नई दिल्ली: पाकिस्तान के बहावलपुर में स्थित जमाअ-ए-मस्जिद सुभानअल्लाह मरकज को निशाना बनाकर पांच धमाके किए गए, जिनमें चार लगभग एक साथ और एक थोड़े अंतराल के बाद हुआ. यह परिसर जैश-ए-मोहम्मद के शीर्ष नेतृत्व द्वारा भारत के खिलाफ कई हमलों की योजना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, जिनमें 2019 में पुलवामा में भारतीय सैनिकों पर किया गया हमला भी शामिल है. शहर में रहने वाले सूत्रों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी.
बुधवार तड़के किए गए इन सटीक हमलों में भारतीय हमलों ने लाहौर के बाहरी इलाके मुरिदके में स्थित लश्कर-ए-तैयबा के मुख्यालय की इमारतों को भी निशाना बनाया.
स्थानीय दो निवासियों ने दिप्रिंट को बताया कि अधिकांशतः बहावलपुर मदरसा परिसर को सप्ताहांत में संभावित हमले की आशंका में अधिकारियों द्वारा खाली करा लिया गया था.
“मैं दरवाजा तोड़ने की आवाज़ सुनकर जागा,” बहावलपुर के निवासी ने कहा. “फिर मैं बाहर भागा और आग देखी.” उसने बताया कि हमले के बाद स्थानीय अधिकारियों ने मदरसे के पास से गुजरने वाली सड़क को बंद कर दिया.
मंगलवार रात के हमले में पीड़ितों में बहावलपुर-समासत्ता रेलवे लाइन के पास की झुग्गियों के कुछ लोग भी शामिल थे, जो पहले धमाके के बाद वहां इकट्ठा हो गए थे. सोशल मीडिया पर प्रसारित एक वीडियो में दिखता है कि कई निवासी परिसर में लगी आग की वीडियो बना रहे हैं.
लाहौर के एक निवासी ने बताया कि मुरिदके में धमाकों की आवाज़ सुनी गई, लेकिन वह शहर के आसपास की नहीं थी.
2019 के पुलवामा आत्मघाती हमले के बाद पाकिस्तान ने घोषणा की थी कि वह बहावलपुर परिसर का प्रशासन अपने हाथ में ले रहा है. हालांकि बाद में बहावलपुर के डिप्टी कमिश्नर शहज़ैब सईद ने वहां गए पत्रकारों से कहा कि यह सिर्फ एक “सामान्य मदरसा है, जिसका जैश-ए-मोहम्मद से कोई संबंध नहीं है”.
पाकिस्तान की आतंकवाद रोधी संस्था के अनुसार, जैश को 2002 से प्रतिबंधित संगठन घोषित किया गया है. हालांकि जैश-ए-मोहम्मद के हथियारबंद गार्ड अभी भी परिसर के प्रवेश और निकास बिंदुओं को नियंत्रित करते रहे.
कश्मीर जिहादी नर्सरी
मार्च 2008 में भगोड़े जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर अलवी द्वारा खरीदी गई नौ एकड़ ज़मीन पर बनी जमाअ-ए-मस्जिद सुभानअल्लाह, बहावलपुर के केंद्र में स्थित संगठन की पुरानी मस्जिद और कार्यालय परिसर मस्जिद उस्मान-ओ-अली का विकल्प थी.
स्थानीय दस्तावेजों से पता चलता है कि यह ज़मीन मसूद अजहर के भाई और जैश के सैन्य प्रमुख अब्दुल रऊफ असगर अलवी को मात्र 15 लाख पाकिस्तानी रुपये में बेची गई थी. इस परिसर में एक स्विमिंग पूल, मदरसा और आवासीय भवन शामिल थे.
दिप्रिंट को प्राप्त एक तस्वीर में पुलवामा हमले में शामिल मोहम्मद उमर फारूक, तल्हा रशीद अलवी, मोहम्मद इस्माइल अलवी और रशीद बिल्ला को आम के बाग़ की छांव में बने स्विमिंग पूल में आराम करते हुए देखा जा सकता है.
जैश-ए-मोहम्मद ने दक्षिण पंजाब के आर्थिक रूप से कमजोर तबके को अपने मदरसों के नेटवर्क के ज़रिए दशकों तक भर्ती किया, धार्मिक मुक्ति के बदले बेटों की कुर्बानी का वादा किया. ऐसे ही एक फिदायीन इमरान मजीद बट की मां ने एक कविता लिखी:
“मैं उस दिन का इंतजार करती हूं, ऐ अल्लाह, जब तू पुकारेगा: ‘कौन है इस खून से लथपथ गुलाब की मां?”
जैश ने अप्रैल 2000 में कश्मीर में पहला आत्मघाती हमला किया था, जब श्रीनगर निवासी अफाक अहमद शाह ने विस्फोटकों से भरी कार सेना की XV कोर मुख्यालय में घुसा दी थी.
2016 में उरी हमले के बाद भारत द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक के जवाब में जैश को पाकिस्तान की ओर से यह दिखाने के लिए इस्तेमाल किया गया कि वह दबाव में नहीं है.
इसके बाद अगस्त 2017 में पुलवामा और अक्टूबर में श्रीनगर के हुमहामा में जैश ने हमले किए. दिसंबर में किशोर फिदायीन दस्ते—फार्दीन खांडे और 21 वर्षीय मंज़ूर बाबा—ने पुलवामा में दोबारा हमला किया. ये पहले ज्ञात जातीय कश्मीरी थे जिन्होंने आत्मघाती हमला किया.
2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में हुए इस्लामी नेतृत्व वाले व्यापक विरोध प्रदर्शनों के दौरान जैश ने बड़ी संख्या में स्थानीय कश्मीरी युवाओं को भर्ती किया. झंडे लहराते हुए और हथियार दिखाते हुए जैश के लड़ाके खुलेआम मार्च निकालते थे.
पुलवामा हमले में मदद के आरोप में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा जिन लोगों पर आरोप लगाए गए—उमर फारूक की कथित प्रेमिका इंशा जान, शाकिर बशीर, वाइज़-उल-इस्लाम, मोहम्मद अब्बास राथर, बिलाल कुचाय—वे लगभग सभी 2016 की बगावत के बाद जैश में शामिल हुए थे.
बहावलपुर क्षेत्र के एक अन्य गांव अहमदपुर-शरकिया, जिसे पाकिस्तान ने भारतीय हमले का निशाना बताया, मुरिदके जितना प्रसिद्ध नहीं है, लेकिन वहां एक बड़ा मदरसा स्थित था, स्थानीय लोगों ने दिप्रिंट को बताया.
6 जून 2001 को कश्मीर में एक फिदायीन हमले में मारे गए मोहम्मद यूसुफ जैसे लोग इस मदरसे के ज्ञात छात्र थे.
लश्कर का गढ़
लश्कर-ए-तैयबा के जिहादी, संगठन पर 2002 में प्रतिबंध लगने के बावजूद, लाहौर से 30 किमी दूर स्थित मुरिदके में अपने मुख्यालय परिसर का इस्तेमाल करते रहे हैं.
पिछले सप्ताह दिप्रिंट ने खुलासा किया था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित आतंकवादी और संगठन के नेता हाफिज अब्दुल रऊफ लाहौर की लश्कर-नियंत्रित मस्जिद क़ादसिया में भाषण दे रहे हैं और रावलपिंडी में संगठन की नई इमारत के निर्माण की निगरानी कर रहे हैं.
सोशल मीडिया पर साझा एक वीडियो में मुरिदके परिसर में आग लगी दिखाई दे रही है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि कौन सी इमारत को निशाना बनाया गया. बहावलपुर परिसर की तरह, मुरिदके केंद्र को भी सप्ताहांत में बड़े पैमाने पर खाली करा लिया गया था.
लाहौर की मस्जिद में अपने भाषण में रऊफ ने कहा, “मुसलमानों को जंग, संघर्ष, धार्मिक हत्या, लड़ाई और रणभूमियों, तलवारों और तीरों, खून और शहादत से अजनबी नहीं होना चाहिए. अल्लाह के साथी मौत से डरते नहीं, बल्कि उसे ढूंढते हैं.”
जैश-ए-मोहम्मद के मदरसे की तरह, मुरिदके में लश्कर की सुविधा को भी राज्य प्रशासन के अधीन रखा गया था. संगठन के प्रमुख हाफिज मोहम्मद सईद को नजरबंद किया गया था. यह कार्रवाई फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) द्वारा आतंकवाद के लिए फंडिंग रोकने संबंधी निगरानी के दबाव में की गई थी.
हालांकि, पिछले साल गर्मियों में लश्कर के दोबारा सक्रिय होने के संकेत मिलने लगे थे. अप्रैल 2024 में, संगठन ने उत्तरी कश्मीर के सोपोर के पास भारतीय बलों द्वारा मारे गए आतंकियों अब्दुल वहाब (उर्फ अबू सैफुल्लाह) और सनम जाफर की सार्वजनिक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की थी.
कश्मीर में लश्कर के ऑपरेटिव, जिन्हें पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा के मदरसों के ज़रिए भर्ती किया गया था, को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के अस्थायी शिविरों में और कुछ मामलों में पाकिस्तान की सीमा के अंदर सैन्य प्रशिक्षण मिलने की बात मानी जाती है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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