श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर पुलिस की इलीट आतंकवाद-विरोधी इकाई, स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (एसओजी) को, जिसका मुख्यालय ‘कार्गो’ कहा जाता है, आखिरकार एक पूर्णकालिक पुलिस अधीक्षक मिल गया है, जो करीब 5 महीने के अंतराल के बाद उसकी अगुवाई करेगा.
इस सप्ताह इलीट यूनिट की अगुवाई के लिए एसपी (पीसी) पुलिस कंपोनेंट के तौर पर इफ्तिख़ार तालिब की नियुक्ति, श्रीनगर में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यकों की हत्याओं के बीच हुई है, जिन्होंने सुरक्षा बलों को चौंका दिया था.
इस इलीट यूनिट की अगुवाई करने वाले पिछले प्रमुख एसपी ताहिर अशरफ थे, जो इस साल मई में किसी दूसरे पद पर चले गए.
सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने बताया कि उसके बाद से एक अन्य अधिकारी, अतिरिक्त प्रभार के तौर पर कार्गो को संभाल रहा था.
एक अधिकारी के रूप में तालिब के पास आतंक-विरोधी कार्रवाइयों का व्यापक अनुभव है और अन्य हैसियतों में वो पहले भी एसोजी का हिस्सा रह चुके हैं. वो लद्दाख में डेप्युटेशन पर थे और शनिवार को उन्होंने इलीट यूनिट का चार्ज संभाल लिया.
एसओजी कर्मी जेएंडके में असली मुठभेड़ों और खुफिया जानकारी जुटाने के काम, दोनों में आतंक-विरोधी कार्रवाइयों की अगुवाई करते हैं.
रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने, इस बात पर हैरानी जताई कि करीब 5 महीने तक यूनिट के पास ऑपरेशन्स की अगुवाई करने के लिए कोई पूर्णकालिक एसपी नहीं था.
एक सूत्र ने कहा, ‘एसओजी को एक अतिरिक्त प्रभार के तौर पर संभाला जा रहा था और वो अपने काम पर लगा हुआ है. लेकिन पूर्णकालिक एसपी की नियुक्ति से सुनिश्चित हो जाएगा कि उसका काम अब ज्यादा समन्वित, ज्यादा सुगम और ज्यादा संगठित होगा. हैरानी की बात है कि अभी तक वहां कोई पूर्णकालिक एसपी नहीं था’.
इस बीच, कुछ सूत्रों का तर्क था कि दहशतगर्द, श्रीनगर में हमले करने में इसलिए कामयाब हो पाए हैं क्योंकि ऐसा आभास हो रहा था कि वहां हालात ‘सामान्य’ होने लगे हैं.
एक सूत्र ने समझाया, ‘ये सुनिश्चित करने के बहुत से तरीके होते हैं कि दहशतगर्दी की घटनाओं को कैसे कम रखा जाए. एक तरीका है इलाके में किसी आतंकी की मौजूदगी के बारे में खास इनपुट हासिल करना, जिसके बाद एक लक्षित कार्रवाई करके, आतंकी को बेअसर कर दिया जाता है. खुफिया जानकारी हासिल करने के लिए लगातार काम करना पड़ता है. दूसरा तरीक़ा ये है कि निरंतर तलाशी अभियान चलाकर दबाव बनाया जाए ताकि आतंकी कहीं टिक न पाए और बस इधर उधर घूमता रहे’.
यह भी पढ़ें: दोषियों को बचा रही UP सरकार, PM मोदी ने लखनऊ में उत्सव मनाया लेकिन लखीमपुर नहीं गए: प्रियंका
क्या है एसओजी?
एसओजी जिसे स्पेशल टास्क फोर्स भी कहा जाता है, एक तरह की वॉलंटियर फोर्स है जिसके जवानों को जम्मू-कश्मीर की सामान्य पुलिस से लिया जाता है. इसमें 1,000 से अधिक कर्मी हैं जो चौबीसों घंटे ऑपरेशंस को अंजाम देने और खुफिया जानकारी जुटाने में लगे रहते हैं.
संचालन के मामले में कार्गो, जिसे ये नाम श्रीनगर की उस बिल्डिंग से मिला है, जिसमें कभी इंडियन एयरलाइन्स का कार्गो दफ्तर हुआ करता था, सीधे जेएंडके पुलिस महानिरीक्षक के आधीन होता है, जो पुलिस महानिदेशक को रिपोर्ट करता है.
कार्गो यूनिट को विशेष टीमों में बांटा गया है, जिनमें से हर एक टीम आतंक-विरोधी कार्रवाइयों के अलग-अलग पहलुओं को देखती है, फोन ट्रैकिंग से लेकर सोशल मीडिया की निगरानी और इंसानों पर केंद्रित खुफिया जानकारी तक.
रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के अनुसार, श्रीनगर शहर को छोड़कर बाकी जगहों पर, आतंक-विरोधी कार्रवाइयों की अगुवाई सेना करती है लेकिन खुफिया जानकारी का एक बड़ा हिस्सा जम्मू-कश्मीर पुलिस से ही मिलता है, जो बुनियादी रूप से एसओजी होती है.
जेएंडके के हर जिले में, एसओजी प्रमुख उप अधीक्षक पुलिस (ऑपरेशंस) होता है लेकिन उनका मुख्यालय ‘कार्गो’ है.
जैसा कि 2019 में खबर दी गई थी, कश्मीर के हर जिले में कम से कम एक या दो एसओजी यूनिट्स होती हैं, जो उग्रवादी गतिविधियों पर निर्भर करता है. जिन जिलों में उग्रवादी हमले ज्यादा होते हैं, वहां चार से 10 यूनिट्स तक भी होती हैं.
एसओजी को जेएंडके की सबसे खौफनाक यूनिट माना जाता है लेकिन इसके ऊपर बहुत से आरोप भी लगते रहे हैं.
सितंबर 2020 में एक कार्रवाई की समाप्ति पर डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा था, ‘मैं सुनिश्चित करना चाहता था कि कार्गों, जिसका नाम सुनकर ही पहले लोग खौफज़दा हो जाते थे, श्रेष्ठता का केंद्र बन जाए और मुझे लगता है कि वो सपना अब पूरा हो गया है’.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘राष्ट्रीय प्रतीक’- पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक अब्दुल कादिर खान का निधन