अग्निपथ योजना के जरिये सैन्य भर्ती प्रक्रिया में व्यापक स्तर पर बदलाव की नरेंद्र मोदी सरकार की कोशिश के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में संभावित सैन्य उम्मीदवारों का जोरदार प्रदर्शन जारी है. यहां तक की सरकार समर्थक रुख के लिए चर्चित पूर्व सैनिक भी इस योजना की तीखी आलोचना पर उतर आए हैं.
Was flabergasted by the Agniveer scheme. I thought initially it was a trial being done on a pilot basis. this is an across the board change to convert Indian armed forces to a short tenure quasi- conscript forceLike the Chinese. ForGods sakePLEASE DONT do it
— Maj Gen (Dr)GD Bakshi SM,VSM(retd) (@GeneralBakshi) June 14, 2022
एक झटके में पूरे सिस्टम को हिलाकर रख देने वाली अग्निपथ जैसी योजनाओं को लागू करने से पहले उन्हें व्यापक स्तर पर जांचा-परखा जाना चाहिए था.
हालांकि, ऊपरी तौर पर देखें तो अग्निपथ कोई बुरी योजना नहीं है. विरोध प्रदर्शन हों या नहीं, सशस्त्र बल रोजगार पैदा करने वाला कोई पोर्टल नहीं है. सशस्त्र बलों के अंदर और पूर्व सैनिकों की तरफ से जताई जा रही आपत्तियां समझी जा सकती हैं.
आखिरकार, अक्सर कहा जाता है कि सैन्य मानस में कोई नया विचार डालने से कहीं ज्यादा कठिन है किसी पुराने विचार को उससे निकालना. बहरहाल, सबसे पहले यह स्पष्ट होना चाहिए कि अग्निपथ के बारे में शुरू में क्या सोचा गया और यह किस रूप में सामने आई.
जब पहली बार इस योजना के बारे में सोचा गया और इसे सार्वजनिक किया गया, तो टूर ऑफ ड्यूटी कहा गया था. इसकी अवधारणा के बारे में स्पष्ट करते हुए तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने कहा था कि यह विचार तब आया जब सेना को कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में जाने के बाद पता चला कि युवा सैन्य जीवन का अनुभव हासिल करने के लिए उत्सुक हैं.
उन्होंने कहा था, ‘जब हमारे अधिकारियों ने कॉलेजों में युवाओं को संबोधित किया, तो हमें लगा कि वे सैन्य जीवन का अनुभव तो करना चाहते हैं लेकिन करियर के तौर पर इसे अपनाना नहीं चाहते. इसी बात को ध्यान में रखकर यह सोचा गया कि क्यों न उन्हें दो से तीन साल तक सेना का हिस्सा बनने का मौका दिया जाए.’
लेकिन सैन्य जीवन कोई पिकनिक स्पॉट तो है नहीं कि जिसका मन चाहा, यहां घूमने आ गया और सब-कुछ देखने-सुनने के बाद लौट गया. तो जो लोग यह तर्क दे रहे हैं कि सेना कोई पर्यटन स्थल नहीं है, बिल्कुल सही कह रहे हैं.
अग्निपथ योजना टूर ऑफ ड्यूटी की तुलना में कहीं बहुत अलग है और इसी में सारा अंतर निहित है. यह एक ऐसी योजना है जिसके माध्यम से अधिकारी स्तर के पद से नीचे के सभी भावी रंगरूटों की भर्ती की जाएगी. इसे टूर ऑफ़ ड्यूटी प्रस्ताव के साथ जोड़कर भ्रमित नहीं होना चाहिए.
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सकारात्मक पहलू
हालांकि, इस योजना के पक्ष में और इसके खिलाफ तमाम तरह के तर्क दिए जा रहे हैं, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि यह भारी-भरकम पेंशन बिल को घटाने में मददगार होगी जो मौजूदा समय में करीब 1.19 लाख करोड़ रुपये है.
इसलिए, सरकार आपको चाहे जो कुछ भी बताए, इस योजना को लाने के पीछे उसकी असली मंशा कहीं न कहीं बढ़ते पेंशन खर्च पर अंकुश लगाने की ही रही होगी. चूंकि कुल भर्तियों में से 75 प्रतिशत को हटा दिया जाएगा और बाकी रंगरूटों को पेंशन पाने के लिए कम से कम 15 साल और अपनी सेवाएं देनी होंगी, ऐसे में जाहिर है कि पेंशल बिल निश्चित तौर पर कम हो जाएगा.
इस योजना का एक अन्य लाभ यह भी है कि इससे सेना की एज प्रोफाइल (औसत आयु) कम हो जाएगी, जो अभी 32 वर्ष है. अग्निपथ पर अमल के बाद कुछ वर्षों में यह संख्या घटकर 26 पर पहुंच जाएगी. इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि अधिकांश सैनिक, खासकर हथियारों के साथ लड़ने वाले युवा और अविवाहित हों, क्योंकि इसमें साढ़े 17 वर्ष से 21 वर्ष (कानूनन शादी के लिए न्यूनतम उम्र) के बीच के लोगों की भर्ती की जाएगी.
हर चार साल में सैनिकों के चले जाने और नए रंगरूटों के आने से उन्हें सामूहिक ताकत के साथ तेजी से बदलती टेक्नोलॉजी के अनुरूप ढालना आसान होगा, जो आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत भी है.
अनुभवी सैनिकों और अग्निवीरों के बीच कोई संतुलन न होने को लेकर चिंतित लोग इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि कुछ वर्षों में चयनित उम्मीदवारों में से 25 प्रतिशत अनुभवी सैनिक बन जाएंगे.
अग्निपथ के तहत सेना में शामिल होने वाले पूरे देश के और सभी वर्गों के होंगे. इसलिए ऐतिहासिक रेजिमेंट भले ही जाति के नाम पर बनी रहें लेकिन कुछ सालों में इसकी वर्ग संरचना जरूर बदल जाएगी. सेना से बाहर के लोग जाति-वर्ग का दबदबा खत्म होने से खुश होंगे. लेकिन जिन लोगों का मानना है कि एकजुट होकर जंग लड़ने के लिए जाति संरचना महत्वपूर्ण है, उन्हें नौसेना और वायु सेना को गौर से देखना चाहिए.
इसमें कोई दोराय नहीं है कि इस योजना में समय के साथ बदलाव होंगे, जिस तरह कोई भी अनुभव से ही सीखता है. तमाम तरह की आशंकाओं को दूर करने के लिए मैंने जिन सरकारी सूत्रों से बात कही, उनका यही कहना था कि यह तो बस एक शुरुआत है और कुछ भी पत्थर की लकीर नहीं है, जब और जैसी भी जरूरत होगी, उसमें बदलाव किए जाएंगे.
क्या हैं खामियां
अग्निपथ में कई ऐसे पहलू हैं जिनके बारे में सरकार को पहले सोचना चाहिए था.
अग्निपथ योजना पर अमल करना कुछ उसी तरह की समस्या है, जिन्हें यह सरकार पहले भी झेल चुकी है—भले ही वे इसको नेक विचार के साथ सामने लाए हों लेकिन लागू करने की हड़बड़ी में विभिन्न पहलुओं को ठीक से परखा नहीं गया. यह स्थिति कुछ उसी तरह की है कि कोई विमान से छलांग लगा देने के बाद यह देखे कि पैराशूट उसकी पीठ पर है या नहीं.और उन 75 प्रतिशत अग्निवीरों का क्या होगा जिन्हें सशस्त्र बल बाद में छोड़ देंगे?
अग्निवीरों को 11.71 लाख रुपये का सेवा निधि पैकेज दिया जाएगा, जिसमें सेवानिवृत्ति के बाद ब्याज (कर मुक्त) शामिल है और वे पैकेज के आधार पर तीन साल या उससे अधिक के लिए 18.2 लाख रुपये तक का बैंक ऋण भी ले सकेंगे. लेकिन क्या यह उनके आगे के जीवन को पटरी पर बनाए रखने के लिए पर्याप्त है?
नौकरी का क्या होगा? बारहवीं कक्षा तक की योग्यता रखने वाला और चार साल सैनिक रहा युवा नौकरी के बाजार में खुद को कहां खड़ा पाएगा? सरकार का कहना है कि निजी क्षेत्र उन्हें रोजगार देने के लिए उत्साहित है. लेकिन वे किस तरह की नौकरियों में उतरेंगे? सुरक्षा गार्ड? इस देश में तो इंजीनियरिंग की डिग्री वाले तमाम लोग भी बेरोजगार हैं.
गृह मंत्रालय ने यह कहते हुए ट्वीट किया है कि उसने ‘सीएपीएफ और असम राइफल्स की भर्ती में इस योजना के तहत 4 साल पूरे कर लेने वाले अग्निवीरों को प्राथमिकता देने का फैसला किया है.’
‘अग्निपथ योजना’ युवाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए @narendramodi जी का एक दूरदर्शी व स्वागत योग्य निर्णय है।
इसी संदर्भ में आज गृह मंत्रालय ने इस योजना में 4 साल पूरा करने वाले अग्निवीरों को CAPFs और असम राइफल्स में भर्ती में प्राथमिकता देने का निर्णय लिया है।#BharatKeAgniveer
— गृहमंत्री कार्यालय, HMO India (@HMOIndia) June 15, 2022
यहां पुरजोर ढंग से इस्तेमाल शब्द ‘प्राथमिकता’ है. यदि मंत्रालय इतना ही उत्सुक है तो वह सीएपीएफ में बड़ी संख्या में सशस्त्र बलों की लैटरल एंट्री की अनुमति क्यों नहीं देता है? इससे निश्चित तौर पर पेंशन बिल को कम करने में भी मदद मिलेगी.
सरकार ने इस तरह की सेवाओं की अवधि चार तक सीमित करके ग्रेच्युटी भुगतान से बचने का रास्ता भी निकाल लिया है, क्योंकि ग्रेच्युटी पाने के लिए सेवा अवधि कानूनी तौर पर कम से कम पांच वर्ष होनी चाहिए.
स्पष्ट तौर पर इस योजना में वित्तीय स्तर पर उन लाभों का अभाव है जो इसे आकर्षक बनाने के लिए जरूरी हैं. इसके बजाये, यह शोषण करने वाली अधिक प्रतीत होती है, खास तौर पर यह देखते हुए कि हजारों युवा बेहतर भविष्य के लिए ही सशस्त्र बलों में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं.
11.71 लाख रुपये की सेवा निधि योजना का भुगतान भी अग्निवीर के वेतन से ही होगा क्योंकि सैनिक को अपने मासिक वेतन का 30 प्रतिशत अंशदान देना होगा और उतनी ही राशि का अंशदान सरकार देगी. यही नहीं सेवा से बाहर होने वाले अग्निवीरों में से किसी को भी भूतपूर्व सैनिक का दर्जा नहीं मिलेगा. इसका मतलब है कि वे पूर्व सैनिकों को मिलने वाले किसी भी चिकित्सा या अन्य समान भत्ते के हकदार नहीं होंगे.
यह योजना पूर्ण तौर पर ऐसे समय लाई जा रही है जब भारत का चीन के साथ गतिरोध जारी है यूक्रेन में रूसी अनुभव दर्शाता है कि सिर्फ सैनिक होना ही लड़ाई की असली ताकत नहीं है, बल्किन अनुभव ही मायने रखता है. यही नहीं जंग का मतलब राइफल उठाकर मोर्चे पर उतर पड़ना भी नहीं होता है.
यदि पेंशन बिल इतना ही बड़ा बोझ है, तो सरकार को किसी न किसी रूप में अपने खुद के अंशदान वाली पेंशन योजना लानी चाहिए जिसमें सरकार भी एक महत्वपूर्ण योगदान देती हो.
(व्यक्त विचार निजी हैं.)
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