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Saturday, 16 November, 2024
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रक्षा मंत्रालय ने विकलांगता पेंशन बदला, पूर्व सैनिक हुए नाराज़, कई बीमारियों के लिए बीमा कवर घटाया गया

पूर्व सैनिक संघ ने रक्षा मंत्रालय पर 'हानि राहत' लाने के लिए प्रतिगामी, नकारात्मक और सैनिक विरोधी होने का आरोप लगाया है. उम्मीद है कि इसपर भी टैक्स लगाया जा सकता है.

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नई दिल्ली: एक बड़े कदम के रूप में रक्षा मंत्रालय (MOD) ने एक नए नाम के साथ ‘नुकसान राहत’ शुरू करके सैन्य कर्मियों को विकलांगता पेंशन देने के नियमों में बदलाव किया है. मंत्रालय ने उच्च रक्तचाप और हृदय जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के लिए पात्रता मानदंड में कटौती की है.

21 सितंबर से लागू हुए ‘सशस्त्र बल कर्मियों के लिए हताहत पेंशन और विकलांगता के लिए मुआवजा पात्रता नियम, 2023’ शीर्षक वाले नए नियमों में कुछ बीमारियों को केवल विशिष्ट क्षेत्र के लिए विकलांगता पेंशन के लिए पात्र होने से जोड़ा गया है.

नियमों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इनमें से कुछ में ‘पेंशन’ नहीं माना जाएगा और लेने वाले की मृत्यु के बाद बंद कर दिया जाएगा, जैसा कि अब भी होता है.

मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि विकलांगता पेंशन उन लोगों को दी जाएगी जो चिकित्सा आधार पर समय से पहले सेवा से बाहर हो जाते हैं, जबकि हानि राहत उन लोगों को दी जाएगी जो इसके हकदार हैं लेकिन सामान्य तौर पर सेवामुक्त या सेवानिवृत्त हो जाते हैं.

अभी 100 प्रतिशत विकलांगता प्रमाणित करने वाले किसी भी सैनिक को विकलांगता पेंशन के रूप में 30 प्रतिशत अतिरिक्त मिलता है. यह पारिश्रमिक विकलांगता प्रतिशत के अनुसार कम होते जाता है.

उच्च रक्तचाप के मामले में, तनाव और सैन्य सेवा के तनाव से प्रेरित उच्च रक्तचाप के लिए विकलांगता प्रतिशत 30 प्रतिशत से घटाकर केवल 5 प्रतिशत कर दिया गया है. विकलांगता पेंशन के लिए न्यूनतम आवश्यक आंकड़ा 20 प्रतिशत विकलांगता है.

उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों के लिए अंग क्षति के कारण विकलांगता 20 प्रतिशत तय की गई थी, जो अंग और क्षति के आधार पर पहले 30-100 प्रतिशत थी.

उच्च रक्तचाप और हृदय संबंधी मुद्दों को दुनिया भर की सेनाओं में मुख्य बीमारियों में से एक माना जाता है, क्योंकि उनके काम करने का तरीका काफी तनाव से भरा होता है. साथ ही उनकी पोस्टिंग अधिकतर कठिन क्षेत्रों में होती है.

नए नियम भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा मार्च में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में यह उल्लेख करने के बाद आए हैं कि हर साल सेवानिवृत्त होने वाले लगभग 36-40 प्रतिशत सैन्य अधिकारियों को विकलांगता पेंशन मिल रही है, जबकि केवल 15-18 प्रतिशत जवानों को ही विकलांगता पेंशन मिल रही है.

सेना के सूत्रों ने कहा, यह चौंकाने वाला था लेकिन संख्या अधिक थी क्योंकि कई मामले जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से संबंधित थे. हालांकि, उन्होंने आंकड़ों का ब्योरा नहीं दिया.

दिलचस्प बात यह है कि नई “हानि राहत” का अंतत: लाभार्थियों पर कर प्रभाव पड़ सकता है. मामले से परिचित एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि विकलांगता पेंशन टैक्स फ्री होगा, लेकिन हानि राहत पर टैक्स देना पड़ सकता है.


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पूर्व सैनिक हथियार उठा रहे हैं, सेना जवाब दे रही है

नए नियमों पर पूर्व सैनिकों के साथ-साथ अखिल भारतीय पूर्व सैनिक कल्याण संघ (AIEWA) ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. नए नियमों, खासकर “अमान्यता” की परिभाषा में बदलाव पर आपत्ति बड़ी जताई है.

पूर्व सैनिक संघ ने रक्षा मंत्रालय पर प्रतिगामी, नकारात्मक और सैनिक विरोधी होने का आरोप लगाया है.

AIEWA ने 21 सितंबर को अपने प्रेस नोट में कहा कि “नए नियमों में पेंशन के लिए विकलांगता की परिभाषा, जो सेवानिवृत्त होने वालों द्वारा शर्तों के पूरा होने पर या सेवामुक्त होने वाले विकलांग कर्मियों को दिया जाता है, अब ‘विकलांगता पेंशन’ के बजाय ‘हानि राहत’ कहा जाएगा. इसमें विशेष रूप से यह कहा गया है कि इसे अब ‘पेंशन’ नहीं माना जाएगा.”

प्रेस नोट में कहा गया है कि “अमान्यता” की परिभाषा को भी “प्रतिगामी” रूप से बदल दिया गया है.

AIEWA की प्रतिक्रिया के बाद, मुख्यालय इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (मुख्यालय IDS), जिसमें सेना, नौसेना और वायुसेना शामिल हैं, ने 30 सितंबर को एक बयान जारी कर दिग्गजों और उनके परिवारों को आश्वासन दिया कि संशोधित नियम उनके लिए फायदेमंद बने रहेंगे.

इसमें कहा गया है कि नियम, जो सशस्त्र बलों के कर्मियों की मृत्यु और विकलांगता मुआवजे के लिए शर्तें निर्धारित करते हैं, को संशोधित किया गया और 21 सितंबर से लागू किया गया.

IDS मुख्यालय ने कहा कि नियमों में एक स्टडी ग्रुप की सिफारिशें शामिल हैं, जिसमें सेना, नौसेना, वायु सेना, पूर्व सैनिक कल्याण विभाग और MoD (वित्त) के सदस्य थे, जिन्हें 2008 के बाद से किए गए सभी प्रासंगिक नीति परिवर्तनों को शामिल करके पात्रता नियमों को अद्यतन करने का काम सौंपा गया था.

इसमें कहा गया है, “हकदार कर्मियों को दिए जाने वाले मृत्यु/विकलांगता मुआवजे के प्रकार या राशि में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इसका एक संभावित प्रभाव होगा और यह हमारे सभी सैनिकों, दिग्गजों और विधवाओं के वास्तविक हित का ख्याल रखेगा.”

हालांकि, मुख्यालय इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के बयान ने पूर्व सैनिकों को आश्वस्त करने के लिए कुछ नहीं किया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, एक विकलांग अधिकारी, जो सेवा के दौरान लगी चोटों, विकलांगताओं के लिए कानूनी रूप से विकलांगता पेंशन का विरोध कर रहे हैं, ने जोर देकर कहा कि नए नियम सेवा शर्तों के कारण होने वाली बीमारियों के संबंध को पूरी तरह से नियंत्रित करते हैं.

उन्होंने इनमें से कुछ बीमारियों को सूचीबद्ध किया जैसे कि चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम, उच्च रक्तचाप, पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), तनाव और तनाव के संपर्क में आने के कारण शरीर, विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी की बीमारियों को देरी से पता चलना, खराब मौसम और सियाचिन जैसे उच्च उंचाई वाले क्षेत्र आदि.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक अन्य दिग्गज ने पोस्ट किया, “नए नियमों के तहत, श्रीनगर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में गश्त के दौरान अचानक हृदय गति रुकने या उच्च रक्तचाप के कारण लू लगने से मरने वाले सैनिक की विधवा विशेष पारिवारिक पेंशन का हकदार नहीं होगा और साथ ही जीवित रहने पर सैनिक को विकलांगता पेंशन नहीं मिलेगी. पहले ऐसी सभी विकलांगताओं को ‘सैन्य सेवा के तनाव’ से प्रभावित के रूप में सूचीबद्ध किया गया था.”

पहले, यदि सैन्य सेवा के कारण कोई विकलांगता हो जाती थी या बढ़ जाती थी, तो पूर्व सैनिकों को विकलांगता पेंशन दी जाती थी, जब तक कि यह उनकी अपनी लापरवाही के कारण न हुई हो. पोस्टिंग के क्षेत्र का सेवानिवृत्ति के बाद मृत्यु और विकलांगता लाभ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में अधिकारियों और सैनिकों के लिए इस तरह के प्रावधान के अधिकार को बरकरार रखा है, भले ही उनकी सेवा का क्षेत्र कुछ भी हो. केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF), जो गृह मंत्रालय (MHA) के अंतर्गत आते हैं और सशस्त्र बलों के समान स्थितियों में सेवा करते हैं, वे भी लाभ के हकदार हैं, चाहे पोस्टिंग की जगह कुछ भी हो.


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नए नियमों का विरोध

नए नियमों में सेवा से अमान्य होने का मतलब है कि सशस्त्र बल के कर्मी जो सेवा से अमान्य हो गए हैं, वे अमान्य पेंशन के पुरस्कार के लिए पात्र हैं, बशर्ते कि वे 10 साल की गणना योग्य सेवा पूरी कर लें या सेवा के लिए चिकित्सकीय रूप से अयोग्य घोषित कर दिए जाएं. यह सैन्य और नागरिक दोनों के लिए है.

सैनिकों को अमान्य पेंशन सेवा शर्तों से जुड़ी विकलांगता पर नहीं दी जाती है, जिसका अर्थ है कि मृत्यु या विकलांगता उस समय हुई हो सकती है जब कर्मी छुट्टी पर था.

AIEWA ने कहा कि अमान्य पेंशन पाने के लिए 10 साल की सेवा की आवश्यकता को जनवरी 2019 में एक गजट अधिसूचना के माध्यम से नागरिक कर्मचारियों के लिए समाप्त कर दिया गया था, लेकिन रक्षा कर्मियों के लिए नहीं.

AIEWA ने एक प्रेस नोट में कहा, “यह दोहराया गया है कि अमान्य पेंशन अर्जित करने के लिए 10 साल की सेवा की आवश्यकता होगी. इसे जनवरी 2019 में नागरिक कर्मचारियों के लिए बिना किसी किंतु-परंतु के पहले ही निरस्त कर दिया गया है.”

इसलिए, अब 10 साल की न्यूनतम सेवा आवश्यकता का मतलब है कि यदि कोई व्यक्ति 10 साल से कम समय में विकलांग हो जाते हैं, तो उन्हें पेंशन नहीं दी जाएगी.

दिप्रिंट ने जिस सूत्र से बात की, उन्होंने भी इस बात पर भी प्रकाश डाला कि नए नियमों ने रक्षा कर्मियों की विधवाओं को विशेष पारिवारिक पेंशन देने की शर्तों को सख्त कर दिया है.

सूत्र ने कहा, “इतने सारे युवा और फिट कर्मी सेवा में तनाव के कारण दिल के दौरे से मर रहे हैं. ऐसे सभी कर्मियों की विधवाओं को अब विशेष पारिवारिक पेंशन नहीं मिलेगी, जो पारिवारिक पेंशन का एक उच्च रूप है, जब तक कि मृत्यु ऊंचाई वाले क्षेत्र में न हो.”

नए नियमों में यह भी निर्दिष्ट किया गया है कि जो अधिकारी कैडेट विकलांगता के कारण सैन्य प्रशिक्षण से बाहर हो जाते हैं, उन्हें मासिक अनुग्रह भुगतान मिलेगा, जिसे समय-समय पर संशोधित किया जाता है. इसमें कहा गया है, “हालांकि, यह पेंशन नहीं है और प्राप्तकर्ता के निधन पर यह बंद हो जाएगी.”

MoD द्वारा किए गए परिवर्तनों पर निराशा व्यक्त करते हुए AIEWA ने कहा, “जबकि सरकार ने लंबे समय से खुद को राष्ट्रवादी, देशभक्त और समर्थक सैनिक होने का दावा किया है, ऐसा लगता है कि MOD का वित्त विभाग लोगों को इसके लिए मजबूर कर रहा है.”

इसमें कहा गया है, यह ऐसे समय में आया है जब देश लगभग चुनाव के मुहाने पर है और साथ ही कई सुरक्षा चुनौतियों का भी सामना कर रहा है.

इस बीच, सूत्रों ने बताया कि अध्ययनों में कहा गया है कि सैन्य कर्मचारी अपने नागरिक समकक्षों की तुलना में पहले मर जाते हैं

पर्याप्त मात्रा में शोध हैं जो बताते हैं कि खराब और प्रतिकूल इलाके में सेवा करना, ऐसी परिस्थितियों में विस्तारित पोस्टिंग और इसके परिणामस्वरूप परिवार के साथ रहने की कमी, घरेलू प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में असमर्थता, गैर-उत्तरदायी नागरिक प्रशासन, स्वतंत्रता में कटौती और अत्यधिक सख्त अनुशासनात्मकता या तो सैनिकों की मौजूदा चिकित्सा स्थितियों को बनाता है या प्रभावित करता है.

उन्होंने आगे कहा, सेवा के तनाव और दबाव से यह और भी बढ़ गया है.

CAG रिपोर्ट के बारे में बात करते हुए एक अधिकारी, जिन्होंने विकलांगता और विशेष पारिवारिक पेंशन के मामलों को नजदीक से देखा है, ने बताया गया है कि लगभग 36-40 प्रतिशत सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों को विकलांगता पेंशन मिल रही है, जबकि केवल 15-18 प्रतिशत जवानों को विकलांगता पेंशन मिल रही है.

उन्होंने कहा, “अधिकारियों का प्रतिशत जवानों से अधिक है क्योंकि अधिकारी 50 की उम्र में सेवानिवृत्त होने लगते हैं और उनकी सेवा अवधि काफी लंबी होती है, जबकि जवान 30 की उम्र में सेवानिवृत्त होने लगते हैं. स्वाभाविक रूप से, जवानों की तुलना में अधिकारियों में चिकित्सीय स्थितियों की घटनाएं अधिक होंगी. इसके अलावा, विकलांग सैनिकों की संख्या भी बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई है और आंकड़ों की बाजीगरी पेश की गई है.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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