह केंद्र विभाजन के समय के लोगों से बातचीत और कहानियों का एक संग्रह बना रहा है और पूरे देश से जुड़ी किताबें इकट्ठा कर रहा है. जल्द ही, CIPS यह सब जनता के लिए खोल देगा ताकि लोग इसे देख सकें.

पिछले कुछ वर्षों में, विश्वविद्यालय ने विभिन्न पाठ्यक्रमों के सिलेबस में कई बदलाव किए हैं और कई नए पाठ्यक्रम जोड़े हैं.

दिसंबर पिछले साल, डीयू ने पांच नए वैल्यू एडिड कोर्सिस (VACs) शुरू करने का प्रस्ताव रखा, जिनमें से चार भगवद गीता पर केंद्रित थे.

2023 में, विश्वविद्यालय की अकादमिक काउंसिल (AC), जो शैक्षणिक मामलों पर सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है, ने मुहम्मद इकबाल पर आधारित एक यूनिट को हटाने और विनायक दामोदर सावरकर पर एक नया पाठ्यक्रम शुरू करने को मंजूरी दी.

इकबाल, जिन्होंने “सारे जहां से अच्छा” कविता लिखी थी, की सामग्री को राजनीति विज्ञान बीए (ऑनर्स) के सिलेबस से हटा दिया गया.

कुलपति कार्यालय से जारी बयान में कहा गया, “जिन्होंने भारत को तोड़ने की नींव रखी, उन्हें सिलेबस में नहीं होना चाहिए.”

सावरकर पर नया पाठ्यक्रम उन छात्रों के लिए वैकल्पिक विषय के रूप में पेश किया गया जो राजनीति विज्ञान को मेजर के रूप में पढ़ रहे हैं. यह पहली बार है जब सावरकर को सिलेबस में शामिल किया गया है.

डीयू ने तीन दशकों के बाद नजफगढ़ में एक नया कॉलेज भी घोषित किया और उसका नाम सावरकर के नाम पर रखा गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल जनवरी में इसकी नींव रखी.

9 और 10 जनवरी 2025 को, दिल्ली विश्वविद्यालय ने दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन “मोदी 3.0 के तहत भारत की विदेश नीति: चुनौतियां और अवसर” का आयोजन किया, जिसमें राम माधव को मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया.

राजेश झा ने उच्च शिक्षा में व्यावसायिक विकास के लिए बने सेंटर फॉर प्रोफेशनल डेवलपमेंट इन हायर एजुकेशन (CPDHE) को लेकर भी चिंता जताई, जो शिक्षकों के लिए व्यावसायिक विकास कार्यक्रम आयोजित करता है. उन्होंने कहा कि इसके कई सत्र अब सत्ताधारी सरकार से जुड़े संगठनों के साथ साझेदारी में हो रहे हैं, जिससे शैक्षणिक कार्यक्रमों की निष्पक्षता और ईमानदारी प्रभावित हो रही है. ये कोर्स शिक्षकों की पदोन्नति के लिए अनिवार्य हैं.

इंडिया फाउंडेशन — एक दिल्ली स्थित थिंक टैंक जिसकी स्थापना अजीत डोभाल के बेटे सौर्य डोभाल ने की थी और जिसका नेतृत्व राम माधव करते हैं — CPDHE के साथ अकादमिक सहयोग में नियमित रूप से क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करता है.

हाल ही में, 17 मार्च से 29 मार्च के बीच इसने कई लेक्चर आयोजित किए, जिनमें बीजेपी के बड़े नेता जैसे माधव और स्वपन दास गुप्ता खास मेहमान के रूप में शामिल हुए.

अगस्त 2023 में, राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मनोज झा ने दावा किया कि उनका CPDHE में होने वाला व्याख्यान अज्ञात कारणों से रद्द कर दिया गया.

इस बीच, नॉर्थ कैंपस के एक कॉलेज के प्राचार्य ने, नाम न छापने की शर्त पर, कहा कि फैकल्टी डेवलपमेंट कार्यक्रमों में विभिन्न पृष्ठभूमियों से प्रतिभागी आते हैं.

प्रिंसिपल ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि इन कार्यक्रमों में कुछ वक्ता किसी खास विचारधारा से जुड़े हैं, यह कहना उचित नहीं कि सभी कार्यक्रम पक्षपाती हैं. ऐसे सामान्यीकरण करना अनुचित है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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