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Friday, 29 March, 2024
होमडिफेंसचीनी टेक्नॉलजी की ‘समस्याओं’ से चिढ़ी पाकिस्तानी सेना, रक्षा के लिए फिर से कर रही है US को मनाने की कोशिश

चीनी टेक्नॉलजी की ‘समस्याओं’ से चिढ़ी पाकिस्तानी सेना, रक्षा के लिए फिर से कर रही है US को मनाने की कोशिश

रावलपिंडी की कोशिश है कि रक्षा सहयोग और पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे लिस्ट से हटाने के बीच संतुलन बनाया जाए. पश्चिमी देश उपकरण देने से मना कर रहे हैं, और सौदे रद्द कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: इधर पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान ख़ान अपनी पश्चिम-विरोधी बयानबाज़ी तेज़ कर रहे हैं और उन्हें सत्ता से हटाने के लिए एक वैश्विक षडयंत्र का आरोप लगा रहे हैं. उधर पाकिस्तानी सेना पश्चिमी ताक़तों, ख़ासकर अमेरिका के साथ अपने रिश्ते फिर से जोड़ने की कोशिश कर रही है- जैसा कि सेना प्रमुख क़मर बाजवा ने पिछले सप्ताह एक सेमिनार में इशारा किया.

रक्षा व सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तानी सेना देश को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट से हटवाने की कोशिश कर रही है और पश्चिम के साथ रक्षा सहयोग चाहती है- जो पाकिस्तान की आतंकवाद को मदद के चलते उसे उपकरण देने से लगातार इनकार कर रहा है और सौदे रद्द कर रहा है.

सूत्रों के अनुसार ऐसा इसलिए है कि पाकिस्तानी सेना का अनुभव कुछ चीनी वस्तुओं के साथ अच्छा नहीं रहा है जो उन्होंने ख़रीदी हैं.

सूत्रों ने बताया कि पिछले कुछ सालों में ख़रीदे गए चीनी उपकरणों में जिनमें एक मुख्य युद्धक टैंक, तोपख़ाना और वायु रक्षा उपकरण शामिल हैं, सर्विसिंग और प्रदर्शन को लेकर काफी समस्याएं आ रही हैं.

सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तान ने पहले ही पनडुब्बियों के एक नए सेट के लिए चीन से एक अनुबंध पर दस्तख़त कर लिए है लेकिन अमेरिका और फ्रांस के अलावा जर्मनी जैसे पश्चिमी देशों के पाकिस्तान को रक्षा टेक्नॉलजी देने से इनकार का देश की रक्षा तैयारियों पर असर पड़ा है.

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इसमें पाकिस्तान नौसेना के लिए उसकी अगोस्ता 90बी क्लास पनडुब्बियों को एयर-इंडीपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) से अपग्रेड करने और पाकिस्तानी वायुसेना के मिराज 2000 विमानों के बेड़े को अपग्रेड करने से फ्रांस का इनकार भी शामिल है.

जर्मनी ने भी 2020 में पाकिस्तान की पनडुब्बियों को एआईपी तकनीक से अपग्रेड करने से मना कर दिया था.


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बाजवा ने कहा- पश्चिम को संतुलन’ बनाए रखना होगा

पाकिस्तानी सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा ने वीकएंड पर एक सेमिनार में इन मुद्दों पर रोशनी डाली.

दर्शकों की ओर से एक सवाल पर कि अगले 10 वर्षों में वो चीन के साथ सुरक्षा सहयोग को कैसे देखते हैं, सेना प्रमुख ने कहा कि पाकिस्तान ‘ख़ेमेबंदी की सियासत’ की ओर नहीं देख रहा है.

हालांकि वो आयोजन एक बंद कमरे में था लेकिन उनके भाषण के वीडियोज़ सोशल मीडिया पर आ गए हैं.

जनरल बाजवा ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान के अमेरिका के साथ बहुत अच्छे रिश्ते रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘आज हमारे पास जो एक अच्छी सेना है जो काफी हद तक अमेरिका ने बनाई और प्रशिक्षित की है. हमारे पास जो बेहतरीन उपकरण हैं वो अमेरिकी उपकरण हैं’.

उन्होंने कहा कि पश्चिम के उपकरण देने से इनकार की वजह से पाकिस्तान का चीन के साथ सैन्य सहयोग बढ़ रहा है.

पाकिस्तान के आतंकवाद को निरंतर समर्थन की वजह से बहुत से सौदे जो पश्चिम से किए गए थे वो रद्द कर दिए गए हैं.

जनरल बाजवा ने आगे चलकर अमेरिका का भी उदाहरण दिया जिसने एक तुर्की हेलिकॉप्टर गनशिप्स के इंजिन्स के लिए तीसरे पक्ष का प्रमाणीकरण देने से इनकार कर दिया जिसे पाकिस्तानी ख़रीद रहे थे.

उन्होंने फ्रांस और जर्मनी के पाकिस्तानी पनडुब्बियों को अपग्रेड करने से इनकार पर भी बात की और कहा कि इसकी वजह से पाकिस्तान को मजबूरन चीन की ओर देखना पड़ा.

फ्रांस ने भी पाकिस्तानी वायुसेना के मिराज लड़ाकू विमानों को अपग्रेड करने से मना कर दिया था. पाकिस्तान का मानना है कि नई दिल्ली के दबाव की वजह से ऐसा किया गया था क्योंकि नई दिल्ली एक बड़ा रक्षा बाज़ार है.

उन्होंने आगे कहा पश्चिम की ज़िम्मेदारी है कि वो एक ‘संतुलन’ बनाए रखे.

शीतयुद्ध काल के मृत हो चुके गठबंधनों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘अगर आप पूरी तरह से एक ओर झुके होंगे तो हम ऐसे स्रोत तलाश लेंगे जहां से हम अपनी रक्षा के लिए हथियार हासिल कर सकते हैं. आपको आत्ममंथन करने की ज़रूरत है कि आपकी नीति सही है कि नहीं. हम बहुत लंबे समय से आपके सहयोगी रहे हैं, हम सीटो, सेंटो, और बग़दाद समझौते का हिस्सा थे’.

उन्होंने कहा, ‘हमने वियतनाम में आपका समर्थन किया, अफगानिस्तान में आपका समर्थन किया, पूर्व सोवियत संघ के विघटन में हमने आपकी सहायता की और कल जो आपने कीचड़ फैलाई है, हम उसे साफ करने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए हमने बहुत क़ीमत चुकाई है. आप हमारे लिए क्या कर रहे हैं? मुझे आपसे सवाल पूछना होगा. आप एक संतुलित नज़रिया बनाए हुए हैं या नहीं’.

उन्होंने कहा कि अगर पश्चिम को लगता है कि पाकिस्तान में बहुत अधिक चीनी प्रभाव है तो उससे निपटने का एक ही तरीक़ा है कि आप जवाबी-निवेश लेकर आएं.

सूत्रों ने समझाया कि पाकिस्तान धीरे धीरे फिर से पश्चिम ख़ासकर अमेरिकी प्रतिष्ठान का कृपा-पात्र बनने की कोशिश कर रहा है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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