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Saturday, 27 July, 2024
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नए खतरों के खिलाफ सुरक्षा बढ़ाने के लिए भारतीय सेना खरीदेगी एंटी-ड्रोन सिस्टम

सेना जिसे खरीदना चाहती है उसमें 'सॉफ्ट किल' का विकल्प होगा, जिसका अर्थ है कि वे दुश्मन ड्रोन के कम्युनिकेशन और नेवीगेशन सिग्नल को जैम करने में सक्षम होंगे.

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नई दिल्ली: सेना कुछ ड्रोन-रोधी प्रणालियों की खरीद की प्रक्रिया में है जो कि दुश्मन के मानवरहित हवाई वाहन (यूएवी) के संचार और नेविगेशन संकेतों का पता लगा के इसे जैम या स्पूफ करने में सक्षम होगी.

शीर्ष रक्षा सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इनमें से अधिकांश प्रणालियों में केवल जैमिंग फीचर का विकल्प होगा, जो कि किसी गलत उद्देश्य वाले ड्रोन के संचार या नेविगेशन संकेतों को बाधित कर सकता है. कुछ अन्य ड्रोन ज्यादा उन्नत कॉन्फिगुरेशन वाले होंगे, जो कि यूएवी को भी धोखा देने में सक्षम होंगे.

एंटी ड्रोन-सिस्टम के जरिए जैमिंग के द्वारा उसके और उसके कंट्रोल स्टेशन के बीच कम्युनिकेशन को तोड़ा जा सकेगा. स्पूफिंग का मतलब है सभी तरह के ड्रोन्स के साथ जुड़कर उन पर सक्रिय नियंत्रण रखना ताकि या तो उन्हें जबरन क्रैश लैंड करवाया जा सके या उसे मिशन छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सके.

सूत्रों के अनुसार, एंटी ड्रोन सिस्टम के पहले सेट के लिए खरीद प्रक्रिया अंतिम चरण में है और शीघ्र ही एक आदेश जारी किए जाने की उम्मीद है. करीब चार से पांच कंपनियों ने इसके लिए निविदा भेजी है. उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय द्वारा पिछले वर्ष सेवाओं को दी गई आपात खरीद शक्तियों के प्रावधानों के तहत यह फास्ट ट्रैक प्रक्रिया अपनाए जाने की संभावना है.

एंटी-ड्रोन सिस्टम के दूसरे सेट के लिए खरीद प्रक्रिया अभी एक प्रतिबंधित आरएफआई (रिक्वेस्ट फॉर इन्फॉर्मेशन) के साथ शुरू हो गया है.

सेना द्वारा खरीदे जाने वाले एंटी ड्रोन सिस्टम उससे अलग होंगे जिन्हें भारतीय वायु सेना ने हाल ही में खरीदने की मांग की थी.

सेना जिसे खरीदना चाहती है उसमें ‘सॉफ्ट किल’ का विकल्प होगा, जिसका अर्थ है कि वे दुश्मन ड्रोन के कम्युनिकेशन और नेवीगेशन सिग्नल को जैम करने में सक्षम होंगे, जबकि भारतीय वायु सेना द्वारा खरीदे जाने वाले सिस्टम में ‘सॉफ्ट किल’ और ‘हार्ड किल’ दोनों के ऑप्शन होंगे. ‘हार्ड किल’ का मतलब है कि यह ड्रोन को समाप्त करने में भी सक्षम होगा.

जम्मू एयरबेस में हुए ड्रोन अटैक के बाद एंटी-ड्रोन सिस्टम की खरीददारी काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है. जम्मू एयरबेस पर कम तीव्रता वाले इम्प्रोवाइज्ड डिवाइस का प्रयोग किया गया था जो कि आने वाले नए खतरों को लेकर देश की सुरक्षा व्यवस्था में कमी को उजागर करता है.

स्टेशन के हेलीकॉप्टर हैंगर के करीब इसमें विस्फोट हो गया और भारतीय वायुसेना के दो कर्मी घायल हो गए.

दिप्रिंट ने इस मामले में टिप्पणी के लिए सेना को संपर्क किया लेकिन इस खबर के पब्लिश होने कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.


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एंटी ड्रोन सिस्टम किन चीजों में सक्षम होंगे

एंटी-ड्रोन सिस्टम की पहली खेप 10 किलोमीटर की रेंज में दुश्मन ड्रोन का पता लगाकर उसके नेवीगेशन और कम्युनिकेशन सिस्टम को जैम करने में सक्षम होंगे. यह ग्लोबल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम जैसे – जीपीएस, ग्लोनास, बीईडू, आईआरएनएसएस पर निर्भर ड्रोन के लिए भी लागू होगा.

वे जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली)- सक्षम होने चाहिए और उनके भीतर एक इनबिल्ट नेविगेशन सिस्टम होना चाहिए. वे जैम करने से पहले दुश्मन ड्रोन का पता लगाएंगे, पहचानेंगे और ट्रैक करेंगे. वे एक निश्चित फ्रीक्वेंसी बैंड के भीतर कई ड्रोन को इंगेज करने में सक्षम होंगे.

इसके अतिरिक्त एंटी-ड्रोन सिस्टम की दूसरी खेप में अतिरिक्त स्पूफिंग क्षमताएं भी होंगी जिससे वह दुश्मन ड्रोन को 20 किलोमीटर की रेंज से अधिक में सर्च, डिटेक्ट, जैम और स्पूफ कर सकेगा.

रक्षा सूत्रों ने कहा कि ये ड्रोन कहीं भी तैनाती के लिए उपयुक्त होने चाहिए, खासकर ऊंचाई वाले क्षेत्रों और पहाड़ों में.

एंटी-ड्रोन सिस्टम, खुफिया जानकारी जुटाने वाले, निषिद्ध तस्करी या विस्फोटकों को गिराने के लिए प्रयोग किए जाने वाले दुश्मन ड्रोन और मानवरहित हवाई प्रणालियों का पता लगाते हैं और उन्हें इंटरसेप्ट करते हैं.

उन्हें सैन्य ठिकानों, हवाई अड्डों, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों की सुरक्षा के लिए तैनात किया जाता है.

(इस खबर को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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