गांधीनगर: संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की एक फर्म काराकल, जो सबसे कम बोली लगाने वाली फर्म के रूप में उभरने के बावजूद भारतीय थल सेना के क्लोज-क्वार्टर बैटल (सीक्यूबी) कार्बाइन की आपूर्ति के लिए एक मेगा डील (बड़े से सौदे) में हार गई थी, ने अब ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत एक भारतीय कंपनी के साथ मिलकर स्मॉल आर्म्स वाले अपने उत्पादों की श्रृंखला (पोर्टफोलियो) का उत्पादन करने के लिए करार किया है.’
हालांकि, इस फर्म ने अभी तक भारत में अपनी विनिर्माण इकाई स्थापित करने के लिए किसी स्थान का चयन नहीं किया है, मगर काराकल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) हमद सस्लेम अल अमेरी ने दिप्रिंट को बताया कि वे पहले से ही कार्बाइन और स्नाइपर, जिनका निर्माण इसके यूएई स्थित कारखाने किया जा रहा है, के लिए 50 प्रतिशत से अधिक घटकों (कंपोनेंट्स) की आपूर्ति भारत से ले रहे हैं.
उन्होंने गुजरात की राजधानी में आयोजित होने वाले डेफएक्सपो 2022 के मौके पर कहा, ‘हम भारतीय बाजार के बारे में बहुत आशावादी हैं, जो सशस्त्र बलों और पुलिस को एक साथ मिलाकर विचार करें तो बहुत बड़ा है. पिछले डेढ़ साल से हम भारत से ही अपनी राइफलों के कई घटकों की आपूर्ति प्राप्त कर रहे हैं. 50 प्रतिशत से अधिक घटक भारत से होते हैं.’
यूएई की इस फर्म ने भारत में अपने पोर्टफोलियो को बाजार में लाने के लिए आईकॉम टेली लिमिटेड के साथ भागीदारी की है – यह एक ऐसी भारतीय कंपनी जो इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में काम करती है और इसे स्मॉल आर्म्स के बारे में कोई पूर्व अनुभव नहीं है.
काराकल के सीईओ ने कहा, ‘हमारे भारतीय साझेदार के पास छोटे हथियारों के बारे में पहले से कोई अनुभव नहीं हो सकता है, लेकिन वे अपनी विशाल तकनीकी विशेषज्ञता के साथ आते हैं. हम यहां एक विनिर्माण संयंत्र स्थापित करेंगे जहां हम बैरल के निर्माण की भी योजना बना रहे हैं.’
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क्लोज-क्वार्टर बैटल कार्बाइन के लिए थल सेना की तलाश
क्लोज-क्वार्टर बैटल (सीक्यूबी) कार्बाइन परियोजना को सेना द्वारा 2008 में अपनी पुरानी और लगभग अप्रचलित 9 मिलीमीटर ब्रिटिश स्टर्लिंग 1ए1 सबमशीन गन को बदलने के लिए शुरू किया गया था, जो अभी भी इसकी सेवा में हैं.
भारत सरकार के स्वामित्व वाले रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) दोनों ही भारतीय थल सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहे थे और इसलिए साल 2011 में 44,618 सीक्यूबी कार्बाइन की खरीद के लिए एक वैश्विक निविदा जारी की गई थी.
हालांकि, इस निविदा में चार कंपनियों – इज़राइल की आईडब्ल्यूआई, इतालवी कंपनी बेरेटा और अमेरिकी फर्मों कॉल्ट और सिग सौर – ने भाग लिया, मगर केवल आईडब्ल्यूआई ही योग्य पाई गई, क्योंकि अन्य सभी दावेदार ‘नाइट विजन माउंटिंग सिस्टम’ से संबंधित क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट्स को पूरा नहीं कर सके.
इसके बावजूद, रक्षा मंत्रालय आईडब्ल्यूआई के साथ आगे के सौदे के लिए नहीं बढ़ा, क्योंकि यह एक एकल विक्रेता (सिंगल वेंडर) वाला मामला बन गया था, जिसकी सरकार की खरीद नियमावली के अनुसार अनुमति नहीं है.
इस बाद साल 2017 में, सेना ने 2 लाख कार्बाइन की खरीद के लिए, एक वैश्विक सूचना अनुरोध (रिक्वेस्ट फॉर इनफार्मेशन) यह जानकारी इकट्ठा करने के लिए जारी किया कि बाजार में क्या उपलब्ध है. साथ ही, फास्ट ट्रैक प्रोसेस (एफ़टीपी) के तहत 93,895 कार्बाइन की खरीद के लिए एक प्रक्रिया अलग से शुरू की गई.
एफ़टीपी के तहत काराकल सबसे कम बोली लगाने वाले दावेदार के रूप में उभरा था, लेकिन इसके सीएआर 816 की खरीद का अनुबंध कई मुद्दों की वजह से परेशानी में पड़ गया था, जिसमें इसकी लागत और अन्य बोली लगाने वाले दावेदारों की तरफ से की गईं शिकायतें भी शामिल थीं.
साल 2020 में, दिप्रिंट ने बताया था कि सरकार ने इस परियोजना को पूरी तरह से रद्द करने का फैसला किया है.
हालांकि, इस साल की शुरुआत में, पहली बार 2008 में शुरू की गई सीक्यूबी परियोजना को पुनर्जीवन तब मिला जब रक्षा मंत्रालय ने ऐसे लगभग चार लाख हथियारों को शामिल करने की योजना को अपनी मंजूरी दे दी.
हालांकि रक्षा मंत्री इस बात पर चुप्पी साधे हुए हैं कि यह खरीद ‘बाई इंडियन’ श्रेणी के माध्यम से होगी या स्वदेशी रूप से डिज़ाइन, विकसित और निर्मित (इंडिजनसली डिज़ाइनड डेवलप्ड एंड मैन्युफैक्चर्ड) आईडीडीएम मार्ग के जरिए, मगर रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया था कि यह पहले वाले तरीके से ही होगा.
‘बाई इंडियन’ श्रेणी के माध्यम से खरीद का मतलब होगा कि कारकल सहित कई विदेशी कंपनियां, जिनके पास भारतीय फर्मों के साथ संयुक्त उद्यम हैं या आगे चलकर होंगें, इसमें भाग ले सकेंगीं.
इस दौड़ में बनी हुई मुख्य कंपनियां बेंगलुरू स्थित निजी रक्षा फर्म एसएसएस डिफेंस, भारत सरकार के स्वामित्व वाली ओएफबी, अदानी समूह की पीएलआर और कल्याणी समूह – जिसका फ्रांसीसी कंपनी थेल्स के साथ गठजोड़ तो है पर यह डीआरडीओ के साथ भी बातचीत कर रही है – आदि होगीं.
जिंदल समूह, जिसने टॉरस नाम के ब्राजीलियाई फर्म के साथ करार किया है, और नेको डेजर्ट टेक, जो भारतीय और अमेरिकी फर्मों के बीच एक संयुक्त उद्यम है, भी इस सौदे के लिए मैदान में होंगे.
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