नई दिल्ली: अशोका विश्वविद्यालय में छात्रों के समाचारपत्र में यह दावा किया गया है कि विश्वविद्यालय के संस्थापक स्कॉलर प्रताप भानु मेहता ने कुलपति के रूप में पद छोड़ने के लगभग दो साल बाद मंगलवार को प्रोफेसर के पद से भी इस्तीफा दे दिया है.
बुधवार रात अपने छात्रों को किए गए एक ईमेल में, मेहता ने संकेत दिया था कि ‘मौजूदा परिस्थितियां’ उनके विश्विद्यालय से बाहर निकलने का कारण बनीं हैं.
दिप्रिंट ने छात्रों के समाचार पत्र, द एडिक्ट की प्रतियां और साथ ही मेहता के ईमेल भी एक्सेस की हैं. भानु के बाहर निकलने के कारणों को लेकर न तो मेहता और न ही अशोका विश्वविद्यालय ने आधिकारिक तौर पर कोई टिप्पणी की है. मेहता को जब हमने टेक्स्ट मैसेज किया तो उन्होंने उस पर भी कमेंट करने से मना कर दिया.
इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए अशोका विश्वविद्यालय के ट्रस्टी और सह-संस्थापक विनीत गुप्ता ने कहा, ‘द एडिक्ट लेख तथ्यात्मक रूप से गलत है.’
दिप्रिंट को एक मैसेज के जवाब में गुप्ता ने कहा, ‘प्रताप भानु मेहता के छोड़कर जाने और अशोका विश्विद्यालय के नए परिसर अथवा चार साल के यूजी कार्यक्रम के लिए संवैधानिक अनुमोदन के साथ इसके कथित जुड़ाव के बारे में संपादित लेख तथ्यात्मक रूप से गलत है.’
उन्होंने कहा, ‘अशोका के नए परिसर के लिए लैंड (भूमि) का प्लॉट तीन साल पहले अधिगृहीत किया गया था. इस मामले में चार साल के यूजी कार्यक्रम के कारण होने और उसकी मंजूरी का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि यह एक राष्ट्रीय कानून द्वारा शासित है और किसी भी विश्वविद्यालय के लिए खासतौर पर नहीं है. वैसे भी चार साल के कार्यक्रमों को सभी विश्वविद्यालयों के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है. यह लेख विशुद्ध रूप से अनुमान पर आधारित है. कृपया इसे इसी तरह से मानिए.’
छात्र अखबार ने एक सूत्र का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि यह माना जा रहा था कि अगर मेहता इस्तीफा दे देते हैं, तो विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे प्रयासों से जमीन के नए भूखंड के अधिग्रहण में आसानी हो जाएगी.
अखबार ने यह भी दावा किया है कि, ‘एक वरिष्ठ फैकल्टी मेंबर, जिनसे हमारे सूत्रों ने बात की, के अनुसार यह माना जा रहा था कि अगर प्रो. मेहता इस्तीफा दे देते हैं, तो परिसर के विस्तार और नए भूखंड का अधिग्रहण करने में विश्वविद्यालय को आसानी हो जाएगी. साथ ही, इस बात के भी संकेत थे कि चार वर्ष के पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा और अशोका स्कॉलर्स प्रोग्राम के लिए औपचारिक मान्यता भी सौदे का हिस्सा बन सकती है.’
अशोका विश्वविद्यालय एडवांस्ड स्टडीज में पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा और रिसर्च कार्यक्रम चलाता है. जिसे अशोका स्कॉलर प्रोग्राम (एएसपी) के रूप में भी जाना जाता है. तीन साल के ग्रैजुएशन के बाद छात्र इसमें इसके लिए एडमिशन ले सकते हैं.
खुद मेहता ने भी पद छोड़ने के फैसले के पीछे परिस्थितियों का जिक्र तो किया लेकिन इन परिस्थितियों के बारे में जानकारी नहीं दी.
यह भी पढ़ें: अशोका विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रताप भानु मेहता ने प्रोफेसर के पद से भी दिया इस्तीफा
सरकार की आलोचना वाले कॉलम से खुश नहीं थे संस्थापक
अशोका विश्वविद्यालय, सोनीपत, हरियाणा में स्थित एक प्राइवेट लिबरल आर्ट्स यूनीवर्सिटी है. यह खुद को ‘दुनिया में सर्वश्रेष्ठ और लिबरल शिक्षा प्रदान करने वाला’ विश्वविद्यालय बताता है. इसकी स्थापना के लिए सामूहिक डोनेशन के बाद हुई. विश्वविद्यालय का कहना है कि यह छात्रों को ‘सोचने और सवाल करने’ के लिए प्रोत्साहित करता है.
हालांकि, मेहता और इसके बाद अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यन के इस्तीफे के बाद कई लिबरल बुद्धिजीवियों ने विश्वविद्यालय के बुनियादी संस्थापक सिद्धांत और ‘उदार शिक्षा’ के इसके विचारों पर सवाल उठाया है.
अशोका के एक फैकल्टी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय मेहता द्वारा सरकार की लगातार आलोचना किए जाने से सहज नहीं था.
‘य़ूनिवर्सिटी को कोशिश हमेशा मीडिया से दूर रहने की रही है. एक निजी संस्थान होने के नाते, यह सरकार विरोधी के रूप में अपनी छवि नहीं बनाना चाहता था लेकिन प्रताप के कॉलम से ऐसा हो रहा था और विश्वविद्यालय की तरफ लोगों का ध्यान जा रहा था.
‘संस्थापक इससे खुश नहीं थे, इसलिए उन्हें पहले कुलपति के पद को छोड़ने के लिए कहा गया, जिसने धीरे-धीरे उनके इस्तीफे का मार्ग प्रशस्त किया.’
मेहता के इस्तीफे की खबर के कुछ घंटे बाद इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा कि अशोका के ‘ट्रस्टियों ने झुकने के लिए कहने पर उसने रेंगना चुना है.’
अशोक विश्वविद्यालय की विशाल नेतृत्व टीम में कॉर्पोरेट और शिक्षा जगत के कुछ सबसे बड़े नाम शामिल हैं, जिनमें डालमिया भारत समूह के प्रबंध निदेशक, पुनीत डालमिया, जांबोरे इंडिया के निदेशक प्रणव गुप्ता; सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन, संस्थापक और अध्यक्ष आशीष धवन, इंफो एज के संस्थापक और कार्यकारी उपाध्यक्ष, संकरी बिखचंदानी, जो कंपनी Naukri.com चलाती है, जाम्बोरे शिक्षा प्रबंध निदेशक विनीत गुप्ता, अशोका के संस्थापक और ट्रस्टी भी हैं, और हड़प्पा शिक्षा के संस्थापक और एमडी, प्रमथ राज सिन्हा भी शामिल हैं.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)