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Friday, 22 November, 2024
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16 से 20 हजार तक अतिरिक्त एडमिशन- कैसे सांसद-मंत्रियों के कोटे ने केंद्रीय विद्यालयों पर बढ़ाया ‘बोझ’

केंद्रीय सरकार के इन स्कूलों में ये एडमिशन वहां उपलब्ध सीटों से ऊपर किए गए. केवीएस में शिक्षा मंत्री का कोटा पिछले साल खत्म कर दिया गया था, वहीं इस हफ्ते एमपी कोटा भी खत्म हो गया है.

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नई दिल्ली: साल 2017 से 2020 के बीच केंद्रीय विद्यालयों (केवी) में हर साल 16,000 से 20,000 अतिरिक्त छात्रों को प्रवेश दिया गया क्योंकि वे केंद्रीय शिक्षा मंत्री और सांसदों की सिफारिशों के साथ आए थे, यह बात दिप्रिंट को मिली जानकारी में सामने आई है.

ये एडमिशन अतिरिक्त माने जा रहे हैं क्योंकि ये केंद्र सरकार के इन स्कूलों में निर्धारित सीटों की संख्या से ऊपर थे. सिफारिशें विशेष कोटा के तहत की गई थीं, जिन्हें देशभर के केंद्रीय विद्यालयों की गवर्निंग बॉडी केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) ने अब समाप्त कर दिया है.

केवीएस की नियमित प्रवेश प्रक्रिया के तहत हर साल लगभग 1.2 लाख छात्रों के एडमिशन की क्षमता है. केवीएस के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि वे इन अतिरिक्त छात्रों के एडमिशन से उन पर बोझ बढ़ा, और इसलिए, पिछले साल शिक्षा मंत्री का विशेष एडमिशन कोटा खत्म करने के बाद पिछले मंगलवार को सांसदों का कोटा भी समाप्त कर दिया गया.

दिप्रिंट को केवीएस के शैक्षणिक वर्ष 2017-18 से 2021-22 तक का जो डेटा हासिल हुआ है, उससे पता चलता है कि 2017-18 में पूरे भारत में इन स्कूलों में एमपी और शिक्षा मंत्री कोटे के तहत 16,624 अतिरिक्त एडमिशन हुए. यह आंकड़ा 2018-19 में 17,158 था और 2019-20 में 16,263 और 2020-21 में 19,572 रही.

2021 में शिक्षा मंत्री का कोटा खत्म कर दिया गया. सांसद कोटे के तहत उस वर्ष केवी में कुल 7,301 अतिरिक्त एडमिशन हुए.

कोटे के तहत प्रत्येक सांसद को अपने निर्वाचन क्षेत्र के 10 छात्रों के नामों की सिफारिश करने की अनुमति थी, जबकि शिक्षा मंत्री का कोटा उनके विवेकाधीन होता था, जिसका इस्तेमाल इस पद (पहले मानव संसाधन विकास मंत्री) पर रहने वाले हर व्यक्ति ने अपने-अपने हिसाब से किया.

केवीएस का डेटा बताता है, पिछले पांच वर्षों में शिक्षा मंत्री के कोटे के तहत प्रवेश की अधिकतम संख्या 2020-21 में रही, जब रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ इस पद पर थे. उस शैक्षणिक वर्ष में मंत्री कोटे के तहत 12,295 एडमिशन हुए थे.

शिक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पद से हटने से ठीक पहले, पोखरियाल ने शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए लगभग 16,000 बच्चों के एडमिशन की सिफारिश की थी. हालांकि, तब तक यह कोटा खत्म कर दिया गया था.

डेटा दर्शाता है कि अलग-अलग शिक्षा मंत्रियों ने कोटे का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल किया. 2017-18 में मंत्री कोटे के तहत 8,978 एडमिशन हुए, जबकि 2018-19 में यह संख्या 9,012 रही. यह प्रकाश जावड़ेकर का कार्यकाल में हुआ जो उस समय मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय संभालते थे.

2019-20 शैक्षणिक वर्ष में इस कोटे के तहत 9,411 एडमिशन लिए गए, और 2020-21 में यह संख्या बढ़कर 12,295 हो गई. पोखरियाल जून 2019 में शिक्षा मंत्री बने थे और जुलाई 2021 तक उन्होंने यह पदभार संभाला.

केवीएस के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘हमें ये विशेष कोटा खत्म करना ही इसलिए पड़ा है कि क्योंकि इनके तहत होने वाले एडमिशन स्वीकृत सीट संख्या से अधिक होते थे. उदाहरण के तौर पर यदि किसी स्कूल में प्रवेश की स्वीकृत संख्या 100 है, तो हमें कोटे के तहत 20 अतिरिक्त छात्रों को प्रवेश देना पड़ता और संख्या बढ़ाकर 120 हो जाती, जिससे कक्षाओं पर अतिरिक्त बोझ बढ़ जाता.’

उन्होंने कहा, ‘अब जब कोटा खत्म हो गया है तो हमारे पास इतनी बड़ी संख्या में अतिरिक्त एडमिशन नहीं होंगे. इसका असर आने वाले समय में रिजल्ट की गुणवत्ता में नजर आएगा. हमने अभी जो कदम उठाया है, वह हमें आगे चलकर अच्छे नतीजे देगा.’

दिप्रिंट ने इस मामले पर ईमेल के जरिये जावड़ेकर और पोखरियाल की प्रतिक्रिया जाननी चाहिए, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया है. उनके जवाब देने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

संसद में सांसद कोटे पर चर्चा

कांग्रेस के लोकसभा सदस्य मनीष तिवारी की तरफ से यह तर्क दिए जाने के बाद कि 10 छात्रों का कोटा पर्याप्त नहीं है, हाल में संपन्न संसद सत्र में केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश के सांसद कोटे पर चर्चा हुई.

उन्होंने पिछले महीने कहा था, ‘हममें से हर सदस्य 15-20 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है और हर निर्वाचन क्षेत्र में कम से कम 35-40 लाख लोग होते हैं. मेरा अनुरोध है कि या तो आप कोटा 10 से बढ़ाकर 50 कर दें या इसे खत्म कर दें.’

इस पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सुझाव दिया कि अगर सदन सहमत होता है तो कोटा खत्म करने की दिशा में काम किया जा सकता है.

प्रधान ने कहा, ‘कोटे के तहत सीटों की संख्या पहले और भी कम थी, और केंद्रीय मंत्री के कार्यालय से भी कुछ सिफारिशें हुआ करती थीं. कोर्ट भी इस पर कुछ टिप्पणियां कर चुका है और यह थोड़ी अजीब स्थिति है. शिक्षा राज्य का विषय है लेकिन ये स्कूल उन सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को शिक्षा की सुविधा के लिए खुले थे, जिनका ट्रांसफर होता रहता है…यह सदन इस मामले पर विचार कर सकता है और अध्यक्ष भी इस बारे में हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं.’

इसके बाद, स्पीकर ओम बिरला ने इस मुद्दे पर फैसले के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने का सुझाव दिया था.

मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में कपिल सिब्बल के कार्यकाल के दौरान एक बार पहले भी शिक्षा मंत्री का कोटा समाप्त किया जा चुका था. हालांकि, बाद में इसे बहाल कर दिया गया जब स्मृति ईरानी 2014 में मानव संसाधन विकास मंत्री बनीं. इसे 2021 में फिर से खत्म कर दिया गया था.


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कुछ सांसद बोले—राहत मिली

कोटा खत्म होने को लेकर दिप्रिंट से बातचीत में संसद सदस्यों ने मिली-जुली प्रतिक्रिया दी. जहां कुछ सांसदों का कहना था कि अच्छा हुआ और उन्हें इससे ‘राहत’ मिली क्योंकि उन्हें बड़ी संख्या में प्रवेश अनुरोध मिलते थे और सभी को उपकृत करना मुश्किल था, वहीं अन्य ने कहा कि यह फैसला गरीबों को प्रभावित करेगा.

नाम न देने की शर्त पर एक भाजपा सांसद ने कहा, ‘यह एक अच्छा फैसला है क्योंकि सिर्फ 10 बच्चों की सिफारिश की जा सकती थी और मुझे हजारों की संख्या में अनुरोध मिलते थे. तो दूसरे हमेशा निराश महसूस करते थे. यदि हमारे पास और सिफारिश करने की शक्ति होती तो अलग बात थी, लेकिन यह विवेकाधीन कोटा नहीं होना ही बेहतर है, जिसका दायरा काफी सीमित है.

उन्होंने कहा, ‘कई लोग सोचते थे कि हम केवल उन लोगों की सिफारिश कर रहे हैं जो हमसे संबंधित हैं या हमारे करीबी हैं, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है. लेकिन धारणा यही बनी हुई थी.’

बिहार के एक अन्य सांसद ने भी इसी तरह की राय जाहिर की. इस सांसद ने कहा, ‘केवी में दाखिले के अनुरोधों पर कुछ करना हमारे लिए बेहद कठिन हो गया थे…हमें केवल 10 नामों की सिफारिश करने की अनुमति थी, लेकिन हमें सैकड़ों अनुरोध मिलते थे और उन्हें ठुकराना एक कठिन काम था.’

हालांकि, शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि इसका गरीबों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. उन्होंने बुधवार को ट्वीट किया, ‘सांसद कोटे के 10 के आवंटन के लिए सैकड़ों अनुरोध मिलते थे, जो ज्यादातर गरीबों और जरूरतमंद लोगों के होते थे, इसमें कई सिंगल मदर, पुलिस कर्मी शामिल होते थे. यह बेहद शर्म की बात है कि इसे भी खत्म कर दिया गया है.’

केवी में नियमित दाखिले कैसे होते हैं

केंद्रीय विद्यालयों में नियमित दाखिले की प्रक्रिया अलग-अलग कक्षाओं के लिए अलग-अलग है. पहली कक्षा में प्रवेश लॉटरी सिस्टम से होता है. स्कूल उपलब्ध सीटों की संख्या का उल्लेख करते हुए एक विज्ञापन निकालते हैं, और गैर-सरकारी कर्मचारियों के बच्चे भी प्रवेश के लिए पात्र होते हैं. एक बार विज्ञापन जारी होने के बाद, माता-पिता अपने बच्चों का वेबसाइट पर पंजीकरण कराते हैं, और लॉटरी सिस्टम के परिणामों की प्रतीक्षा करते हैं. केंद्रीय विद्यालयों में एससी/एसटी/ओबीसी के साथ-साथ विकलांग वर्ग के बच्चों के लिए भी सीटें आरक्षित होती हैं.

कक्षा 2 से 8 के लिए प्रवेश ‘प्राथमिकता श्रेणी’ प्रणाली के आधार पर होता है, जिसमें केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चों को प्राथमिकता दी जाती है. कक्षा 9 के लिए एक परीक्षा होती है और एक मेरिट सूची तैयार की जाती है, जिसके आधार पर प्रवेश होते हैं.

एडमिशन के लिए स्वीकृत संख्या

केवीएस के आधिकारिक दस्तावेजों के मुताबिक, केंद्रीय विद्यालयों में प्रत्येक कक्षा में स्वीकृत छात्र संख्या है, जिसे उन छात्रों को समायोजित करने के लिए 50 तक बढ़ाया जा सकता है जिनके माता-पिता केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं और शैक्षणिक वर्ष के मध्य में ट्रांसफर हो जाते हैं.

हालांकि, कुछ मामलों में सांसदों और शिक्षा मंत्री को आवंटित विशेष कोटे के कारण स्वीकृत संख्या 60 तक बढ़ा दी गई. इसके अलावा, सशस्त्र बल कर्मियों और केवीएस कर्मचारियों के बच्चों के साथ-साथ बहादुरी पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले बच्चों के प्रवेश के लिए भी अलग से विशेष कोटा है. हालांकि, केवीएस अधिकारियों का कहना है अधिकांश अतिरिक्त एडमिशन सांसदों और शिक्षा मंत्री के कोटे से ही हुए.

केवी लोकप्रिय क्यों हैं?

केवी इसलिए आकृष्ट करते हैं, क्योंकि केंद्र सरकार के इन स्कूलों में शिक्षा का स्तर गुणवत्तापूर्ण तो है ही, यहां पर फीस भी कम रहती है. केंद्रीय विद्यालयों में मासिक ट्यूशन फीस 200 रुपये से 400 रुपये प्रति माह के बीच होती है.

केंद्रीय विद्यालयों की 12वीं कक्षा के बोर्ड के नतीजे भी सरकारी स्कूलों में सर्वश्रेष्ठ रहते हैं. 2021 में अधिकांश केवी में कक्षा 12 के लिए पास प्रतिशत लगभग 100 फीसदी था.

नीलम पांडे के इनपुट के साथ

( इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


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