नई दिल्ली: एयरोस्पेस क्षेत्र की दिग्गज एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन ऑफ चाइना (एवीआईसी) न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग की इस खबर के बाद सुर्खियों में है कि वह अमेरिकी कार्रवाई का अगला निशाना बन सकती है.
सरकारी स्वामित्व वाला यह समूह, जो 100 से अधिक सब्सीडियरी और 450,000 से अधिक कर्मचारियों के साथ कथित तौर पर एयरोस्पेस दिग्गज बोइंग और एयरबस दोनों को मिलाकर भी उससे बड़ा है, सालों से लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर और परिवहन व निगरानी में इस्तेमाल होने वाले विमानों का निर्माण कर रहा है. इनमें से कुछ को पिछले साल चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित समारोह में प्रदर्शित किया गया था.
जून में अमेरिका ने एवीआईसी को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा नियंत्रित या स्वामित्व वाली कंपनियों की सूची में डाला था, लेकिन ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट कहती है कि एवीआईसी को हुवावेई टेक्नोलॉजीज, बाइटडांस के टिकटॉक और टेनसेंट होल्डिंग्स के वीचैट की तरह अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है.
केवल सैन्य विमानों का निर्माण ही एवीआईसी की खासियत नहीं है. कंपनी की वेबसाइट इसके अन्य व्यवसायों की जानकारी देती है, जिसमें अमेरिकी कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर के तहत निर्मित कलपुर्जों के साथ विमान और निजी जेट बनाना भी शामिल है. इसका कार्यक्षेत्र काफी विविधतापूर्ण और वित्त सेवाओं, ऑटोमोबाइल, एयरपोर्ट, रेलवे और पुल आदि के निर्माण तक फैला हुआ है.
ऐसे समय जब भारत पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ गतिरोध में उलझा है, दिप्रिंट ने जिन तमाम रक्षा विशेषज्ञों से बात की उन्होंने कहा कि एवीआईसी अपने विशाल आकार के अलावा खास तरह के उपकरण निर्माण और रक्षा प्रौद्योगिकी में अपनी आत्मनिर्भरता के कारण भारत के लिए एक चुनौती है.
दिप्रिंट ने गहराई से इसकी पड़ताल की कि एवीआईसी क्या करती है, विकास के रास्ते पर कैसे आगे बढ़ी, अमेरिकी प्रतिबंधों की संभावित प्रासंगिकता क्या है और भारत को यह कैसे प्रभावित करती है.
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एवीआईसी का सैन्य विकास
एवीआईसी अपने मौजूदा स्वरूप में 2008 में चाइना एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन-1 (एवीआईसी-1) और चाइना एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन 2 (एवीआईसी-ΙΙ) के पुनर्गठन के बाद अस्तित्व में आई.
तरक्की की राह पर आगे बढ़ती एवीआईसी ने पिछले कुछ सालों में लड़ाकू विमानों, हेलिकॉप्टर, परिवहन और निगरानी विमानों की अच्छी खासी रेंज विकसित कर ली, और हालिया समय में कई तरह के मानवरहित हवाई वाहन (यूएवी) या ड्रोन बना रही है.
एवीआईसी और इसकी सहायक कंपनियों द्वारा निर्मित कुछ ख्यात विमानों और उपकरणों में जे-20, जे-10, जेएफ-17 और एफसी-31 लड़ाकू; वाई-20 और वाई-9 परिवहन विमान; जेड-9, जेड-10, जेड-19 और जेड-20 हेलीकॉप्टर; पीएल-5, पीएल-9 और टीवाई-90 मिसाइलें; एलएस-6 बम और विंग लूंग 1 और 2 ड्रोन आदि शामिल हैं.
चीन की पीएलए वायु सेना (पीएलएएएफ) द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले एवीआईसी के प्रमुख उपकरणों में राडार रोधी विमान जे-20 और जेड-19ई युद्धक हेलीकॉप्टर शामिल है.
‘माइटी ड्रैगन’ कहे जाने वाला चेंगदू जे-20 पांचवीं पीढ़ी का एक सिंगल-सीटर, ट्विन-जेट, ऑल-वेदर लड़ाकू विमान है जो राडार की पकड़ में नहीं आता है. वहीं, एवीआईसी की वेबसाइट जेड-19ई को खास तौर पर युद्ध में इस्तेमाल होने वाला विमान बताती है जिसे उन्नत एंटी-टैंक मिसाइलों, हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों, एरियल रॉकेट आदि के साथ ले जाया जा सकता है और जमीनी ठिकानों पर दुश्मन के टैंक, बख्तरबंद वाहनों और हवाई लक्ष्यों को भी निशाना बना सकता है.
दिप्रिंट ने चीन में घरेलू स्तर पर विकसित सैन्य परिवहन विमान वाई-20 के बारे में भी प्रकाशित किया था, जिसका बड़ी संख्या में निर्माण किया जा रहा है. इन विमानों की स्ट्रेटजिक लोकेशन किंगलाई, एक महत्वपूर्ण रणनीतिक परिवहन एयरबेस, में होना चीन को भारत के खिलाफ असाधारण हवाई क्षमता प्रदान करता है.
एवीआईसी निर्मित एक और विमान जेएफ-17, चीन और पाकिस्तान द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक हल्का बहु-उपयोगी विमान है, जो बियांड-विजुअल-रेंज (बीवीआर) हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल क्षमता के साथ-साथ हवा से सतह पर भी मार करने में सक्षम है.
एवीआईसी के बेड़े में खुफिया ढंग से टोही भूमिका और अन्य गतिविधियों के लिए हैरियर, एसडब्ल्यू-1, नाइटहॉक जैसी यूएवी की एक खासी रेंज है. विंग लूंग I और II का इस्तेमाल भी ड्रोन यूसीएवी के रूप में किया जा सकता है.
एवीआईसी के उपकरणों के आगे भारत पस्त
भारत के पास जेएफ-17 का जवाब स्वदेशी विकसित लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट ‘तेजस’ है, जिसे भारतीय वायु सेना (आईएएफ) में शामिल किया गया है. हालांकि, इसे खरीदने की योजना बना रही वायुसेना की तरफ से 83 ऐसे विमानों का ऑर्डर दिया जाना बाकी है.
भारतीय वायुसेना में शामिल एक अन्य स्वदेश विकसित उपकरण एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर ‘ध्रुव’ है. हाल ही में लेह में लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर का परीक्षण भी किया गया है.
भारत के एएमसीए (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) प्रोग्राम—पांचवीं पीढ़ी के प्लस फाइटर—को विकसित होने में अभी सात साल लगने की संभावना है, हालांकि वायुसेना ने एएमसीए मार्क-1 की दो स्क्वाड्रन और एएमसीए मार्क-2 की पांच स्क्वाड्रन की योजना बनाई है.
भारतीय वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एवीआईसी संयुक्त रूप से दुनिया की कुछ जानी-मानी रक्षा कंपनियों में शुमार है और इसकी बराबरी के लिए भारत को एक लंबा रास्ता तय करना होगा.
अधिकारी ने कहा, ‘इसके विशाल आकार की बराबरी कोई अन्य संगठन नहीं कर सकता. स्वदेशी रक्षा तकनीक के संदर्भ में भारत ने काफी कुछ हासिल किया है लेकिन उसे चीन के स्तर तक पहुंचने में कुछ समय लगेगा, क्योंकि उसने एवीआईसी के माध्यम से रक्षा उत्पादन में भारी निवेश किया है.’
अधिकारी ने कहा कि रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता अमेरिका, फ्रांस और रूस जैसे कुछ चुनींदा देशों ने ही हासिल की है और चीन एवीआईसी के माध्यम से एक तरह से उस मुकाम तक पहुंच गया है, हालांकि उसके पास कुछ अहम प्रौद्योगिकी का अभाव है.
अधिकारी ने कहा, ‘युद्ध के दौरान आत्मनिर्भरता सबसे ज्यादा मायने रखती है, जिसमें कोई देश किसी अन्य देश पर निर्भर न हो. भारत ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है, लेकिन अभी एक लंबा रास्ता तय करना है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अतिरिक्त कलपुर्जों की उपलब्धता और मशीनों को बदलने की क्षमता भी युद्ध के दौरान टिके रहने के लिए बेहद जरूरी होती है और ऐसे में आपका स्वदेशी उद्योग एक अहम भूमिका निभाता है.’
उन्होंने कहा, ‘एवीआईसी की कई सहायक कंपनियां हैं जो तत्काल आवश्यकताओं के आधार पर चीन के लिए कस्टम-मेड उत्पाद तैयार कर सकती हैं. भारत को आने वाले सालों में ऐसा कुछ करने के बारे में सोचना होगा.’
वायुसेना के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि मॉडर्न बैटलफील्ड में प्रौद्योगिकी पूरी से बाजी पलटने वाली है. उन्होंने कहा, ‘भारत और चीन के बीच अप्रैल से ही तनातनी चल रही है, ऐसे में एवीआईसी पर अमेरिकी प्रतिबंधों की आशंका प्रौद्योगिकी और रक्षा उद्योग में चीनी दखल रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव को बढ़ाएगी.’
अधिकारी ने कहा, ‘अधिकांश हथियारों का निर्माण एवीआईसी और उसकी सहायक कंपनियां घरेलू स्तर पर ही करती हैं, जिसमें थोड़ी-बहुत ही बाहरी मदद ली जाती है. एवीआईसी पर अमेरिकी पाबंदियों का असर केवल तभी पता लग सकता है जब प्रतिबंध लगाए जाते हैं और मौजूदा परियोजनाओं का भविष्य निर्धारित होता है.”
एक तीसरे वरिष्ठ आईएएफ अधिकारी ने बताया कि बेहतरीन धातु विज्ञान की आवश्यकता और निर्माण और आरएंडडी संबंधी जटिलताओं के कारण विमान इंजन विनिर्माण प्रौद्योगिकी कुछ देशों तक ही सीमित है. भारत का कावेरी इंजन कार्यक्रम भी तकनीकी बाधाओं के कारण ठप हो गया था.
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भारत को क्या करने की जरूरत है
विशाल निगम की पुस्तक ड्रैगन इन द एयर, जो चीन के विमानन उद्योग और पीएलएएफ में आए बदलावों की जानकारी देती है, में बताया गया है कि कुछ विशेषज्ञ चीन के विमानन उद्योग के विकास को अमेरिका और यूरोप के बाद दुनिया में तीसरे स्तर का मानते हैं.
निगम का कहना है कि हथियार को इस्तेमाल में लाने के लिए पूंजी की उपलब्धता, वाणिज्यिक विमानन क्षेत्र से ‘स्पिन-इन बेनिफिट्स’ और वैश्विक उत्पादन व्यवस्था का हिस्सा बनना एवीआईसी के विकास का ग्राफ तेजी से बढ़ने और उसमें त्वरित बदलावों के बड़े कारण हैं.
निगम ने अपनी किताब में लिखा है, ‘नागरिक विमान क्षेत्र को आने वाले समय में पीएलए की जरूरतें पूरा करने में सक्षम बनाने का मूल सिद्धांत ‘रूपांतरण’ के जरिये नहीं, बल्कि इंटीग्रेशन की प्रक्रिया में निहित है.’
उनके मुताबिक, ‘ये फैक्टर काफी हद तक सुधारों की प्रभावशीलता का आकलन करने और चीन की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की एक रूपरेखा तैयार करते हैं.’
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के पूर्व सदस्य जयदेव रानाडे ने दिप्रिंट को बताया कि एवीआईसी के पास बहुत अधिक नकदी है, और कोविड-19 के बावजूद मांग के कारण सरकारी स्वामित्व वाले रक्षा उपक्रम के शेयर चढ़े हैं.
सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रैटेजी के प्रमुख रानाडे ने कहा कि सैन्य प्रौद्योगिकी और हुवावेई जैसी चीनी तकनीकी कंपनियों पर अमेरिकी पाबंदी अन्य चीजों के अलावा लेजर इमेजिंग और माइक्रोचिप्स के उत्पादन को प्रभावित कर रही है.
उन्होंने कहा, ‘इसलिए, माइक्रोचिप्स आदि की खरीद पर पाबंदियां लगने से एवीआईसी द्वारा अत्याधुनिक सैन्य उपकरणों—जैसे गाइडेंस सिस्टम और रडार—का निर्माण भी प्रभावित होगा.’
यह पूछने पर इस पर उनकी क्या राय है कि एवीआईसी निर्मित उपकरणों के आगे भारत कैसे पस्त है, रानाडे ने कहा कि बहुत से सैन्य अधिकारियों का कहना है कि हमारे विमान अच्छी गुणवत्ता के नहीं हैं, भारत को इसे लेकर चिंतित होना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘उनकी विमान प्रौद्योगिकी पश्चिमी देशों के विमानों का मुकाबला नहीं कर सकती है. लेकिन भारत के पास एक सीमित निर्माण क्षमता है, और यह भारत के लिए चिंता का एक कारण है.’
रानाडे ने कहा, ‘चीन की सोच तकनीकी के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल पर केंद्रित है. अगर आपके पास 100 विमान हैं, तो भी वे एक बार में 500-600 विमानों का निर्माण करने के बारे में सोचेंगे.’
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