नई दिल्ली: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) अपने हाथों से सिख वोट नहीं खोने देना चाहती है. और इसी लक्ष्य ने भारत और कनाडा के बीच व्यावहारिक नीति समाधान खोजने के विकल्पों को कम कर दिया है. यह कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के पूर्व विदेश नीति सलाहकार ओमर अजीज लिखते हैं.
अजीज के सोशल मीडिया प्रोफाइल के मुताबिक वह जुलाई 2017 और जनवरी 2018 के बीच भारत पर ध्यान केंद्रित करते हुए कनाडा सरकार के लिए विदेश नीति सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं.
अजीज ने विदेश मंत्रालय में अपनी पहली ब्रीफिंग के दौरान अपने लेख में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे भारत-कनाडाई संबंध “गलत दिशा” में जा रहे थे.
द ग्लोब एंड मेल में एक ओपिनियन, जिसका शीर्षक है- द रियल रिजन्स कनाडाज रिलेशनशिप विथ इंडिया इज ब्रोक्न, में उन्होंने लिखा है, “सालों से कनाडाई उपनगरों में भारतीय खुफिया एजेंसियों के सक्रिय होने की अफवाहें थीं.”
अजीज ने कहा, “भारतीयों ने जवाबी आरोप लगाया कि कनाडा खालिस्तानी चरमपंथियों – भारत से विभाजित एक स्वतंत्र सिख मातृभूमि के समर्थकों – को प्रोत्साहन नहीं तो कम से कम आश्रय तो दे ही रहा है.”
अजीज ने आगे कहा, इसके परिणामस्वरूप दोनों पक्ष सालों तक इस मुद्दे पर एक-दूसरे के बारे में बात करते रहे.
इसके अलावा, उन्होंने बताया कि कनाडा में सिखों ने समुदाय के खिलाफ भारत की हिंसा की तुलना नरसंहार से की. इसमें 1985 में एयर इंडिया फ्लाइट 182 पर बमबारी की विरासत भी शामिल है, जिसके कारण मुख्य रूप से भारतीय मूल के 329 लोगों की मौत हो गई. यह 9/11 से पहले का सबसे घातक विमानन आतंकवादी हमला था. इस हमले के चलते दोनों-देशों के रिश्ते में जटिलता की एक और परत जुड़ गई.
अजीज ने जिन दो कारकों पर प्रकाश डाला है, जिसमें एक है वैश्विक मामलों में “हाल ही में और मौलिक रूप से” आया बदलाव. 2014 में भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 2016 में अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रम्प का चुनाव था.
वह लिखते हैं, “श्री. मोदी की विचारधारा भारत को मुख्य रूप से एक हिंदू राष्ट्र के रूप में देखती है, और जो कोई भी इसकी आलोचना करने की हिम्मत करता है, उसके खिलाफ यह जातीय अंधराष्ट्रवाद और शिकायत को बढ़ावा देता है. साथ ही एक ‘मजबूत व्यक्ति’ छवि के साथ मोदी कनाडा से किसी भी मुद्दे पर ज्ञान नहीं लेंगे.”
उन्होंने आगे लिखा, “दूसरा कारक डोनाल्ड ट्रम्प का चुनाव था, जिसने सभी का ध्यान वाशिंगटन डीसी में चल रही नाटकों की ओर आकर्षित किया. इस बीच, भारत इस समय तक पूरी तरह से राष्ट्रवादी हो गया था.”
अजीज का यह भी तर्क है कि मोदी के तहत, भारतीय लोकतंत्र को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, और इसमें “कोई संदेह नहीं” हो सकता है कि एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अल्पसंख्यकों के खिलाफ “भयानक और सत्तावादी तरीकों” से राज्य हिंसा का इस्तेमाल किया है.
ट्रूडो की घरेलू चिंताएं
2017 में, कनाडा में जन्मे सिख जगमीत सिंह संघीय संसद में सीटों की संख्या के हिसाब से कनाडा की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी – न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के नेता बने. इससे ट्रूडो को भारत और कनाडा के बीच खालिस्तान से संबंधित मुद्दों को हल करने के तरीके खोजने के प्रयास में विराम लग गया.
अजीज लिखते हैं, “कनाडा में लगभग 770,000 सिख हैं, जो देश में सबसे अधिक राजनीतिक रूप से संगठित समुदायों में से एक है. कनाडाई सिखों ने राजनेताओं पर लगातार वकालत और दबाव डालकर सिख न्याय के मुद्दे को एजेंडे में रखा है.”
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उन्होंने आगे लिखा, “सिख मुद्दे का भारत के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर व्यापक प्रभाव है. यह हर बैठक में, हर बातचीत के बिंदु पर, हर खींचतान में सामने आया. दुर्भाग्य से, कनाडाई राजनेताओं ने न तो सिखों और न ही भारत की इतनी परवाह की कि वे इस नीतिगत ध्यान दे सकें जिसके वे हकदार थे.”
‘कनाडा के यूरोसेंट्रिज्म से हुआ नुकसान’
अज़ीज़ बताते हैं कि भारत कनाडा को वैश्विक मामलों में एक “बिट प्लेयर” के रूप में देखता है.
उनका मानना है कि यह कनाडा के यूरोसेंट्रिज्म विश्व दृष्टिकोण का परिणाम है क्योंकि इसकी राजनीतिक स्थापना “ब्लैक एंड व्हाइट” है.
अजीज लिखते हैं, “पश्चिमी यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका पर हमारा ध्यान केंद्रित था. और कुछ मंत्री शायद ही लंदन या बर्लिन से आगे देखते थे. यही कारण है कि भारत के साथ-साथ चीन, लैटिन अमेरिकी देशों और अफ्रीका के अधिकांश देशों के साथ हमारे संबंध खराब हो गए हैं.”
यूरोसेंट्रिज्म और जातीय घरेलू लड़ाइयों ने कनाडा के दीर्घकालिक विदेश नीति टारगेट में बाधा पैदा की है. इसके चलते उसके भारत के साथ संबंध लगभग टूट गए हैं और पश्चिम लगभग विभाजन हो चुका है.
प्रमुख वैश्विक पुनर्गठन के साथ, जिसमें क्वार्ड चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता के प्रभाव में बढ़ोतरी भी शामिल है – में ओटावा को आमंत्रित नहीं किया गया. इसमें भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. अजीज का तर्क है कि यह चिंता की बात है कि ओटावा अब इसका हिस्सा नहीं है. ये भी एक कारण हो सकता है.
अजीज लिखते हैं, “कनाडा कभी भी अंतरराष्ट्रीय मामलों में एक प्रमुख शक्ति नहीं हो सकता है. लेकिन यह अभी भी अंतरराष्ट्रीय मामलों को लेकर गंभीर हो सकता है.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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