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Wednesday, 13 November, 2024
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चीन-पाकिस्तान सीमा से सटे 7 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सड़कें, पुल बनाने का काम पिछले दो साल में 75% बढ़ा

रक्षा मंत्रालय का डाटा दर्शाता है कि लद्दाख, जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित रणनीतिक ठिकानों पर सड़कों और पुलों समेत अन्य निर्माण कार्य का उद्देश्य जरूरत पड़ने पर तेजी से सैन्य तैनाती की व्यवस्था करना है.

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नई दिल्ली: रक्षा मंत्रालय का डाटा बताता है कि पिछले दो वर्षों के दौरान चीन और पाकिस्तान की सीमा से लगे सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सड़क और पुल जैसे महत्वपूर्ण सीमावर्ती बुनियादी ढांचे का निर्माण कार्य करीब 75 प्रतिशत तक बढ़ गया है.

लद्दाख, जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में स्थित रणनीतिक ठिकानों पर सड़कों और पुलों से जुड़े इस निर्माण कार्य का उद्देश्य जरूरत पड़ने पर तेजी से सैन्य तैनाती की व्यवस्था करना है.

दिप्रिंट के पास मौजूद मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो वर्षों में अकेले लद्दाख में ही सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की तरफ से किए जाने वाले बुनियादी ढांचे के विकास में 40 प्रतिशत की तेजी नजर आई है. बीआरओ रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करता है.

वित्त वर्ष 2018-19 में लद्दाख में बुनियादी ढांचे के विकास पर 750 करोड़ रुपये खर्च हुए थे जबकि चालू वित्त वर्ष में यह राशि 1,054 करोड़ रुपये हो गई है. अकेले पूर्वी लद्दाख में बीआरओ ने करीब 10 पुलों का निर्माण किया है.


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अन्य राज्यों में भी सीमावर्ती ढांचे का निर्माण

जम्मू-कश्मीर में इस वित्तीय वर्ष में बुनियादी ढांचे के विकास पर 1,144 करोड़ रुपये खर्च किए गए जो कि दो वर्ष पूर्व खर्च की राशि 788 करोड़ रुपये से 45 प्रतिशत अधिक है.

उत्तराखंड और अरुणाचल दो अन्य ऐसे राज्य हैं जहां पिछले दो वर्षों में सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास में काफी तेजी देखी गई है.

उत्तराखंड में जहां सीमावर्ती बुनियादी ढांचे के निर्माण कार्य में सबसे ज्यादा 174 प्रतिशत की वृद्धि दिखी है— दो वर्ष पहले 534 करोड़ रुपये के खर्च से बढ़कर चालू वित्त वर्ष में यह राशि 1,463 करोड़ रुपये हो गई. वहीं अरुणाचल प्रदेश में 104 प्रतिशत का उछाल दिखा है— खर्च दो साल में 843 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,716 करोड़ रुपये हो गया.

पंजाब, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे अन्य राज्यों में भी पिछले दो वर्षों में सीमावर्ती बुनियादी ढांचे के काम में काफी तेजी देखी गई है.

2017-18 में बढ़कर 5400 करोड़ रुपये होने से पहले 2009 और 2015 के बीच बीआरओ का बजट लगभग 4000 करोड़ रुपये रहता था. यह अब वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 11,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.

दिप्रिंट ने जैसा पहले रिपोर्ट किया था कि बीआरओ हिमाचल प्रदेश में पूह को लद्दाख में चुमार से जोड़ने वाली सड़क और उत्तराखंड में हर्सिल और हिमाचल प्रदेश में करचाम के बीच सड़क बनाकर भारत-चीन सीमा पर वाहन चलाने योग्य सड़क नेटवर्क के विस्तार की योजना बना रहा है.

इसने दौलत बेग ओल्डी के लिए बनाई जा रही एक वैकल्पिक सड़क पर भी काम शुरू किया है, जहां पूर्वी लद्दाख में भारत की सबसे ऊंची हवाई पट्टी स्थित है.

पूर्व सैन्य संचालन महानिदेशक (डीजीएमओ) लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया (सेवानिवृत्त) ने बताया कि बुनियादी ढांचे का विकास भारत के लिए सीमा प्रबंधन और रक्षा के लिहाज से बेहद अहम है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘उदाहरण के तौर पर चीन ‘तीन आर’ की रणनीति अपनाता है— रोड, राडार और रिजर्व. उनके पास पास अर्ली वार्निंग सिस्टम है, इसलिए वह बेहतर ढंग से जवाब दे सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘अच्छा बुनियादी ढांचा न केवल सेना को सक्रिय भूमिका में मदद करेगा, बल्कि जरूरत पर सैन्य दृष्टि से उपयुक्त कदम उठाने में भी मददगार होगा.’

उन्होंने आगे जोड़ा कि सीमावर्ती बुनियादी ढांचे का विकास बेहद अहम है और पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर ये किया भी गया है. चीन के साथ एलएसी पर यह 2005 में ही शुरू हुआ और बाद के वर्षों में वास्तव में इस पर कभी बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया.

उन्होंने कहा, ‘हम आशंकित थे कि वे (चीन) बुनियादी ढांचे का फायदा उठाएंगे…’

इस पर जोर देते हुए कि सीमा पर मजबूत बुनियादी ढांचा युद्ध रोकने की क्षमता को बढ़ाता है, पूर्व डीजीएमओ ने कहा कि इससे एलएसी के प्रभावी प्रबंधन में मदद मिलेगी.


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पिछले महीने 44 पुलों का उद्घाटन हुआ

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले महीने पश्चिमी, उत्तरी और उत्तर-पूर्वी सीमाओं पर स्थित रणनीतिक ठिकानों पर 44 प्रमुख पुलों का उद्घाटन किया. इसमें विभिन्न सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित 28 पुलों के अलावा लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश दोनों में आठ-आठ प्रमुख पुल शामिल थे.

बीआरओ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने उस दौरान एक बयान में कहा था कि पुल— जिनकी कुल लंबाई 3,506 मीटर है— सीमावर्ती क्षेत्रों में भारी नागरिक और सैन्य वाहनों की आवाजाही को आसान बनाएंगे, सीमावर्ती आबादी के लिए कनेक्टिविटी बढ़ेगी और सामरिक महत्व के क्षेत्रों में जरूरत पड़ने पर सैनिकों की ज्यादा तेजी से तैनाती की जा सकेगी.

हालांकि, चीन को लेकर यह कदम अच्छा नहीं रहा है, जिसने सीमावर्ती ढांचे के विकास को ‘दोनों पक्षों के बीच तनाव का मूल कारण’ करार दिया है.

सरकारी सूत्रों के अनुसार 44 पुलों और उन तक पहुंचाने वाली लिंकिंग रोड के निर्माण पर कुल लागत 286 करोड़ रुपये आई है.

इस वित्त वर्ष में 48 प्रमुख पुलों का निर्माण पूरा होना है

रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि बीआरओ इस वित्तीय वर्ष में देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में कुल 7,500 मीटर की लंबाई वाले 102 प्रमुख स्थायी पुलों के निर्माण पर काम कर रहा है. 102 में से 54 पुल पूरे हो चुके हैं जबकि बाकी 48 इस वित्तीय वर्ष में पूरे हो जाएंगे.

2018-19 में 2,817 मीटर सीमावर्ती पुलों का निर्माण किया गया था, जबकि 2019-20 में करीब 3,500 मीटर ऐसे पुलों का निर्माण हुआ.

इसके अलावा बीआरओ ने सशस्त्र बलों और सीमावर्ती आबादी की तत्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 60 बेली ब्रिज का निर्माण भी किया.

1990 के दशक में तैयार भारत-चीन सीमा सड़क कार्यक्रम के तहत बीआरओ जिन 61 सड़कों का निर्माण कर रहा है, उनमें से 40 पर काम पहले ही पूरा हो चुका है और अगले साल की शुरुआत तक 12 सड़कों का निर्माण पूरा करने का लक्ष्य है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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