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Thursday, 2 May, 2024
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पाकिस्तानी सेना कर रही है LOC पर अपनी पोजीशन मजबूत करने की कोशिश, भरे हुए हैं आतंकी लॉन्चपैड

पाकिस्तानी सेना, भारतीय तोपखाने की मार का सामना करने के लिए अपनी पोजीशन मजबूत करने के मकसद से निजी फर्मों को काम पर लगा रही है. दूसरी तरफ, भारतीय सेना भी अपने शस्त्र भंडार में कई सारे नवीनतम हथियार और निगरानी प्रणालियां जोड़ रही है.

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उरी (कश्मीर): दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार, इस शुक्रवार को भारत के साथ हुए संघर्ष विराम के एक साल  पूरे होने के साथ ही पाकिस्तानी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर अपने बंकरों और ठिकानों (पोजिशन्स) को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है, इसके अलावा उसने नए, उच्च क्षमता वाले हथियारों को भी शामिल किया है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों का कहना है कि पिछले साल की 25 फरवरी से, दो स्थानीय स्तर की घटनाओं को छोड़कर, संघर्ष विराम पूरी तरह से लागू है, पर एलओसी के पास आतंकी लॉन्च पैड (घुसपैठ से पहले आंतकियों को जमा करने की जगह) भरे हुए है. घुसपैठ के कई प्रयास भी हुए हैं साथ ही गर्मियों में और अधिक ऐसे प्रयास होने की आशंका हैं.

भारतीय सेना में भी नए हथियार, जिनमें उन्नत साको स्नाइपर राइफल और छोटे हथियार शामिल हैं, तथा कई नए निगरानी उपकरण की शृंखला शामिल की गई है.

हालांकि, भारत भी अपने ठिकानों को मजबूत कर रहा है, मगर माना जाता है कि पाकिस्तानी सेना द्वारा अपनी अग्रिम पंक्ति के ठिकानों को भारतीय तोपखाने – जिसने 2019 के बाद से भारतीय रणनीति में बदलाव लाए जाने के फलस्वरूप उनका भारी नुकसान किया है – की मार का सामना करने में सक्षम बनाने के लिए निजी फार्मों को लगाया गया है.

सूत्रों ने बताया कि 2019 के बाद से भारतीय सेना पंजाबी मूल की पाकिस्तानी बटालियनों के कब्जे वाले ठिकानों को खास तौर से निशाना बना रही थी.

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उन्होंने कहा, ‘ऐसा तब किया गया जब भारतीय सेना को यह एहसास हुआ कि बलूच, मुजाहिद (एक अर्धसैनिक बल) और अन्य बटालियनों को निशाना बनाने से पाकिस्तानी सेना पर कोई खास असर नहीं पड़ता है.’

एलओसी पर तैनात एक शीर्ष सैन्य अधिकारी ने कहा, ‘हमने खास तौर से पंजाबियों के कब्जे वाले पोस्ट्स (चौकियों)  को निशाना बनाया. हर बार जब हमने उन्हें निशाना बनाया तो पाकिस्तानी सेना को गहरी चोट लगी क्योंकि उन्हें उनके बॉडी बैग्स (मृत शरीर के साथ कॉफिन) को पंजाब वापस भेजना पड़ा, जो पाकिस्तानी सत्ता का केंद्र है. बाकी  सैनिक तो उनके लिए केनन फ़ोडेर (तोप की मार झेलने वाले) की तरह हैं. ‘

पिछले साल हुए युद्धविराम समझौते, जो उस समय एक आश्चर्य के रूप में सामने आया था,  के बाद से एलओसी पर लोगों का जीवन कैसे बदल गया है, इस बात की जमीनी जानकारी प्राप्त करने के लिए दिप्रिंट ने एलओसी के अग्रिम ठिकानों का दौरा किया .

भारत ने शामिल की नई निगरानी प्रणाली और अतिरिक्त मारक क्षमता

पिछले एक साल के दौरान, भारत ने नई निगरानी प्रणालियों और छोटे हथियारों को शामिल करके नियंत्रण रेखा पर अपनी क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है.

सैनिकों के लिए शामिल किए जाने वाले प्रमुख उपकरणों में से एक है साको स्नाइपर राइफल, जो फ़िनलैंड में बनी एक ऐसी राइफल है जिसे पहले सिर्फ स्पेशल फोर्सेस के लिए खरीदा गया था.

मगर, लगभग 1,500 मीटर की रेंज वाली ये राइफलें अब पैदल सेना की नियमित इकाइयों को भी जारी की जा रही हैं.

ये सैनिक अब तक रूसी ड्रैगुनोव स्नाइपर राइफल, जिन्हें आमतौर पर सशस्त्र बलों में डीएसआर के रूप में जाना जाता है, से लैस थे.

जैसा कि दिप्रिंट ने पहले बताया था, भारतीय सेना के पास उपलब्ध डीएसआर, अधिकांश ममलों में, डे साइट (दिन में देखने की क्षमता) और नाईट साइट (रात में देखने की क्षमता) के साथ एक ही इनलाइन क्लिप के जरिए काम करने की क्षमता नहीं रखते हैं.

डीएसआर के पुराने संस्करणों में, जो भारतीय सेना के शस्त्रागार में भरे पड़े हैं, लकड़ी के बटस्टॉक्स (कंधे पर रखा जाने वाला राइफल का कुंदा) लगे हैं और एक ऐसा रिकॉइल (चलाते समय झटका लगना) है जो सटीकता और उपयोग की सुविधा को प्रभावित करता है. इसमें बाइप्रोड की कमी भी एक और बाधा थी.

सेना ने एलओसी पर कई तरह के नए निगरानी उपकरण भी शामिल किए हैं जो सभी लाइव फीड (सजीव प्रसारण) के लिए कमांड मुख्यालय से जुड़े हैं.

सूत्रों ने कहा कि उसने नियंत्रण रेखा पर अपनी मारक क्षमता बढ़ाने के लिए कई अन्य उपकरण भी शामिल किए हैं.

हालांकि, बोफोर्स और तोपखाने की अन्य प्रणालियों को पहले ही शामिल किया गया है, सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानियों को एलओसी पर विमान-रोधी तोपों की तैनाती से डर है, जो दुश्मन के बंकरों को घातक नुकसान पहुंचाते हैं.


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भरे हुए हैं आतंक लॉन्चपैड

सेना के सूत्रों ने कहा कि कश्मीर सेक्टर में एलओसी के पार करीब दो दर्जन से अधिक आतंकी लॉन्चपैड भरे हुए हैं और उनमें कुल मिलाकर लगभग 100-130 आतंकवादियों की मौजूदगी का पता लगाया गया है.

ऐसी आशंका है कि आने वाली गर्मियों में घुसपैठ के कई प्रयास देखने को मिलेंगे.

सूत्रों का कहना है कि संघर्ष विराम की अवधि के दौरान, पाकिस्तानी सेना घुसपैठ के लिए कोई प्रत्यक्ष समर्थन नहीं दे पा रही है, लेकिन कई बार आतंकवादियों को पाकिस्तानी सेना की चौकियों के अंदर और बाहर जाते देखा गया है.

एक सूत्र ने पाकिस्तानी सेना के ठिकानों पर भी आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में बताते हुए कहा, ‘जिस तरह से वे कपड़े पहनते हैं और जितना भार वे ढोते हैं, वह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वे नियमित सैनिक नहीं हैं.’

श्रीनगर स्थित 15 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डी.पी. पांडे ने दिप्रिंट को बताया कि पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा पर लगे गंभीर झटकों के अलावा अंतरराष्ट्रीय जांच, एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) की समीक्षा और अफगानिस्तान के साथ एक तनावपूर्ण पश्चिमी सीमा की वजह से संघर्ष विराम की मांग की थी.

सीमावर्ती गांवों के लिए एक बड़ी राहत है संघर्ष विराम

जहां सेना अपनी क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, वहीं साल भर का यह युद्धविराम सीमावर्ती गांवों के लिए एक वरदान जैसा रहा है.

दिप्रिंट ने कई सारे ग्रामीणों से बातचीत की जिन्हें उम्मीद थी कि यह संघर्ष विराम आगे भी जारी रहेगा.

पिछले एक साल के दौरान, एलओसी और अन्य सेक्टर्स से लगे गांवों के निवासी पाकिस्तानी मोर्टार, तोप के गोलों और स्नाइपर राइफल की छाया में नहीं होने की वजह से एक सामान्य जीवन जीने में सक्षम हुए हैं.

भारतीय पक्ष के विपरीत, पाकिस्तानी सीमावर्ती गांवों में बंकर बने हुए हैं. सूत्रों ने बताया कि चूंकि भारतीय गांवों में बंकर नहीं हैं, इसलिए नागरिकों को निशाना बनाने वाली पाकिस्तानी गोलाबारी से लोगों की जान का नुकसान होता है.

स्थानीय अधिकारी युद्धविराम की अवधि का उपयोग सीमावर्ती गांवों में बंकर बनाने के लिए भी कर रहे हैं, जो स्थानीय लोगों को पाकिस्तानी सेना द्वारा गोलाबारी किये जाने के दौरान शरण लेने में सक्षम बनाएंगे.

अतीत में, पाकिस्तान द्वारा किए गए संघर्ष विराम उल्लंघन के दौरान कई नागरिक मारे जा चुकें हैं. इसी तरह की घटनाओं में बच्चों और महिलाओं समेत कई लोग घायल भी हुए हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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