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Friday, 29 March, 2024
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सिर्फ 16 राज्य/UT के निजी स्कूलों में वंचित समूह के बच्चों को फ्री में पढ़ाया जाता हैः रिपोर्ट

शिक्षा के अधिकार वाले कानून के तहत सभी निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को आर्थिक रूप से कमजोर (ईडब्ल्यूएस) पृष्ठभूमि से आने वालों बच्चों के लिए अपनी 25% सीटें आरक्षित रखनी चाहिए और उनसे कोई शुल्क नहीं लेना चाहिए. लेकिन एनसीपीसीआर की रिपोर्ट में पाया गया है कि केवल कुछ ही राज्यों ने इस नियम को लागू किया है.

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नई दिल्लीः राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स – एनसीपीसीआर) की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि देश भर में सिर्फ 16 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ही वंचित समूहों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (एकनॉमिकली वीकर सेक्शंस- ईडब्ल्यूएस) के छात्रों को बिना किसी शुल्क के निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में प्रवेश प्रदान किया जाता है.

एनसीपीसीआर ने बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 (जिसे आम तौर पर शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के रूप में जाना जाता है) की धारा 12 (1) (सी) के कार्यान्वयन पर यह रिपोर्ट तैयार की है. इस धारा के तहत, निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को बिना किसी प्रकार के शुल्क के वंचित समूहों/आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है.

इस रिपोर्ट (जिसे दिप्रिंट द्वारा भी देखा गया है) में कहा गया है कि असम, बिहार, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और झारखंड ही वे राज्य हैं जिन्होंने इस सेक्शन (धारा) को लागू किया है

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, गोवा, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, केरल, लक्षद्वीप, मणिपुर, नागालैंड, मेघालय, मिजोरम, पुडुचेरी, पंजाब, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल ने अभी तक इस नियम को लागू नहीं किया है.

राइट-टू-एजुकेशन (आरटीई) एक्ट के तहत, भारत में 6-14 आयु वर्ग के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी दी जाती है. हालांकि, आयोग की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कमजोर वर्गों से होने वाले नामांकन की संख्या काफी कम है.

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रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वंचित समूहों/आर्थिक रूप से कमजोर श्रेणी के तहत होने वाला बच्चों का नामांकन नामांकनों की कुल संख्या का सिर्फ 5.4 प्रतिशत है, जो कि आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार कम से कम 25 प्रतिशत होनी चाहिए.’

हालांकि एनसीपीसीआर की इस रिपोर्ट में शैक्षणिक वर्ष 2018-19 के आंकड़ों का हवाला दिया गया, लेकिन एनसीपीसीआर के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि तब से अब तक कुछ भी नहीं बदला है

इस रिपोर्ट इस साल जुलाई में शिक्षा मंत्रालय को इस नियम के समुचित कार्यान्वयन के लिए नए सिरे से निर्धारित मानक संचालन प्रक्रियाओं (स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसेड्यूर -एसओपी) के साथ सौंपी गई थी.

शिक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि फिलहाल मंत्रालय इस रिपोर्ट का अध्ययन कर रहा है और फिर इसके आधार पर निर्देश जारी करेगा.

एनसीपीसीआर के अनुसार केरल की रिपोर्ट सबसे खराब, राज्य सरकार ने ‘विसंगति’ की ओर इशारा किया

एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो के अनुसार, धारा 12(1)(सी) को लागू करने के मामले में केरल सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है.

कानूनगो का कहना है ‘हमें इस बात को लेकर भी निश्चित नहीं है कि क्या वे (केरल सरकार) आरटीई के अन्य प्रावधानों का ठीक से पालन कर रहे हैं और कक्षा 8 के बच्चों को भी मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा योजना के तहत शामिल कर रहे हैं. जहां तक हमें जानकारी है, वे इस योजना को केवल सातवीं कक्षा तक ही लागू कर रहे हैं.’

मगर, केरल सरकार ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि रिपोर्ट के किये गए वर्गीकरण के कारण यह विसंगति उत्पन्न हुई है.

ए.पी.एम. मोहम्मद हनीश, केरल के प्रधान सचिव, सामान्य शिक्षा ने कहा, ‘राज्य में ईडब्ल्यूएस के नामांकन का नियम लागू है. फिर भी मुझे इस बारे में विस्तार से समझने के लिए (इस रिपोर्ट की) पेचीदगियों का अध्ययन करना होगा.’

राज्य द्वारा मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रावधान के तहत आठवीं कक्षा के छात्रों को शामिल नहीं करने के आरोपों पर, उन्होंने कहा कि यह ‘विसंगति’ इस कारण से उत्पन्न हुई है क्योंकि केरल में काफी लंबे समय से कक्षा 7 को ही प्राथमिक विद्यालय के अंतिम चरण के रूप में माना जाता रहा है. उन्होंने कहा कि, ‘उच्च प्राथमिक शिक्षा यहां 8 वीं कक्षा से शुरू हो जाती है.’


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इस बारे में क्या कहती है नयी एसओपी?

इस अधिनियम के बेहतर कार्यान्वयन के लिए एनसीपीसीआर द्वारा तैयार की गयी नयी एसओपी में उन बच्चों को परिभाषित किया है जिन्हें वंचित समूहों और कमजोर वर्गों के तहत माना जा सकता है.

वंचित समूहों में आने वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (नॉन क्रीमी लेयर), डिनोटिफाइड जनजाति और खानाबदोश (घुमन्तू) जनजाति के बच्चों के साथ-साथ विकलांग/विशेष आवश्यकता वाले बच्चों, एचआईवी/एड्स से पीड़ित बच्चों, पारंपरिक यौनकर्मियों के बच्चों, शहीद सैनिकों/केंद्रीय सशस्त्र पुलिस के कर्मियों या अपने कर्तव्य का पालन करते हुए मारे गए लोगो के बच्चों को भी वंचित समुदायों के बच्चों के रूप में माना गया है.

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में अंत्योदय अन्न योजना के तहत पंजीकृत परिवारों/घरों के बच्चे, राज्य की गरीबी रेखा से नीचे की सूची में शामिल परिवार/घरों के बच्चे, और ऐसे माता-पिता/अभिभावकों के बच्चे शामिल होंगे जिनकी वार्षिक आय उपयुक्त सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम सीमा से कम है.

एसओपी यह भी कहती है कि किसी बच्चे के पिता/माता/अभिभावक, जो उस परिवार के कमाऊ सदस्य हैं, की मृत्यु के उपरांत अपेक्षित पात्रता प्रमाण पत्र जमा करने पर उसे भी ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत प्रवेश मिल सकेगा.

यह एसओपी इस बारे में भी बात करती है कि कैसे संचार माध्यमों और सामुदायिक तौर पर जोड़ने वालो पहलों की मदद और समर्थन से इस योजना को और प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है.

इसमें कहा गया है कि स्थानीय क्षेत्र में स्वयंसेवी संस्थाओं (एनजीओ) को बच्चों के प्रवेश/ नामांकन के लिए रैलियों, सार्वजनिक उद्घोषणाओं का आयोजन करना चाहिए, और जिस तिमाही में बच्चो का नामांकन होता है उस तिमाही के दौरान स्थानीय क्षेत्र में जागरूकता बढ़ाने के लिए पर्चे वितरित करना चाहिए.

इसमें आगे कहा गया है, ‘स्कूल को अपने नोटिस बोर्ड (सुचना पट) पर बच्चों के प्रवेश के संबंध में सभी सूचनाओं को सार्वजनिक रूप से सुलभ स्थान पर प्रदर्शित करनी चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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